Author : K. V. Kesavan

Published on Apr 27, 2021 Updated 0 Hours ago

जापान को लगता है कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में ब्रिटेन की बढ़ती दिलचस्पी से इस क्षेत्र में आवाजाही की स्वतंत्रता (FOIP) की दूरदृष्टि को हक़ीक़त में बदला जा सकता है.

चीन के नए क़ानून से तनाव बढ़ता देख जापान हिंद-प्रशांत क्षेत्र में ब्रिटेन के साथ साझा सामरिक हितों की ओर बड़ी उम्मीद से देख रहा है

कोविड-19 महामारी के ख़िलाफ़ लड़ाई में व्यस्त होने के बावजूद, जापान के प्रधानमंत्री योशिहिदे सुगा सत्ता में आने के बाद से लगातार मुक्त एवं स्वतंत्र हिंदप्रशांत क्षेत्र (FOIP) की रणनीति के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को मज़बूत करने में जुटे हैं. पिछले साल अक्टूबर में उन्होंने टोक्यो में क्वाड देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक की मेज़बानी की थी. इसके बाद प्रधानमंत्री के रूप में अपने पहले विदेश दौरे में वो वियतनाम और इंडोनेशिया गए, जिससे कि मुक्त एवं स्वतंत्र हिंद-प्रशांत क्षेत्र के विज़न को आगे बढ़ा सकें. पिछले साल नवंबर में ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन को शिखर वार्ता के लिए टोक्यो आमंत्रित करके सुगा ने वैसा ही उत्साह दिखाया था. मॉरिसन के उस दौरे में ऑस्ट्रेलिया और जापान ने रक्षा उपकरणों और तकनीक के हस्तांतरण का बेहद अहम समझौता किया था.

ब्रिटेन और जापान द्वारा साझा रणनीति हितों को बढ़ावा देने की कोशिश

हाल के कुछ महीनों के दौरान, हिंद-प्रशांत क्षेत्र में ब्रिटेन और जापान ने जिस तरह से अपने साझा रणनीतिक हितों को तेज़ी से बढ़ावा देने की कोशिश की है, हमें इन प्रयासों को उपरोक्त संदर्भों में देखना होगा. यूरोपीय संघ के अलग होने के बाद से ब्रिटेन, यूरोप से बाहर अपने लिए नए आर्थिक और सामरिक अवसर तलाश रहा है. ऐसे में ब्रिटेन द्वारा हिंद-प्रशांत क्षेत्र को निश्चित रूप से एक आकर्षक विकल्प के तौर देखा जा रहा है. जनवरी 2021 में ब्रिटेन और जापान के बीच मुक्त व्यापार समझौता प्रभावी हो गया. ये ब्रिटेन द्वारा बहुपक्षीय, व्यापक और प्रगतिवादी ट्रांस पैसिफिक साझेदारी (CPTPP) का हिस्सा बनने की दिशा में उठा पहला क़दम है.

इससे न केवल दोनों देशों के बीच आपसी व्यापार बढ़ेगा, बल्कि इससे ब्रिटेन के CPTPP में शामिल होने की राह भी सुगम होगी.

इसके अतिरिक्त, ब्रिटेन अब हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपने लिए एक नई भूमिका भी देख रहा है. इसकी वजह हमें ब्रिटेन के सरकारी हल्कों में हाल के दिनों में हुई उस गंभीर परिचर्चा के ज़रिए पता चलती है, जिसमें ब्रिटेन के अधिकारियों ने ये माना था कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र, ब्रिटेन के लिए व्यापार एवं निवेश के क्षेत्र में असीमित अवसर उपलब्ध कराता है. इस क्षेत्र में अपनी दिलचस्पी बढ़ाते हुए ब्रिटेन एवं वियतनाम ने दिसंबर 2020 में मुक्त व्यापार का आपसी समझौता किया था. इससे  केवल दोनों देशों के बीच आपसी व्यापार बढ़ेगा, बल्कि इससे ब्रिटेन के CPTPP में शामिल होने की राह भी सुगम होगी. वियतनाम ने ब्रिटेन को विश्वास दिलाया है कि वो ब्रिटेन को ट्रांस पैसिफिक पार्टनरशिप में जल्द से जल्द शामिल करने का पुरज़ोर प्रयास करेगा. ब्रिटेन ने 11 सदस्यों वाले इस मंच की सदस्यता के लिए पहले ही अर्ज़ी दे दी है. इस मंच में ब्रिटेन को शामिल करने के लिए वार्ता, अगले कुछ महीनों के दौरान कभी भी शुरू हो सकती है. ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन इस संभावना से काफ़ी उत्साहित थे. जॉनसन ने कहा कि, ‘यूरोपीय संघ से अलग होने के एक साल बाद, हम नई साझेदारियां कर रहे हैं, जिससे ब्रिटेन की जनता को ज़बरदस्त आर्थिक लाभ होंगे.’

इसमें कोई दो राय नहीं कि ब्रिटेन और जापान के बीच मज़बूत आर्थिक संबंधों से दोनों देशों को कई फ़ायदे होंगे. लेकिन, दोनों देशों के आपस में मिलते रणनीतिक हितों का हिंद-प्रशांत क्षेत्र पर दूरगामी प्रभाव देखने को मिल सकता है. जापान और ब्रिटेन के बीच विदेश मंत्रियों और रक्षा मंत्रियों की साझा बैठक (2+2) तीन फ़रवरी को आयोजित हुई थी. इस बैठक ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र की शांति और सुरक्षा में ब्रिटेन की बढ़ती दिलचस्पी को उजागर किया था. इस बैठक में ब्रिटेन और जापान के विदेश  रक्षा मंत्री शामिल हुए थे. दोनों देशों के विदेश और रक्षा मंत्रियों की संयुक्त बैठक का ये चौथा संस्करण था. हालांकि, एक सच्चाई ये भी है कि ये बैठक क़रीब साढ़े तीन वर्ष के अंतराल के बाद हुई. इस बैठक में चारों मंत्रियों को ख़ास तौर से हिंद-प्रशांत क्षेत्र के सुरक्षा एवं आर्थिक क्षेत्र के व्यापक विषयों पर विचार करने का अवसर मिला.

चारों मंत्रियों ने ये भी कहा कि दक्षिणी चीन सागर से संबंधी किसी भी कोड ऑफ कंडक्ट को संयुक्त राष्ट्र के समुद्री क़ानूनों और अन्य अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों के दायरे में होना आवश्यक है.

चारों मंत्रियों के बीच इस परिचर्चा के दौरान एक प्रमुख विषय इस क्षेत्र में समुद्री सुरक्षा का भी था. ब्रिटेन और जापान, दोनों ही देश समुद्री राष्ट्र हैं, जो स्वतंत्रता, लोकतंत्र, मानव अधिकारों और क़ानून के राज जैसे मूलभूत सिद्धांतों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को साझा करते हैं. रक्षा एवं विदेश मंत्रियों की इस बैठक में मंत्रियों ने ज़ोर देकर कहा कि वो नियम आधारित ऐसी क्षेत्रीय व्यवस्था के पक्ष में हैं, जो खुले समंदर में आवाजाही की स्वतंत्रता और उसके ऊपर से विमानों की अबाध उड़ानें सुनिश्चित करती है. दोनों देशों के मंत्रियों ने दक्षिणी और पूर्वी चीन सागर में सुरक्षा के बिगड़ते हालात को लेकर चिंता जताई और किसी भी देश द्वारा इकतरफ़ा तरीक़े से यथास्थिति को बदलने के प्रयासों का बड़ी मज़बूती से विरोध किया. दोनों देशों के मंत्रियों ने सभी देशों से आत्म नियंत्रण से काम लेने की अपील की और कहा कि उन्हें ऐसी गतिविधियों से बाज़ आना चाहिए, जिससे इस क्षेत्र में तनाव बढ़ने की आशंका हो. जापान और ब्रिटेन के रक्षा एवं विदेश मंत्रियों ने ज़ोर देकर कहा कि दक्षिणी चीन सागर को लेकर संयुक्त राष्ट्र की समुद्री नियमों संबंधी पंचाट (UNCLOS ट्राइब्यूनल) ने जो फ़ैसला सुनाया था, वो इस विवाद में अंतिम एवं सबके लिए बाध्यकारी है. चारों मंत्रियों ने ये भी कहा कि दक्षिणी चीन सागर से संबंधी किसी भी कोड ऑफ कंडक्ट को संयुक्त राष्ट्र के समुद्री क़ानूनों और अन्य अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों के दायरे में होना आवश्यक है.

मंत्रिस्तरीय वार्तालाप में समुद्री सुरक्षा को लेकर परिचर्चा का होना सामरिक रूप से बेहद प्रासंगिक है. ख़ास तौर से चीन द्वारा पारित किए गए नए समुद्र तटीय रक्षक क़ानून के संदर्भ में, जो इस क्षेत्र मे तनाव को बढ़ाने वाला है. इस क़ानून के अंतर्गत, अगर कोई विदेशी संगठन या व्यक्ति चीन के समुद्री क्षेत्र में दाख़िल होता है, तो चीन के तटरक्षक जहाज़ों को ये अधिकार मिल जाता है कि वो राष्ट्रीय संप्रभुता, संप्रभु अधिकारों और क्षेत्राधिकार के संदर्भ में सभी आवश्यक क़दम, जिसमें हथियारों का इस्तेमाल भी शामिल है, उठाने को स्वतंत्र हैं. इसके अलावा, इस क़ानून से चीन के तट रक्षकों को ये अधिकार भी दिया गया है कि वो ऐसे समुद्री इलाक़ों में किसी अन्य देश द्वारा बनाई गई संरचना को तोड़ सकते हैं, जिस पर चीन अपना दावा करता हो. चीन के तट रक्षक, विदेशी जहाज़ों को ज़ब्त कर सकते हैं, या उन्हें चीन के समुद्री क्षेत्र से बाहर जाने का आदेश दे सकते हैं.

चीन के क़ानून से जापान की चिंता

चीन के इस क़ानून से जापान का चिंतित होना स्वाभाविक है, क्योंकि इससे पूर्वी चीन सागर में जापान के दावे और ख़ास तौर से सेनकाकू द्वीपों को लेकर उसकी स्थिति पर गंभीर चोट पहुंचने का डर है. इस क़ानून को पारित करने से पहले से ही चीन के जहाज़ नियमित रूप से जापान के समुद्री क्षेत्र में घुसपैठ करते रहे हैं, जिससे अक्सर तनाव बढ़ जाता है. लेकिन, अब चीन द्वारा ये क़ानून पारित करने के बाद, चीन के जहाज़ों ने जापान के समुद्री क्षेत्र में बारबार घुसपैठ करना शुरू कर दिया है. इससे जापान की संप्रभुता के लिए एक नया संकट खड़ा हो गया है. समुद्री क्षेत्र में बढ़ते हुए तनाव को देखते हुए, जापान को लगता है कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में ब्रिटेन की बढ़ती दिलचस्पी, मुक्त एवं स्वतंत्र हिंद-प्रशांत क्षेत्र के दृष्टिकोण (FOIP) को हक़ीक़त में तब्दील करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगी.

महत्वपूर्ण बात ये है कि जापान नेब्रिटेन द्वारा इस साल अपने एयरक्राफ्ट कैरियर क्वीन एलिज़ाबेथको उसके मारक दस्ते के साथ इस क्षेत्र में भेजने केफ़ैसले का समर्थनकिया था. 

महत्वपूर्ण बात ये है कि जापान ने ब्रिटेन द्वारा इस साल अपने एयरक्राफ्ट कैरियर क्वीन एलिज़ाबेथ को उसके मारक दस्ते के साथ इस क्षेत्र में भेजने के फ़ैसले का समर्थन किया था. जापान को लगता है कि इस क़दम से ब्रिटेन के इस क्षेत्र की समुद्री सुरक्षा से और गहराई से जुड़ने की शुरुआत हो गई है. ब्रिटेन के रक्षा मंत्री ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपना एयरक्राफ्ट कैरियर भेजने को ब्रिटेन की नौसेना का ऐसा क़दम बताया था, जो कई पीढ़ियों में कहीं एक बार लिया जाता है.

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