2 जुलाई को रूस ने अपनी नई राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति की घोषणा की. साल 2014 में यूक्रेन संकट और उसके बाद पश्चिम से बिगड़ते रिश्ते के संदर्भ में जो दस्तावेज़ रूस ने साल 2015 में तैयार किया था यह उस नीति का विस्तार था. ताज़ा राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति को साल 2015 की थीम पर तैयार किया गया था जिसमें पश्चिम देशों से होने वाले ख़तरे की ओर अगाह किया गया जो दरअसल, इस बात की याद दिलाने के लिए है कि रूस का पश्चिमी देशों के साथ संकट अभी भी जारी है. इतना ही नहीं, रूस की पारंपरिक और रूढिवादी सिद्धान्तों के संरक्षक के तौर पर जो छवि है, उसे बीते सालों में नेताओं ने इस छवि को बढ़ावा देने की पुरज़ोर कोशिश की.
ताज़ा दस्तावेज़ में शुरू से अंत तक पारंपरिक सिद्धान्तों पर फोकस किया गया और इसके संरक्षण को राष्ट्रीय प्राथमिकता के तौर पर सूचित किया गया. इस रणनीति में रूस से दुश्मनी रखने वाले देशों को भी शामिल किया गया है, जिनके ख़िलाफ़ रूस की आंतरिक एकता और विरोध प्रदर्शनों को कट्टरपंथ का रंग देने का आरोप लगता रहा है. इसके विपरीत रूस ने अपने पहले के स्टैंड – 2015 की सुरक्षा रणनीति और 2016 की विदेश नीति की अवधारणा दोनों को ही दुहराया. इसमें कॉमनवेल्थ ऑफ इंडिपेन्डेंट स्टेटस (सीआईएस), चीन और भारत जैसे देशों के साथ द्विपक्षीय माध्यम से रिश्ते सुधारने की बात थी. इस रणनीति को ग्रेटर यूरेशियन पार्टनरशिप, शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइजेशन(एससीओ) और ब्रिक्स जैसे बहुआयामी पहल के द्वारा और मज़बूती दी गई.
ताज़ा दस्तावेज़ में शुरू से अंत तक पारंपरिक सिद्धान्तों पर फोकस किया गया और इसके संरक्षण को राष्ट्रीय प्राथमिकता के तौर पर सूचित किया गया. इस रणनीति में रूस से दुश्मनी रखने वाले देशों को भी शामिल किया गया है
ज़्यादातर मामलों में साल 2015 के दस्तावेज़ में इन प्रसंगों और मसलों को रेखांकित किया गया जिसमें अमेरिका और यूरोपीय देशों की सख़्त आलोचना शामिल थी लेकिन 2021 के दस्तावेज़ों में जो विषय शामिल किए गए और जैसा इसका सुर था वो ख़ासतौर पर इसकी विशेषता थी और इसे महत्वपूर्ण बनाती है. सबसे ज़्यादा दिखने वाला अंतर तो इसे राष्ट्रीय प्राथमिकता के तौर पर शामिल करना था. इसमें ‘रूस की जनता की सुरक्षा और इंसानी क्षमता का विकास करना’ अहम लक्ष्य बताया गया. हालांकि, बतौर बदलाव राष्ट्रीय सुरक्षा समेत देश और नागरिकों की रक्षा के अलावा साल 2015 के दस्तावेज़ में ख़ास बदलावों को प्राथमिकता के तौर पर रेखांकित किया गया.
रूस की राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति के आधार पर राष्ट्रीय प्राथमिकताओं की तुलना
2021 |
2015 |
रूस के लोगों का संरक्षण और इंसानी काबिलियत का विकास |
रूसी नागरिकों के जीवनस्तर को सुधारना |
राष्ट्रीय रक्षा |
राष्ट्रीय रक्षा |
देश और नागरिकों की सुरक्षा |
देश और नागरिकों की सुरक्षा |
सूचना सुरक्षा |
— |
आर्थिक सुरक्षा |
आर्थिक विकास |
विज्ञान और तकनीकी विकास |
विज्ञान, तकनीक और शिक्षा |
रूस की पारंपरिक धार्मिक और नैतिक मूल्यों, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक स्मृतियों का संरक्षण |
संस्कृति |
पर्यावरण सुरक्षा और प्रबंधन |
जीवित व्यवस्था की अर्थव्यवस्था और प्राकृतिक संसाधनों का सही इस्तेमाल |
रणनीतिक स्थिरता और पारस्परिक हितकारी अंतर्राष्ट्रीय सहयोग |
रणनीतिक स्थिरता और समान रणनीतिक पार्टनरशिप |
— |
सार्वजनिक स्वास्थ्य |
इस तरह के बदलाव महज़ दिखावटी नहीं थे, ख़ासकर तब जबकि यह इस बात की तरफ इशारा था कि कि रूसी नेतृत्व देश की आंतरिक और बाहरी सुरक्षा चुनौतियों को लेकर क्या सोचता है. जबकि इसे रणनीतिक दस्तावेज़ों में भी जगह दी गई थी. साल 2021 के दस्तावेज़ों में क़रीब-क़रीब हर प्राथमिक क्षेत्रों में पश्चिमी देशों की वैसी कार्रवाई की जमकर आलोचना की गई थी जिसमें रूसी हितों की साफ़ अनदेखी की गई थी. इस दस्तावेज़ में कहा गया था कि अमेरिका, इसके सहयोगी, अंतर्राष्ट्रीय कॉरपोरेशन और विदेशी गैर-सरकारी संस्थाएं रूस के पारंपरिक सिद्धान्तों पर हमला कर रहे हैं जिसका नतीजा यह होगा कि रूस अपनी ‘सांस्कृतिक संप्रभुता’ को खो देगा. पश्चिमी देशों को इस बात के लिए भी ज़िम्मेदार ठहराया गया कि ‘वो रूसी कंपनियों की गतिविधियों को सीमित करना चाहते हैं और आर्कटिक क्षेत्र के विकास में रोड़ा डालना चाहते हैं, विश्व इतिहास को बर्बाद करना चाहते हैं, फासीवाद को वापस बढावा देना चाहते हैं और रूसी समाज का बंटवारा करना चाहते हैं’.
इस विचार का ही नतीज़ा था कि रूसी विशेषज्ञ मार्क गैलोटी ने इस रणनीति को ‘मानसिक दिवालियापन का दस्तावेज़’ बताने में देरी नहीं की जो इस बात का परिचायक थी कि रूसी सुरक्षा परिषद में तेज़तर्रार लोगों की प्रभावशाली भूमिका थी. लेकिन कारनेगी मास्को सेंटर के निदेशक दिमित्री त्रेनिन के मुताबिक यह पश्चिमी देशों के साथ ‘लंबे समय के टकराव’ की ओर इशारा कर रहा था जो साल 2015 से अलग था जब यह समझा जाता था कि रिश्तों को फिर से उबारा जा सकता है. हाल में ही जेनेवा में हुए अमेरिका-रूस सम्मिट के दौरान भी यह भावना स्थापित हुई, जो इस बात का संकेत था कि वार्ता का लाभ सीमित और ख़ास क्षेत्र के लिए ही होता है.
पश्चिमी देशों को इस बात के लिए भी ज़िम्मेदार ठहराया गया कि ‘वो रूसी कंपनियों की गतिविधियों को सीमित करना चाहते हैं और आर्कटिक क्षेत्र के विकास में रोड़ा डालना चाहते हैं, विश्व इतिहास को बर्बाद करना चाहते हैं, फासीवाद को वापस बढावा देना चाहते हैं और रूसी समाज का बंटवारा करना चाहते हैं’.
और तो और विश्व, सूचना सुरक्षा को लागू करने को लेकर अलग प्राथमिकता की बात करता है, जहां आतंकवाद, साइबर हमला और मनी लॉन्ड्रिंग जैसे मामलों को छोड़कर रूस भी इस विचार को मानता है कि इंटरनेट के जरिए लोगों की भावना को उकसाया जा सकता है और राजनीतिक मक़सद के लिए इतिहास को अलग तरीक़े से प्रदर्शित किया जा सकता है. ट्रेनिन ने तर्क दिया कि सूचना सुरक्षा आने वाले समय में अहम चुनौती बनने जा रहा है.
आर्थिक विकास और पर्यावरण
रूसी पारंपरिक सिद्धांतों के संरक्षण और देश के चारों तरफ से घिरे होने की आशंका को लेकर 2021 के दस्तावेज़ों में प्राथमिकताओं को कई गुना बढ़ा दिया गया. ऐसा पिछले कई सालों में रूस की रूढ़िवादी छवि को बढ़ावा देकर किया गया. रूसी विदेश नीति के विशेषज्ञ वैशली काशिन के मुताबिक पारंपरिक सिद्धान्तों पर ध्यान, सूचना सुरक्षा सुनिश्चित करना, पश्चिमी देशों के प्रोपगैंडा की चुनौतियों का सामना करना – साल 2021 की रणनीति को ‘पूरी तरह से नया दस्तावेज़’ बनाता है जिसका असर लंबे समय तक होगा. उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि ये बदलाव ना सिर्फ़ विदेश नीति को प्रभावित करेंगे बल्कि आंतरिक नीति और सिद्धान्त पर भी असर डालेंगे जो यह बताते हैं कि इन मुद्दों पर रूस के विचारकों ने बहस की होगी और फिर इसे लेकर सहमति बनाई होगी.
इन बदलावों के अलावा यह दस्तावेज़ आर्थिक सुरक्षा की बात को भी रेखांकित करता है. रूस कच्चे माल के निर्यात से आगे बढ़कर उच्च तकनीक वाले उद्योग की ओर होने वाले आर्थिक बदलाव की ज़रूरत को पहचानता है. इसके साथ ही रूस डॉलर में व्यापार को कम करने की ओर भी अग्रसर है. और इसके लिए उच्च आय, असमानता में कमी, बेहतर स्वास्थ्य व्यवस्था और सामाजिक तथा आर्थिक विकास को आगे बढ़ाने की ज़रूरतों की उसे पहचान भी है. रूस को इस बात का भी आभास है कि पर्यावरण बदलाव को लेकर नकारात्मक प्रभाव क्या है और इस क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की कितनी आवश्यकता है. महामारी का असर और उसके साथ कोरोना संक्रमण की शुरुआत के पहले ही रूस की आर्थिक विकास की कम दर ने इस प्राथमिकता को सबके ध्यान में ला दिया. तकनीक का विकास एक अन्य क्षेत्र था जिसे लेकर यह ज़रूरी समझा गया कि रूस को आयातित तकनीक पर निर्भरता ख़त्म करने की ज़रूरत है, और रक्षा क्षेत्र में तकनीकी रूप से स्वतंत्र होने की आवश्यकता है. इसके साथ ही अर्थव्यवस्था के ढांचे में भी बदलाव लाना होगा.
बदलते वैश्विक समीकरण के बीच रूस ने भूराजनीतिक अस्थिरता के बढ़ने को सामान्य माना और तर्क दिया कि पश्चिमी मुल्क अपना प्रभाव स्थापित करने के लिए रूस के प्रभाव को कम करना चाहते हैं.
राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति से संबंधित दस्तावेज़ में रूस ने फिर से बहुआयामी विदेश नीति की ज़रूरतों को दुहराया और रणनीतिक स्थिरता के लिए संयुक्तराष्ट्र की मज़बूती और सुरक्षा परिषद की भूमिका को मज़बूत करने की बात कही. बदलते वैश्विक समीकरण के बीच रूस ने भूराजनीतिक अस्थिरता के बढ़ने को सामान्य माना और तर्क दिया कि पश्चिमी मुल्क अपना प्रभाव स्थापित करने के लिए रूस के प्रभाव को कम करना चाहते हैं. ऐसी घोषणाएं जिसे रूस की सरकार पूर्व में कई बार दोहरा चुकी है आख़िरकार उसका विस्तार नई राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति के दस्तावेज़ में मिलता है.
इस दस्तावेज़ में एक महत्वपूर्ण बात जो दिखती है वह पूर्व के देशों और क्षेत्रीय ताकतों के साथ रिश्ते सुधारने की कोशिशों को लेकर है. जैसा कि ट्रेनिन ने ‘प्राथमिकताओं के अनुक्रम’ के बारे में कहा कि यह हमेशा से ऐसे ही रहते हैं. “पहली कतार में – सीआईएस/यूरेशियन इकोनॉमिक यूनियन, कलेक्टिव सिक्युरिटी ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन (सीएसटीओ), बेलारूस से यूनियन स्टेट, दूसरी कतार में – चीन और भारत को लेकर अनुरूपता, तीसरी कतार – एससीओ, ब्रिक्स, आरआईसी.’ चीन और भारत पर ध्यान देने के क्रम में एशिया पैसिफिक के बदलते समीकरण को नज़रअंदाज़ करना और इस भूक्षेत्र को रूस कितना महत्व देता है; इसे लेकर काशिन का कहना है कि इस संबंध में नई दस्तावेज़ महज ये बताती है कि बीते कुछ सालों में इसे लेकर सहमति को मज़बूत किया गया है लेकिन नीतियों को लेकर क्या कुछ बदला है इसकी जानकारी यह नहीं देता है.
2021 के राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति से संबंधित दस्तावेज़ रूस के लक्ष्यों, चिंताओं और भविष्य को लेकर दृष्टिकोण को रेखांकित करती है. यह देश में आर्थिक विकास की दर को बढ़ाने की ज़रूरत को वर्णित करता है जिससे कि प्राकृतिक संसाधनों के निर्यात पर निर्भरता कम की जा सके और इस तरह पर्यावरण का संरक्षण हो सके. इसी दौरान यह दस्तावेज़ हाल में रूसी नेतृत्व द्वारा मज़बूत किए गए कुछ विचारों पर ध्यान देने की ज़रूरत पर बल देता है. इसमें अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था में बदलाव, संरक्षणवाद, पारंपरिक सिद्धान्तों पर ध्यान, पश्चिमी देशों की कार्रवाई के चलते घरेलू स्थिरता पर ख़तरा जैसी बातें शामिल है. यह दस्तावेज विदेश नीति में रणनीतिक निर्देशों की निरंतरता की भी ज़रूरत बताता है लेकिन साथ में बदलती वैश्विक व्यवस्था के बीच सामंजस्य बिठाने के अलावा आंतरिक नीतियों पर भी ज़ोर देने की वकालत करता है.
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