Author : Vivek Mishra

Published on Aug 29, 2023 Updated 0 Hours ago

नाइजर में हाल ही में हुए तख़्तापलट से अमेरिका संभावित रूप से एक सुरक्षा संकट में घिर गया है. 

अफ्रीका का साहेल क्षेत्र: सुरक्षा के मोर्चे पर अमेरिका का नया सिरदर्द

पिछले दिनों नाइजर की राजनीतिक स्थिति में नाटकीय बदलाव देखने को मिले. इसका अफ्रीका में क्षेत्रीय सुरक्षा से जुड़े व्यापक हालात पर बड़ा भारी प्रभाव पड़ सकता है. 26 जुलाई को नाइजर के राष्ट्रपति मोहम्मद बाज़ूम को विचित्र स्थिति का सामना करना पड़ा. राष्ट्रपति के ख़ुद के सुरक्षा अधिकारियों ने उनके इस्तीफ़े पर ज़ोर देते हुए राष्ट्रपति भवन का घेराव कर डाला. कुछ ही दिनों के भीतर नेशनल काउंसिल फॉर द सेफगार्ड ऑफ द होमलैंड द्वारा औपचारिक रूप से तख़्तापलट का एलान कर दिया गया. इस काउंसिल के झंडे तले सुरक्षा और प्रतिरक्षा बल एकजुट हो गए हैं. “सुरक्षा स्थिति में लगातार गिरावट और कमज़ोर आर्थिक और सामाजिक शासन” के बहाने इस क़वायद को अंजाम दिया गया.

इस तख़्तापलट के चलते देश में आम लोगों के जीवन पर होने वाले असर की भविष्यवाणी करना अभी जल्दबाज़ी भरा क़दम होगा, लेकिन इस घटनाक्रम ने अमेरिका को संभावित रूप से सुरक्षा संकट में डाल दिया है.

बहरहाल, इस तख़्तापलट के चलते देश में आम लोगों के जीवन पर होने वाले असर की भविष्यवाणी करना अभी जल्दबाज़ी भरा क़दम होगा, लेकिन इस घटनाक्रम ने अमेरिका को संभावित रूप से सुरक्षा संकट में डाल दिया है. अमेरिका के लिहाज़ से नाइजर में लड़खड़ाती सुरक्षा स्थिति ख़तरे की घंटी है. पश्चिमी अफ्रीका में सुरक्षा स्थिति पहले से ही बिगड़ी हुई है, ऐसे में नाइजर का ताज़ा घटनाक्रम हालात को और पेचीदा बना देगा. नाइजर में तख़्तापलट के वाक़ये ने इस इलाक़े में आतंकवादी ख़तरों से लड़ने को लेकर अमेरिका के लिए एक लोकतांत्रिक सहयोगी की आवश्यकता को सतह पर ला दिया है. साथ ही इस क्षेत्र में अमेरिका के घटते प्रभाव को और गहरा कर दिया है. ग़ौरतलब है कि नाइजर को अल-क़ायदा, इस्लामिक स्टेट और बोको हराम के ख़िलाफ़ लड़ाई में अमेरिका के सबसे भरोसेमंद साथी के तौर पर देखा जाता है.

हाल के वर्षों में अफ्रीका के साहेल क्षेत्र में अल-क़ायदा और इस्लामिक स्टेट जैसे इस्लामिक आतंकवादी गुटों की लामबंदी में तेज़ी आई है. वैश्विक आतंकवाद सूचकांक 2023 के मुताबिक सब-सहारा अफ्रीका के भीतर साहेल क्षेत्र, आतंकवाद के केंद्र के रूप में उभरा है. 2022 में इस इलाक़े ने आतंकवाद से संबंधित मौतों के मामले में दक्षिण एशिया को पीछे छोड़ दिया है. यहां तक कि मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका (MENA), दोनों क्षेत्रों में आतंकवाद के चलते हुई कुल मौतों से भी ज़्यादा मौतें साहेल क्षेत्र में दर्ज की गई हैं. 

वैगनर समूह की मौजूदगी

पश्चिम अफ्रीका में अमेरिका के लिए एक और चुनौती पश्चिमी दुनिया और रूस के बीच चल रही सियासी रस्साकशी रही है. पिछले कुछ वर्षों में इस क्षेत्र में रूस के वैगनर समूह की मौजूदगी और मुखर हो गई है. ख़ासतौर से जब से रूस-यूक्रेन संघर्ष शुरू हुआ है, तब से यहां वैगनर समूह की सक्रियता बढ़ गई है. दरअसल रूस ने फ्रांस के ख़िलाफ़ व्यापक उपनिवेशवाद-विरोधी आक्रोश का फ़ायदा उठाया है. साहेल क्षेत्र के दो अन्य देशों- माली और मध्य अफ्रीकी गणराज्य से फ्रांसीसी रक्षा बलों को किनारे कर दिया गया है. हालांकि, इन्हीं देशों ने रूस के वैगनर समूह को प्रवेश दे दिया है. नाइजर में प्रदर्शनकारी भीड़ ने रूसी झंडे लहराए और फ्रांसीसी दूतावास पर हमला बोल दिया. संकेत साफ़ हैं कि नाइजर भी अपने पड़ोसियों के नक्शेक़दम पर चल सकता है. नाइजर में सैन्य तख्तापलट के साथ अफ्रीका के पश्चिम में गिनी से लेकर पूर्व में सूडान तक सैन्य-शासित राज्यों की एक विशाल श्रृंखला तैयार हो गई है, जो सुरक्षा के मोर्चे पर पश्चिमी जगत का सिरदर्द और बढ़ा सकती है. 

पश्चिम अफ्रीका में अमेरिका के प्रत्यक्ष हित हैं. वो नाइजर को एक लंबे अर्से से वित्तीय और सुरक्षा सहयता पहुंचाता आ रहा है. आतंकवाद विरोधी अभियान और साहेल क्षेत्र में व्यापक क्षेत्रीय शांति और सुरक्षा प्रयासों में वो एक प्रमुख क्षेत्रीय भागीदार है.

अमेरिका का हित

नाइजर को अमेरिका एक अहम भागीदार बताता है. अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने नाइजर के राष्ट्रपति की ओर ‘अटूट समर्थन‘ जताया है. अमेरिका और नाइजर के बीच कई क्षेत्रों में व्यापक सहयोग देखा गया है. इनमें खाद्य सुरक्षा, आर्थिक विकास और सेना से सेना के बीच सहयोग शामिल है. अकेले 2022 में ही अमेरिका ने नाइजर को विकास, खाद्य सुरक्षा और मानवीय सहायता के लिए कुल 14 करोड़ अमेरिकी डॉलर से ज़्यादा की महत्वपूर्ण सहायता उपलब्ध कराई है. इसके अलावा अमेरिका इस साल मार्च में 15 करोड़ अमेरिकी डॉलर की मदद का भी एलान कर चुका है.  

पश्चिम अफ्रीका में अमेरिका के प्रत्यक्ष हित हैं. वो नाइजर को एक लंबे अर्से से वित्तीय और सुरक्षा सहयता पहुंचाता आ रहा है. आतंकवाद विरोधी अभियान और साहेल क्षेत्र में व्यापक क्षेत्रीय शांति और सुरक्षा प्रयासों में वो एक प्रमुख क्षेत्रीय भागीदार है. अमेरिका ने नाइजर में दो ड्रोन अड्डे बनाने के अलावा 1100 सैनिक तैनात कर रखे हैं. अमेरिका ने पिछले कुछ वर्षों में नाइजर के राष्ट्रपति मोहम्मद बाज़ूम के समर्थन से साहेल में आतंकवाद विरोधी प्रयासों को काफ़ी आगे बढ़ाया था. इस कड़ी का सबसे स्पष्ट उदाहरण अमेरिकी सहायता कर्मी जेफरी वुडके का है. अक्टूबर 2016 में इस्लामिक स्टेट से जुड़े गुट ने नाइजर में उनको अगवा कर लिया था और इस साल मार्च में उन्हें रिहा किया गया. अक्टूबर 2017 में अमेरिका ने वुडके के अपहरण में मददगार रहने के शक़ में अल-क़ायदा के एक नेता को पकड़ने का प्रयास किया था, लेकिन अमेरिका की इस कोशिश का ख़तरनाक अंजाम हुआ. इस क़वायद में अमेरिका के चार सैनिकों की जान चली गई थी. अतीत में इस क्षेत्र में (विशेष रूप से नाइजर, माली और सूडान में) अपहरण की कुछ अन्य घटनाएं हो चुकी हैं. माली में 2021 में एक फ्रांसीसी पत्रकार लापता हो गया. इसी तरह 2009 में कनाडा के दो राजनयिक भी ग़ायब हो गए थे, जिन्हें बाद में रिहा कर दिया गया. ऐसे ख़तरे साहेल में अमेरिकी मौजूदगी के लिए अनोखे नहीं हैं. 

बहरहाल, 2017 में नाइजर में अमेरिकी सैनिकों की हत्या के बाद से साहेल क्षेत्र में अमेरिकी सुरक्षा दृष्टिकोण बदल गए हैं. ग़ौरतलब है कि अमेरिकी कमांडो नाइजर में विभिन्न चौकियों पर वहां के विशेष बलों को प्रशिक्षण मुहैया कराते हैं, लेकिन अतीत से उलट, अमेरिकी सैनिक अब विशेष अभियानों और युद्धक मिशनों में नाइजर के सुरक्षा बलों के साथ नहीं जाते हैं. अमेरिकी कमांडो अब युद्ध अभियानों में प्रत्यक्ष भागीदारी से कुछ दूरी बनाते हुए नाइजर कमांडो को उनके अभियानों में दूर से ही मार्गदर्शन और परामर्श उपलब्ध कराते हैं. 

नाइजर अपनी सरज़मीं, और व्यापक रूप से इस इलाक़े में रूसी प्रभाव को बढ़ाने की भरपूर कोशिश करेगा. साहेल में अमेरिका के हित उसकी मुख्य सुरक्षा चिंताओं और उसके आतंकवाद विरोधी क़वायदों से जुड़े हैं.

दरअसल, 2020 के बाद से पश्चिमी एशिया के कई देशों में लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित सरकारों का पतन हो चुका है. पश्चिमी दुनिया द्वारा स्थापित नेतृत्व और असंतुष्ट नागरिकों (जिन्हें अक्सर सेना का समर्थन हासिल रहा है) के बीच कलह और खाई बढ़ जाने के नतीजतन ऐसे हालात बने हैं. बुर्किना फासो, गिनी और माली के बाद नाइजर में इस प्रवृत्ति को बढ़ावा मिला है. बुर्किना फासो, गिनी और माली में अमेरिकी प्रशिक्षित सेना ने आख़िरकार असैनिक सरकारों को उखाड़ फेंका. मुमकिन है कि नाइजर भी उस बदलाव की कगार पर हो. बदले हालात में नाइजर को दी जाने वाली सहायता में कटौती के अलावा अमेरिका ने इस इलाक़े में अमेरिकी अभियानों में प्रमुख सहयोगी रहे नाइजर के राष्ट्रपति की तत्काल रिहाई की मांग की है. 

रूसी प्रभाव

साहेल में भू-राजनीति और भू-अर्थशास्त्र का घालमेल, क्षेत्रीय देशों के साथ-साथ फ्रांस, अमेरिका और रूस जैसी ताक़तों को भी इस क्षेत्र में उलझाए रख सकता है. नाइजर में यूरेनियम का प्रचुर भंडार है. ऐसे में मौजूदा गतिरोध नाइजर और फ्रांस (नाइजर की पूर्व उपनिवेशवादी शक्ति) के बीच भू-आर्थिक ज़ोर-आज़माइश का रूप ले सकता है. नाइजर का सैन्य शासन पहले ही फ्रांस को यूरेनियम और सोने के निर्यात पर प्रतिबंध लगा चुका है. फ्रांस द्वारा बल प्रयोग किए जाने की संभावनाओं के बीच ये क़दम उठाया गया है. अमेरिका इस क्षेत्र में अपने हितों को संरक्षित करने और नाइजर में फ्रांसीसी मौजूदगी को पूरी तरह से उखाड़ने के उद्देश्यों के बीच सतर्कता से आगे बढ़ने की कोशिश करेगा. नाइजर अपनी सरज़मीं, और व्यापक रूप से इस इलाक़े में रूसी प्रभाव को बढ़ाने की भरपूर कोशिश करेगा. साहेल में अमेरिका के हित उसकी मुख्य सुरक्षा चिंताओं और उसके आतंकवाद विरोधी क़वायदों से जुड़े हैं. अमेरिकी सैनिक इस क्षेत्र से लेकर पूर्व के सोमालिया तक फैले हुए हैं, ये बात भी अमेरिका के ज़ेहन में है. 

नाइजर में अमेरिकी सैनिकों को उनके अड्डे तक ही सीमित कर दिया गया है. नाइजर के साथ अमेरिका के रिश्ते इस बात पर निर्भर हैं कि आने वाले हफ्तों में हालात क्या मोड़ लेते हैं. अमेरिका में विदेशी सहायता से संबंधित कानूनों में उन देशों को दी जाने वाली ज़्यादातर सहायता को प्रतिबंधित किया गया है जहां लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित नेता को तख्तापलट के ज़रिए पद से हटाया गया हो. हालांकि, अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा के हित में माने जाने पर अमेरिकी राष्ट्रपति ऐसी सहायता की मंज़ूरी दे सकता है. बहरहाल, बाइडेन प्रशासन ने सीधे तौर पर किसी भी दख़लंदाज़ी से परहेज़ किया है. इसकी बजाए उसने तख़्तापलट को पलटने के लिए क्षेत्रीय तंत्र (पश्चिम अफ्रीकी राष्ट्रों के आर्थिक समुदाय) पर भरोसा जताया है. 


विवेक मिश्रा ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटेजिक स्टडीज़ प्रोग्राम में फेलो हैं. 

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