Published on Jan 10, 2023 Updated 0 Hours ago

जैसे-जैसे युद्ध की कीमत बढ़ती जा रही है, यूक्रेन की ठिठुरती सर्दी एक धधकते युद्धक्षेत्र में तब्दील होने का वादा करती है.

रूस बनाम यूक्रेन: जीत कैसी दिखती है?


बातचीत की किसी भी संभावना के नहीं होने और पश्चिमी देशों से नए समर्थन के साथ, रूस-यूक्रेन युद्ध के समाप्त होने के आसार लगभग क्षीण नज़र आ रहे हैं.

रूस-यूक्रेन युद्ध एक नए चरण में प्रवेश कर चुका है.

युद्ध के 10 महीनों के दौरान, यूक्रेन रूस द्वारा कब्जा किए गए कुछ इलाकों को वापस पाने में कामयाब रहा और अर्थव्यवस्था की गिरावट को भी कई मायनों में रोका है लेकिन ठिठुरती सर्दी के बीच भी सैन्य अभियान लगातार जारी है. यूक्रेनी सैन्य नेतृत्व ने जोर देकर कहा है कि युद्ध को विराम नहीं दिया जा सकता है, क्योंकि यह रूस को वसंत ऋतु में नए आक्रमणों के लिए अतिरिक्त संसाधन जमा करने का मौका देगा. ऐसे में पश्चिमी देशों से हथियारों की निरंतर आपूर्ति और अधिक संसाधन जुटाने की क्षमता अगले कुछ महीनों में इस युद्ध की दिशा तय करेगी.

यूक्रेनी सैन्य नेतृत्व ने जोर देकर कहा है कि युद्ध को विराम नहीं दिया जा सकता है, क्योंकि यह रूस को वसंत ऋतु में नए आक्रमणों के लिए अतिरिक्त संसाधन जमा करने का मौका देगा.

सर्दियों का सफलतापूर्वक बीतना कई मायनों में यूक्रेनी सेना और यूक्रेन दोनों के लिए, काफी हद तक इस जंग में यूक्रेन के मददगारों के वित्तीय और सैन्य समर्थन पर निर्भर करता है. युद्ध के 10 महीनों के दौरान, दुनिया भर के विश्व नेताओं ने इस युद्ध के नतीजों का सामना किया है - मुख्य रूप से ऊर्जा संसाधनों और खाद्य उत्पादों की बढ़ती कीमतों को लेकर. इससे विभिन्न देशों की सरकारों पर नकारात्मक दबाव बढ़ता है, यहां तक ​​कि उन देशों पर भी जो यूक्रेन को वित्तीय और सैन्य सहायता प्रदान करने के लिए दृढ़ संकल्पित हैं. पिछले हफ्ते, वोलोडिमिर ज़ेलेंस्की ने संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएस) का दौरा किया - पिछले साल फरवरी में रूसी आक्रमण शुरू होने के बाद से यह उनकी पहली विदेश यात्रा थी.

यात्रा का महत्व

राष्ट्रपति जेलेंस्की की अमेरिका यात्रा महत्वपूर्ण लक्ष्यों के साथ अंजाम दिया गया. पहला, इस यात्रा का मकसद यूक्रेन को और अधिक राजनीतिक, सैन्य-तकनीकी और वित्तीय सहायता सुनिश्चित करना था. दूसरा, सैन्य मोर्चे के साथ-साथ राजनीतिक और कूटनीतिक तौर पर रूस का सामना करने के लिए रणनीति में समन्वय स्थापित करना.

जैसा कि राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की ने कहा, उन्होंने वाशिंगटन को यह भरोसा दिलाया कि जंग के मैदान में यूक्रेन की फौज स्थिति को नियंत्रित कर रही है और यह यूक्रेन को अमेरिका द्वारा व्यापक सहायता के कारण मुमकिन हो सका है.

यूक्रेन का समर्थन करने और पश्चिमी देशों की भागीदारी को सहेजने में अमेरिका के नेतृत्व की भूमिका सबसे अहम है. जबकि रूस के साथ संघर्ष में शामिल होने की आशंका की पृष्ठभूमि में पश्चिमी देश यूक्रेन की सैन्य क्षमताओं पर भी पैनी नज़र बनाए हुए हैं. यूक्रेन अभी तक आर्मी टैक्टिकल मिसाइल सिस्टम (एटीएसीएमएस), आधुनिक टैंक और आर्मर्ड पर्सोनेल करियर जैसे लेपर्ड, जंगी लड़ाकू विमान और दूसरे प्रमुख हथियार प्राप्त करने में सफल नहीं रहा है, जो जवाबी कार्रवाई और यूक्रेनी क्षेत्रों की वापसी के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं. अमेरिका की अपनी यात्रा के दौरान ज़ेलेंस्की को अंततः अमेरिका से पैट्रियट एयर डिफेंस सिस्टम दिए जाने का आश्वासन मिला है, जो देश की वायु रक्षा को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित होगा.

यूक्रेन की सेना का कहना है कि उसके पास रूस के कब्जे वाले क्षेत्र को वापस लेने की क्षमता है लेकिन इसके लिए उसे और हथियारों की जरूरत है. यूक्रेन को आधुनिक एयर डिफेंस सिस्टम और सैन्य उपकरणों को देने के प्रस्ताव को स्थगित करना, जो यूक्रेन के कब्जा किए गए इलाकों को मुक्त कराने में तेजी ला सकता है, यूक्रेनी नागरिकों की मौत की संख्या में बढ़ोतरी और यूक्रेन के शहरों और गांवों को खंडहर में तब्दील कर रहा है.

यूक्रेन के पश्चिमी साझेदार यूक्रेन को नए प्रकार के हथियार मुहैया कराने को लेकर सतर्क हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि ऐसा करने पर यूक्रेन के खिलाफ रूस और आक्रामकता के साथ आक्रमण कर सकता है और यहां तक कि एटमी हमले को भी अंजाम दे सकता है. जबकि रूस की शर्तों पर बातचीत की मेज पर यूक्रेनी अधिकारियों के बैठने को लेकर की जा रही टालमटोल और युद्ध के मैदान पर यूक्रेनी सेना की आंशिक सफलता, रूसी अधिकारियों को उनकी शर्तों पर शांति के लिए यूक्रेन को ब्लैकमेल और जबरदस्ती के नए तरीकों की तलाश करने के लिए प्रेरित करती है.

यूक्रेन के खिलाफ रूसी आक्रमण नागरिकों के खिलाफ आतंकवादी तरीकों के इस्तेमाल के साथ शहरों और नागरिक बुनियादी ढांचे पर गोलीबारी से तबाही मचाने की है. इसके परिणामस्वरूप सर्दियों के दौरान यूक्रेन में बिजली व्यवस्था (वर्तमान में 50 प्रतिशत नष्ट हो गई) को तबाह कर दिया गया है और पूरे देश में कई इलाके अंधेरे युग में प्रवेश कर गए हैं. रूसी अधिकारी यह नहीं छिपाते हैं कि वे इस रणनीति का उपयोग यूक्रेनी सेना पर दबाव डालने के लिए कर रहे हैं - जिनके परिवार हीटर और बिजली के बिना हैं - और जिससे यूक्रेनी अधिकारी रूस की शर्तें मानने को सहमत हो जाएं.

रूस वर्तमान में अपने कब्जे वाले क्षेत्रों के भीतर संघर्ष को रोकने और एक और बड़े पैमाने पर फिर से हमला करने की तैयारी के लिए समय जुटा सके, इसके लिए अल्पकालिक युद्ध विराम की मांग कर रहा है. हो सकता है ख़ास तौर पर कीव पर कब्जा करने की यह दूसरी कोशिश हो.

बातचीत के लिए तत्परता, जिसे क्रेमलिन ने बार-बार आवाज़ दी है, रूस द्वारा उठाए गए व्यावहारिक कदमों के विपरीत नज़र आता है. दिसंबर की शुरुआत में, देश के रक्षा मंत्रालय ने जल्द ही देश की सशस्त्र बलों की संख्या बढ़ाकर 1.5 मिलियन सैनिक करने की योजना की घोषणा की, यूक्रेन की सीमाओं के पास नई सैन्य इकाइयां बनाई और सेना की लड़ाकू क्षमता में बढ़ोतरी लाने के लिए कई सुधार किए. यहां तक कि यूक्रेन के खिलाफ सैन्य अभियानों में बेलारूस के सैनिकों की भागीदारी को सुनिश्चित करने के लिए बेलारूस के राष्ट्रपति लुकाशेंको पर दबाव बनाना भी जारी है”. इसलिए, तथ्य यह है कि क्रेमलिन ने यूक्रेन के पूरे क्षेत्र को जब्त करने के अपने इरादे नहीं छोड़े हैं और वह लंबे टकराव की तैयारी कर रहा है.

हालांकि, युद्ध की शुरुआत में अगर एक राष्ट्र के रूप में यूक्रेन के अस्तित्व का सवाल था, तो अब स्थिति काफी बदल गई है. भारी सैन्य नुकसान और सैन्य विफलताओं और पश्चिम और उसके सहयोगियों द्वारा कठोर प्रतिबंधों के ज़रिए रूस को अलग-थलग किए जाने के बाद, रूस की सरकार कठिन परिस्थितियों का सामना कर रही है. युद्ध में हार की संभावना रूसी अधिकारियों और पुतिन के लिए व्यक्तिगत रूप से एक गंभीर चुनौती बनती जा रही है और रूस के भीतर भी अप्रत्याशित परिणाम पैदा कर सकती है.

इस संबंध में, यूक्रेन के कई पश्चिमी सहयोगियों के बीच अभी भी इस बारे में कोई एकता नहीं है कि युद्ध का अंत कैसा दिखना चाहिए और ऐसी आशंकाएं प्रबल होती जा रही हैं कि युद्ध के मैदान में रूस की हार से रूस के भीतर ही आंतरिक संघर्ष पैदा हो सकते हैं, क्योंकि पुतिन की शक्ति में कमी का प्रभाव विभिन्न समूहों के बीच संघर्ष का कारण बन सकता है. जैसे कि एक ओर प्रिगोझिन और कादिरोव हैं तो दूसरी ओर सुरक्षा बल और एफएसबी जिसमें परमाणु हथियारों के गैर-राष्ट्रवादी संगठनों के हाथों में पड़ने का खतरा भी है. कुछ पश्चिमी राजनेताओं और विशेषज्ञों के अनुसार, मास्को की सेना के कमजोर पड़ने से कई गैर-रूसी राष्ट्रों के बीच आजादी का संघर्ष शुरू हो सकता है और उन जैसी कई सुरक्षा चुनौतियां पैदा हो सकती हैं जो तत्कालीन यूएसएसआर के पतन के बाद उत्पन्न हुई थी.

इसके साथ ही, पश्चिम इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं कर सकता है कि यूक्रेन पर रूसी आक्रमण शीत युद्ध की समाप्ति के बाद से वैश्विक सुरक्षा व्यवस्था के लिए सबसे बड़ा खतरा है. जबकि पुतिन के सामने हथियार डालने का मतलब यह होगा कि दूसरी अधिनायकवादी सरकारों के लिए यह एक संकेत होगा कि उन्हें कमजोर पड़ोसियों पर अपनी इच्छा थोपने और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त सीमाओं का मनमाने ढंग से उल्लंघन करने के लिए जवाबदेह नहीं ठहराया जाएगा.

आगे की राह 

पश्चिमी देश धीरे-धीरे यूक्रेन की स्थिति को समझ रहे हैं कि वर्तमान चरण में रूस के साथ समझौता और उसकी शर्तों को मानना युद्ध के स्थगन का कारण बनेगी. हालांकि वे इस बात पर ज़ोर दे रहे हैं कि वे यूक्रेन पर रूस के साथ बातचीत करने के लिए दबाव नहीं डालेंगे, और यह यूक्रेन ही होगा जिसे यह निर्धारित करना होगा कि उसे कब और किन परिस्थितियों में ऐसा करना चाहिए. इसके विपरीत यूक्रेन सहयोगी भविष्य में अपनी बातचीत की स्थिति को मजबूत करने के लिए कीव को "जितना हो सके" समर्थन देने की अपनी प्रतिबद्धता पर ज़ोर देते हैं.

यूक्रेन के लिए युद्ध की समाप्ति के लिए मुख्य शर्त राष्ट्र का दर्जा, संप्रभुता का संरक्षण और 1991 की अपनी राष्ट्रीय सीमाओं को लेकर वापसी ; आक्रमणकारी को सजा, और देश के पुनर्निर्माण के लिए नुकसान की भरपाई है लेकिन दुर्भाग्य से, इन लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए सैन्य अभियानों को जारी रखने की आवश्यकता है, क्योंकि रूस यूक्रेन के क्षेत्र से अपने सैनिकों को वापस लेने और अपने आक्रामक इरादों को छोड़ने के लिए तैयार नहीं है. इसलिए वर्तमान में संघर्ष के राजनयिक समाधान की कोई स्थिति बनती नहीं दिख रही है.

यूक्रेन के लिए यह एक वज़ूद की लड़ाई है. जबकि रूस यूक्रेन की पहचान को मिटाने पर आमादा है और वहां अपनी पहचान थोप कर यूक्रेन को एक राष्ट्र के तौर पर भूगोल से मिटाने को आतुर है. पुतिन के आक्रमण की असफलता को काफी हद तक इस तथ्य से समझा जा सकता है कि वो अपने पूरे राजनीतिक जीवन में यूक्रेन को एक अलग और संप्रभु राज्य के रूप में मानने को तैयार नहीं हैं.

हालांकि युद्ध अभी भी खत्म नहीं हुआ है, यूक्रेन ने पहले ही रूस की सेना के अजेय होने के मिथक को ध्वस्त कर दिया है. यहां तक ​​कि सबसे उत्साही रूसी प्रचारक और विचारक भी अब यह मानने लगे हैं कि रूस यूक्रेन से युद्ध हार सकता है. नागरिक बुनियादी ढांचे और नागरिकों पर रूसी हमले उसकी इस कमजोरी की ओर इशारा करते हैं कि अभी तक रूस यूक्रेन के मजबूत प्रतिरोध को नहीं तोड़ पाया है.

यूक्रेन के लिए यह एक वज़ूद की लड़ाई है. जबकि रूस यूक्रेन की पहचान को मिटाने पर आमादा है और वहां अपनी पहचान थोप कर यूक्रेन को एक राष्ट्र के तौर पर भूगोल से मिटाने को आतुर है.

इसके साथ ही, रूसी आक्रामकता की नई-नई कोशिशों के साथ यूक्रेन का समर्थन करने और "रूस को नहीं उकसाने" की आशंकाओं पर काबू पाने के मामले में पश्चिम की स्थिति और मजबूत होती जा रही है, जो कई वर्षों से यूरोपीय सामाजिक-राजनीतिक वातावरण का हिस्सा रही थी. मौजूदा वक्त में, पश्चिमी देशों में यह राय दृढ़ता से निहित है कि यूक्रेन एक प्रकार की चौकी के रूप में काम करता है जो यूरोपीय और नाटो देशों को रूसी आक्रमण से बचाता है, यही वजह है कि रूस की जीत को पश्चिमी देश कभी साकार नहीं होने देंगे. जैसे-जैसे युद्ध की कीमत बढ़ती जा रही है, यूक्रेन की ठिठुरती सर्दी एक धधकते युद्धक्षेत्र में तब्दील होने का वादा करती है.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.