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Published on May 01, 2024 Updated 3 Hours ago

म्यांमार में सितवे पोर्ट को असरदार ढंग से नियंत्रित करने से भारत को महत्वपूर्ण साझेदारी तैयार करते हुए क्षेत्रीय सुरक्षा और स्थिरता को बढ़ावा देने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की अनुमति मिलेगी.

खुली आवाजाही: म्यांमार में बंदरगाह के मामले में भारत का दबदबा

एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम के तहत भारत सरकार ने 6 अप्रैल 2024 को इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड (IPGL) के द्वारा म्यांमार के रखाइन प्रांत में कालादान नदी पर सितवे बंदरगाह के पूरी तरह से नियंत्रण के प्रस्ताव को मंज़ूरी दी है. इस अहम कदम से ईरान के चाबाहार में शाहिद बेहिश्ती पोर्ट के बाद सितवे पोर्ट दूसरा अंतर्राष्ट्रीय बंदरगाह बन गया है जिसका प्रबंधन IPGL के द्वारा किया जाएगा. IPGL सागरमाला डेवलपमेंट कंपनी लिमिटेड की एक सहायक कंपनी है जो बंदरगाह, जहाज़रानी और जलमार्ग मंत्रालय के तहत है. चाबाहार पोर्ट में जहां भारत केवल दो टर्मिनल की व्यवस्था देखता है, वहीं सितवे पोर्ट पर भारत का पूरी तरह से नियंत्रण होगा और वो इसे घरेलू बंदरगाह की तरह ही मान सकता है.

पिछले दिनों हुए समझौते में भारत को अधिक समय तक लीज़ का प्रावधान शामिल है जिसे हर तीन साल में बढ़ाया जा सकेगा. बंदरगाह का और ज़्यादा विकास करने के लिए IPGL फंड इकट्ठा कर सकेगी. साथ ही उसका इरादा व्यापारियों से भारतीय रुपये में लेन-देन को बढ़ावा देने का है.

चाबाहार पोर्ट में जहां भारत केवल दो टर्मिनल की व्यवस्था देखता है, वहीं सितवे पोर्ट पर भारत का पूरी तरह से नियंत्रण होगा और वो इसे घरेलू बंदरगाह की तरह ही मान सकता है.

कालादान नदी के डेल्टा में स्थित सितवे पोर्ट 2008 में मंज़ूर कालादान मल्टी मॉडल ट्रांज़िट ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट (KMTTP) का एक अभिन्न हिस्सा है. 20,000 डेड वेट टनेज (DWT) की अधिकतम क्षमता वाले गहरे समुद्री जहाज़ों को संभालने के लिए तैयार ये पोर्ट समय बढ़ने के साथ उपयोग होने पर अधिक भारी जहाज़ों के लिए भविष्य की मांग को भी पूरा करने के लिए तैयार है.

9 मई 2023 को केंद्रीय बंदरगाह, जहाज़रानी एवं जलमार्ग और आयुष मंत्री श्री सर्बानंद सोनोवाल ने आधिकारिक तौर पर बंदरगाह का उद्घाटन किया. उन्होंने कोलकाता के श्यामा प्रसाद मुखर्जी पोर्ट से सीमेंट लेकर पहुंचे कार्गो शिप का सितवे पोर्ट पर स्वागत किया.

भारत और म्यांमार के बीच मौजूदा व्यापार में भारत से मुख्य रूप से निर्माण सामग्री (कंस्ट्रक्शन मैटेरियल) जैसे कि सीमेंट, स्टील और ईंट का निर्यात शामिल है. वहीं म्यांमार से भारत चावल, लकड़ी, मछली और सीफूड का आयात करता है. बंदरगाह के विस्तार के साथ अधिक कीमत वाले उत्पाद व्यापार के इन सामानों की जगह ले सकते हैं.

सितवे बंदरगाह के विकास से भारत के जिन राज्यों को सबसे ज़्यादा फायदा होगा, वो हैं मिज़ोरम और त्रिपुरा. त्रिपुरा सरकार ने कालादान नदी के ज़रिए राज्य और म्यांमार के बीच संपर्क स्थापित करने की पहल की है. परिवहन की इन महत्वपूर्ण कड़ियों की स्थापना में मदद के लिए निर्माण का काम शुरू हो गया है. सड़क के रास्ते कोलकाता से अगरतला तक की यात्रा में लगभग चार दिन लगते हैं. लेकिन अगर जलमार्ग और ज़मीन के ज़रिए सितवे-चटगांव-सबरूम-अगरतला रूट का इस्तेमाल किया जाए तो परिवहन का समय केवल दो दिन होगा. इस तरह समय और पैसे की बचत के साथ-साथ कार्बन उत्सर्जन में भी कमी आएगी. इस उद्देश्य के लिए एक विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (DPR) अभी भी अटकी हुई है.

लापता कड़ी

पानी के रूट को लेकर जहां तेज़ी रही है, वहीं सड़क वाले हिस्से को पूरा करना कालादान प्रोजेक्ट के मल्टीमॉडल पहलू का लाभ उठाने के लिए ज़रूरी है. माना जाता है कि सड़क वाला हिस्सा कोलकाता और बांग्लादेश के बाज़ार को सितवे पोर्ट के ज़रिए मिज़ोरम से जोड़ेगा. इस तरह पूर्वोत्तर क्षेत्र की वाणिज्यिक क्षमता को बढ़ावा मिलेगा. 110 किमी के सड़क के हिस्से और बचे हुए हाईवे के निर्माण को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. इनमें सीमा एजेंसियों के बीच तालमेल की कमी, पहाड़ी इलाका, ज़मीन के मुआवज़े से जुड़े मुद्दे और इस क्षेत्र में उग्रवाद की वजह से सुरक्षा को लेकर महत्वपूर्ण चिंताएं शामिल हैं. महामारी और म्यांमार में 2021 के सैन्य विद्रोह ने सड़क की प्रगति को और बाधित किया है.

सड़क का निर्माण करने वाली कंपनी इरकॉन इंटरनेशनल ने लोगों से संबंध बढ़ाने और कालादान प्रोजेक्ट पर उग्रवादियों के हमले का ख़तरा कम करने के लिए स्थानीय ठेकेदारों को काम में लगाया है. म्यांमार न्यू पावर कंस्ट्रक्शन लिमिटेड और सू तू सेन हाईवे के अलग-अलग हिस्सों को पूरा करने वाली हैं. हालांकि पर्यावरण, राजनीतिक और सुरक्षा चुनौतियों की वजह से संभावित देरी पर विचार करते हुए ठेके में तीन साल और चार महीने में निर्माण पूरा करने की शर्त रखी गई है. मौजूदा हिंसा और सैन्य कार्रवाई की वजह से पैदा उथल-पुथल वाले हालात में निर्माण पूरा करने की सटीक तारीख के बारे में अनुमान लगाना मुश्किल हो जाता है.

मौजूदा हिंसा और सैन्य कार्रवाई की वजह से पैदा उथल-पुथल वाले हालात में निर्माण पूरा करने की सटीक तारीख के बारे में अनुमान लगाना मुश्किल हो जाता है.

इसके अलावा, सितवे पोर्ट एक तरफ जहां भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र (NER) के लिए सामानों, गैस या तेल के परिवहन के लिए व्यापार की महत्वपूर्ण संभावना पेश करता है, वहीं एक नियमित किफायती परिवहन के रूट के तौर पर इसके असर का निर्धारण होना अभी बाकी है. ये अनिश्चितता मुख्य रूप से बार-बार बल्क ब्रेकिंग (बिना कंटेनर के सामान ले जाना) और ट्रांसशिपमेंट (सामानों को एक जहाज़ से उतारकर दूसरे जहाज़ में रखने की प्रक्रिया) की अनुमानित अधिक लागत से पैदा होती है. इसके अलावा, भले ही पलेटवा टर्मिनल के निर्माण का काम पूरा हो गया है लेकिन उसका काम-काज सितवे और पलेटवा के बीच कालादान नदी पर मेन्टिनेंस ड्रेजिंग (नदी की गहराई से गाद को निकालने की प्रक्रिया) का काम पूरा होने पर निर्भर करता है. ये काम सितवे पोर्ट तक कार्गो जहाज़ों के द्वारा सामानों को पहुंचाने से पहले हर हाल में पूरा हो जाना चाहिए.

बदलती सत्ता

सैन्य सरकार और थ्री ब्रदरहुड अलायंस, जिनमें लोकतंत्र समर्थक ताकतें शामिल हैं, के बीच बढ़ते संघर्ष, जिसमें ऑपरेशन 1027 के हिस्से के तहत ड्रोन हमले और सड़कों पर संघर्ष शामिल हैं, ने म्यांमार में काफी हद तक सत्ता के समीकरण को बदल दिया है. जातीय हथियारबंद समूहों ने भारत, बांग्लादेश, थाईलैंड और चीन की सीमा पर स्थित शहरों और व्यापार के रास्तों पर कब्ज़ा कर लिया है.

रखाइन एवं चिन प्रांतों और सगाइंग रीजन में भारत और म्यांमार के बीच महत्वपूर्ण परियोजनाएं अब जातीय हथियारबंद समूहों के नियंत्रण में गई हैं. 25 मार्च को अराकान आर्मी (AA) के द्वारा रखाइन प्रांत में विदेशी निवेशकों को आमंत्रित करने की घोषणा म्यांमार की सैन्य सरकार पर काबू पाने के इसके विश्वास का इशारा करती है. अराकान आर्मी ने मौजूदा विदेशी परियोजनाओं, जैसे कि चीन के समर्थन से क्यौक्फ्यू पोर्ट एवं विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ) और भारत के समर्थन से KMTTP, को उनके साथ सहयोग करने और अपना काम जारी रखने की भी अपील की.

चीन सितवे से केवल 120 किमी दूर क्याकफ्यू डीप-सी पोर्ट और SEZ का निर्माण कर रहा है. पूरा होने के बाद ये प्रोजेक्ट 1,700 किमी लंबे चीन-म्यांमार आर्थिक कॉरिडोर (CMEC) के दक्षिणी छोर के तौर पर काम करेगा और इसे चीन के शहर कुन्मिंग से जोड़ेगा. ये कॉरिडोर चारों ओर ज़मीन से घिरे (लैंडलॉक्ड) चीन के यून्नान प्रांत की सीधी पहुंच हिंद महासागर तक बनाएगा. इसके अलावा ये चीन के जहाज़ों के लिए सामरिक तौर पर एक वैकल्पिक रास्ता है जो भीड़-भाड़ वाले मलक्का स्ट्रेट से अलग घूम कर जाने का रास्ता मुहैया कराएगा. ये बदलाव मध्य पूर्व, अफ्रीका और यूरोप के साथ बाधारहित व्यापार रूट की सुविधा देगा.

अराकान आर्मी ने मौजूदा विदेशी परियोजनाओं, जैसे कि चीन के समर्थन से क्यौक्फ्यू पोर्ट एवं विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ) और भारत के समर्थन से KMTTP, को उनके साथ सहयोग करने और अपना काम जारी रखने की भी अपील की.

वैसे तो अराकान आर्मी की जीत निश्चित नहीं है लेकिन उसका विश्वास म्यांमार के मौजूदा उथल-पुथल और बिगड़ते संघर्ष को उजागर करता है. अराकान आर्मी का फिलहाल रखाइन प्रांत के कई शहरों पर नियंत्रण है और वो कब्ज़ा करने के मक़सद से सक्रिय तौर पर सैन्य सरकार की चौकियों पर निशाना साध रही है. ये स्थिति सैन्य सरकार के घटते नियंत्रण को रेखांकित करती है और भारत एवं चीन जैसे बड़े विदेशी हितधारकों (स्टेकहोल्डर्स) को इशारा देती है कि उन्हें म्यांमार में सैन्य सरकार की तुलना में तेज़ी से ज़मीन पर मौजूद किरदारों के साथ भागीदारी करने की आवश्यकता है.

बदलती भागीदारी

चीन ने जहां ऐतिहासिक रूप से अपनी सीमा पर जातीय समूहों के साथ भागीदारी की है और कभी-कभार उनकी पहल का वित्तीय समर्थन भी किया है, वहीं भारत भी बातचीत शुरू करके अपना नज़रिया बदल रहा है. राज्यसभा सांसद के. वनलालवेना ने फरवरी 2024 के आख़िर में KMTTP में ज़मीनी हिस्से की बिगड़ती स्थिति की समीक्षा के लिए एक टीम का नेतृत्व किया था और अराकान आर्मी के साथ बातचीत की थी. हालांकि चिन प्रांत में जातीय समीकरण, जिसमें चिन नेशनल फ्रंट/आर्मी (CNF/A) का दबदबा है, को देखते हुए भारत को अपनी कनेक्टिविटी की परियोजनाओं को बिना किसी बाधा के पूरा करने को सुनिश्चित करने के लिए उसके साथ भी बातचीत करनी चाहिए. गैर-सरकारी किरदारों के साथ जुड़ना सुरक्षा और आर्थिक परियोजनाओं के सफलतापूर्वक कार्यान्वयन के लिए महत्वपूर्ण है.

इसके अलावा CNF/A के साथ बातचीत को बढ़ावा देना इस क्षेत्र में समावेशिता और स्थिरता को प्रोत्साहन देने के लिए महत्वपूर्ण है. प्रमुख जातीय समूहों के साथ जुड़कर भारत ये सुनिश्चित कर सकता है कि कनेक्टिविटी से संबंधित उसकी पहल सभी हितधारकों को लाभ पहुंचाए और दीर्घकालिक शांति और समृद्धि में योगदान दे

सितवे पोर्ट को असरदार ढंग से नियंत्रित करना भारत को महत्वपूर्ण साझेदारियां बनाते हुए क्षेत्रीय सुरक्षा और स्थिरता को बढ़ावा देने में अहम भूमिका निभाने की अनुमति देगा. हालांकि सड़क के हिस्से, जो कि पूरे कालादान प्रोजेक्ट को शुरू करने के लिए आवश्यक है, को सफलतापूर्वक पूरा करने को सुनिश्चित करने के लिए संघर्ष का समाधान करना ज़रूरी हो जाता है. इन संघर्षों को सुलझाने से सिर्फ परियोजना को पूरा करने में आसानी होती है बल्कि क्षेत्रीय कनेक्टिविटी और व्यापार को बढ़ाने में KMTTP का महत्व भी उजागर होता है. 


श्रीपर्णा बनर्जी ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में जूनियर फेलो हैं.

 

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