Published on Dec 20, 2022 Updated 0 Hours ago

सिंगल-यूज़ प्लास्टिक पर प्रतिबंध लागू हुए पांच महीनों से ज़्यादा का वक़्त गुज़र चुका है लेकिन ज़मीनी स्तर पर इसका बहुत मामूली असर दिखाई दे रहा है.

भारत में सिंगल-यूज़ प्लास्टिक पर लागू प्रतिबंध की पड़ताल: कार्यान्वयन और सुधार की गुंजाइश

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1950 से 2017 के बीच दुनिया में तैयार 9.2 अरब टन प्लास्टिक में से तक़रीबन 7 अरब टन प्लास्टिक कचरा बन चुका है. इन्हें या तो कूड़ा भराव क्षेत्रों(landfills) या खुले में फेंक दिया गया है. वैश्विक स्तर पर प्लास्टिक प्रदूषण की समस्या से निपटारे में रिसायक्लिंग से कोई ख़ास मदद नहीं मिल सकती. प्लास्टिक प्रदूषण के ख़ात्मे के मक़सद से संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा (UNEA 5.2) ने एक अंतर-सरकारी वार्ताकार समिति (INC)का गठन किया है. इस समिति को 2024 के अंत तक अंतरराष्ट्रीय पटल पर क़ानूनी रूप से बाध्यकारी प्रावधानों का मसौदा तैयार करने की ज़िम्मेदारी दी गई है. INC की पहली बैठक 28 नवंबर से 2 दिसंबर 2022 तक उरुग्वे में आयोजित की गई. बैठक से पहले इस पूरी क़वायद के समर्थन में कई सदस्य राष्ट्रों, देशों के समूहों और अंतर-सरकारी संगठनों ने बयान जारी किए. हालांकि भारत इन देशों में शामिल नहीं था.

प्लास्टिक प्रदूषण पर भारत का रुख़

आंकड़ों के मुताबिक 2020-21 में भारत में 35 लाख टन प्लास्टिक का उत्पादन हुआ. हालांकि देश में इसके आधे हिस्से की रिसायक्लिंग कर पाने की ही क्षमता मौजूद है. इन्हीं हक़ीक़तों को मद्देनज़र रखते हुए देश में सिंगल-यूज़ प्लास्टिक (SUP)के तौर पर पहचाने गए प्लास्टिक उत्पादों के निर्माण, आयात, भंडारण, वितरण, बिक्री और इस्तेमाल को 1 जुलाई 2022 से बंद करने का फ़ैसला किया गया. इन उत्पादों की उपयोगिता बेहद निम्न स्तर की होती है और ये फ़ौरन कचरे में तब्दील हो जाते हैं. वैसे भी प्लास्टिक प्रदूषण की समस्या से निपटने में रिसायक्लिंग शायद ही कारगर साबित होता है. UNEP के कार्यकारी निदेशक का विचार है कि “प्लास्टिक प्रदूषण के संकट से बाहर निकलने में रिसायक्लिंग की क़वायद मददगार नहीं होने वाली, इसकी बजाए हमें सर्कुलर अर्थव्यवस्था की ओर कामयाबी से रुख़ करने के लिए व्यवस्थागत परिवर्तनकारी उपायों की दरकार है. ”बहरहाल थर्मोडायनामिक्स के सिद्धांत सर्कुलर अर्थव्यवस्था के सपनों को साकार करने के रास्ते की अड़चन बने हुए हैं. ऊर्जा को निरंतर रिसायकल करते जाने से उसकी गुणवत्ता या सघनता में कुछ न कुछ गिरावट आती ही है. कोई भी रिसायक्लिंग संयंत्र, उसी क्षमता के दूसरे रिसायक्लिंग संयंत्र से हासिल की गई अतिरिक्त गर्मी के बूते ही संचालित नहीं किया जा सकता.

प्लास्टिक प्रदूषण के ख़ात्मे के मक़सद से संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा ने एक अंतर-सरकारी वार्ताकार समिति का गठन किया है. इस समिति को 2024 के अंत तक अंतरराष्ट्रीय पटल पर क़ानूनी रूप से बाध्यकारी प्रावधानों का मसौदा तैयार करने की ज़िम्मेदारी दी गई है.

बहरहाल, 2022 तक चुनिंदा SUP उत्पादों पर पूरी तरह से लगाम लगाने के लक्ष्य से भारत सरकार के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) ने 12 अगस्त 2021 को प्लास्टिक कचरा प्रबंधन संशोधन नियमावली, 2021 की अधिसूचना जारी कर दी. इसके मुताबिक प्रतिबंध पर अमल सुनिश्चित करने की ज़िम्मेदारी संबंधित राज्य सरकारों और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों की है. लिहाज़ा ये क़वायद सबके लिए एक समान नहीं है और राज्य सरकारें अपनी इच्छा के मुताबिक इससे जुड़े प्रावधानों की सख़्ती में संशोधन कर सकती हैं.

राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिबंध सूची में 21 SUP उत्पाद शामिल हैं. इन उत्पादों को कई श्रेणियों में बांटा गया है: (1) पॉलिथिन थैलों के संदर्भ में न्यूनतम मोटाई वाले कैरी बैग्स और ग़ैर-बुनाई वाले थैलों के संदर्भ में न्यूनतम वज़न, (2) प्लास्टिक की छड़ियां, (3) पैकेजिंग/रैपिंग फ़िल्म्स, (4) छुरी-कांटे जैसे कटलरी उत्पाद, और (5) PVC बैनर्स, प्लास्टिक से बने झंडे, सजावट (थर्मोकॉल) के लिए पॉलीस्टाइरीन, स्ट्रॉ, प्लास्टिक की चादरें और पान मसाले के पैकेट समेत अन्य उत्पाद.

SUP पर लगी पाबंदी की तामील- जनता की भागीदारी

SUP पर प्रतिबंध को प्रभाव में आए 5 महीने से ज़्यादा वक़्त गुज़र चुका है, लेकिन ज़मीन पर इसका असर ना के बराबर दिखाई दे रहा है. SUP उत्पाद पहले की तरह अब भी धड़ल्ले से उपलब्ध हैं. इन प्रतिबंधित उत्पादों की मांग को पूरा करने के लिए सस्ते वैकल्पिक साधनों की ग़ैर-मौजूदगी, प्रभावी जन-भागीदारी के अभाव और अंतिम उपभोक्ताओं की ओर से संजीदा क़दम ना उठाए जाने (मसलन SUP के इस्तेमाल से इनकार करने) के चलते, पाबंदी से जुड़ी क़वायद आगे भी कामयाबी से कोसों दूर रहेगी.

भारत सरकार के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने 12 अगस्त 2021 को प्लास्टिक कचरा प्रबंधन संशोधन नियमावली, 2021 की अधिसूचना जारी कर दी.

नागरिक कार्रवाई के ज़रिए पाबंदी को अमल में लाने के लिए केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) ने एक ऐप (SUP-CPCB) लॉन्च किया है. इस प्रक्रिया में नागरिकों से पहरेदार की भूमिका निभाते हुए बैन का उल्लंघन करने वालों के ख़िलाफ़ उचित कार्रवाई करने में अधिकारियों की मदद करने का अनुरोध किया गया है. इस ऐप के ज़रिए देश के आम नागरिक, कारखानों में सिंगल-यूज़ प्लास्टिक के उत्पादन, रेस्टोरेंटों में इस्तेमाल, दुकानों में बिक्री और सप्लायर्स द्वारा इनके भंडारण और वितरण किए जाने से जुड़े मामलों की शिकायत दर्ज करा सकते हैं. SUP के प्रयोग पर नकेल कसने की व्यवस्था में नागरिक कार्रवाई के प्रेरक के तौर पर ये ऐप बेहद प्रभावी साबित हो सकता है. दरअसल राज्यसत्ता की कोई भी व्यवस्था, अकेले SUP पर सार्वभौम प्रतिबंध का लक्ष्य हासिल करने में कामयाब नहीं हो सकती.

ऐप के डैशबोर्ड का स्क्रीनशॉट

हालांकि इस ऐप को लेकर जन-जागरूकता का ज़बरदस्त अभाव है. अगस्त 2022 से इस ऐप के एंड्रॉयड संस्करण को अब तक सिर्फ़ 5000 बार डाउनलोड किया गया है. ये ऐप प्रयोगकर्ता के अनुकूल भी नहीं है (55 रिव्यूज़ के आधार पर 5 के पैमाने पर इसे महज़ 3.2 की रेटिंग मिली है). इस ऐप के ज़रिए शिकायतें दर्ज करने और उनके बारे में जानकारियां हासिल करने के लिए लॉग-इन करते वक़्तशिकायतकर्ताओं से अहम जानकारियां मांगी जाती हैं. इस तरह शिकायतकर्ताओं की पहचान गुप्त रखने की क़वायद नाकाम हो सकती है. शिकायत दर्ज कराते वक़्त ये ऐप तमाम व्यक्तिगत जानकारियां मांगता है. इनमें नाम, मोबाइल नंबर और ई-मेल आईडी शामिल हैं. हालांकि व्यक्तिगत ब्योरे दिए बिना भी शिकायत दर्ज कराना मुमकिन है, लेकिन लॉग-इन किए बग़ैर सूचनाएं जुटाने का काम अब भी चुनौतीपूर्ण बना हुआ है.

उल्लंघन करने वालों को दंडित करने की बजाए सिंगल-यूज़ प्लास्टिक के तौर पर पहचाने गए उत्पादों का निर्माण और प्रयोग बंद करना, प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने की क़वायद का एक अहम हिस्सा होना चाहिए.

ऐप का डैशबोर्ड, देशभर में क्षेत्रवार दर्ज की गई शिकायतों का खाका पेश करता है. इसमें पांच श्रेणियों में से हरेक में दर्ज की गई शिकायतों के साथ-साथ उन मामलों की तादाद दी गई है जिनमें या तो कार्रवाई शुरू कर दी गई है या जिन्हें अंजाम तक पहुंचाया जा चुका है. बहरहाल कार्रवाई के मिज़ाज और अंतिम नतीजों के बारे में पता लगाने का कोई तरीक़ा ऐप में मौजूद नहीं है. लिहाज़ा मुमकिन है कि राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के संबंधित अधिकारी को कोई मामला महज़ सौंपे जाने को ही कार्रवाई के रूप में दर्ज कर लिया गया हो.

सुधार की गुंजाइश

उल्लंघन करने वालों को दंडित करने की बजाए सिंगल-यूज़ प्लास्टिक के तौर पर पहचाने गए उत्पादों का निर्माण और प्रयोग बंद करना, प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने की क़वायद का एक अहम हिस्सा होना चाहिए.  प्रतिबंध और उसके बाद जुर्माने की व्यवस्था, लघु और सूक्ष्म उद्यमों को कारोबार से बाहर कर सकती है. दूसरी ओर, बड़ी कॉरपोरेट इकाइयां, SUP के निर्माण और इस्तेमाल से जुड़ा जुर्माना सहते हुए भी कामयाबी से मुनाफ़ा कमाते हुए आगे बढ़ सकती हैं. ऐसे में प्रदूषण फैलाने वालाही हर्जाना भरेगा का सिद्धांत उलटा साबित हो सकता है. इस नई क़वायद से प्रदूषण करने वाला प्रदूषण करने की क्षमता हासिल करने के लिए भुगतान करने वाली इकाई में बदल जाएगा. इस सिलसिले में हम सितंबर या उसके बाद की निर्माण तारीख़ वाले सिगरेट के पैकेट की मिसाल ले सकते हैं. इन्हें अब भी प्लास्टिक फ़िल्म के आवरण में ही बेचा जा रहा है. ज़ाहिर है, मिलती-जुलती ख़ासियतों और एक-जैसी लागतों वाले वैकल्पिक उत्पादों के नदारद रहते सिंगल-यूज़ प्लास्टिक का इस्तेमाल बदस्तूर जारी रहेगा.

28 जून 2022 को MoEFCC की ओर से जारी प्रेस विज्ञप्ति में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों (MSME) से जुड़ी इकाइयों के लिए क्षमता निर्माण कार्यशालाएं चलाए जाने का ज़िक्र किया गया. इसके ज़रिए उन्हें प्रतिबंधित सिंगल यूज़ प्लास्टिक उत्पादों के विकल्पों का निर्माण करने के लिए तकनीकी सहायता मुहैया कराई जाएगी. इस क़वायद में CPCB/SPCBs/PCCs के साथ-साथ सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग मंत्रालय (MSMME), केंद्रीय पेट्रोकेमिकल्स इंजीनियरिंग और तकनीकी संस्थान (CIPET) और राज्यों में स्थित उसके केंद्र भी शामिल होंगे. ज़ाहिर तौर पर प्रतिबंधित सिंगल-यूज़ प्लास्टिक्स की बजाए उनका विकल्प अपनाने की क़वायद में ऐसे उद्योगों की मदद के लिए भी ज़रूरी प्रावधान किए गए हैं. हालांकि प्रतिबंधित सिंगल-यूज़ प्लास्टिक्स के स्थान पर वैकल्पिक उत्पाद तैयार करने के लिए तकनीकी सहायता या किसी तरह की वित्तीय मदद करने को लेकर CPCB/SPCBs, MSMME और CIPET की ओर से सार्वजनिक तौर पर कोई सूचना मुहैया नहीं कराई गई है. अच्छा तो ये होता कि इस तरह के प्रावधान पाबंदी आयद किए जाने से पहले कर दिए जाते. दरअसल छोटे-छोटे उपायों के सही क्रम से ही किसी जटिल कार्रवाईकी कामयाबी या नाकामी सुनिश्चित होती है और उसके मुनासिब परिणाम हासिल किए जा सकते हैं. मौजूदा चर्चा के तहत हालात ये हैं कि प्रतिबंध लागू है, ऐप भी मौजूद है और प्रयोगकर्ताओं के अनुकूल ना होने के बावजूद देश भर के जागरूक नागरिक उसमें शिकायतें दर्ज करवा रहे हैं.हालांकि इन तमाम उपायों के बावजूद सिंगल-यूज़ प्लास्टिक पहले की तरह हर ओर दिखाई दे रहे हैं. ऐसे में एक तयशुदा मियाद तक SUP पर लगी पांबदी को मुल्तवी रखना ही समझदारी भरा क़दम होगा. मक़सद में कामयाबी हासिल करने के लिए इस दौरान कार्रवाइयों का क्रम दोबारा तैयार कर नए सिरे से पाबंदी आयद किए जाने की ज़रूरत है. सौ बात की एक बात ये है कि उल्लंघन करनेवालों की निगरानी करने या उनपर जुर्माना लगाने की बजाए SUP के इस्तेमाल को बंद करने में कामयाबी पाना ज़्यादा अहमियत रखता है.

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