-
CENTRES
Progammes & Centres
Location
अनेक उभरते रुझान विशेष कर सामुद्रिक क्षेत्र में वैश्विक संसाधनों की बढ़ती भीड़ और नवीनतम (डिस्रप्टिव) प्रौद्योगिकियों का त्वरित विकास आने वाले दशकों की विशिष्टता हैं, देशों द्वारा दूरदराज के क्षेत्रों में लम्बे संघर्षों के लिए अपने सैन्य बलों को नए सिरे से व्यवस्थित किए जाने की संभावना है।
15 दिसम्बर 2016 को पीपुल्स लिब्रेशन आर्मी नेवी (पीएलएएन)ने फिलीपींस के सुबिक बे पोर्ट से 50-100 समुद्री मील की दूरी पर अंतर्राष्ट्रीय जल सीमा से अमेरिकी नौसेना के एक मानवरहित अंतर्जलीय वाहन (अन्मैन्ड अंडरवॉटर व्हीकल-यूयूवी) को जब्त करके समुद्र में नौसेनाओं के बीच अंतर्राष्ट्रीय आचार संहिता को बिल्कुल अलग ढंग से इस्तेमाल किया। हालांकि चीन ने गैर कानूनी तरीके से जब्त किए गए इस अमेरिकी यूयूवी को लौटा दिया, लेकिन इस घटना ने नौसैनिक पोतों को मार्ग में रोकने तथा अमेरिकी सामुद्रिक कार्रवाइयों को चुनौती देने की ताकत और इच्छा को दोबारा साबित करने की चीन की कोशिश का एक अन्य उदाहरण प्रस्तुत किया। उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण बात यह है कि इस घटना ने यूयूवी के बढ़ते रणनीतिक और नीतिगत महत्व, विवादित जलक्षेत्रों में ऐसे व्हीकल्स के इस्तेमाल और अंडरवॉटर ड्रोन के इस्तेमाल को नियंत्रित करने के लिए वैश्विक स्तर पर स्वीकृत आचार संहिता के अभाव को उजागर किया। इस लेख में दलील दी गई है कि असैन्य और सैन्य दोनों तरह से उपयोग हो सकने वाली यूयूवी जैसी नवीनतम (डिस्रप्टिव) प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देने के चीन के प्रयासों पर भारतीय रक्षा योजनाकारों को आवश्यक तौर पर ध्यान देना चाहिए। अब जबकि चीन फॉरवर्ड ऑपरेशन्स के लिए अंडरवॉटर ड्रोन्स की सक्रिय तैनाती की दिशा में बढ़ रहा है, ऐसे में हिंद महासागर-प्रशांत महासागर क्षेत्र के स्थायित्व पर इसका प्रभाव पड़ना लाजिमी है। भारत को अपने सामरिक साझेदारों — अमेरिका, जापान, आस्ट्रेलिया और वियतनाम के साथ मिलकर सामुद्रिक सुरक्षा को सुदृढ़ बनाना चाहिए, एंटी-सब्मरीन वॉरफेयर (एएसडब्ल्यू) पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए और अंडरवॉटर ड्रोन्स के इस्तेमाल के बारे में वैश्विक आचार संहिता बनाने की दिशा में फौरन काम करना चाहिए।
पिछले दो दशकों में, ड्रोन प्रौद्योगिकियों, विशेषकर स्वर्मिंग प्लेटफॉमर्स के क्षेत्र में तेजी से प्रगति हुई है, जहां बड़ी संख्या में ड्रोन्स फॉर्मेशन में सामंजस्य स्थापित करते हैं। इन प्रौद्योगिकियों को युद्ध कौशलों के भविष्य के लिए बदलावकारी माना गया है। एसआईपीआरआई की रिपोर्ट के अनुसार, प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में ज्यादा महत्वपूर्ण प्रगति अन्मैन्ड एरियल ड्रोन (यूएवी) प्रौद्योगिकी में हुई है और चीन प्रमुख सैन्य ड्रोन निर्यातक बनकर उभरा है, जो विशाल हथियार पेलोड को वहन करने की क्षमता वाले ड्रोन्स बेच रहा है। दूसरी ओर, अंडरवॉटर ड्रोन्स भी एक अन्य प्रमुख क्षेत्र के रूप में उभर रहे हैं, जिस पर चीन द्वारा बल दिया जा रहा है। यूयूवी प्रौद्योगिकियों में लगातार सुधार और संचार एवं नौवहन सहित रोबोटिक टैक्नोलॉजी में हुई तकनीकी प्रगति ने मिशन के दौरान — दूरदराज के इलाकों तथा कठोर वातावरण में, यूयूवी द्वारा अपना मार्गदर्शन करने की क्षमता में बढ़ोत्तरी की है। यूयूवी के क्षेत्र में हुई प्रगति के दूरगामी परिणाम होंगे। पनडुब्बियों का पता लगाने और उनका पीछा करने की इसकी क्षमता का प्रभाव सामरिक स्थायित्व पर पड़ेगा। इस प्रकार पनडुब्बियों का पता लगाने और उनका पीछा करने की यूयूवी की यह योग्यता महासागरों को पारदर्शिता प्रदान करेगी और युद्ध के तरीकों में सशक्त बदलाव लाएगी। यही मुख्य कारण है, जो चीन अंडरवॉटर ड्रोन्स के बढ़ते उद्योग में निवेश कर रहा है, जिसमें राष्ट्रीय स्तर पर पर्याप्त धन और सहायता उपलब्ध कराई जा रही है। आरएएनडी की 2016 की रिपोर्ट में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि चीन इस समय यूयूवी प्रोजेक्ट्स के लिए विश्वविद्यालयों के 15 अलग-अलग अनुसंधान कार्यक्रमों को वित्तीय सहायता उपलब्ध करा रहा है। चीन के लियाओनिंग सूबे की चाइनीज अकेडेमी आफ साइसेंज में शेनयेन्ग इंस्टीट्यूट आफ आटोमेशन में चीनी शोधकर्ताओं ने एक अंडरवॉटर ग्लाडर — सी विन्ग तैयार किया है और पश्चिमी प्रशान्त में अनेक सफल मिशनों का संचालन किया है। चीन द्वारा आत्मनिर्भर हेयान/पेटरिल का निर्माण किए जाने के बाद, चीन के सरकारी मीडिया ने कहा कि उनका देश फिलहाल यूयूवी का इस्तेमाल वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए कर रहा है, लेकिन अंडरवॉटर लड़ाई, गश्त, सुरंगों को हटाने और पनडुब्बी का पता लगाने जैसे कार्यों में काम में लाने के लिए शायद इन यूयूवी को अपग्रेड किया जाएगा। इन घटनाक्रमों से यह संकेत मिलता है कि निकट भविष्य में चीन यूयूवी टैक्नॉलोजी के क्षेत्र में आगे बढ़ता जाएगा और इस बात की संभावना है कि पीएलएएन द्वारा यूयूवी का इस्तेमाल सैनिक उद्देश्यों के लिए किया जाएगा।
हिंद महासागर-प्रशांत महासागर क्षेत्र की भूराजनीतिक और नीतिगत कौशलों में महत्वपूर्ण भूमिका है और और यह क्षेत्र मोटे तौर पर सुरक्षा से संबंधित होड़ का थिएटर बनता जा रहा है। इस बात को लेकर चिंता प्रकट की जा रही है कि हिंद महासागर-प्रशांत महासागर क्षेत्र में बढ़ते सामरिक शस्त्रागार और साथ ही नवीनतम (डिस्रप्टिव) नौसैनिक प्रौद्योगिकी — यूयूवी सामुद्रिक सुरक्षा के वातावरण को अस्थिर बनाने में महत्वपूर्ण योगदान देंगे और परमाणु से संबंधित तनावों में इजाफा करेंगे। चीन अपनी ब्ल्यू वॉटर नेवी को सहायता प्रदान करने के लिए यूयूवी के निर्माण और उनकी तैनाती की दिशा में तेजी से अमेरिका और रूस जैसे देशों का अनुसरण कर रहा है। हिंद महासागर-प्रशांत महासागर के जल क्षेत्र में चीनी यूयूवी की तैनाती से यथा स्थिति में बाधा पहुंचने की महत्वपूर्ण संभावनाएं होंगी। हिंद महासागर में चीन की बढ़ती मौजूदगी और पूर्वी तथा दक्षिण चीन सागर के क्षेत्रीय सामुद्रिक विवादों में उसकी हठधर्मिता ने भारतीय सुरक्षा विश्लेषकों और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को सतर्क कर दिया है। अभिजीत सिंह द्वारा तैयार की गई एक ओआरएफ रिपोर्ट में दलील दी गई है कि चीन फॉरवर्ड पोजिशन्स के लिए अंडरवॉटर व्हीकल्स का निर्माण और तैनाती करेगी। अगर चीन ने भारतीय पनडुब्बियों का पता लगाने के लिए हिंद महासागर क्षेत्र (आईओआर) में यूयूवी तैनात करना शुरू कर दिया, तो इससे क्षेत्र में अस्थिरता बहुत अधिक बढ़ जाएगी। अन्य विश्लेषकों ने संकेत दिया है कि यूयूवी चीन की लम्बी दूरी तक निशाना बनाने की क्षमता में सुधार लाएंगे और उसकी निगरानी करने तथा टोह लेने की क्षमताओं को बढ़ाएंगे। विशेषज्ञों की दलील है कि चीन यूयूवी का उपयोग ‘होल्ड एट रिस्क’ मिशनों में कर सकता है, क्योंकि यूयूवी चोक प्वाइंट्स को अवरूद्ध करने में कारगर साबित हो सकते हैं। ये रूझान दर्शाते हैं कि उभरती प्रौद्योगिकियों को बड़े पैमाने पर निवेश करते हुए, चीन युद्ध के परम्परागत तरीके में बदलाव लाने को तैयार है। ऐसे परिदृश्य में, भारत को अमेरिका, जापान और आस्ट्रेलिया के साथ अपनी सामुद्रिक सुरक्षा को मजबूत बनाने के प्रयास करने चाहिए। उपसतह या सब्सर्फस नौसैनिक कार्रवाइयों के लिए भारत की सुरक्षा संबंधी जरूरते पूरी करने के लिए भारत के रक्षा योजनाकारों को अपनी एंटी-सब्मरीन वॉरफेयर (एएसडब्ल्यू) क्षमताओं को अपग्रेड करने, यूयूवी को देश में डिजाइन और उनका निर्माण करने की प्रक्रिया में तेजी लाने जरूरत है।
अनेक उभरते रुझान विशेष कर सामुद्रिक क्षेत्र में वैश्विक संसाधनों की बढ़ती भीड़ और नवीनतम (डिस्रप्टिव) प्रौद्योगिकियों का त्वरित विकास आने वाले दशकों की विशिष्टता हैं, देशों द्वारा दूरदराज के क्षेत्रों में लम्बे संघर्षों के लिए अपने सैन्य बलों को नए सिरे से व्यवस्थित किए जाने की संभावना है। हालांकि ज्यादा खतरनाक रूझान यह है कि ऐसी प्रौद्योगिकी की प्रगति की रफ्तार, अंतर्राष्ट्रीय हथियार नियंत्रण समुदाय की नई प्रौद्योगिकियों पर नियंत्रण के लिए वैश्विक तौर पर स्वीकृत आचार संहिता पर सहमत होने की योग्यता से कहीं ज्यादा तेज है। अमेरिका की डिफेंस एडवांस्ड रिसर्च प्रोजेक्ट्स एजेंसी (डीएआरपीए) ऐसे नए रास्ते तलाश रही है, जहां यूयूवी दुश्मन के पोतों का पता लगाने के लिए एक्टिव सोनार का इस्तेमाल करेंगे और उनकी स्थिति की जानकारी मेजबान पनडुब्बी तक पहुंचाएंगे। अगर भविष्य में, यूयूवी महासागरों को पारदर्शी बनाने और पनडुब्बियों की गोपनीयता में कमी लाने में सक्षम हो सके, तो इससे सामरिक स्थायित्व की स्थिति और देशों की जवाबी परमाणु हमला करने संबंधी क्षमताओं को गंभीर नुकसान पहुंचेगा। पनडुब्बियों का कारगर ढंग से पता लगाने और उनकी पीछा करने के लिए यूयूवी के सामने जहां अनेक प्रौद्योगिकी संबंधी चुनौतियां मौजूद हैं, ऐसे में प्रौद्योगिकी संबंधी अप्रत्याशित तथ्यों और प्रगति को नजरंदाज करना भूल होगी। इसलिए स्थायित्व कायम रखने और किसी भी देश विशेष के दुस्साहस को रोकने के लिए अंतर्राष्ट्रीय हथियार नियंत्रण बिरादरी को यूयूवी के नियंत्रण और इस्तेमाल के लिए वैश्विक आचार संहिता तैयार करने और उसका अनुसरण करने के तरीके तलाशने होंगे।
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.
Sylvia Mishra is a Washington DC based researcher working on Asian security issues nuclear policy and disruptive technologies. She is the Co-Chair of the WCAPS ...
Read More +