Authors : Ramraj Pai | Shriya Nene

Published on Sep 08, 2021 Updated 0 Hours ago

कोरोना महामारी के बावजूद भारतीय इम्पैक्ट उद्यमों ने स्थितियों से मुकाबला करने की क्षमता दिखाई. ज़्यादातर कारोबारियों ने समय के साथ अपने व्यापार को फिर से संगठित किया और लोगों की ज़रूरतों के आधार पर तकनीकी तैयारियां कर ली

सीड-स्टेज तकनीकी निवेश के चलते 2020 में सबसे ज़्यादा दौड़ा विकास का पहिया
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साल 2020 में विश्वव्यापी कोरोना महामारी ने कारोबार और आर्थिक जगत को जो नुकसान पहुंचाया उसके बावजूद इम्पैक्ट एंटरप्राइजेज (प्रभाव उद्यमों) ने 2.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश प्राप्त किया जिसमें 243 इक्विटी समझौतों में से 13 ने सफलतापूर्वक बाहर निकलने का फैसला किया. साल 2019 के मुकाबले कुल निवेश में 25 फ़ीसदी की कमी दर्ज़ होने के बावजूद इम्पैक्ट निवेशकों ने गंभीर सामाजिक और पर्यावरण चुनौतियों से निपटने के लिए स्केलेबल, तकनीक-आधारित, नए सामाजिक उद्यमों में निवेश करना लगातार जारी रखा.

वार्षिक इम्पैक्ट निवेश रिसर्च की रिपोर्ट ‘2020 का पुनरावलोकन : भारत के इम्पैक्ट इन्वेस्टमेंट ट्रेंड्स’, के मुताबिक भविष्य में भारत के इम्पैक्ट सेक्टर और ज़्यादा तकनीक आधारित होंगे. और कोरोना महामारी इस सेक्टर के लिए गेमचेंजर साबित हुआ है. क्योंकि लॉकडाउन और शारीरिक दूरी या सोशल डिस्टेंसिंग नियम के पालन करने के दौरान समाज के हर वर्ग में इंटरनेट और डिजिटल सेवाओं का चलन बढ़ा है.

इस सेक्टर ने सीड स्टेज निवेश की मात्रा में 16 फ़ीसदी का विस्तार देखा. दरअसल ज़्यादातर निवेशक शुरुआती स्तर के तकनीक आधारित उद्मम जो कृषि, जीविका और स्वास्थ्य क्षेत्र से संबंधित हैं उनमें निवेश को इच्छुक देखे गए. हालांकि कुल इम्पैक्ट निवेश में जो गिरावट दर्ज़ की गई उसकी बड़ी वजह वित्तीय पहुंच और स्वास्थ्य सेवा संबंधी उद्यमों में बाद की अवस्था में निवेश की कमी होना है.

मुश्किलों के बावजूद कृषि क्षेत्र में साल 2020 में 52 समझौतों के जरिए 440 मिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश हुआ. अभी भी यह सेक्टर निवेशकों की पसंद बना हुआ है और साल 2019 के मुकाबले साल 2020 में समझौतों की संख्या में कोई बदलाव नहीं हुआ है. 

इस दौरान कृषि ने विकास को थामे रखा

दो राय नहीं कि कोरोना महामारी और सख़्त लॉकडाउन ने बाज़ार बंद होने, कई जमीनी गतिविधियों पर ब्रेक लगाने समेत कृषि आधारित सप्लाई चेन को व्यापक तौर पर प्रभावित किया. इन मुश्किलों के बावजूद कृषि क्षेत्र में साल 2020 में 52 समझौतों के जरिए 440 मिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश हुआ. अभी भी यह सेक्टर निवेशकों की पसंद बना हुआ है और साल 2019 के मुकाबले साल 2020 में समझौतों की संख्या में कोई बदलाव नहीं हुआ है.

उम्मीद तो यही है कि वैसे उद्योग जो कृषि वैल्यू चेन में बाज़ार के संबंधों को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित हुए हैं, उनमें आगे भी निवेशक अपना हित तलाश  सकते हैं. ऐसा इसलिए है क्योंकि किसान अब बिचौलियों के प्रभाव को समाप्त करने, प्रादर्शिता बढ़ाने और यह सुनिश्चित करने के लिए कि कृषि उत्पादों के विक्रय का ज़्यादा से ज़्यादा हिस्सा वो अपने पास रख सकें, इसके लिए तकनीक का इस्तेमाल करने लगे हैं. भविष्य में कटाई से पहले कृषि आधारित स्टार्ट-अप में भी ज़्यादा निवेश आकर्षित करने की संभावना बनी हुई है क्योंकि किसान ज़्यादा से ज़्यादा उन नए तरीक़ों को अपनाने में लगे हैं जो उत्पादन क्षमता को बढ़ाने में योगदान दे सकें.

जैसे ही निवेशकों को एहसास हुआ कि यह संकट तकनीकी शिक्षा से जुड़ी कंपनियों के लिए एक बेहतर  मौका है, शिक्षा में निवेश की मात्रा में 65 फ़ीसदी बढ़ोतरी दर्ज़ की गई और शिक्षा में निवेश बढ़कर 660 मिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया जबकि शिक्षा से जुड़े समझौतों में 47 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई. 

शिक्षा में रिकॉर्ड स्तर का निवेश हुआ

राष्ट्रीय स्तर पर लॉकडाउन की सख़्त पाबंदियों के चलते परंपरागत शिक्षा के तरीक़ों पर जोरदार असर हुआ. पूरे देश भर के स्कूलों में 335 मिलियन छात्र जिनका नामांकन है उन तक तकनीक आधारित शिक्षा के समाधान पहुंच सके इसकी ज़रूरत सभी महसूस कर रहे हैं.

जैसे ही निवेशकों को एहसास हुआ कि यह संकट तकनीकी शिक्षा से जुड़ी कंपनियों के लिए एक बेहतर  मौका है, शिक्षा में निवेश की मात्रा में 65 फ़ीसदी बढ़ोतरी दर्ज़ की गई और शिक्षा में निवेश बढ़कर 660 मिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया जबकि शिक्षा से जुड़े समझौतों में 47 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई. यह उछाल साल 2019 के स्तर से 20 फ़ीसदी अधिक है. ज़्यादातर बढ़ोतरी सीरीज बी और बाद के स्तर के समझौतों की वजह से मुमकिन हो पाया .

जो मॉडल पहले से सफल साबित हैं उनके बाद के स्तर के उद्यमों को निवेशक ज़्यादा समर्थन देते हैं, जैसे अनएकेडेमी, वेदान्तु, क्यूमैथ और लीड स्कूल. जैसे-जैसे सरकार की नीतियां तकनीक आधारित शिक्षा को प्रोत्साहित करने की होती जा रही है, निवेश की यह गति आगे भी जारी रहेगी.

स्वास्थ्य सेक्टर में सीड स्टेज निवेश से ज़्यादा उम्मीद



कोरोना महामारी के दौरान स्वास्थ्य संबंधी एजेंडा पर ध्यान केंद्रित होने के बावजूद, साल 2020 में स्वास्थ्य संबंधी इम्पैक्ट उद्यमों में निवेश की मात्रा कम रही . 29 समझौतों के तहत 200 मिलियन अमेरिकी डॉलर तक का निवेश ही इस दौरान हुआ. साल 2019 के मुकाबले इस क्षेत्र में निवेश की मात्रा में 70 फ़ीसदी और समझौतों की संख्या में 20 फ़ीसदी की गिरावट दर्ज़ की गई.

यह गिरावट ज़्यादा दिखी क्योंकि साल 2019 से पहले बाद के स्टेज में ऑनलाइन फार्मेसी सेगमेंट में ज़्यादा से ज़्यादा समझौते सफल हो पाए.

कुल निवेश में गिरावट के बावजूद साल 2020 में हेल्थकेयर क्षेत्र में सीड स्टेज समझौतों की तादाद में 85 फ़ीसदी की तेजी दर्ज़ की गई. कोरोना महामारी के बाद लगातार लॉकडाउन और हेल्थकेयर क्लिनिक और अस्पतालों में शारीरिक रूप से जाने के जोख़िम के बढ़ने से टेलीमेडिसिन और क्लाउड इनाबेल्ड डायग्नोस्टिक सेंटर की प्रमुखता बढ़ने लगी.डायग्नोस्टिक और डिसिजन सपोर्ट, मेडिकल डिवाइस और प्राथमिक हेल्थकेयर सेगमेंट में भी सामूहिक रूप से निवेश में 30 फ़ीसदी की बढ़ोतरी दर्ज़ की गई.

डील के बाद के स्टेज पर ध्यान नहीं देने से निवेश में आई गिरावट

हालांकि साल 2020 में वित्तीय सेक्टर में सबसे ज़्यादा निवेश हुआ – जैसा कि हर साल हुआ करता है – लेकिन कोरोना महामारी ने बाज़ार के कोर सेक्टर को प्रभावित किया, ख़ास कर माइक्रोफाइनेंस उद्यम के बाद के स्तर, हाउसिंग फाइनेंस और कमर्शियल व्हीकल फाइनेंस इससे प्रभावित हुए.

इसका नतीजा यह हुआ कि निवेश में 50 फ़ीसदी की गिरावट दर्ज़ की गई और 2019 के मुकाबले समझौतों की संख्या में 35 फ़ीसदी कि गिरावट आई.

वित्तीय सब सेक्टर के स्थायित्व के मुकाबले फिनटेक का प्रदर्शन साल 2020 में बेहतर रहा. यह मुमकिन इसलिए हो सका क्योंकि शारीरिक दूरी या सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने की वजह से डिजिटल पेमेंट और लेनदेन में काफी उछाल दर्ज़ की गई. दरअसल देश लॉकडाउन के दौरान रोजमर्रा की लेनेदेन के लिए तकनीक आधारित वित्तीय उत्पादों के विकल्प को ज़्यादा इस्तेमाल करने लगा.

ख़ास कर लघु और मध्यम व्यापार (एसएमई) के क्षेत्र में विकास के लिए तकनीक के इस्तेमाल में काफी उम्मीदें बढ़ीं

यह सेगमेंट सामाजिक असर के लिए अनिवार्य रूप से तकनीक के क्रॉस कटिंग इस्तेमाल को बढ़ावा देती है जिसके तहत (i) नए बाज़ार और उत्पाद तक पहुंच (उपयोगितावादी उत्पाद) , (ii) आय के नए स्रोतों तक पहुंच ( कामकाज का भविष्य), (iii) कनेक्टिविटी तक आसान पहुंच (उदाहरणस्वरूप, एसएमई तकनीक) और / या (iv) कंटेंट तक पहुंच  (मीडिया / स्थानीय). हालांकि इसमें दूसरे सेक्टरों की तरह तकनीक आधारित समाधान शामिल नहीं हैं.

जैसा कि पहले जिक्र किया गया है कि साल 2020 में तकनीक के इस्तेमाल  ने जबर्दस्त उछाल लिया. इस सेक्टर में करीब 331 मिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश हुआ जो साल 2019 के मुकाबले 76 फ़ीसदी अधिक था. हालांकि ज़्यादातर हिस्सा इसका एकल उद्यमों की वजह से मुमकिन हो सका. डेली हंट ने अकेले साल 2020 में 214 मिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश आकर्षित किया. हालांकि 2019 के 43 डील के मुकाबले 2020 में इसकी संख्या 34 रह गई.

निष्कर्ष

कोरोना महामारी के बावजूद भारतीय इम्पैक्ट उद्यमों ने स्थितियों से मुकाबला करने की क्षमता दिखाई. ज़्यादातर कारोबारियों ने समय के साथ अपने व्यापार को फिर से संगठित किया और लोगों की ज़रूरतों के आधार पर तकनीकी तैयारियां कर ली.

मौजूदा समय में यह बेहद ज़रूरी है कि भारत को एक उच्च स्तर के इम्पैक्ट निवेश के लिए पूरी तरह तैयार देश के तौर पर प्रचारित करने की ज़रूरत है. यही नहीं इस बात को भी दुनिया को बताने की ज़रूरत है कि भारत में गरीबों के लिए किफायती और नए-नए समाधान मौजूद हैं.

लेकिन भारत की सामाजिक आर्थिक चुनौतियां – जो कोरोना महामारी के दौर में कई गुना बढ़ गईं – उनसे निपटने के लिए कई पहल किए जा सकते हैं जिसमें सरकार और निजी सेक्टर के बीच पार्टनरशिप का विकल्प मौजूद है.

सरकार का सक्रिय समर्थन : सरकार ने इस क्षेत्र में कई शानदार पहल किए हैं जिसमें सोशल स्टॉक एक्सचेंज प्लेटफ़ॉर्म का मंच, एमएसएमई सेक्टर के लिए क्रेडिट गारंटी स्कीम शामिल हैं. सरकार के साथ एक मजबूत पार्टनरशिप इस सेक्टर के लिए बेहतर प्रभाव पैदा करने का मौका मुहैया करा सकता है.

आम बेहतरी के लिए निजी पूंजी : इम्पैक्टर निवेशकों के लिए ज़रूरी है कि वो ज़्यादा से ज़्यादा निजी निवेश अपनी ओर आकर्षित करें, जिससे वैश्विक और घरेलू निवेश के आधार में विस्तार हो और यह शुरुआती स्टेज के लिए बाज़ार तैयार कर सके. साथ ही पेसेंट इक्विटी और ऋण जोख़िम पूंजी के लिए भी बाज़ार मुहैया करा सके. मौजूदा समय में यह बेहद ज़रूरी है कि भारत को एक उच्च स्तर के इम्पैक्ट निवेश के लिए पूरी तरह तैयार देश के तौर पर प्रचारित करने की ज़रूरत है. यही नहीं इस बात को भी दुनिया को बताने की ज़रूरत है कि भारत में गरीबों के लिए किफायती और नए-नए समाधान मौजूद हैं.

नए वित्तीय मॉडल : आउटकम आधारित इस्तेमाल के लिए जबर्दस्त संभावनाएं हैं या फिर कामयाब वित्तीय उपकरण के लिए भुगतान जैसे इम्पैक्ट बॉन्ड और गारंटी स्ट्रक्चर व्यवस्था जिससे कि सार्वजनिक और परोपकारी खर्च को बढ़ावा दिया जा सके और अतिरिक्त निजी पूंजी जोख़िम की संभावना को खोल सके.

इम्पैक्ट उद्ममों को बढ़ावा देना : इम्पैक्ट निवेशकों के लिए ज़रूरी है कि वो लगातार प्रमुख सामाजिक क्षेत्रों में पिरामिड केंद्रित सबसे बेहतर नए विकल्पों की पहचान करें और उसकी स्केलिंग को आगे जारी रखें जिससे राष्ट्रीय स्तर पर प्रभाव पैदा करने के लिए फॉलो ऑन पूंजी और रणनीतिक समर्थन के साथ उनकी मदद करना और जिम्मेदार और नियमित रूप से बाहर निकलना शामिल है. इसके साथ ही हम केंद्र और राज्य सरकार से अपील करना चाहेंगे कि वो अपने अनोखे उत्पाद की नवीनता को बढ़ावा दें जिससे की विकास की कोशिशों में तेजी आ सके.

इम्पैक्ट निवेशकों के काउंसिल के बारे में

इम्पैक्ट इन्वेस्टर्स काउंसिल (IIC) देश में इम्पैक्ट इन्वेस्टमेंट को मजबूत करने के लिए एक प्रमुख सदस्य-आधारित गैर लाभकारी कारोबारी संस्था है. आईआईसी  की मुख्य गतिविधियों और कोशिशों में समर्थन और नीति के द्वारा मदद करना, अनुसंधान और प्रकाशन शामिल हैं. हमें भारत के कम आय वाले ग्राहकों के लिए बाज़ार आधारित मॉडल बनाने के लिए 40 से ज़्यादा निवेशकों, असेट मैनेजर और विकास के क्षेत्र से जुड़ी संस्थाओं का समर्थन हासिल है, www.iiic.in

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