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यूक्रेन की ओर से रूसी गैस पारगमन समझौते को समाप्त करने की वजह से स्लोवाकिया को ज़बरदस्त झटका लगा है और वह अपनी गैस आवश्यकताओं को पूरा करने करने के लिए वैकल्पिक उपायों की तलाश में जुटा हुआ है.
Image Source: Getty
यूक्रेन गैस ट्रांज़िट समझौता जनवरी 2025 में समाप्त हो चुका है. इसके चलते यूक्रेन के ज़रिए यूरोप में पाइपलाइन के ज़रिए रूसी प्राकृतिक गैस की आपूर्ति थम गई है. ज़ाहिर है कि वर्ष 2019 में गैस पारगमन समझौते को पांच साल के लिए आगे बढ़ाया गया था. यह समझौता पहली बार वर्ष 2009 में हुआ था और तब इस पर 10 साल के लिए हस्ताक्षर किए गए थे. कीव ने इस गैस ट्रांज़िट समझौते को आगे बढ़ाने से इनकार कर दिया है. यूक्रेन का कहना है कि यूरोप में रूसी प्राकृतिक गैस के ट्रांजिट से मास्को को अच्छी-ख़ासी आय हो रही थी और वह इस पैसे का इस्तेमाल यूक्रेन के विरुद्ध युद्ध में कर रहा था. कीव के इस फैसले से गैस की क़ीमत में उछाल आ गया है. यूक्रेन के इस क़दम ने गैस की आपूर्ति के लिए रूस पर निर्भर तमाम यूरोपीय देशों पर व्यापक असर डाला है. पश्चिमी यूरोप के देशों ने तो रूसी गैस की आपूर्ति में हुई इस कमी की भरपाई अमेरिका, क़तर और नॉर्वे से LNG आयात करके कर ली है, जबकि मध्य और दक्षिणी यूरोप के देशों पर रूस से होने वाली गैस की आपूर्ति बाधित होने का बहुत ज़्यादा प्रभाव पड़ा है. ऐसे ही प्रभावित यूरोपीय देशों में स्लोवाकिया का नाम शामिल है, जो कि चारों तरफ से भूमि से घिरा हुआ है. ज़ाहिर है कि स्लोवाकिया पर यूक्रेन के ज़रिए रूसी गैस की आपूर्ति नहीं होने का सबसे बुरा असर पड़ा है. स्लोवाकिया के प्रधानमंत्री रॉबर्ट फिको ने यूक्रेन के इस निर्णय का कड़ा विरोध किया है, साथ ही उन्होंने स्लोवाकिया में रहने वाले यूक्रेनी शरणार्थियों की मदद रोकने और यूक्रेन को बिजली की आपूर्ति बाधित करने की धमकी भी दी है.
स्लोवाकिया के प्रधानमंत्री रॉबर्ट फिको ने यूक्रेन के इस निर्णय का कड़ा विरोध किया है, साथ ही उन्होंने स्लोवाकिया में रहने वाले यूक्रेनी शरणार्थियों की मदद रोकने और यूक्रेन को बिजली की आपूर्ति बाधित करने की धमकी भी दी है.
गौरतलब है कि दक्षिण और मध्य यूरोप के देश, विशेष रूप से इटली, ऑस्ट्रिया, हंगरी और स्लोवाकिया जैसे देश अपनी ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने के लिए रूस पर बहुत अधिक निर्भर है. यूक्रेन के ज़रिए रूसी गैस की आपूर्ति में बाधा उत्पन्न होने से इटली, ऑस्ट्रिया और हंगरी को भी दिक़्क़तों का सामान करना पड़ा, लेकिन उनके पास गैस आपूर्ति के दूसरे वैकल्पिक स्रोत उपलब्ध थे, इस वजह से उन्होंने अपनी ऊर्जा ज़रूरतों को आसानी से पूरा कर लिया. उदाहरण के तौर पर हंगरी को रूस से होने वाली ज़्यादातर गैस की आपूर्ति तुर्कस्ट्रीम पाइपलाइन से ब्लैक सी के ज़रिए होती है. इसी प्रकार से इटली और ऑस्ट्रिया के पास गैस की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए एलएनजी टर्मिनलों से लैस बंदरगाह हैं, यानी इन देशों के पास भी रूस से गैस मंगवाने के लिए वैकल्पिक इंतज़ाम हैं.
लेकिन स्लोवाकिया के साथ ऐसा नहीं है और उसके पास अपनी गैस की ज़रूरत को पूरा करने के संसाधन सीमित हैं. ज़ाहिर है कि यूक्रेन के ज़रिए होने वाला रूसी प्राकृतिक गैस का परिवहन स्लोवाकिया के लिए बहुत मायने रखता है, क्योंकि इससे न केवल उसकी अपनी ऊर्जा ज़रूरतें पूरी होती हैं, बल्कि गैस ट्रांज़िट से भी उसे अच्छी-ख़ासी आय होती है. यही वजह है कि स्लोवाकिया के प्रधानमंत्री रॉबर्ट फिको ने यूक्रेन के फैसले की कड़ी आलोचना की है. वर्ष 2023 में स्लोवाकिया को यूक्रेन के ज़रिए 12.67 बिलियन क्यूबिक मीटर रूसी गैस की आपूर्ति हुई थी, जिसमें से उसने 4.3 बिलियन क्यूबिक मीटर गैस का उपभोग किया था. स्लोवाकिया अपनी बिजली की ज़्यादातर ज़रूरतों को परमाणु ऊर्जा के माध्यम से पूरा करता है और रूसी गैस का इस्तेमाल सिर्फ़ बिजली की बहुत अधिक मांग होने पर ही करता है. इस लिहाज़ से देखा जाए तो, स्लोवाकिया ने रूस से आने वाली प्राकृतिक गैस के ट्रांज़िट से बहुत अधिक राजस्व कमाया है. यानी प्राकृतिक गैस के पारगमन से स्लोवाकिया को एक साल में 500 मिलियन अमेरिकी डॉलर का ट्रांज़िट शुल्क मिला है.
पहला नज़रिया यह है कि स्लोवाकिया के प्रधानमंत्री फिको ने भी हंगरी के प्रधानमंत्री विक्टर ओरबान की तरह ही रूस के साथ अपने देश के नज़दीकी रिश्तों को बहुत ज़्यादा तवज्जो दी है. इसके अलावा फिको ने बाक़ी यूरोपीय देशों के उलट रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का खुलकर समर्थन किया है
स्लोवाकिया ने दिसंबर महीने में यूक्रेन के सामने गैस आपूर्ति समझौते में बदलाव का प्रस्ताव रखा था, जिसके तहत यूक्रेन में प्रवेश से पहले रूसी गैस का स्वामित्व बदल दिया जाए. कहने का मतलब है कि रूस-यूक्रेन सीमा पर अंतर्राष्ट्रीय कंपनियां रूसी गैस की ख़रीद करेंगी और इसके लिए यूक्रेन को ट्रांज़िट शुल्क देंगी. लेकिन कीव ने स्लोवाकिया के इस प्रस्ताव को सिरे से ख़ारिज कर दिया था. यूक्रेन के इस फैसले ने स्लोवाकिया को नाराज़ कर दिया है. स्लोवाकिया का कहना है कि रूसी गैस ट्रांज़िट समझौते को रद्द करने का राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की का फैसला कहीं न कहीं "राजनीति से प्रेरित" था और उनके इस क़दम से यूरोपीय संघ के छोटे राष्ट्रों को काफ़ी नुक़सान उठाना पड़ रहा है.
यूक्रेन के फैसले की वजह से यूरोप में जो भी हालात पैदा हुए हैं, उन्हें दो तरह से देखा जाना चाहिए. पहला नज़रिया यह है कि स्लोवाकिया के प्रधानमंत्री फिको ने भी हंगरी के प्रधानमंत्री विक्टर ओरबान की तरह ही रूस के साथ अपने देश के नज़दीकी रिश्तों को बहुत ज़्यादा तवज्जो दी है. इसके अलावा फिको ने बाक़ी यूरोपीय देशों के उलट रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का खुलकर समर्थन किया है. इतना ही नहीं फिको और ओरबान ने रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान यूक्रेन को दी जाने वाली यूरोपीय मदद का भी विरोध किया है. इसके अलावा, रॉबर्ट फिको ने दिसंबर महीने में राष्ट्रपति पुतिन से बातचीत करने के लिए अचानक मास्को का दौरा भी किया था. वर्ष 2023 में सत्ता में वापसी के बाद से ही फिको ने स्लोवाकिया की विदेश नीति को रूस के लिहाज़ से लचीला बनाया है और मास्को को प्राथमिकता दी है. देखा जाए तो फिको रूस के साथ स्लोवाकिया के रिश्तों पर आंच नहीं आने देना चाहते हैं और इसके लिए जो कुछ भी किया जा सकता है, वो सब कर रहे हैं. हो सकता है कि यूक्रेन द्वारा गैस ट्रांज़िट डील रद्द करने के पीछे यह भी एक प्रमुख कारण हो. गौरतलब है कि फिको ही स्लोवाकिया के ऐसे पहले प्रधानमंत्री नहीं हैं, जो मास्को के साथ अच्छे रिश्तों के हिमायती हैं. फिको से पहले स्लोवाकिया के प्रधानमंत्री रहे व्लादिमीर मेसियार का झुकाव भी रूस की ओर ज़्यादा था. जहां तक वर्तमान प्रधानमंत्री रॉबर्ट फिको का सवाल है, तो मौज़ूदा हालातों ने उन्हें रूस के साथ गलबहियां करने के लिए मज़बूर किया है. दरअसल, वर्ष 2018 में फिको की मंगेतर और खोजी पत्रकार जान कुसियाक की हत्या के बाद स्लोवाकिया में राजनीतिक संकट पैदा हो गया था. उस समय यूरोपियन यूनियन ने कुसियाक की हत्या की निष्पक्ष जांच की मांग की थी. इतना ही नहीं, फिको के ख़िलाफ़ पूरे स्लोवाकिया में विरोध प्रदर्शन का दौरा शुरू हो गया था, जिसके चलते आख़िरकार उन्हें प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था. इसके अलावा, यूक्रेनी शरणार्थियों को लेकर फिको का जो रुख रहा है और जिस प्रकार से वे यूरोपीय संघ की नीतियों और निर्णयों की आलोचना करते रहे हैं, उसने भी उन्हें दूसरे यूरोपीय देशों के राष्ट्राध्यक्षों की तुलना में रूस के क़रीब पहुंचने में अहम भूमिका निभाई है.
दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि यूक्रेन द्वारा पाइपलाइन के ज़रिए होने वाली रूसी गैस की सप्लाई रोकने से स्लोवाकिया को न केवल गैस की कमी से जूझना पड़ रहा है, बल्कि उसे वित्तीय संकट का भी सामना करना पड़ रहा है. ज़ाहिर है कि स्लोवाकिया को रूस से 4.3 बिलियन क्यूबिक मीटर गैस की आपूर्ति होती थी और अब इसके लिए उसे नए गैस आपूर्तिकर्ताओं को तलाशना होगा. यानी दूसरे गैस आपूर्तिकर्ता देशों के साथ माथापच्ची करनी होगी और उनसे गैस आपूर्ति के लिए समझौते करने होंगे. निसंदेह तौर पर नए समझौतों के तहत स्लोवाकिया को गैस के लिए ज़्यादा क़ीमत चुकानी होगी, जिससे उस पर वित्तीय बोझ बढ़ेगा. प्रधानमंत्री रॉबर्ट फिको के मुताबिक़ वैकल्पिक स्रोतों से गैस आपूर्ति के लिए स्लोवाकिया को हर साल लगभग 1 बिलियन यूरो अतिरिक्त ख़र्च करने होंगे. इतना ही नहीं स्लोवाकिया को हर साल यूरोप के बाक़ी हिस्सों में रूसी गैस के पारगमन से होने वाली लगभग 500 मिलियन अमेरिकी डॉलर की आय से भी हाथ धोना पड़ेगा.
एसपीपी की योजना अप्रैल मीहने तक रूसी गैस के आयात को दोगुना करने की है, क्योंकि वर्तमान में जितनी मात्रा में गैस का आयात किया जा रहा है, वो स्लोवाकिया की ज़रूरतों के लिहाज़ से बहुत कम है.
अगर मौज़ूदा वक़्त की बात की जाए, तो स्लोवाकिया के लिए सबसे बड़ी चिंता का मसला आर्थिक मोर्चे मुंह बाए खड़ी चुनौतियां हैं. हालांकि, इस मामले में देश के सभी लोगों की सोच एक जैसी नहीं है. हाल के वर्षों में देखें, तो स्लोवाकिया में राजनीतिक ध्रुवीकरण की जड़ें गहरी हुई हैं. प्रधानमंत्री फिको अपने पिछले कार्यकाल के दौरान कोविड-19 महामारी के दुष्प्रभावों से जूझ रहे थे, साथ ही नागरिकों के लिए रोज़मर्रा की ज़रूरतों को पूरा करने में दिक़्क़तों और बेतहाशा महंगाई का का सामना कर रहे थे. इस बार, वे देश में एक स्थिर सरकार देने के वादे के साथ ही सत्ता में वापस लौटे हैं. स्लोवाकिया में चुनाव के दौरान जो सर्वे किए गए थे, उनमें स्पष्ट संकेत मिला था कि रूस-यूक्रेन युद्ध के सवाल पर देश की आधी आबादी रूस के पक्ष में खड़ी थी. यही वजह है कि चुनाव के दौरान फिको द्वारा किया गया यूक्रेन को सैन्य मदद बंद करने का वादा फायदेमंद साबित हुआ और चुनाव में उन्हें जनता का भरपूर समर्थन मिला. हालांकि, हाल के दिनों में देश के भीतर फिको का विरोध भी बढ़ा है. प्रधानमंत्री फिको द्वारा गैस ट्रांज़िट डील का समर्थन करने और रूस की ओर उनके अत्यधिक झुकाव के विरोध में इसी साल 10 जनवरी को हज़ारों की संख्या में लोगों ने राजधानी ब्रातिस्लावा में प्रदर्शन किया था और सड़कों पर मार्च निकाला था.
स्लोवाकिया के प्रमुख रूसी गैस ख़रीदार एसपीपी (स्लोवाकिया में रूसी गैस का सबसे बड़ा ख़रीदार) ने नवंबर के महीने में देश की अल्पकालिक गैस आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अज़रबैजान से प्राकृतिक गैस ख़रीदने के लिए एक अल्पकालिक अनुबंध पर हस्ताक्षर किए थे. ज़ाहिर है कि जनवरी के महीने में स्लोवाकिया की गैस ज़रूरत को घरेलू भंडार के ज़रिए पूरा किया गया था. प्रधानमंत्री फिको ने इसी साल 20 जनवरी को तुर्किये के राष्ट्रपति एर्दोगान से मुलाकात की थी. इस मुलाकात के दौरान फिको ने तुर्किये होते हुए तुर्कस्ट्रीम पाइपलाइन के ज़रिए रूसी गैस की आपूर्ति सुनिश्चित करने की संभावनाओं पर चर्चा की थी. तुर्कस्ट्रीम पाइपलाइन स्लोवाकिया में प्रवेश करने से पहले तुर्किये से हंगरी तक जाती है. एसपीपी द्वारा तुर्कस्ट्रीम पाइपलान के ज़रिए रूसी गैस का आयात शुरू करने के बाद 1 फरवरी को स्लोवाकिया को एक बार फिर रूसी गैस मिलनी शुरू हो गई थी. एसपीपी की योजना अप्रैल मीहने तक रूसी गैस के आयात को दोगुना करने की है, क्योंकि वर्तमान में जितनी मात्रा में गैस का आयात किया जा रहा है, वो स्लोवाकिया की ज़रूरतों के लिहाज़ से बहुत कम है.
हालांकि, स्लोवाकिया के लिए दूसरे देशों से गैस का आयात करना और वैकल्पिक मार्गों के ज़रिए रूसी गैस हासिल करना बेहद ख़र्चीला सौदा है. इसके अलावा, यह रूसी गैस के परागमन में स्लोवाकिया की पहले जो अहम भूमिका थी, उसे भी पूरी तरह से बदलने वाला है. ज़ाहिर है कि जब स्लोवाकिया से होते हुए बाक़ी यूरोप को रूसी गैस की सप्लाई नहीं होगी, तो दीर्घ अवधि में इसका उसकी राजस्व कमाई पर असर पड़ना लाज़िमी है. ऊपर से यूरोप 2027 तक रूसी गैस पर निर्भरता को पूरी तरह से खत्म करने की योजना पर काम कर रहा है, ज़ाहिर है कि ऐसा होने पर स्लोवाकिया को भारी वित्तीय झटका लगेगा.
एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम यह भी हुआ है कि यूक्रेन के ज़रिए बाक़ी यूरोपीय देशों को होने वाली रूसी गैस की सप्लाई बंद होने के दो महीने बाद, यूक्रेन युद्ध को लेकर जो भी चर्चाएं चल रही थीं, वो दूसरी दिशाओं में मुड़ चुकी हैं. अब हर तरफ से रूस-यूक्रेन युद्ध को समाप्त करने और दोनों के बीच शांति स्थापित करने की कोशिशें ज़ोर पकड़ रही हैं. 12 फरवरी को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच 90 मिनट तक फोन पर बातचीत हुई थी. संभावना जताई जा रही है कि अमेरिका और रूस के रिश्तों की बर्फ भी ज़ल्द ही पिघल सकती है और उनके संबंधों के बीच कड़वाहट समाप्त हो सकती है. अमेरिका के साथ रूस भी इस युद्ध को समाप्त करने की इच्छा ज़ाहिर कर रहा है. अमेरिका के रवैये से प्रतीत हो रहा है कि शांति बहाली होने पर वह रूस के ख़िलाफ़ लगे प्रतिबंधों को भी समाप्त कर सकता है. कहा जा सकता है कि रूस-यूक्रेन युद्ध अपने अंतिम चरण में चल रहा है, लेकिन इस दरम्यान स्लोवाकिया ने इस युद्ध को लेकर दूसरे यूरोपीय देशों से अलग रुख दिखाया है. स्लोवाकिया के प्रधानमंत्री रॉबर्ट फिको ने न सिर्फ़ दोनों देश के बीच युद्ध विराम की आवाज़ बुलंद की है, बल्कि यूक्रेन के ज़रिए रूसी गैस के परिवहन को फिर से बहाल करने की मांग भी उठाई है. इतना ही नहीं, फिको ने यह भी चेताया है कि अगर यूक्रेन को लेकर यूरोपियन काउंसिल के फैसले स्लोवाकियों के हितों के ख़िलाफ़ जाते हैं, तो वे अपनी वीटो पवार का इस्तेमाल करने से भी नहीं चूकेंगे. हालांकि, जैसे-जैसे हालात सामान्य होते जाएंगे और भू-राजनीतिक उथल-पुथल थमने लगेगी, तो इस बात की संभावनाएं बन सकती हैं कि यूक्रेन के माध्यम से रूसी गैस ट्रांज़िट फिर से शुरू करने की दिशा में प्रयास किए जाएं. लेकिन फिलहाल जो परिस्थितियां बनी हुई हैं, उनके मद्देनज़र निकट भविष्य में इसको लेकर किसी समझौते के परवान चढ़ने की संभावना न के बराबर है.
अभिषेक खजूरिया जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर यूरोपियन स्टडीज में जूनियर रिसर्च फेलो हैं.
राजोलि सिद्धार्थ जयप्रकाश ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटेजिक स्टडीज प्रोग्राम में रिसर्च असिस्टेंट हैं.
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Abhishek Khajuria is a Research Intern with the Strategic Studies Programme at the Observer Research Foundation ...
Read More +Rajoli Siddharth Jayaprakash is a Research Assistant with the ORF Strategic Studies programme, focusing on Russia's domestic politics and economy, Russia's grand strategy, and India-Russia ...
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