Image Source: दैनिक भास्कर
यूक्रेन युद्ध में भारत की रूस के प्रति झुकाव वाली तटस्थता अब उसके लिए मुश्किलें पैदा कर सकती हैं. युद्ध जारी है और आगे इसके और तीव्र होने की संभावना है, ऐसे में नई दिल्ली का यह स्टैंड कि रूस के प्रति उसका रुख उसकी रणनीतिक स्वायत्तता पर आधारित है, दिन-ब-दिन कमजोर होता जाएगा.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रूस यात्रा के दो दिन बाद ही गुरुवार को अमेरिकी राजदूत एरिक गार्सेटी ने नई दिल्ली में सार्वजनिक मंच पर कहा कि भारत-अमेरिका रक्षा संबंध महत्वपूर्ण हैं, लेकिन इस रिश्ते को हल्के में नहीं लिया जा सकता.
मोदी की रूस यात्रा दो महत्वपूर्ण घटनाओं के साथ हुई, जिसने भारत की स्थिति को और पेचीदा बना दिया. पहली घटना 8 जुलाई को कीव में बच्चों के अस्पताल पर रूस का मिसाइल हमला था और दूसरी घटना 9-11 जुलाई को वॉशिंगटन डीसी में नाटो शिखर सम्मेलन था.
उन्होंने कहा कि इसमें किसी विवाह-गठबंधन की तरह दोनों पक्षों को योगदान देना होगा और अमेरिका भारत की रणनीतिक स्वायत्तता का सम्मान करता है लेकिन युद्ध के समय, रणनीतिक स्वायत्तता जैसी कोई चीज नहीं होती है. इसमें कोई संदेह नहीं कि गार्सेटी मोदी की रूस यात्रा की ओर संकेत कर रहे थे.
दुर्भाग्य से, मोदी की रूस यात्रा दो महत्वपूर्ण घटनाओं के साथ हुई, जिसने भारत की स्थिति को और पेचीदा बना दिया. पहली घटना 8 जुलाई को कीव में बच्चों के अस्पताल पर रूस का मिसाइल हमला था और दूसरी घटना 9-11 जुलाई को वॉशिंगटन डीसी में नाटो शिखर सम्मेलन था.
यूक्रेन युद्ध के गंभीर परिणामों में उलझी दुनिया
जब दुनिया यूक्रेन युद्ध के गंभीर परिणामों में उलझी हुई थी, तब मोदी को मॉस्को में पुतिन से गर्मजोशी से मिलते देखा गया. इसने पश्चिम में चिंता और आलोचना को जन्म दिया. पूर्व अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एच.आर. मैकमास्टर ने भारत से अमेरिका के संबंधों को कमतर करने का आह्वान किया. रिपोर्टों से पता चला कि अमेरिकी अधिकारी अपने भारतीय समकक्षों से फोन पर इस यात्रा के स्वरूप की आलोचना कर रहे थे.
अमेरिका के आधिकारिक प्रवक्ता चाहते थे कि भारत रूस के सामने क्षेत्रीय अखंडता और सम्प्रभुता का मुद्दा उठाए. वहीं यूक्रेन ने इस यात्रा को शांति प्रयासों के लिए बड़ा झटका बताया. भारत-रूस के संयुक्त बयान ने क्षेत्रीय अखंडता के मुद्दे को नजरअंदाज किया और शांति के बारे में कुछ हद तक अतार्किक बातें कीं.
यह स्वीकार करके कि यूक्रेन को दोनों पक्षों के बीच बातचीत और कूटनीति के माध्यम से शांतिपूर्ण समाधान खोजना चाहिए, नई दिल्ली संयुक्त राष्ट्र के एक सम्प्रभु सदस्य की क्षेत्रीय अखंडता के उल्लंघन और उसके साथ आक्रामकता के मुद्दे को संबोधित करने में विफल रही.
हालांकि मॉस्को में मोदी और पुतिन की गले मिलने वाली तस्वीर से भ्रमित नहीं होना चाहिए. यह मोदी की खास शैली है और वे ऐसा दर्शाने के लिए यह करते हैं कि विदेशी नेताओं के साथ उनकी व्यक्तिगत मित्रता है.
इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि इस यात्रा के उद्देश्य के बारे में अभी तक बहुत कम जानकारी मिल पाई है. विदेश मंत्रालय की वेबसाइट पर यात्रा के नौ सूचीबद्ध परिणाम अपनी कहानी खुद बयां करते हैं. कोई नया रक्षा सौदा घोषित नहीं किया गया है और दोनों देशों के बीच भुगतान के मुद्दे पर कोई सफलता नहीं मिली है.
पश्चिम में भारत की छवि को पहुंचा नुकसान
भारत अपनी सैन्य मशीनरी को चालू रखने के लिए रूस के स्पेयर पार्ट्स और घटकों पर बहुत अधिक निर्भर है, वह केवल यह उम्मीद कर सकता है कि यूक्रेन-युद्ध इन आपूर्तियों को प्रभावित न करे. लेकिन कुल मिलाकर इस यात्रा ने पश्चिम में भारत की छवि को नुकसान पहुंचाने का काम किया है.
मोदी द्वारा बार-बार यह कहना कि यह युद्ध का युग नहीं है या युद्ध समस्याओं का समाधान नहीं कर सकता, इस वास्तविकता के विपरीत है कि रूस के लिए यह युद्ध का ही युग है और मॉस्को ने यूक्रेन के साथ अपनी समस्याओं को हल करने के लिए युद्ध का ही रास्ता चुना है. मॉस्को में प्रधानमंत्री द्वारा यह कहना कि जब हम मासूम बच्चों को मरते हुए देखते हैं, तो यह दिल दहला देने वाला होता है, यूक्रेन की स्थिति पर भारत की ठोस नीति की कमी की भरपाई नहीं कर सकता.
हकीकत तो यह है कि रूस से प्रधानमंत्री मोदी की वापसी के अगले ही दिन भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के उस प्रस्ताव पर मतदान में हिस्सा नहीं लिया, जिसमें मांग की गई थी कि रूस यूक्रेन के खिलाफ अपनी आक्रामकता बंद करे.
रूस से प्रधानमंत्री मोदी की वापसी के अगले ही दिन भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के उस प्रस्ताव पर मतदान में हिस्सा नहीं लिया, जिसमें मांग की गई थी कि रूस यूक्रेन के खिलाफ अपनी आक्रामकता बंद करे.
स्ट्रैटेजिक-ऑटोनोमी पर छिड़ी बहस
ऐसी चर्चा है कि इस यात्रा का मुख्य उद्देश्य चीन को रूस के बहुत करीब आने से रोकना था. लेकिन युद्ध ने अलग ही हालात पैदा कर दिए हैं. चीन रूस से सस्ते दामों पर कच्चा माल खरीद सकता है और वहां अपने उपभोक्ता-सामानों की बाढ़ ला सकता है.
रूस को दिए जाने वाले उसके गुप्त सैन्य समर्थन में ड्रोन, माइक्रो-इलेक्ट्रॉनिक्स और मिसाइल, टैंक और अन्य सैन्य उपकरण बनाने के लिए मशीन टूल्स शामिल हैं. भारत के पास ऐसा कुछ भी नहीं है, जो ऐसा होने से रोक सके.
इसमें कोई संदेह नहीं कि इस यात्रा ने पश्चिमी देशों को नाराज कर दिया है और अब भारत अपनी ‘स्ट्रैटेजिक-ऑटोनोमी’ की चाहे जितनी बातें करे, इससे उसकी छवि को हुई क्षति की भरपाई नहीं हो सकेगी.
राजदूत गार्सेटी का यह कहना सही है कि युद्धकाल में कोई भी देश तटस्थ नहीं होता है, वह या तो युद्ध के पक्ष में होता है या विपक्ष में. यूक्रेन का युद्ध अब एक ऐसे बिंदु पर पहुंचने लगा है, जहां पर पश्चिम यह कह सकता है कि जो हमारे साथ नहीं है, वह हमारे खिलाफ है!
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.