Author : Pratnashree Basu

Expert Speak Raisina Debates
Published on Nov 15, 2024 Updated 0 Hours ago

शिगेरू इशिबा को प्रधानमंत्री बनाकर लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी (LDP) ने अपना राजनीतिक वर्चस्व बनाए रखा है; हालांकि, भ्रष्टाचार के आरोपों, बढ़ती महंगाई और आबादी के संकट के बीच जनता का समर्थन कम होते जाने से उनके लिए आगे की राह अस्थिर नज़र आ रही है

जापान में शिगेरू इशिबा फिर से प्रधानमंत्री, राजनीतिक अस्थिरता के बीच नया कार्यकाल

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लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी (LDP) को जनसमर्थन घटने की वजह से जापान की घरेलू राजनीति में ज़बरदस्त उथल-पुथल का दौर चल रहा है. LDP दूसरे विश्व युद्ध के बाद से ही जापान की सत्ता में बनी हुई है. उसको जनसमर्थन घटने की वजह, महंगाई की मौजूदा मार और रहन सहन के ख़र्च में बढ़ोतरी, राजनीतिक भ्रष्टाचार, उम्रदराज़ होते समाज और घटती कामकाजी आबादी को बताया जा सकता है. अक्टूबर के आख़िर में हुए चुनाव के नतीजे जनता की खीझ को दिखाते हैं. पिछले एक दशक में ऐसा पहली बार हुआ है, जब लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी को देश के बहुमत का समर्थन नहीं मिल सका. जिसके बाद, देश का प्रधानमंत्री का चुनाव करने के लिए 11 नवंबर को जापान की संसद डाइट का विशेष सत्र बुलाना पड़ गया. जनता के बीच LDP के समर्थन में काफ़ी गिरावट आई है. हाल के चुनाव में पार्टी को केवल 34 फ़ीसद वोट हासिल हुए. जिसकी वजह से लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी को 11 नवंबर को प्रधानमंत्री के चुनाव से पहले संसद में बहुमत जुटाने के लिए डेमोक्रेटिक पार्टी फॉर दि पीपुल (DPP) से समर्थन मांगना पड़ा. वैसे तो लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी और उसकी गठबंधन की साझीदार कोमितो ने हाल के चुनावों में सबसे ज़्यादा सीटें जीती हैं. लेकिन, उनके हाथ से बहुमत निकल गया. जबकि 2012 से इस गठबंधन के पास बहुमत बना हुआ था. इस बार बहुमत नहीं मिलने की वजह से प्रधानमंत्री शिगेरू इशिबा को अपनी नीतियां लागू करने के लिए छोटी छोटी पार्टियों का सहारा लेना पड़ेगा. सरकार की ये कमज़ोरी उस वक़्त उजागर हो गई, जब 30 साल में पहली बार प्रधानमंत्री के नाम पर मुहर लगाने की वोटिंग को दूसरे राउंड तक ले जाना पड़ा. इससे पता चलता है कि संसद में सत्ताधारी (LDP) की स्थिति कितनी नाज़ुक है. इसके बावजूद, चूंकि LDP के पास सबसे ज़्यादा वोट हैं, ऐसे में जापान के सांसदों ने डाइट के विशेष सत्र में प्रधानमंत्री पद के लिए शिगेरू इशिबा के नाम पर मुहर लगा दी.

 

शिगेरू इशिबा ने मध्यावधि चुनाव क्यों कराए?

 

इशिबा ने 27 अक्टूबर 2024 को संसद के चुनाव इसलिए कराए, क्योंकि उनकी पार्टी पर वित्तीय भ्रष्टाचार करने के इल्ज़ाम लगे थे. आरोप है कि LDP ने ख़ुद को मिले राजनीतिक फंड को कम करके बताया था. इस आरोप की वजह से लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी पहले से ही कमज़ोर स्थिति में थी. पार्टी पर जनता का भरोसा और कम हो उससे पहले प्रधानमंत्री इशिबा ने वैधानिक औपचारिकताएं पूरी करते ही संसद को भंग करने का फ़ैसला किया. इन औपचारिकताओं में इशिबा सरकार की नीति को लेकर भाषण और पार्टी के प्रतिनिधियों के सवालों के जवाब देना शामिल था. तुरत फुरत चुनाव कराने का मक़सद, सरकार की छवि और ख़राब होने से पहले जनता का विश्वास दोबारा हासिल करना था. लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी के लिए न केवल संसद में अपना बहुमत बनाए रखना ज़रूरी था, बल्कि अपनी सीटें घटने से भी बचाना था. जबकि, अगर पार्टी पर लगे आरोपों को लेकर लंबे समय तक चर्चाएं चलती रहतीं, तो LDP को और भी नुक़सान हो सकता था.

इशिबा ने 27 अक्टूबर 2024 को संसद के चुनाव इसलिए कराए, क्योंकि उनकी पार्टी पर वित्तीय भ्रष्टाचार करने के इल्ज़ाम लगे थे. आरोप है कि LDP ने ख़ुद को मिले राजनीतिक फंड को कम करके बताया था

बार बार नेतृत्व परिवर्तन के बावजूद, लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी पिछले एक दशक से लगातार सत्ता में बनी हुई थी. इस बार के चुनाव में भी वोटिंग कम होने और विपक्ष के बंटे होने की वजह से LDP के ही जीतने की संभावना जताई गई थी. इसके अलावा, गठबंधन में सहयोगी दल कोमितो के समर्थन ने LDP की जीत की संभावना और बढ़ा दी थी. चूंकि, LDP बहुमत के लिए कोमितो पर निर्भर है. इसलिए उसकी नीतियों पर इस छोटे सहयोगी का भी काफ़ी असर रहता है. कोमितो ऐतिहासिक रूप से लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी के सुरक्षा संबंधी आक्रामक उपायों, जैसे कि, दूर तक मार करने वाली मिसाइलें ख़रीदने और हथियारों के निर्यात पर लगी पाबंदी हटाने जैसे क़दमों का विरोध करती आई है. इन्ही वजहों से जापान, यूक्रेन को हथियार नहीं भेज सका और न ही दक्षिण पूर्व एशिया के उन देशों की मदद कर सका, जो साउथ चाइना सी में चीन के दावों का विरोध करते हैं.

 

ऐसे में आम चुनाव प्रधानमंत्री शिगेरू इशिबा के लिए एक अहम इम्तिहान थे. मुख्य विपक्षी दल कॉन्स्टीट्यूशनल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ जापान (CDP) ने चुनाव से ठीक पहले योशीहिको नोडा को अपना नेता चुना था और पार्टी के बारे में माना जा रहा था कि वो चुनाव का सामना करने के लिए ठीक से तैयार नहीं है, ख़ास तौर से तब और जबकि जापान की कम्युनिस्ट पार्टी (JCP) सौ से ज़्यादा सीटों पर चुनाव लड़ रही थी. विपक्ष के वोट में विभाजन ने LDP की सीटों में कमी आने की आशंका को घटा दिया. अगर LDP को बहुमत मिल जाता, तो उससे पार्टी के भीतर प्रधानमंत्री इशिबा की हैसियत काफ़ी मज़बूत हो जाती और उससे जनता के बीच समर्थन बढ़ता और वो पार्टी के ऊपर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों के झटके से भी उबर जाते. इसीलिए, लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी के कई सांसदों ने घरेलू राजनीतिक मंज़र को स्थिर करने के लिए तुरंत चुनाव कराने के फ़ैसले का समर्थन किया.

 

आगे का सफर कैसा होगा?

 

हालांकि, आम चुनावों ने जापान को राजनीतिक अस्थिरता के मोड़ पर ला खड़ा किया है. इसकी मुख्य वजह तो प्रधानमंत्री इशिबा की अगुवाई वाली सत्ताधारी पार्टी को हुआ सीटों का नुक़सान है. LDP के संसद के निचले सदन में बहुमत हासिल कर पाने में नाकामी, जापान के राजनीतिक परिदृश्य में आए एक बड़े बदलाव का प्रतीक है. इशिबा ने ये चुनाव राजनीतिक फंड को लेकर भ्रष्टाचार के आरोपों के बीच, पार्टी के भीतर अपनी पकड़ मज़बूत बनाने के लिए कराए थे. लेकिन, इसका नतीजा CDP और DPP जैसे विपक्षी दलों के और ताक़तवर बनकर उभरने के तौर पर सामने आया. वैसे तो लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी और कोमितो ने मिलकर संसद में सबसे ज़्यादा सीटें हासिल की हैं. लेकिन, नए विधेयक पारित कराने के लिए उन्हें छोटे छोटे दलों का सहारा लेना पड़ेगा. इससे पता चलता है कि इशिबा सरकार के लिए आगे की राह कितनी मुश्किल रहने वाली है. राजनीति के इन बदले समीकरणों के असर कई तरह से दिख सकते हैं. जैसे कि इससे विधायी कार्यों की रफ़्तार धीमी हो सकती है. इससे आर्थिक बहाली, सुरक्षा और रक्षा के सुधारों के मामले में नीतिगत निरंतरता पर असर पड़ सकता है. ख़ास तौर से उस वक़्त जब हिंद प्रशांत क्षेत्र में बढ़ते तनाव को देखते हुए जापान अपनी रक्षा क्षमताओं को और मज़बूत बनाना चाहता है. इन चुनावों ने बैंक ऑफ जापान के मौद्रिक सख़्ती करने को लेकर भी अनिश्चितताएं पैदा कर दी हैं. क्योंकि किसी भी राजनीतिक बदलाव से उन तयशुदा वित्तीय नीतियों में खलल पड़ सकता है, जिनको जापान की महंगाई जैसी आर्थिक चुनौतियों से निपटने के लिए तैयार किया गया है. इसके अतिरिक्त राजनीतिक स्थिरता का असर अन्य देशों के साथ जापान के रिश्तों और विशेष रूप से क़रीबी सहयोगी अमेरिका के साथ इलाक़े में सुरक्षा सहयोग को लेकर उसकी प्रतिबद्धताओं पर भी पड़ सकता है. ये उथल पुथल उस वक़्त मची है, जब पूर्वी चीन सागर और व्यापक हिंद प्रशांत क्षेत्र में चीन के आक्रामक रुख़ की वजह से जापान के सामने सुरक्षा की अहम चुनौतियां खड़ी हैं.

नए विधेयक पारित कराने के लिए उन्हें छोटे छोटे दलों का सहारा लेना पड़ेगा. इससे पता चलता है कि इशिबा सरकार के लिए आगे की राह कितनी मुश्किल रहने वाली है.

उम्मीद की जा रही है कि शिगेरू इशिबा बहुत जल्दी नई कैबिनेट बनाएंगे, जिसमें कीसुके सुज़ुकी को न्याय मंत्री बनाया जाएगा. ताकू इतो कृषि मंत्री और कोमितो के हिरोमासा नकानो भूमि विभाग के मंत्री होंगे. अन्य मंत्रिपद उन्हीं नेताओं के पास रहने की उम्मीद है, जो इशिबा की पिछली कैबिनेट में थे. इशिबा की फ़ौरी चुनौतियों में एक ऐसे पूरक बजट को तैयार करना शामिल है, जिससे रहन सहन के बढ़ते ख़र्च की समस्या से निपटा जा सके. इसके लिए उनको डेमोक्रेटिक पार्टी फॉर दि पीपुल (DPP) के सहयोग की ज़रूरत पड़ सकती है. DPP के नेता यूइचिरो तमाकी भी भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रहे हैं. वैसे तो विपक्षी दलों में एकता की कमी है. क्योंकि वो बड़े मुद्दों पर आपस में बंटे हुए हैं और इसी वजह से प्रधानमंत्री पद के लिए किसी और उम्मीदवार के नाम पर एकमत नहीं हो सके. लेकिन, ऐसे नाज़ुक मोड़ पर विपक्ष में ये फूट शायद प्रधानमंत्री इशिबा के लिए वरदान साबित हो. क्योंकि उनके लिए आगे की राह कांटों भरी दिख रही है. उनकी अपनी पार्टी के सांसदों के बारे में भी बताया जा रहा है कि वो प्रधानमंत्री के ऊपर इस बात का दबाव बना रहे हैं कि वो अगले साल का बजट पारित होने के बाद इस्तीफ़ा दे दें.

घरेलू स्तर पर जापान का राजनीतिक भविष्य काफ़ी हद तक इस बात पर निर्भर करेगा कि सत्ताधारी गठबंधन या फिर गठबंधन में शामिल होने वाली नई पार्टियां किस तरह से सरकार को स्थिर बनाती हैं.

जापान की संसद के ऊपरी सदन के चुनाव अगले साल होने वाले हैं. ऐसे में अगर भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी अपनी पार्टी के लिए शिगेरू इशिबा जनता के बीच समर्थन दोबारा मज़बूत नहीं बना पाते, तो सत्ताधारी पार्टी का मामूली बहुमत और भी कम हो जाने की आशंका है. LDP के महासचिव हिरोशी मोरियामा ने राजनीतिक फंड में भ्रष्टाचार के आरोपों के जवाब में कहा कि फंड का प्रबंधन बहुत ईमानदारी से किया जा रहा था. हालांकि, उन्होंने ये ज़रूर माना कि लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी अपनी इस बात को मज़बूती से जनता के बीच नहीं रख सकी है और जनता को ये लगता है कि LDP ने ‘भ्रष्टाचार से कमाई गई रक़म’ रखी हुई है और ‘टैक्स चोरी’ की कोशिश की. चूंकि शिगेरू इशिबा ही दोबारा प्रधानमंत्री बन गए हैं, इसलिए जापान की सुरक्षा और विदेश नीति की पुरानी नीतियां ही जारी रहने की संभावना है. हालांकि, घरेलू स्तर पर जापान का राजनीतिक भविष्य काफ़ी हद तक इस बात पर निर्भर करेगा कि सत्ताधारी गठबंधन या फिर गठबंधन में शामिल होने वाली नई पार्टियां किस तरह से सरकार को स्थिर बनाती हैं. अंदरूनी मतभेदों से किस तरह निपटती हैं और राजनीतिक रूप से विभाजित संसद में एक ठोस नीतिगत रूप-रेखा कैसे तैयार करती हैं.

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