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Published on Dec 23, 2022 Updated 0 Hours ago

छोटे द्वीपीय देशों (स्मॉल आइलैंड डेवलपिंग स्टेट्स यानी SID) को ये सुनिश्चित करने की ज़रूरत है कि उन्हें भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा में मोहरे की तरह नहीं बल्कि इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण हिस्सेदार के रूप में देखा जाए.

हिंद महासागर में छोटे द्वीपीय देश: चुनौतियां और अवसर

 

भूमिका 

हाल के समय में हिंद महासागर का क्षेत्र (IOR) भू-राजनीति के लिए निर्णायक बन गया है. ये क्षेत्र वैश्विक ऊर्जा और कमोडिटी व्यापार के लिए जोड़़ने वाले केंद्र के रूप में काम करता है और इसमें संचार के महत्वपूर्ण समुद्री मार्ग (SLOC) और बड़े भीड़-भाड़ वाले बिंदु जैसे मलक्का स्ट्रेट शामिल हैं. इस क्षेत्र में निहित स्वार्थ रखने वाली बड़ी ताक़तों की भू-रणनीतिक आकांक्षाओं के लिए IOR सबसे महत्वपूर्ण बन गया है. अमेरिका, चीन, रूस, फ्रांस और यूरोपीय संघ (EU) जैसी ताक़तों ने इस क्षेत्र में आर्थिक एवं राजनीतिक संबंधों को मज़बूत करके और अपने समुद्री शौर्य का प्रदर्शन करके अपनी भागीदारी को बढ़ाना शुरू कर दिया है. इसका उद्देश्य मुख्य रूप से इस क्षेत्र में स्थिरता एवं सुरक्षा और नौपरिवहन की स्वतंत्रता को सुनिश्चित करना है. साथ ही ये तय करना भी है कि वैश्विक व्यापार किसी भी तरह की बाधा से मुक्त रहे. इस क्षेत्र में चीन की बढ़ती मौजूदगी, सामरिक उद्देश्यों के लिए उसकी आर्थिक भागीदारी और भू-राजनीतिक हसरतों ने IOR में कई किरदारों की दिलचस्पी में बढ़ोतरी कर दी है. इसके परिणाम स्वरूप IOR में सामरिक प्रतिद्वंदिता और प्रतिस्पर्धा में बढ़ोतरी हुई है. इसका नतीजा ये हुआ है कि पश्चिमी हिंद महासागर में मौजूद छोटे द्वीपीय देशों (SIDS) जैसे कि मालदीव, मेडागास्कर, कोमोरोस, मॉरिशस और सेशेल्स को महाशक्तियों की इस लड़ाई में खींचा जा रहा है. जब से इंडो-पैसिफिक की संरचना वास्तविक हुई है, तब से इन द्वीपों की भौगोलिक स्थिति का सामरिक महत्व बढ़ा है. ये द्वीप भीड़-भाड़ वाले बिंदुओं तक आसान पहुंच प्रदान करते हैं, संचार के महत्वपूर्ण समुद्री मार्गों के नज़दीक स्थित हैं और ये इस क्षेत्र में निगरानी कर रही समुद्री ताक़तों के लिए संसाधन जमा करने में अड्डे के तौर पर काम कर सकते हैं. इस समुद्री विस्तार में अपनी मौजूदगी को बढ़ावा देने के लिए बड़ी शक्तियां द्वीपीय देशों के साथ बड़े पैमाने पर भागीदारी कर रही हैं. छोटे द्वीपीय देशों के सुरक्षा हित और वो विचार जो बड़ी शक्तियों को यहां खींचकर लाते हैं, उनके बीच बड़ा अंतर है. छोटे द्वीपीय देश संसाधनों, विकास, जलवायु परिवर्तन और सबसे बढ़कर अपना वजूद बचाए रखने के साथ जुड़ी चुनौतियों से मुक़ाबले में समर्थन और सहायता के लिए अलग-अलग अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर अपनी दलील पेश कर रहे हैं. इस लेख का उद्देश्य छोटे द्वीपीय देशों की चुनौतियों को सामने लाना है और ये दिखाना है कि भू-सामरिक प्रतिद्वंदिता एवं प्रतिस्पर्धा उनके हितों के लिए नुक़सानदेह है. 

इस क्षेत्र में चीन की बढ़ती मौजूदगी, सामरिक उद्देश्यों के लिए उसकी आर्थिक भागीदारी और भू-राजनीतिक हसरतों ने IOR में कई किरदारों की दिलचस्पी में बढ़ोतरी कर दी है. इसके परिणाम स्वरूप IOR में सामरिक प्रतिद्वंदिता और प्रतिस्पर्धा में बढ़ोतरी हुई है.

चुनौतियां और अवसर

अपने दूर-दराज़ ठिकाने, आकार, नाज़ुक इकोसिस्टम, कम आबादी और सीमित संसाधनों एवं क्षमताओं की वजह से छोटे द्वीपीय देश (SIDS) कई तरह की चुनौतियों का सामना करते हैं. ज़्यादातर छोटे द्वीपीय देशों को मध्यम आमदनी वाले देशों की श्रेणी में रखा गया है लेकिन कोमोरेस जैसे द्वीप कम विकसित देशों में शामिल हैं. इन देशों की अर्थव्यवस्थाएं अलग-अलग क्षेत्रों के सहारे नहीं हैं और पर्यटन एवं मत्स्य पालन जैसे कुछ क्षेत्रों पर पूरी तरह निर्भर हैं. जलवायु परिवर्तन इनकी चुनौतियों में बढ़ोतरी करता है और उनकी कमज़ोर अर्थव्यवस्था पर एक अतिरिक्त बोझ बन जाता है. प्राकृतिक आपदाओं की वजह से सबसे ज़्यादा अपेक्षाकृत नुक़सान (प्रति वर्ष GDP के 1 प्रतिशत से लेकर 9 प्रतिशत तक) झेलने वाले देशों में से दो-तिहाई देश छोटे द्वीप हैं. संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) के द्वारा 2014 में तैयार एक रिपोर्ट छोटे द्वीपीय देशों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव पर प्रकाश डालती है जिन्हें मोटे तौर पर समुद्र के बढ़ते स्तर, प्राकृतिक आपदाओं में तेज़ी, मौसम के स्वरूप में बदलाव और जलवायु एवं पर्यावरण में बदलाव के कारण जनसंख्या के विस्थापन की श्रेणी में रखा गया है. भविष्य में निचले इलाक़ों में स्थित द्वीपों के पानी में समाने के ख़तरे के अलावा समुद्र का बढ़ता स्तर सीधे रूप से इन देशों के आर्थिक क्षेत्रों पर असर डालता है. उदाहरण के तौर पर समुद्री पानी के आने से ताज़ा पानी के स्रोत पर प्रभाव पड़ता है और कृषि भूमि की गुणवत्ता कम होती है. सीमित रूप से ताज़ा पानी की आपूर्ति के लिए ऐसे प्लांट की ज़रूरत होती है जो पानी से नमक को हटा सकें. ये एक बड़े स्तर की इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजना है जो आम तौर पर एक क्षेत्र में बिखरे द्वीपों के समूह के लिए व्यावहारिक नहीं है. छोटे द्वीपीय देश पहले से ही काफ़ी हद तक खाद्य के आयात पर निर्भर हैं. छोटे द्वीपों में से 50 प्रतिशत देश अपनी 80 प्रतिशत से ज़्यादा खाद्य ज़रूरत का आयात करते हैं. खाद्य उत्पादन में और ज़्यादा कमी आयात पर उनकी निर्भरता को बढ़ा देगी. इस मामले में आत्मनिर्भरता छोटे द्वीपों के लिए एक सपने की तरह है. मछलियों का निर्यात इन देशों के लिए आमदनी का एक बड़ा हिस्सा है. बदलती तटीय आधार रेखा और अवैध, बिना जानकारी एवं अनियंत्रित ढंग से मछली पकड़ने के कारण मत्स्य पालन उद्योग के सामने विशेष आर्थिक क्षेत्र के नुक़सान का ख़तरा है. इसके अलावा बढ़ता समुद्री तापमान भी छोटे द्वीपीय देशों के संसाधनों से समृद्ध क्षेत्रों के समुद्री बायोमास पर नकारात्मक प्रभाव डालता है. मालदीव और सेशेल्स जैसे छोटे द्वीपीय देशों की लगभग 50 प्रतिशत GDP पर्यटन उद्योग पर निर्भर करती है जिस पर महामारी का ख़राब असर पड़ा है. ये स्थिति बाहरी झटकों से द्वीपों की असुरक्षा पर प्रकाश डालती है. हिंद महासागर के क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन से प्रेरित प्राकृतिक आपदाओं में काफ़ी बढ़ोतरी हुई है. आने वाले वर्षों में इसमें और तेज़ी आने की आशंका है. जब जलवायु परिवर्तन का प्रभाव पड़ता है तो छोटे द्वीपीय देशों की असुरक्षा में कई गुना बढ़ोतरी हो जाती है. सतत विकास और जलवायु परिवर्तन की वजह से आई चुनौतियों को कम करना छोटे द्वीपीय देशों के हितों के लिए महत्वपूर्ण हैं. 

मालदीव और सेशेल्स जैसे छोटे द्वीपीय देशों की लगभग 50 प्रतिशत GDP पर्यटन उद्योग पर निर्भर करती है जिस पर महामारी का ख़राब असर पड़ा है. ये स्थिति बाहरी झटकों से द्वीपों की असुरक्षा पर प्रकाश डालती है.

छोटे द्वीपीय देशों के साथ बातचीत के दौरान खाद्य, पानी, आर्थिक और जलवायु की सुरक्षा को सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण होना चाहिए. अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत जैसी शक्तियां इस क्षेत्र में चीन के बढ़ते असर को लेकर चिंतित हैं. उनकी समुद्री सुरक्षा नीति का प्रमुख केंद्र बिंदु नौपरिवहन की स्वतंत्रता; अवैध, बिना जानकारी एवं अनियंत्रित ढंग से मछली पकड़ना; समुद्री डकैती और बिना किसी बाधा के व्यापार जारी रहना है. चीन की समुद्री सुरक्षा नीति में द्वीप एक बड़ी भूमिका निभाते हैं. विवादित दक्षिणी चीन सागर और अलग-अलग क्षेत्रों में द्वीपीय देशों के साथ सहयोग की पहल में चीन की द्वीप विकास रणनीति से इसका प्रमाण मिलता है. छोटे द्वीपीय देशों ने अपनी असुरक्षा को देखते हुए चीन की तरफ़ से विकास और समर्थन की पहल का स्वागत किया है. मेडागास्कर में एक बंदरगाह की विकास परियोजना से लेकर कोमोरोस द्वीप में इंफ्रास्ट्रक्चर विकास की बड़ी परियोजना तक और म़ॉरिशस के साथ मुक्त व्यापार समझौते से लेकर मालदीव को विकास की सहायता तक चीन ने मज़बूती से इस क्षेत्र में अपनी जड़ें जमा ली है. 2018 में जब मालदीव पर चीन का लगभग 1.5 अरब अमेरिकी डॉलर का कर्ज़ बकाया था तो उसे आर्थिक संकट टालने के लिए अपने परंपरागत साझेदार भारत की तरफ़ सहायता के लिए मुड़ना पड़ा था. मेडागास्कर भी चीन की भारी-भरकम मौजूदगी से घिरा हुआ है और उसकी अर्थव्यवस्था को चलाने में चीन शामिल है. इसकी वजह से वो कर्ज़ के जाल में फंसने को लेकर चिंतित है. चीन के फंड से चलने वाले कारोबार का मेडागास्कर की अर्थव्यवस्था में क़रीब 90 प्रतिशत योगदान है. चीन के प्रवासियों ने स्थानीय लोगों के लिए रोज़गार के बेहद कम अवसर छोड़े हैं, व्यापार एवं वाणिज्य को उन्होंने ठप कर दिया है और बाज़ार में चीन के उत्पादों का एकाधिकार स्थापित कर दिया है. मेडागास्कर में इस बड़े पैमाने पर चीन की मौजूदगी उसे अस्थिरता एवं राजनीतिक उथल-पुथल के बड़े जोखिम में डालती है. ये इस बात का स्पष्ट उदाहरण है कि किस तरह बड़ी शक्तियों के सामरिक हित छोटे द्वीपीय देशों को ध्वस्त होने के कगार पर ला सकते हैं. 

हिंद महासागर के क्षेत्र में सभी भागीदारों के हित के लिए ये ज़रूरी है कि वो एक साथ रहें और इस क्षेत्र में सुरक्षा एवं स्थिरता के सामूहिक हित के लिए काम करें. छोटे द्वीपीय देश जलवायु परिवर्तन एवं विकास सहायता के लिए दलील देने के मामले में पहले से ही बेहद सक्रिय हैं. हाल के दिनों में कई ऐसे मंचों का उदय हुआ है जिन्होंने हर क्षेत्र के छोटे द्वीपीय देशों को महत्वपूर्ण जगह मुहैया कराई है. इसी तरह का एक मंच है SIDS एक्सीलीरेटेड मॉडेलिटीज़ ऑफ एक्शन (SAMOA) पाथवे जो कि संयुक्त राष्ट्र के तहत एक अंतर्राष्ट्रीय ढांचा है. इसने असुरक्षित द्वीपों के समर्थन के लिए अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से एक मज़बूत कार्रवाई की शुरुआत की है. ये इन देशों को उनका सतत विकास लक्ष्य (SDG) हासिल करने में मदद के लिए राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय विकास कोशिशों का मार्ग-निर्देशन करता है. इसी तरह, अलायंस ऑफ स्मॉल आईलैंड स्टेट्स (छोटे द्वीपीय देशों का गठबंधन) 39 छोटे द्वीपीय देशों का एक प्रतिनिधि संगठन है जो उनकी शिकायतों को आवाज़ देने के लिए एक मंच प्रदान करता है. हिंद महासागर आयोग एक और अंतर-सरकारी संगठन है जिसमें कोमोरोस, मेडागास्कर, मॉरिशस, सेशेल्स और रीयूनियन (फ्रांस का बाहरी क्षेत्र) जैसे द्वीप शामिल हैं. इन मंचों का इस्तेमाल छोटे द्वीपीय देशों की अपनी स्थिरता एवं सतत विकास पर भू-राजनीतिक तनावों के असर की चर्चा करने और इस क्षेत्र में दूसरे भागीदारों के साथ संपर्क के लिए किया जा सकता है. इस तरह की बातचीत के ज़रिए छोटे द्वीपीय देश इस अवसर का इस्तेमाल ये सुनिश्चित करने में कर सकते हैं कि बड़ी ताक़तें उनके सुरक्षा हितों को समझें और व्यापक सुरक्षा संरचना में उन्हें शामिल करें. 

इस समय की आवश्यकता है छोटे द्वीपीय देशों की महत्वपूर्ण भागेदारी के साथ मज़बूत गठबंधनों और क्षेत्रीय समूहों का उभरना ताकि दूसरे किरदार उनके मुद्दों एवं हितों को नज़रअंदाज़ न कर सकें.

निष्कर्ष

ज़्यादातर मामलों में हिंद महासागर क्षेत्र में सुरक्षा को लेकर फ़ैसले प्रभावशाली और बड़ी ताक़तों के द्वारा छोटे द्वीपीय देशों की सहमति के बिना ही लिए गए हैं. हिंद महासागर क्षेत्र में स्थित छोटे द्वीपीय देश अपनी सामरिक स्थिति का फ़ायदा उठा सकते हैं और इसका इस्तेमाल बड़ी ताक़तों को अपने सुरक्षा हितों एवं मुद्दों को स्वीकार करवाने में कर सकते हैं. इस समय की आवश्यकता है छोटे द्वीपीय देशों की महत्वपूर्ण भागेदारी के साथ मज़बूत गठबंधनों और क्षेत्रीय समूहों का उभरना ताकि दूसरे किरदार उनके मुद्दों एवं हितों को नज़रअंदाज़ न कर सकें. दूसरी तरफ़, हिंद महासागर क्षेत्र के छोटे द्वीपीय देशों को निश्चित रूप से एक-दूसरे के साथ अपने सहयोग को मज़बूत करना चाहिए. उन्हें हर हाल में एक सामूहिक प्रयास करना चाहिए ताकि अपनी चुनौतियों एवं मुद्दों के बारे में दूसरे किरदारों को जागरुक कर सकें. भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा में मोहरे की तरह दिखने के बदले छोटे द्वीपीय देशों को हर हाल में इस क्षेत्र के एक महत्वपूर्ण भागीदार के तौर पर दिखना चाहिए. ये सुरक्षित और स्थिर हिंद महासागर क्षेत्र के लिए आवश्यक सोच, नीति और दृष्टिकोण में प्रमुख बदलाव है. 

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