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वर्तमान में युद्ध किस स्थिति में है एवं रूस-युक्रेन युद्ध का हिन्द-प्रशांत क्षेत्र पर क्या असर पड़ने वाला है.
रूस युक्रेन युद्ध जब शुरू हुआ तब यह लगा था कि यह जल्द ही समाप्त हो जायेगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ और यह महीनों से जारी है, आज इसको शुरू हुए 100 दिन से अधिक हो गये और यह युद्ध ऐसी स्थिति में शुरू हुआ था, जब पूरी दुनिया कोविड महामारी से जूझ रही थी. यूक्रेन को युद्ध में काफ़ी जान-माल की हानि हुई है, लेकिन आज यदि यूक्रेन के पश्चिमी शहरों में देखे तो यातायात जैसी आवश्यक वस्तु साधारण स्थिति में मुश्किल हो रही है. वहीं रूस के ऊपर आर्थिक प्रतिबंध लगाये गए है और इसके साथ ही अमेरिका की तरफ से 40 बिलियन डॉलर एवं यूरोप की तरफ से 10 बिलियन डॉलर की सहायता राशि एवं युद्ध सामग्री यूक्रेन को दी गयी है एवं आगे भी सहायता की जाएगी. शुरू में यह पश्चिमी देशों की रणनीति थी की यूक्रेन को सुरक्षा की दृष्टि से हथियार दिए जायेंगे लेकिन बाद में उन्हें अधिक शक्ति वाले, और अधिक रेंज वाले हथियार दिए जाने लगे और अब यूक्रेन की तरफ से अत्यधिक सुविधा से लेंस युक्त हथियारों की मांग की जा रही है. नेटो (NATO) एवं पश्चिमी देशों की शुरू में यह रणनीति रही की रूस पर प्रतिबंध, यूक्रेन को हथियारों की सहायता देना तथा नेटो देशों की सीमाओं की सुरक्षा करना उसका प्रमुख उद्देश्य होगा. किंतु अब नेटो एवं पश्चिमी देश यह चाहते हैं कि रूस द्वारा काबिज क्षेत्र छोड़ा जाए एवं यूक्रेन की फिर से 2014 से पहले वाली स्थिति हो जाए. साथ ही वे ये भी चाहते हैं कि रूस की सामरिक हार हो तथा वो रूस से किसी प्रकार का कोई समझौता नहीं करना चाहता. वहीं रूस यह चाहता है कि जिस क्षेत्र में उसने पहले ही कब्ज़ा कर लिया है उसे वो अपने पास ही रखे, यूक्रेन वापिस न्यूट्रल स्थिति में आ जाए तथा वह नेटो से न मिले. कुछ समय पहले तक यह लग रहा था कि युद्ध के दौरान जो बातचीत हो रही है उससे रास्ता निकलेगा लेकिन यह अब मंद होती हुई दिख रही है.
नेटो (NATO) एवं पश्चिमी देशों की शुरू में यह रणनीति रही की रूस पर प्रतिबंध, यूक्रेन को हथियारों की सहायता देना तथा नेटो देशों की सीमाओं की सुरक्षा करना उसका प्रमुख उद्देश्य होगा. किंतु अब नेटो एवं पश्चिमी देश यह चाहते हैं कि रूस द्वारा काबिज क्षेत्र छोड़ा जाए एवं यूक्रेन की फिर से 2014 से पहले वाली स्थिति हो जाए.
सेना के रफ़्तार में कमी आई है, रूस ने जब 24 फ़रवरी को यूक्रेन पर आक्रमण किया था तब चारों तरफ़ से आक्रमण किया था लेकिन अभी यह दक्षिण और पूर्व में केंद्रित है. अभी यह 600 मील का सीमांत क्षेत्र बन गया है जिसके आस-पास युद्ध क्षेत्र बना हुआ है और बीच-बीच में रूसी सेना हवाई हमला करते रहते हैं, लेकिन मुख्य क्षेत्र दक्षिण और पूर्व में है. जो समुद्री ऑपरेशन है उस पर लगभग रूस ने कब्ज़ा कर लिया है और काला सागर में भी काफ़ी हद तक नियंत्रण किया था, इसमें जो नाकाबंदी की गयी थी उससे यूक्रेन को काफ़ी हद तक भारी नुकसान उठाना पड़ा था और इसके साथ-साथ रूस को भी एक लैंडिंग क्रूज़, एक बोटिंग आदि का नुकसान उठाना पड़ा है. यदि पश्चिमी रिपोर्ट की बात करे तो रूस को 1000 से ज्यादा टैंक, 350 तक हथियार और 50 से ज्यादा एयरक्राफ्ट और हेलीकॉप्टर की क्षति हुई है. लेकिन ग़ौर करने वाली बात यह है की रूस का सिर्फ़ सेना और सैन्य संसाधनों का नुकसान हुआ है, जबकि यूक्रेन का चारों तरफ़ से नुकसान हुआ है जिसमें ज्य़ादातर रूप से सैन्य संरचना को अधिक नुक़सान हुआ है. कुल मिलाकर हम देखें तो रूस की भी कई ख़ामिया देखने को मिली हैं. इसके साथ -साथ साइबर अटैक की रिपोर्ट आई थी जिसमें पश्चिमी देशों ने यूक्रेन की साइबर सुरक्षा में मदद की थी. ग़ौर कंरे तो जो हथियारों की सप्लाई की जा रही है उसे किस तरह इस्तेमाल किया जाए एवं उसे कैसे स्टोर किया जाये यह देखना होगा, उस पर भी रूस ने लगातार नज़र बनाये रखा है और रूस कोशिश करेगा कि नेटो का हस्तक्षेप हद से आगे ना बढ़े.
ग़ौर करने वाली बात यह है की रूस का सिर्फ़ सेना और सैन्य संसाधनों का नुकसान हुआ है, जबकि यूक्रेन का चारों तरफ़ से नुकसान हुआ है जिसमें ज्य़ादातर रूप से सैन्य संरचना को अधिक नुक़सान हुआ है. कुल मिलाकर हम देखें तो रूस की भी कई ख़ामिया देखने को मिली हैं.
रूस-यूक्रेन युद्ध से हिंद प्रशांत क्षेत्र पर असर देखें, इससे पहले यह भी ध्यान रखना होगा कि दोनों क्षेत्रों में क्या समानताएं एवं क्या असमानताएं हैं, इनका विश्लेषण आवश्यक है. इन दोनों क्षेत्रों की भौगोलिक अवस्था अलग है, दोनों की भू-राजनीति अलग है, दोनों की अर्थव्यवस्था एवं व्यापार अलग है. हिंद प्रशांत क्षेत्र में शामिल देशों की 60% GDP है, 70% व्यापार है, अत: यह बहुत बड़ा क्षेत्र है. इधर हम यूरोप को देखे तो नेटो का इतिहास अलग है, वहां की सुरक्षा रणनीति अलग है और हिंद-प्रशांत की सुरक्षा रणनीति अलग है, वहीं हिंद प्रशांत क्षेत्र की समुद्री क्षेत्र का अलग महत्व है. लेकिन कुछ प्रकार से समानताएं भी हैं जैसे दोनों में सीमाओं से संबंधित विवाद जो कि क्षेत्र एवं सामुद्रिक सीमा दोनों में है, इसी तरह दोनों में नियम आधारित आदेश की भी चर्चा चल रही है और इस पर कार्य करना चाहते हैं. अत: निष्कर्ष के तौर पर हम यह कह सकते हैं कि दोनों में जो समानतांए एवम् असमानतांए विद्यमान है, उन पर युद्ध का असर तो होगा लेकिन हम या पूरी दुनिया उसे कैसे संभाल पाती है, यह देखने वाली बात होगी.
रूस-यूक्रेन युद्ध से हिंद प्रशांत क्षेत्र पर असर देखें, इससे पहले यह भी ध्यान रखना होगा कि दोनों क्षेत्रों में क्या समानताएं एवं क्या असमानताएं हैं, इनका विश्लेषण आवश्यक है. इन दोनों क्षेत्रों की भौगोलिक अवस्था अलग है, दोनों की भू-राजनीति अलग है, दोनों की अर्थव्यवस्था एवं व्यापार अलग है.
हम यह मान सकते हैं कि रूस-युक्रेन युद्ध का असर ना सिर्फ़ यूरोप पर बल्कि पूरे हिंद-प्रशांत क्षेत्र पर भी इसका सामरिक एवं आर्थिक असर देखा जा सकता है, इसके साथ ही भू-राजनीति पर भी इसका असर पड़ रहा है एवं रूस-चीन के बीच भी संबंध बढे हैं. क्वॉड जैसे संगठन इसके असर को कम करने में कितने सक्षम होंगे यह देखना होगा.
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Vice Admiral Girish Luthra is Distinguished Fellow at Observer Research Foundation, Mumbai. He is Former Commander-in-Chief of Western Naval Command, and Southern Naval Command, Indian ...
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