Author : Sohini Bose

Published on Sep 21, 2022 Updated 0 Hours ago

इसमें कोई दो राय नहीं कि अवामी लीग की पहले की चुनावी जीतों में ‘भारत फैक्टर’ एक अहम भूमिका निभाता रहा है.

बांग्लादेश: प्रधानमंत्री शेख़ हसीना अपनी विदेश नीति के ज़रिये क्या दोबारा चुनाव में जीत हासिल कर पायेंगी?

हाल ही में बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख़ हसीना वाजेद, 5 से 8 सितंबर यानी चार दिनों की भारत यात्रा पर आई थीं. बांग्लादेश की सरकार की प्रमुख हसीना, लगभग तीना साल के अंतराल के बाद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के न्यौते पर भारत आई थीं. प्रधानमंत्री मोदी ने शेख़ हसीना को मार्च 2021 में उस समय भारत आने का न्यौता दिया था, जब वो बांग्लादेश की आज़ादी के पचास साल पूरे होने, बंगबंधु शेख़ मुजीबुर रहमान की जन्म शताब्दी, और भारत- बांग्लादेश के बीच कूटनीतिक संबंधों के पचास वर्ष पूरे होने के जश्न में शामिल होने ढाका गए थे. वैसे तो शेख़ हसीना का ये भारत दौरा कई मामलों में प्रधानमंत्री मोदी के उस बांग्लादेश दौरे के जवाब में था, क्योंकि बांग्लादेश की प्रधानमंत्री के दौरे का कार्यक्रम प्रधानमंत्री मोदी के 2021 के बांग्लादेश दौरे से काफ़ी मिलता-जुलता था. हालांकि, शेख़ हसीना के इस भारत दौरे का एजेंडा और इसकी प्रेरणा के पीछे घरेलू मसले थे, क्योंकि वो अगले साल दिसंबर में होने वाले संसदीय चुनावों की तैयारी कर रही हैं. ऐसे में हमारे लिए शेख़ हसीना के इस भारत दौरे और उसकी उपलब्धियों पर एक नज़र दोबारा डालना ज़रूरी हो जाता है, क्योंकि इसी से हमें ये बात समझने में मदद मिलेगी कि हसीना का भारत दौरा किस तरह से चुनावी मोर्चे पर उनके लिए मददगार साबित हो सकता है.

प्रधानमंत्री शेख़ हसीना की अगुवाई वाली बांग्लादेश अवामी लीग की सरकार, इस साल लगातार तीसरी चुनावी जीत के बाद मिले कार्यकाल के आख़िरी साल में प्रवेश करने जा रही है. शेख़ हसीना की पिछली सभी चुनावी कामयाबियों; फिर चाहे वो 2009 का चुनाव हो, 2014 का या फिर 2018 का संसदीय चुनाव. हर चुनाव में शेख़ हसीना की कामयाबी में भारत के साथ रिश्तों ने एक अहम भूमिका निभाई है.

विरासत में मिले नज़दीकी रिश्ते

प्रधानमंत्री शेख़ हसीना की अगुवाई वाली बांग्लादेश अवामी लीग की सरकार, इस साल लगातार तीसरी चुनावी जीत के बाद मिले कार्यकाल के आख़िरी साल में प्रवेश करने जा रही है. शेख़ हसीना की पिछली सभी चुनावी कामयाबियों; फिर चाहे वो 2009 का चुनाव हो, 2014 का या फिर 2018 का संसदीय चुनाव. हर चुनाव में शेख़ हसीना की कामयाबी में भारत के साथ रिश्तों ने एक अहम भूमिका निभाई है. भारत के साथ अवामी लीग के अच्छे रिश्ते तो, 1971 में उसे पाकिस्तान से मिली आज़ादी के पहले से चले आ रहे हैं. इसकी सबसे बड़ी मिसाल तो, भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और बांग्लादेश के पहले प्रधानमंत्री शेख़ मुजीबुर रहमान के बीच दोस्ताना ताल्लुक़ थे. यानी शेख़ हसीना को अपने विशाल पड़ोसी देश के साथ अच्छे रिश्तों की विरासत पिता से मिली. शेख़ हसीना ख़ुद भी 1975 से 1981 के दौरान जब देश से बाहर रही थीं, तो उन्हें दिल्ली में ही राजनीतिक पनाह मिली थी. तभी से उन्हें इस बात का यक़ीन था कि भारत और बांग्लादेश के बीच अच्छे संबंध दोनों देशों के हित में हैं. सत्ता में आने के बाद से ही शेख़ हसीना का ये यक़ीन ही उनकी विदेश नीति की एक अहम धुरी रहा है. इसका नतीजा ये रहा है कि भारत और बांग्लादेश के बीच व्यापार और कनेक्टिविटी लगातार बढ़ी है, जिसका फ़ायदा दोनों देशों के आम लोगों को हुआ है. आज भारत, एशिया में बांग्लादेश के निर्यात का सबसे बड़ा ठिकाना बन गया है. इसके अलावा दोनों देशों के बीच सीमा के आर-पार संपर्क के तमाम तरीक़ों के विकास से दोनों देशों के नागरिकों के बीच संपर्क बढ़ा है. स्वास्थ्य पर्यटन और व्यापार भी बढ़ा है. यही कारण है कि बांग्लादेश में अभी विकसित हो रहे लोकतंत्र में शेख़ हसीना की लगातार तीन चुनावी जीतों में भारत के साथ बेहतर रिश्तों ने बहुत अहम भूमिका अदा की है. क्योंकि, विदेश नीति तो हमेशा ही घरेलू ज़रूरतों के हिसाब से चलती है. ऐसे में इस बात की अटकलें तेज़ हैं कि शेख़ हसीना के हालिया भारत दौरे और इससे पैदा हुई नई संभावनाएं, उन्हें चौथी बार चुनाव जिताने में मददगार साबित होंगी.

क़रीब दो अरब डॉलर की लागत से तैयार की गई मैत्री थर्मल पावर परियोजना में भारत ने 1.6 अरब डॉलर की रक़म अपनी रियायती फंडिंग वाली योजना के तहत, विकास संबंधी मदद के तौर पर दी है. 1320 मेगावाट क्षमता वाला कोयले से चलने वाला ये बिजलीघर भारत ने बांग्लादेश के खुलना डिवीज़न के रामपाल में बनाया है

दौरे की उपलब्धियां और दिक़्कतें

प्रधानमंत्री शेख़ हसीना की ये राजकीय यात्रा बहुआयामी थी. इस दौरान कुशियारा नदी का पानी साझा करने के समझौते पर दस्तख़त से लेकर, कई और सहमति पत्रों (MoU) पर दस्तख़त करने भारत के उद्योगों के परिसंघ (CII) द्वारा आयोजित कारोबारी सम्मेलन में हिस्सा लेना और 1971 के बांग्लादेश की आज़ादी के युद्ध के दौरान शहीद हुए 200 भारतीय सैनिकों के परिजनों को मुजीब वज़ीफ़ा बांटने जैसे कई तरह के विषय शामिल थे. इन कार्यक्रमों को देखते हुए, शेख़ हसीना के साथ एक उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल भी भारत आया था, जिसमें उनकी सरकार के कई मंत्री, सलाहकार और सचिवों के साथ साथ सरकार के कई वरिष्ठ पदाधिकारी शामिल थे. शेख़ हसीना ने दिल्ली के हैदराबाद हाउस में भारत के प्रधानमंत्री मोदी के साथ प्रतिनिधिमंडल स्तर की बातचीत की. दोनों प्रधानमंत्रियों के बीच इस बातचीत के दौरान, आपसी रिश्तों की उपलब्धियों को तसल्ली के साथ सराहा गया. लेकिन, कई ऐसे मुद्दों पर भी चर्चा हुई, जिसमें मतभेद दूर किए जाने की ज़रूरत है. इस दौरे से बांग्लादेश को हुए नफ़ा- नुक़सान का बांग्लादेश की आम जनता पर सीधा असर पड़ने वाला है और इसी वजह से आने वाले संसदीय चुनाव में अवामी लीग इस दौरे की उपलब्धियों को भुना सकती है.

कोयले का गठबंधन

जहां तक शेख़ हसीना के भारत दौरे की उपलब्धियों की बात है, तो मैत्री थर्मल पावर परियोजना का ज़िक्र करना ज़रूरी है. इस परियोजना को बांग्लादेश भारत मैत्री पावर कंपनी ने तैयार किया है, जिसमें भारत के सरकारी, राष्ट्रीय ताप बिजली निगम (NTPC) और बांग्लादेश के पावर डेवेलपमेंट बोर्ड ने 50:50 की बराबरी वाली साझेदारी से मिलकर बनाया है. 7 सितंबर को दोनों प्रधानमंत्रियों ने दिल्ली से इस परियोजना का उद्घाटन किया था. क़रीब दो अरब डॉलर की लागत से तैयार की गई मैत्री थर्मल पावर परियोजना में भारत ने 1.6 अरब डॉलर की रक़म अपनी रियायती फंडिंग वाली योजना के तहत, विकास संबंधी मदद के तौर पर दी है. 1320 मेगावाट क्षमता वाला कोयले से चलने वाला ये बिजलीघर भारत ने बांग्लादेश के खुलना डिवीज़न के रामपाल में बनाया है. ये बांग्लादेश के सबसे बड़े पावर प्लांट में से एक है और इससे बांग्लादेश की नेशनल पावर ग्रिड में 1320 मेगावाट बिजली और जुड़ जाएगी. बांग्लादेश की भलाई के लिहाज़ से ये पावर प्रोजेक्ट बहुत अहम है, क्योंकि बांग्लादेश रोज़ाना बिजली कटौती के लगातार बढ़ते संकट से जूझ रहा है. क्योंकि उसके ईंधन के भंडार कम होते जा रहे हैं. बांग्लादेश अपनी थर्मल पावर की क्षमता का पूरा इस्तेमाल भी नहीं कर पा रहा है और बिजली सप्लाई की लाइनें भी ख़राब हो रही हैं. अवामी लीग की सियासी विरोधी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) ने देश भर में चल रही इस बिजली कटौती को एक भयंकर आर्थिक संकट का संकेत बताया है, और सत्ताधारी अवामी लीग पर ‘जनता के पैसे लूटने’ का आरोप लगाया है. इन हालात को देखते हुए, मैत्री पावर प्लांट से इन हालात में कुछ सुधार आएगा और शेख़ हसीना को सियासी फ़ायदा भी होगा. इस परियोजना की एक और ख़ूबी ये है कि इससे पर्यावरण को भी कई फ़ायदे होंगे- इस प्रोजेक्ट से वायु और जल प्रदूषण कम होगा. इससे स्वच्छ बिजली पैदा होगी. ऐसा उस वक़्त होगा, जब 2021 में स्विटज़रलैंड की हवा की गुणवत्ता बताने वाली कंपनी IQAir ने अपनी वर्ल्ड एयर क्वालिटी रिपोर्ट में बांग्लादेश को दुनिया के सबसे अधिक प्रदूषित देश का दर्जा दिया था.

ये तो बार बार कहा गया है कि तीस्ता नदी के पानी के बंटवारे के विवाद के अटके रहने से बांग्लादेश की जनता के बीच नाराज़गी बढ़ सकती है और इससे 2023 में अवामी लीग सरकार के ख़िलाफ़ माहौल बन सकता है.

पानी के बंटवारे का समझौता

शेख़ हसीना के भारत दौरे की एक और बड़ी उपलब्धि कुशियारा नदी के पानी के बंटवारे का समझौता थी. ये बराक की सहायक नदी है, जो असम से होकर गुज़रती है और सिलहट होते हुए बांग्लादेश में प्रवेश करती है. प्रधानमंत्री मोदी के 2021 के ढाका दौरे के बाद जारी किए गए साझा बयान में शेख़ हसीना ने इस बात पर काफ़ी ज़ोर दिया था कि वो कुशियारा नदी के पानी का इस्तेमाल करने के लिए बांग्लादेश को रहीमपुर खाल के बाक़ी हिस्से की खुदाई की इजाज़त दे, जिससे अपर सुरमा कुशियारा परियोजना पूरी हो सके, क्योंकि ये परियोजना सीधे सीधे बांग्लादेश की खाद्य सुरक्षा से जुड़ी हुई है. इसके अलावा दोनों देशों के बीच होकर गुज़रने वाली नदियों के पानी के बंटवारे का समझौता इस समय की मांग इसलिए भी है, क्योंकि हाल ही में असम और सिलहट, दोनों ही जगहों ने भयंकर बाढ़ का संकट झेला है. इससे बाढ़ पर नियंत्रण और सिंचाई की व्यवस्थाओं के बेहतर प्रबंधन की ज़रूरत और उजागर हो गई है. इस समझौते से पहले 25 अगस्त को जब दोनों देशों के साझा नदी आयोग की मंत्रि-स्तरीय बैठक हुई थी, तब भी दोनों देशों के बीच नदियों के पानी के बंटवारे का समझौता जल्द से जल्द करने की ज़रूरत पर बल दिया गया था. हालांकि, भारत और बांग्लादेश के आपसी रिश्तों की राह का सबसे बड़ा रोड़ा यानी तीस्ता नदी का पानी साझा करने का समझौता अब भी अधूरा पड़ा है. हालांकि, प्रधानमंत्री शेख़ हसीना ने इस मुद्दे पर उस अंतरिम समझौते को जल्द से जल्द अंजाम देने की पुरानी मांग को फिर से दोहराया, जो 2011 में तैयार किया गया था. ये तो बार बार कहा गया है कि तीस्ता नदी के पानी के बंटवारे के विवाद के अटके रहने से बांग्लादेश की जनता के बीच नाराज़गी बढ़ सकती है और इससे 2023 में अवामी लीग सरकार के ख़िलाफ़ माहौल बन सकता है. वैसे अगल बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) इस मुद्दे को अपनी कमज़ोर हालत के चलते नहीं भी भुना पाती है, तो भी इस्लामिक कट्टरपंथी, भारत से रिश्तों में दरार डालने का ये मौक़ा हाथ से नहीं जाने देने वाले हैं.

इसके बाद भी कुशियारा नदी को लेकर हुआ समझौता एक सही दिशा में उठाया गया क़दम है. इसके अलावा दोनों देशों ने नदियों के पानी के प्रबंधन के बड़े मसले से निपटने के लिए अधिक से अधिक नदियों के बहाव के आंकड़े साझा करने, पानी के बंटवारे के अंतरिम समझौते तैयार करने और और 1996 के गंगा जल बंटवारा संधि के तहत, बांग्लादेश को मिलने वाले पानी के अधिकतम इस्तेमाल के लिए एक साझा तकनीकी समिति के गठन के साझा फ़ैसले पर सहमति बनी, जिससे पानी के बंटवारे की एक रूपरेखा तय हो सके. 

व्यापार और परिवहन

जहां तक व्यापार की बात है तो दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों ने व्यापक आर्थिक साझेदारी के समझौते (CEPA) को अंतिम रूप देने के लिए एक साझा संभावना अध्ययन करने के फ़ैसले का स्वागत किया. इस अध्ययन में तर्क दिया गया है कि आर्थिक साझेदारी के व्यापक समझौते (CEPA) से दोनों देशों को फ़ायदा होगा. इसीलिए, दोनों ही देशों के व्यापार संबंधी अधिकारियों को निर्देश दिया गया है कि वो इसी साल बातचीत शुरू कें, ताकि जब बांग्लादेश सबसे कम विकसित देशों से मध्यम दर्जे की आमदनी वाला देश बने, तो ये साझेदारी शुरू की जा सके. इसके अलावा, दोनों देशों द्वारा व्यापार और पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए शुरू की गई कनेक्टिविटी बढ़ाने की कई परियोजनाओं की भी समीक्षा की गई. इनमें से जो सबसे अहम परियोजनाएं हैं, वो चट्टोग्राम और मोंगला बंदरगाहों के इस्तेमाल के समझौते के तहत किए जा रहे परीक्षण का पूरा होना, मिताली एक्सप्रेस के कामयाब दौरे और पेट्रापोल- बेनापोल इंटीग्रेटेड चेकपोस्ट (ICP) पर माल ढुलाई के एक दूसरे गेट के विकास के लिए पैसे देने के भारत के प्रस्ताव पर चर्चाएं शामिल रहीं.

दौरे से शेख़ हसीना को चुनावी फ़ायदा होगा?

शेख़ हसीना ने इस दौरे में भारत के साथ सात सहमति पत्रों (MoU) पर दस्तख़त किए और वायदों का टोकरा लेकर अपने देश लौटीं. इन सहमति पत्रों में; बांग्लादेश और भारत की साझा सरहदी सदी कुशियारा से पानी लेने; बांग्लादेश रेलवे के कर्मचारियों को भारत में प्रशिक्षण के लिए भेजने; बांग्लादेश रेलवे के लिए FOIS और IT ऐप विकसित करने के लिए दोनों देशों के बीच IT सिस्टम का सहयोग बढ़ाने; अंतरिक्ष तकनीक के मामले में वैज्ञानिक और तकनीकी सहयोग बढ़ाने; प्रसारण के क्षेत्र में सहयोग करने और बांग्लादेश के न्यायिक अधिकारियों की क्षमता बढ़ाने के लिए भारत में उन्हें प्रशिक्षण देने के सहमति पत्र शामिल हैं. आज जब भारत और बांग्लादेश के रिश्तों का ‘शोनाली ओध्याय’ या स्वर्णिम दौर चल रहा है, तो ये उम्मीद की जा रही है कि ये साझा नज़रिए आगे चलकर ठोस क़ानूनी समझौते में तब्दील होंगे और दोनों देश आपसी सहयोग बढ़ाने के नए रास्ते भी तलाशेंगे. महामारी के वर्षों ने निश्चित रूप से भारत और बांग्लादेश के संबंधों को और मज़बूत किया है, क्योंकि दोनों देशों ने एक दूसरे को वैक्सीन और जीवन रक्षक दवाएं देने में प्राथमिकता दी. भारत और बांग्लादेश के बीच जल्द ही असैन्य परमाणु सहयोग भी शुरू होगा, क्योंकि बांग्लादेश अगले साल रूपपुर में अपना पहला परमाणु बिजलीघर लगाने जा रहा है. हालांकि, इन सभी आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए सबसे अहम शर्त, शेख़ हसीना का अगला संसदीय चुनाव जीतने की होगी. वैसे तो बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी द्वारा अवामी लीग की लंबे समय से चली आ रही आलोचना का सिलसिला जारी है. ख़ासकर तीस्ता समझौता अटकने का हवाला देते हुए BNP हमेशा ये आरोप लगाती है कि शेख़ हसीना, भारत को बहुत कुछ देकर बदले में कुछ ख़ास हासिल नहीं कर पाती हैं. लेकिन भारत के साथ नज़दीकी रिश्तों से बांग्लादेश को जो फ़ायदे होते हैं, उनकी अनदेखी नहीं की जा सकती है. ऐसे में अब ये देखना होगा कि भारत से मज़बूत रिश्तों वाली विदेश नीति पर चलकर शेख़ हसीना, चौथी बार लोकतांत्रिक चुनाव जीत पाती हैं या नहीं.

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