Author : Prateek Tripathi

Expert Speak Raisina Debates
Published on Oct 18, 2025 Updated 0 Hours ago

दुनिया में सेमीकंडक्टर सप्लाई चेन में हो रहे बदलाव भारत, जापान और दक्षिण कोरिया के बीच औपचारिक त्रिपक्षीय सहयोग शुरू करने का एक अच्छा अवसर बन सकते हैं. 

सेमीकंडक्टर पर भारत-जापान-दक्षिण कोरिया का नया गठबंधन

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एक बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था का उदय धीरे-धीरे बदलते गठबंधन और नई तरह की साझेदारी के युग की ओर ले जा रहा है. इस संदर्भ में भारत-जापान-दक्षिण कोरिया के बीच त्रिपक्षीय संबंध की दिशा में कदम उठाना स्वाभाविक लगता है क्योंकि तीनों देश पारस्परिक आदर्श साझा करते हैं. हालांकि मौजूदा भू-राजनीतिक माहौल त्रिपक्षीय संबंधों की स्थापना को एक मामले में विशेष रूप से महत्वपूर्ण और फायदेमंद बनाता है: आत्मनिर्भर सेमीकंडक्टर इकोसिस्टम की स्थापना. 

  • जापान और दक्षिण कोरिया सेमीकंडक्टर तकनीक में नेतृत्व कर रहे हैं, जबकि भारत अभी इस क्षेत्र में खुद को मजबूत करने की कोशिश कर रहा है.
  • सेमीकंडक्टर सप्लाई चेन में बदलाव और उत्पादन केंद्रों के स्थान बदलने से जापान और दक्षिण कोरिया में यह महसूस हुआ कि भारत के साथ त्रिपक्षीय संबंध बनाना जरूरी है, जिससे अब इसका एक मौका बन गया है.

वैश्विक सेमीकंडक्टर सप्लाई चेन के भीतर इन देशों की अपनी-अपनी ताकत और भू-राजनीतिक लाभ हासिल करने के साधन के रूप में टैरिफ का इस्तेमाल करने पर ट्रंप प्रशासन के बढ़ते ज़ोर के ख़िलाफ़ नाराज़गी में बढ़ोतरी को देखते हुए ये स्थिति तीनों देशों के लिए बदलती वैश्विक आर्थिक व्यवस्था का लाभ उठाने के लिए एक सही अवसर के रूप में काम कर सकती है. वैसे तो भारत-जापान-दक्षिण कोरिया के बीच त्रिपक्षीय नीति नियोजन संवाद की पहली बैठक 21 अक्टूबर 2024 को आयोजित हुई लेकिन औपचारिक रूप से इस त्रिपक्षीय संबंध की स्थापना नहीं हुई है. इस तरह सेमीकंडक्टर के क्षेत्र में सहयोग साझेदारी के विस्तार की नींव रख सकता है और पुरानी एवं उभरती- दोनों तकनीकों में इसके महत्व को देखते हुए साझेदारी को और बढ़ा सकता है. 

व्यक्तिगत ताकत और पहल का पता लगाना

तकनीकी इनोवेशन से तेज़ी से प्रभावित भू-राजनीतिक माहौल में सेमीकंडक्टर ने एक बुनियादी तकनीक के रूप में मज़बूती से अपनी जगह स्थापित की है. इसके नतीजतन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), क्वांटम कंप्यूटिंग, 6G, इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) डिवाइस और इलेक्ट्रॉनिक गाड़ियों जैसी उभरती तकनीकों में किसी भी देश की प्रगति पारंपरिक और अत्याधुनिक सेमीकंडक्टर चिप के उत्पादन और ख़रीदारी की उसकी क्षमता पर बहुत ज़्यादा निर्भर करती है. विशेष रूप से AI चिप (जो कथित रूप से आजकल सबसे ज़्यादा मांग वाली और महत्वपूर्ण तकनीक है) पूरी तरह से आधुनिक नोड सेमीकंडक्टर पर निर्भर हैं. 

जापान ने सेमीकंडक्टर सप्लाई चेन (चाहे वो उत्पादन हो या उपकरण या सामग्री) के भीतर अपनी स्थिति मज़बूत कर ली है, विशेष रूप से फैब्रिकेशन और असेंबली के क्षेत्रों में. 2022 के आंकड़े के मुताबिक दुनिया में सेमीकंडक्टर के उत्पादन में जापान की कंपनियों का बाज़ार में हिस्सा 9 प्रतिशत था. इसके अलावा 2021 में जापान के अर्थव्यवस्था, व्यापार और उद्योग मंत्रालय (METI) ने अपनी “सेमीकंडक्टर और डिजिटल उद्योग के लिए रणनीति” की घोषणा की जिसमें “रणनीतिक स्वायत्तता” का ज़िक्र इसके एक प्रमुख सिद्धांत के रूप में किया गया. METI की सेमीकंडक्टर पुनरुद्धार की रणनीति व्यापक है जो भविष्य की तकनीकों में अनुसंधान और विकास (R&D) को बढ़ावा देते हुए सप्लाई चेन के हर हिस्से पर ध्यान केंद्रित करती है.

दूसरी तरफ दक्षिण कोरिया ने भी इसी तरह सेमीकंडक्टर उद्योग में अपनी एक अग्रणी जगह बनाई है, विशेष रूप से मेमोरी चिप के मामले में जहां दुनिया के बाज़ार में इसका हिस्सा 60 प्रतिशत से ज़्यादा (2022 के मुताबिक) है. इसके पीछे सैमसंग और एसके हाइनिक्स जैसी बड़ी कंपनियां हैं. 2021 से दक्षिण कोरिया “राष्ट्रीय रणनीतिक तकनीक को बढ़ावा देने पर विशेष अधिनियम” के साथ-साथ “के-सेमीकंडक्टर बेल्ट स्ट्रेटजी” जैसी पहलों के माध्यम से घरेलू तकनीकी क्षमताओं में बढ़ोतरी की दिशा में भी काम कर रहा है. “के-सेमीकंडक्टर बेल्ट स्ट्रेटजी” 450 अरब अमेरिकी डॉलर का एक उपक्रम है जिसका मक़सद घरेलू चिप उत्पादन को बढ़ावा देने के साथ-साथ दक्षिण कोरिया को अगली पीढ़ी की चिप तकनीकों में पूरी दुनिया में अग्रणी देश के रूप में स्थापित करना है. 

सेमीकंडक्टर के क्षेत्र में ख़ुद को स्थापित करने के लिए भारत ने सेमीकॉन इंडिया प्रोग्राम की शुरुआत की है जिसकी घोषणा 2021 में की गई थी. 

जापान और दक्षिण कोरिया ने जहां ख़ुद को सेमीकंडक्टर तकनीक के मामले में राह दिखाने वाले देश के रूप में स्थापित किया है, वहीं भारत अभी भी इस क्षेत्र में अपने पैर जमाने की कोशिश कर रहा है. सेमीकंडक्टर के क्षेत्र में ख़ुद को स्थापित करने के लिए भारत ने सेमीकॉन इंडिया प्रोग्राम की शुरुआत की है जिसकी घोषणा 2021 में की गई थी. 76,000 करोड़ रुपये (लगभग 9 अरब अमेरिकी डॉलर) के शुरुआती निवेश के साथ इस कार्यक्रम का लक्ष्य देश के भीतर सेमीकंडक्टर के उत्पादन के लिए आधार को विकसित करना है. इस कार्यक्रम की शुरुआत के बाद अभी तक कुल 10 परियोजनाओं का एलान किया गया है जिनमें रेनेसैस और APACT जैसे जापान और दक्षिण कोरिया के साझेदारों के साथ परियोजनाएं भी शामिल हैं. वैसे तो भारत अभी तक दुनिया में सेमीकंडक्टर सप्लाई चेन में एक बड़ा किरदार नहीं है लेकिन जनसंख्या से जुड़े लाभ (डेमोग्राफिक डिविडेंड) की वजह से वो अपार क्षमता रखता है. 

एक तरफ अमेरिका और यूरोप के द्वारा सेमीकंडक्टर सप्लाई चेन को फिर से संगठित करने की मुहिम जारी है तो दूसरी तरफ तकनीकी राष्ट्रवाद की भावना भी बढ़ रही है, ऐसे में तीनों देश मौजूदा समय में सेमीकंडक्टर उत्पादन की प्रक्रिया के तीन प्रमुख हिस्सों- डिज़ाइन, फैब्रिकेशन और असेंबली- में एक निश्चित स्तर की स्वतंत्रता हासिल करने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं. भारत की प्राथमिकता फिलहाल मुख्य रूप से पारंपरिक चिप (उत्पादन की पुरानी प्रक्रिया का इस्तेमाल करके तैयार चिप) पर है, जबकि जापान और दक्षिण कोरिया का लक्ष्य पारंपरिक और आधुनिक नोड चिप- दोनों हैं. भारत पारंपरिक चिप के उत्पादन में चीन के वर्चस्व का मुकाबला करने की कोशिश कर रहा है. इस प्रयास में लगने वाले बहुत अधिक समय और पूंजी को देखते हुए प्रतिस्पर्धा के बदले आपसी सहयोग तीनों देशों के लिए एक आदर्श रणनीति होगी.  

तालमेल की स्थापना और एक साथ आगे बढ़ना 

सेमीकंडक्टर उत्पादन में व्यापक अनुभव और महत्वपूर्ण निवेश के बावजूद जापान और दक्षिण कोरिया- दोनों एक समान मुश्किलों का सामना कर रहे हैं: कामगारों की कमी और घटता हुनरमंद वर्कफोर्स. घटती जन्म दर और लगातार कम होती जनसंख्या दोनों देशों के लिए चिंता का बड़ा विषय रहा है. दूसरी तरफ सेमीकंडक्टर के क्षेत्र में तुलनात्मक रूप से अनुभव की कमी के बावजूद भारत की ताकत इसी में है. सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MosPI) के द्वारा कराए गए एक सर्वे के अनुसार 2011 में भारत की काम-काजी आबादी (15-59 वर्ष का उम्र समूह) 73.5 करोड़ थी. अनुमानों के मुताबिक 2036 तक ये संख्या और बढ़कर लगभग 1 अरब हो जाएगी. लेकिन जनसंख्या में बढ़ोतरी के साथ-साथ बेरोज़गारी में भी वृद्धि होती है. ये ऐसी स्थिति है जो भविष्य में और गंभीर हो जाएगी. त्रिपक्षीय मेल-जोल की स्थापना के साथ-साथ श्रमिकों के माइग्रेशन और ट्रेनिंग में बढ़ोतरी के लिए एक औपचारिक व्यवस्था भी तैयार की जा सकती है जिससे तीनों देश अपनी-अपनी कमज़ोरियों को दूर करने में सक्षम हो सकते हैं. 

त्रिपक्षीय मेल-जोल की स्थापना के साथ-साथ श्रमिकों के माइग्रेशन और ट्रेनिंग में बढ़ोतरी के लिए एक औपचारिक व्यवस्था भी तैयार की जा सकती है जिससे तीनों देश अपनी-अपनी कमज़ोरियों को दूर करने में सक्षम हो सकते हैं. 

इसके अलावा, मैन्युफैक्चरिंग में साफ तौर पर अपने कौशल के बावजूद न तो जापान और न ही दक्षिण कोरिया सेमीकंडक्टर के डिज़ाइन में एक महत्वपूर्ण किरदार है. सेमीकंडक्टर उद्योग के व्यापक विस्तार के लिए कई तरह की मौजूदा पहल के साथ-साथ वैश्विक सेमीकंडक्टर डिज़ाइन के लिए प्रतिभा में भारत की लगभग 20 प्रतिशत हिस्सेदारी को देखते हुए सहयोग को आगे बढ़ाने से तीनों देशों को भारी लाभ मिल सकता है. इस बीच सेमीकंडक्टर फैब्रिकेशन और असेंबली में जापान और दक्षिण कोरिया की विशेषज्ञता से भारत को अपनी शुरुआती सप्लाई चेन की खामियों को दूर करने में काफी मदद मिल सकती है. इस प्रकार, भारत-जापान-दक्षिण कोरिया के बीच त्रिपक्षीय संबंध से अगर एक हद तक सहयोग और तालमेल हासिल हो जाए तो तुरंत फायदा मिल सकता है. इससे इन देशों की ताकत को मिलाना और कमज़ोरियों का समाधान करना संभव होगा जिससे मौजूदा और भविष्य के तकनीकी इनोवेशन के लिए एक महत्वपूर्ण क्षेत्र में आपसी तालमेल स्थापित करने में मदद मिलेगी. 

निष्कर्ष: सेमीकंडक्टर में रणनीतिक स्वायत्तता की दिशा में 

अमेरिका के द्वारा तकनीकी सप्लाई चेन को चीन से अलग करने की कोशिश और चीन की तरफ से इसके ख़िलाफ़ जवाबी कार्रवाई जापान और दक्षिण कोरिया- दोनों के लिए चिंता का एक बड़ा कारण रही है, विशेष रूप से सेमीकंडक्टर के क्षेत्र में. अमेरिका के आर्थिक दबाव की वजह से दोनों देशों के लिए चीन में चिप का उत्पादन करना लगातार मुश्किल होता जा रहा है. उदाहरण के लिए, 29 अगस्त 2025 को अमेरिका के वाणिज्य विभाग ने एसके हाइनिक्स और सैमसंग के लिए स्वीकृति वापस ले ली. उन्हें चीन में चिप उत्पादन इकाई के लिए अमेरिकी सेमीकंडक्टर उत्पादन उपकरण ख़रीदने से रोक दिया गया जिसकी वजह से दक्षिण कोरिया की इन दोनों बड़ी तकनीकी कंपनियों के शेयर में गिरावट आई. दूसरी तरफ दोनों देशों को निर्यात नियंत्रण और दूसरे ज़बरदस्ती के उपायों के माध्यम से चीन की जवाबी कार्रवाई का भी सामना करना पड़ता है. इसके अलावा ओकिनावा में अमेरिकी अधिकारियों के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन जैसी घटनाओं ने पश्चिमी देशों के प्रभाव को लेकर लोगों में और ज़्यादा नाराज़गी बढ़ाई है. 

अमेरिका के द्वारा तकनीकी सप्लाई चेन को चीन से अलग करने की कोशिश और चीन की तरफ से इसके ख़िलाफ़ जवाबी कार्रवाई जापान और दक्षिण कोरिया- दोनों के लिए चिंता का एक बड़ा कारण रही है, विशेष रूप से सेमीकंडक्टर के क्षेत्र में.

इसलिए बदलती सेमीकंडक्टर सप्लाई चेन और इसके साथ उत्पादन केंद्रों में बदलाव ने जापान और दक्षिण कोरिया- दोनों देशों में ज़रूरत की भावना उत्पन्न की है जिससे भारत-जापान-दक्षिण कोरिया के बीच त्रिपक्षीय संबंध की शुरुआत करने का एक रास्ता तैयार हो गया है. ये इन देशों की व्यक्तिगत ताकत का समन्वय करने के अलावा तीनों देशों को वैश्विक दबदबे पर निर्भरता सीमित करने में सक्षम भी बनाएगा. साथ ही एक अनिवार्य तकनीकी सप्लाई चेन के भीतर निश्चित सीमा तक रणनीतिक स्वायत्तता और लाभ हासिल करने में भी मदद करेगा. दुनिया में AI चिप के लिए तेज़ी से बढ़ती मांग और प्रतिस्पर्धा को देखते हुए ये विशेष रूप से महत्वपूर्ण है. इसके अलावा एक साझा और आपसी रूप से फायदेमंद मक़सद को हासिल करके भरोसा और अंतर-संचालन (इंटरऑपरेबिलिटी) बढ़ाने से AI, क्वॉन्टम टेक्नोलॉजी, रोबोटिक्स और महत्वपूर्ण खनिज के साथ-साथ समुद्री रक्षा और जहाज़ निर्माण जैसे दूसरे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में भविष्य के सहयोग की नींव रखी जा सकती है. इन सभी क्षेत्रों को तीनों देशों की सरकारों ने राष्ट्रीय प्राथमिकता घोषित कर रखा है. 


प्रतीक त्रिपाठी ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के सेंटर फॉर सिक्योरिटी, स्ट्रैटजी एंड टेक्नोलॉजी (CSST) में जूनियर फेलो हैं. 

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