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यूक्रेन युद्ध ने दिखा दिया है कि समुद्र के भीतर बिछे महत्वपूर्ण मूलभूत ढांचे भी दुश्मन के हमले का निशाना बन सकते हैं; हिंद महासागर में ऐसी परिसंपत्तियों की रक्षा के लिए भारत और ऑस्ट्रेलिया को आपसी तालमेल से काम करना चाहिए.
ये लेख हमारी निबंध सीरीज़, ‘इंडिया ऑस्ट्रेलिया पार्टनरशिप: दि डिफेंस डायमेंशन’ का हिस्सा है
समुद्र की तलहटी में जंग अब यूरोप में फैल रही है और इसमें इस बात की पूरी संभावना है कि ये हिंद महासागर तक पहुंच सकती है. हाल ही में ORF द्वारा इस मुद्दे पर ‘इंडियन ओशन सीबेड डिफेंस: लेसंस फ्रॉम यूरोप’ नाम से जारी इश्यू ब्रीफ में यूरोप में चल रहे उन सैन्य अभियानों की चर्चा की गई है, जिनमें समुद्र में बिछी केबल (डेटा और पावर), सेंसर्स और ऊर्जा आपूर्ति, उत्खनन के मूलभूत ढांचों को निशाना बनाया गया, और किस तरह ऑस्ट्रेलिया और भारत को चाहिए कि वो समुद्र की गहराई में युद्ध के ख़तरों से निपटने के लिए किस तरह तैयारी करें.
रूस– यूक्रेन के युद्ध और यूरोप व रूस के बीच व्यापक तनावों का असर समुद्र की गहराई तक हुआ है. 2 सितंबर 2022 को नॉर्ड स्ट्रीम 1 और 2 गैस पाइपलाइनों को क्षतिग्रस्त करना, उस पुराने दौर के वापस आने की मिसाल है, जब समुद्र के भीतर के मूलभूत ढांचों को सैन्य अभियान के दौरान निशाना बनाया जाता था. 26 सितंबर 2022 को तीन धमाकों की जानकारी मिली, जिन्होंने रूस से जर्मनी के लिए बिछी चार पाइपलाइनों को तबाह कर दिया था. अब नॉर्ड स्ट्रीम काम नहीं कर रही है, जिसकी वजह से यूरोप में ऊर्जा का संकट और भी गहरा हो गया है.
26 सितंबर 2022 को तीन धमाकों की जानकारी मिली, जिन्होंने रूस से जर्मनी के लिए बिछी चार पाइपलाइनों को तबाह कर दिया था. अब नॉर्ड स्ट्रीम काम नहीं कर रही है, जिसकी वजह से यूरोप में ऊर्जा का संकट और भी गहरा हो गया है.
इससे पहले जनवरी 2022 में नॉर्वे के स्वालबार्ड सैटेलाइट स्टेशन को सेवाएं देने वाली संचार केबल को रहस्यमय हालात में काट दिया गया था. फ्रांस ने भी 2022 में केबल तारों को नुक़सान पहुंचाने वाली घटनाओं को झेला था.
रूस पूरे यूरोप में चोरी छुपे और बिना इजाज़त के समुद्र के भीतर बिछे मूलभूत ढांचे के जाल का सर्वेक्षण कर रहा है. आशंका इस बात की है कि इस सर्वेक्षण का मक़सद नियमित सेवाओं में बाधा डालना है. रूस का जासूसी जहाज़ यांतर, अगस्त 2021 में आयरलैंड के तट पर घूमता देखा गया था. उसी इलाक़े से सेल्टिक नॉर्स कम्युनिकेशन केबल बिछाई जानी थी, जो आयरलैंड और नॉर्वे को जोड़ेगी. इसके अलावा उस इलाक़े में AEConnect-1 केबल भी उस इलाक़े से गुज़रेगी जो आयरलैंड को अमेरिका से जोड़ेगी. नवंबर 2022 में समुद्र का सर्वेक्षण करने वाला रूस का एक जहाज़ डेनमार्क और ब्रिटेन के पवन चक्की के फॉर्म और तेल के कुओं के पास देखा गया था. जब समुद्र में पत्रकारों ने उस जहाज़ से संपर्क करने की कोशिश की, तो रूस की तरह की राइफलों और बुलेटप्रूफ जैकेट पहने नक़ाबपोश जहाज़ के डेक पर आ खड़े हुए थे.
सबकी जानकारी में आई इन रूसी गतिविधियों के अलावा, यहां इस बात पर ध्यान देने की ज़रूरत है कि सभी पक्ष समुद्र की गहराई वाले इस नए मोर्चे पर आक्रामक अभियान चला रहे हैं.
इस बात पर विश्वास करने का कोई कारण नहीं बनता कि आज समुद्र के भीतर जैसे अभियान यूरोप में चलाए जा रहे हैं, वो हिंद महासागर में तनाव होने पर वहां नहीं पहुंचेंगे.
भारत का तेल और प्राकृतिक गैस निगम (ONGC), अभी ही देश के पश्चिमी तट के समुद्री इलाक़े में हज़ारों किलोमीटर की पाइपलाइन संचालित करता है, जो बॉम्बे हाई, नीलम और हीरा बेसिन को आपस में जोड़ती हैं.
हिंद महासागर के भीतर समुद्री केबल का ऐसा जाल बिछा है, जो न केवल हिंद महासागर के देशों को आपस में जोड़ता है, बल्कि यहां से डेटा को और दूर दूर तक पहुंचाता है. लेकिन, जिस तरह इस इलाक़े में जहाज़ों की आवाजाही बाब अल मंदेब जलसंधि या मलक्का जलसंधि जैसे संकरे इलाक़ों से ज़्यादा होती है. उसी तरह समुद्री केबल भी कुछ इलाक़ों में ज़्यादा हैं. इस वजह से इन ठिकानों पर केबल को निशाना बनाए जाने की आशंका बनी रहती है.
हिंद महासागर के भीतर बिछी पाइप लाइनों की अहमियत भी लगातार बढ़ती जा रही है. ख़ास तौर से भारत के लिए. भारत का तेल और प्राकृतिक गैस निगम (ONGC), अभी ही देश के पश्चिमी तट के समुद्री इलाक़े में हज़ारों किलोमीटर की पाइपलाइन संचालित करता है, जो बॉम्बे हाई, नीलम और हीरा बेसिन को आपस में जोड़ती हैं. इस वक़्त ईरान भी अपनी समुद्र के भीतर की प्राकृतिक गैस की पाइप लाइन का ओमान से भारत तक विस्तार करने पर विचार कर रहा है, जो गुजरात के पोरबंदर को जोड़ेगी. इसके अलावा, मई 2023 में 5 अरब डॉलर की लागत से संयुक्त अरब अमीरात और भारत के बीच गैस पाइपलाइन बिछाने का प्रस्ताव दिया गया था. वो भी गुजरात को जोड़ेगी.
भारत और ऑस्ट्रेलिया, इन देशों को समुद्री रक्षा को अपनी नियमित रक्षा समीक्षा का हिस्सा बनाने में भी सहयोग दे सकते हैं. ऐसे सहयोग में समुद्र के भीतरी मामलों की जानकारी और समुद्री रक्षा तकनीक के मामले में क्षमता निर्माण के कार्यक्रमों को भी शामिल किया जाना चाहिए.
हिंद महासागर के उत्तर पश्चिम इलाक़े में ऑस्ट्रेलिया ने भी पाइपलाइनों का बड़ा जाल बिछा रखा है, जो समुद्र से निकाले गए तेल और गैस को ऑस्ट्रेलिया तक पहुंचाती हैं. लेकिन, ये समुद्री संपत्तियां भी नए दौर के युद्ध में निशाना बनाई जा सकती हैं. ऑस्ट्रेलिया अब समुद्र में नवीनीकरण योग्य ऊर्जा के मूलभूत ढांचे को स्थापित करने पर ज़ोर दे रहा है. इसमें समुद्र में पवन चक्कियां और सौर ऊर्जा केंद्र स्थापित करना, समुद्र की लहरों से बिजली बनाने वाले प्लांट लगाना और हिंद महासागर समेत सभी समुद्री क्षेत्रों की इन परिसंपत्तियों को ऑस्ट्रेलिया के अलग अलग तटीय इलाक़ों से जोड़ना शामिल है. बहुत जल्दी ऑस्ट्रेलिया समुद्र के भीतर बिछी दुनिया की सबसे लंबी हाई वोल्टेज करेंट केबल, यानी सब केबल ऑस्ट्रेलिया– एशिया पावरलिंक के ज़रिए सिंगापुर को सौर ऊर्जा की आपूर्ति करने वाला है.
हिंद महासागर में समुद्र के भीतर उत्खनन का काम भी बढ़ रहा है, क्योंकि इसकी तलहटी में पॉलिमेटेलिक नोड्यूल प्रचुर मात्रा में मिलते हैं. ऐसे उत्खनन में भी समुद्र के भीतर काफ़ी गतिविधियां होंगी और इसमें नए नए किरदार शामिल होंगे.
स्पष्ट है कि हिंद महासागर की तलहटी की सुरक्षा के मामले में ऑस्ट्रेलिया और भारत के हित आपस में बहुत मिलते हैं.
इसके लिए, समुद्र के भीतर युद्ध को लेकर सार्वजनिक परिचर्चाओं और वाद–विवाद की ज़रूरत होगी, और ये भी सोचना होगा कि किस तरह इस पहलू को भारत और ऑस्ट्रेलिया की रक्षा रणनीतियों में शामिल किया जाए. इसमें समुद्र के भीतर युद्ध छिड़ने पर उसको जवाब देने, क्षमता की ज़रूरतों (यानी जहाज़, समुद्र के भीतर मानव रहित या स्वचालित वाहन और सेंसर वग़ैरह) के साथ साथ इस बात को भी समझना होगा कि समुद्र के भीतर युद्ध के लिए मानव संसाधनों और साझेदारियों को किस तरह विकसित किया जाए. हाल ही में फ्रांस ने सीबेड वारफेयर स्ट्रैटेजी को 2022 में जारी किया था, जिससे एक उपयोगी मॉडल मिल सकता है.
हिंद महासागर में कई तटीय और द्वीपीय देश हैं. इनमें से बहुतों के पास उच्च तकनीक से लैस नौसेना या तटरक्षक नहीं हैं. और, इलाक़े में नैटो जैसा कोई व्यापक रक्षा संगठन भी नहीं है, जो सभी देशों के बीच आपस में तालमेल बिठा सके. हिंद महासागर के तट पर बसे होने और उच्च स्तर की नौसेनाएं और तटरक्षक होने की वजह से, भारत और ऑस्ट्रेलिया को चाहिए कि वो अगुवाई करते हुए इस क्षेत्र के कम ससाधनों वाले देशों के साथ समुद्र की तलहटी के संसाधों की निगरानी करें और ख़लल पड़ने पर उससे निपटने की योजना तैयार करें. भारत और ऑस्ट्रेलिया, इन देशों को समुद्री रक्षा को अपनी नियमित रक्षा समीक्षा का हिस्सा बनाने में भी सहयोग दे सकते हैं. ऐसे सहयोग में समुद्र के भीतरी मामलों की जानकारी और समुद्री रक्षा तकनीक के मामले में क्षमता निर्माण के कार्यक्रमों को भी शामिल किया जाना चाहिए. साथ साथ इन देशों के साझा सैन्य अभ्यासों में समुद्र के भीतर जंग से निपटने के आयाम को भी शामिल किया जाना चाहिए.
मई 2023 में क्वाड ने केबल कनेक्टिविटी एंड रेज़िलिएंस के लिए साझेदारी बनाने का भी ऐलान किया था. जिसके अंतर्गत ऑस्ट्रेलिया, हिंद प्रशांत केबल कनेक्टिविटी एंड रेज़िलिएंस कार्यक्रम स्थापित करेगा. अमेरिका ने अपने ‘CABLES कार्यक्रम’ के तहत इस मामले में क्षमता निर्माण और तकनीकी सहायता देने का वादा किया था, जिसकी लागत 50 लाख डॉलर होगी. ये अनिश्चित है कि क्या ये कार्यक्रम केवल संचार केबलों तक सीमित रहेगा या फिर इसके दायरे में समुद्री तलहटी के अन्य संसाधन भी आएंगे. इस बात को केवल संचार तारों तक सीमित रखने के बजाय, इसमें समुद्र के भीतर युद्ध के अन्य पहलुओं को भी शामिल करना होगा. वैसे तो क्वाड, सहयोग का एक मंच हो सकता है. लेकिन, ऑस्ट्रेलिया और भारत को इस क्षेत्र में हिंद महासागर के बाक़ी पड़ोसियों के साथ मिलकर काम करने की पहल करनी होगी.
ऑस्ट्रेलिया और भारत को चाहिए कि वो यूरोप में समुद्र के भीतर के मोर्चे पर छिड़ी जंग पर गहराई से नज़र रखें, ताकि हमारे क्षेत्र में ऐसी स्थिति की निगहबानी कर सकें. हिंद महासागर की इन दो प्रभावी समुद्री शक्तियों को चाहिए कि वो समुद्र के भीतर के मूलभूत ढांचे की सुरक्षा के लिए आपस में तालमेल करें. जैसे जैसे हिंद महासागर की तलहटी में अहम मूलभूत ढांचे का विस्तार हो रहा है, वैसे वैसे इनको किसी तबाही से बचाने के लिए आपसी समन्वय की ज़रूरत बढ़ती जा रही है.
ये लेख ORF के 2023 के इश्यू ब्रीफ ‘इंडियन ओशन सीबेड डिफेंस: लेसंस फ्रॉम यूरोप’ का संक्षिप्त और संशोधित संस्करण है. दोनों ही पेपर इसके लेखक के जून 2023 में ORF नई दिल्ली की विज़िटिंग फेलोशिप के दौरान लिखे गए थे, और ये ऑस्ट्रेलिया इंडिया इंस्टीट्यूट के डिफेंस प्रोग्राम का हिस्सा हैं, जिसे ऑस्ट्रेलिया के रक्षा विभाग की मदद से चलाया जा रहा है. ये लेखक के अपने विचार हैं.
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Samuel Bashfield is a defence researcher on the Australia India Institutes Defence Program. Sams research interests include Indo-Pacific security defence and foreign policy Indo-Pacific security ...
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