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पहलगाम हमले की वजह से पूरी घाटी में पाकिस्तान के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन हुए; कश्मीरियों ने आतंकवाद को नकार दिया जो आम लोगों के जज़्बात और भारत के एकीकरण के प्रयासों के लिहाज़ से एक निर्णायक मोड़ है
Image Source: Getty
25 अप्रैल 2025 को जुमे के ख़ुत्बे के दौरान कश्मीर के मीरवाइज़ ने श्रीनगर की जामिया मस्जिद के मंच से पहलगाम के आतंकवादी हमले की कड़ी निंदा की. इसी जामिया मस्जिद को पहले पाकिस्तान के समर्थन वाले अलगाववाद के लिए जाना जाता था और 2019 से पहले लगभग हर जुमे की नमाज़ के बाद कश्मीर घाटी के तमाम प्रमुख शहरों में पत्थरबाज़ी की घटनाएं आम हुआ करती थीं. मीरवाइज़ ने आतंकवादियों द्वारा मज़हब के आधार पर सैलानियों की हत्या की निंदा की, जो पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद को लेकर घाटी के रुख़ में आए बुनियादी परिवर्तन का संकेत है. कश्मीर के दूसरे धार्मिक नेताओं ने भी पहलगाम हमले की निंदा की. इस हमले के ख़िलाफ़ पूरे कश्मीर में विरोध प्रदर्शन हुए, मशाल जुलूस निकाले गए और पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के प्रति लोगों ने अपने ग़ुस्से का इज़हार किया; ऐसे चुनौतीपूर्ण दौर में उम्मीद की कोई किरण तलाशना मुश्किल काम होता है; लेकिन, इसकी एक मिसाल ज़रूर दी जा सकती है: पिछले 35 सालों में पहली बार कश्मीर घाटी में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के ख़िलाफ़ पूरी तरह बंदी देखी जा रही है. वैसे तो आम लोगों की ऐसी एकजुटता शायद कश्मीर के तमाम मसलों को हल नहीं कर सकेगी. लेकिन, इसकी काफ़ी अहमियत है. पहलगाम हत्याकांड में बच निकले उन ख़ुशक़िस्मत लोगों के बारे में सोचिए, जिन्हें इस ख़तरे से बचने में कश्मीर के स्थानीय लोगों ने भरपूर मदद की.
मीरवाइज़ ने आतंकवादियों द्वारा मज़हब के आधार पर सैलानियों की हत्या की निंदा की, जो पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद को लेकर घाटी के रुख़ में आए बुनियादी परिवर्तन का संकेत है.
2019 के बाद से कश्मीरी युवाओं के एक बड़े तबक़े ने एकीकरण के तमाम प्रयासों के ज़रिए भारत में दिलचस्पी बढ़ाई है. वो एक सुर से पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद की निंदा करते हैं. ये कश्मीरी युवा पहलगाम के हमले को शांति और सौहार्द की अपनी आकांक्षाओं पालने के लिए पाकिस्तान की तरफ़ से दिए गए सामूहिक दंड के तौर पर देखते हैं. इस घटना ने घाटी की नाज़ुक दुखती रग को छेड़ दिया है. हालांकि, कश्मीरी समुदाय के कुछ लोग अभी भी बाक़ी देश के साथ कश्मीर के एकीकरण के ख़िलाफ़ काम करते हैं, और इन लोगों को उनकी गतिविधियों के लिए आख़िरकार जवाब देना ही होगा. कश्मीर के युवाओं को ख़ास तौर से अपने आस-पास के माहौल और सोशल मीडिया को लेकर चौकसी बरतनी होगी, ताकि वो समाज के भीतर छुपे ग़द्दारों और दुश्मन के मोहरों की पहचान करने में सुरक्षा एजेंसियों की मदद कर सकें. कश्मीरी नौजवानों की ये सक्रिय भागीदारी ये सुनिश्चित करने के लिए ज़रूरी है कि वो इस नाज़ुक मोड़ पर देश को निराश न करें.
पहलगाम का आतंकवादी हमला ऐसे वक़्त में हुआ है जब कश्मीर आर्थिक विकास और एकीकरण के मामले में भारत के साथ आगे बढ़ रहा था. वहीं, अलगाववाद और आतंकवाद अपने सबसे निचले स्तर पर थे. अनुच्छेद 370 और 35a के ख़ात्मे के बाद, भारत के साथ संपूर्ण विलय को लेकर कश्मीर के युवाओं के मनोवैज्ञानिक और जज़्बाती ख़यालात दोनों में ही काफ़ी तब्दीली आई है. 2019 से पहले धारा 370 के चलते कश्मीर कुशासन, भ्रष्टाचार और तानाशाही शासन का शिकार था. क्योंकि केंद्र सरकार अक्सर अलगाववाद, आतंकवाद और क्षेत्रीय दलों द्वारा घाटी को पाकिस्तान के समर्थन वाले आतंकवाद की आग में झोंकने की अनदेखी करती रहती थी. 2019 के प्रशासनिक और सुरक्षा संबंधी पुनर्गठन के बाद केंद्र सरकार ने अलगाववाद और ओवरग्राउंड समर्थकों (OGW) के ढांचे को तहस नहस कर दिया. वहीं, जमात-ए-इस्लामी जैसे पाकिस्तान समर्थक गठबंधनों पर प्रतिबंध लगा दिया. इसके जवाब में आतंकवादियों और मुख्य रूप से पाकिस्तान के आतंकवादी संगठनों ने भी अपनी रणनीति में बदलाव किया और रूप बदलकर कश्मीर टाइगर्स, जैश-ए-मुहम्मद के पीपुल्स एंटी फासिस्ट फ्रंट और लश्कर-ए-तैयबा के दि रेजिस्टेंस फ्रंट जैसे छद्म संगठन खड़े कर लिए.
पाकिस्तान का सत्ता तंत्र इस हमले के ज़रिए सांप्रदायिक नैरेटिव बना पाने में नाकाम रहा है. घाटी के लोगों ने एक सुर से जिस तरह इस हमले की निंदा की, वो कश्मीरियों की भारत के साथ अधिक भावनात्मक और सामाजिक राजनीतिक विलय की ख़्वाहिश का सबूत है.
आम लोगों के सीमित समर्थन और सुरक्षा के कड़े उपायों की वजह से इन मुखौटा आतंकवादी संगठनों ने न सिर्फ़ अपने भौगोलिक क्षेत्र में तब्दीली लाई, बल्कि मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने के लिए घाटी के भीतर कमज़ोर कड़ियों जैसे कि बाहर से आए कामगारों, ऑफ ड्यूटी पुलिस वालों को निशाना बनाना शुरू कर दिया. कश्मीर के लोगों ने पूरी घाटी में इन टारगेटेड किलिंग्स के ख़िलाफ़ प्रदर्शन शुरू कर दिए. क्योंकि कश्मीरी जनता ऐसे आतंकी हमलों को उनका दर्द बनाए रखने की रणनीति के तौर पर देखते हैं. लोगों ने इन हमलों को मानवता पर हमला कहने के साथ साथ ऐसी रणनीति बनाना शुरू कर दिया, जो कश्मीर घाटी में उथल-पुथल बनाए रखने के लिए तक़लीफ़ को बनाए रखने का काम कर रहे थे. पहलगाम हमले से पूरे देश में सदमे की लहर फैल गई और पूरे कश्मीर में ‘हम हिंदुस्तानी हैं’, ‘भारत हमारा मुल्क है’ और ‘आतंकवाद मुर्दाबाद’ जैसे नारे सुनने को मिले. घाटी से उठी इन आवाज़ों ने पाकिस्तान के समर्थन वाले आतंकवादी संगठनों और ख़ुद पाकिस्तान को सदमे में डाल दिया. घाटी के भीतर बढ़ते इसी दबाव की वजह से दि रेजिस्टेंस फ्रंट को पहलगाम हमले में अपना हाथ होने से इनकार करना पड़ा. TRF ने कहा कि ये हमला कश्मीर में बग़ावती सुरों को बदनाम करने के लिए की गई ‘सोची समझी मुहिम’ का हिस्सा है. आतंकवादियों की हरकतों की वजह से कश्मीर के मुसलमानों के जज़्बात बदल गए हैं. इसने आतंकवादी संगठनों को मजबूर किया है कि वो घाटी के भीतर नरमपंथी सुरों को निशाना बनाना शुरू करें. 27 अप्रैल 2025 को आतंकवादियों ने उत्तरी कश्मीर के कुपवाड़ा ज़िले में 45 साल के एक शख़्स की हत्या कर दी थी, ताकि कश्मीरी अवाम और ख़ास तौर से युवाओं के दिलों में ख़ौफ़ पैदा कर सकें.
बदलते हुए हालात और घाटी के भीतर आए राजनीतिक बदलाव को देखते हुए कश्मीरियों को ग़लत जानकारी के प्रचार और पाकिस्तानी मीडिया द्वारा प्रचारित भरमाने वाले वीडियों से बहुत सतर्क रहना चाहिए. इसके अलावा मध्य पूर्व और दूसरे क्षेत्रों के सोशल मीडिया अकाउंट से भी सावधान रहने की ज़रूरत है. पहलगाम के आतंकवादी हमले के तुरंत बाद पाकिस्तान के मीडिया ने दावा किया कि ये तो फाल्स फ्लैग ऑपरेशन था जिसे सरकारी एजेंसियों ने आपसी तालमेल से अंजाम दिया था. घाटी में राजनीतिक बदलाव की बयार भी एक चुनौती बन गई है: कश्मीर के फेसबुक न्यूज़ पोर्टल द्वारा प्रचारित किए जाने वाले वीडियो, जिनमें कोई प्रामणिकता नहीं होती, उन्हें पाकिस्तान द्वारा कुछ सोशल मीडिया एकाउंट्स के ज़रिए ख़ूब प्रचारित किया गया. इनका मक़सद पाकिस्तान का प्रोपेगैंडा करना और सांप्रदायिक मतभेद को बढ़ाना था. प्रामाणिकता के अभाव की वजह से कई सोशल मीडिया एकाउंट्स ने दो साल पुराने वीडियो पोस्ट करके ये नैरेटिव बनाने की कोशिश की कि कश्मीर छात्रों को डराया और उनको निशाना बनाया जा रहा है. इससे सोच समझकर क़दम उठाने और सूचना की पुष्टि करने की ज़रूरत रेखांकित होती है. वैसे तो कुछ राज्यों में कश्मीरियों को डराने और धमकाने की कुछ घटनाएं हुई ज़रूर हैं. लेकिन, उल्लेखनीय बात ये है कि राज्य सरकारों ने ऐसे कई क़दम उठाए हैं जिनसे कश्मीरी छात्रों और कारोबारियों की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके. एक राज्य में तो पुलिस ने कश्मीरियों को धमकाने वाले के ख़िलाफ़ FIR भी दर्ज की और कश्मीरी छात्रों से मुलाक़ात करके माहौल शांत करने की कोशिश की.
पहलगाम हमले के बाद पूरे देश में शोक की लहर है. इस ग़म में जम्मू और कश्मीर के जज़्बात भी शामिल हैं. हालांकि, कुछ ख़ास कश्मीरी सोशल मीडिया न्यूज़ पोर्टल और कुछ लोग जो सोशल मीडिया का दुरुपयोग कर रहे हैं, उन्हें झूठे नैरेटिव का शिकार होने से बचना चाहिए, जिसे कई बार पाकिस्तान और इलाक़े के कुछ नेता प्रचारित करने की कोशिश करते हैं. पाकिस्तान का सत्ता तंत्र इस हमले के ज़रिए सांप्रदायिक नैरेटिव बना पाने में नाकाम रहा है. घाटी के लोगों ने एक सुर से जिस तरह इस हमले की निंदा की, वो कश्मीरियों की भारत के साथ अधिक भावनात्मक और सामाजिक राजनीतिक विलय की ख़्वाहिश का सबूत है. ऐसे हालात में कश्मीर के लोगों को सोशल मीडिया पर चल रहे नैरेटिव का शिकार होने से बचना चाहिए. क्योंकि पहलगाम का हमला स्पष्ट रूप इसी मक़सद को हासिल करने के लिए किया गया. भारत और कश्मीर के नागरिकों को ये समझना होगा कि जंग सिर्फ़ सेनाएं नहीं, पूरा मुल्क लड़ता है.
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Ayjaz Wani (Phd) is a Fellow in the Strategic Studies Programme at ORF. Based out of Mumbai, he tracks China’s relations with Central Asia, Pakistan and ...
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