Published on Jul 18, 2022 Updated 29 Days ago

जैसे जैसे यूक्रेन में युद्ध का दौर और मानवीय संकट बढ़ता जा रहा है, वैसे वैसे यूक्रेन को पश्चिमी देशों द्वारा दी जा रही मदद पर सवाल उठ रहे हैं.

#Russia Ukraine War: युद्ध के दौरान यूक्रेन को पश्चिमी देशों से मिल रही मदद ‘बेअसर’ साबित हो रही है!

1 जून को अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन ने एक बयान जारी किया, जिसमें उन्होंने यूक्रेन में रूस की सेना की धीमी प्रगति के बारे में जानकारी दी थी. इस बयान में कहा गया था कि, ‘यूक्रेन पर अपने बर्बर और बिना उकसावे के आक्रमण करने के तीन महीने बाद रूस लगातार अपने सामरिक लक्ष्य हासिल कर पाने में नाकाम रहे है.’ यूक्रेन में विजेता जैसे इस अमेरिका बयान की चमक तब फीकी पड़ जाती है, जब हमें यूक्रेन द्वारा पश्चिमी देशों से और हथियारों की हताशा भरी मांग सुनाई देती है और उसके जवाब में हम अमेरिका और उसके यूरोपीय साथियों को यूक्रेन की मांग के हिसाब से तेज़ गति से हथियार भेज पाने में नाकाम होते देखते हैं. इसके बावजूद , रूस लगातार यूक्रेन के पूर्वी हिस्से पर अपनी पकड़ मज़बूत करता जा रहा है. हालांकि, यूक्रेन की रक्षा पंक्ति की ज़बरदस्त मोर्चेबंदी और पश्चिमी देशों द्वारा आर्थिक प्रतिबंध लगाए जाने से रूस की सेना के आगे बढ़ने की रफ़्तार बहुत धीमी हो गई है. फिर भी, यूक्रेन के पूर्वी हिस्से में रूस के हमले लगातार जारी हैं. अगर हम यूक्रेन की जंग की मौजूदा दिशा -दिशा का मूल्यांकन करें, तो ये बात साफ़ हो जाती है कि बहुत जल्द रूस, यूक्रेन के लगभग पूरे पूर्वी इलाक़े पर अपना क़ब्ज़ा स्थापित कर लेगा. हाल ही में रूस की सेना ने यूक्रेन के लुहांस्क सूबे में यूक्रेन की सेना के आख़िरी मोर्चे लिसिचांस्क  शहर पर अपना नियंत्रण हो जाने का दावा किया था. रूस को डराने और दबाने की कोशिशों से न तो जंग का पलड़ा यूक्रेन के पक्ष में झुका है और न ही इसका ये नतीजा निकला है कि रूस ने यूक्रेन में अपने सारे सामरिक लक्ष्य हासिल कर लिए हैं. हालांकि, युद्ध के लंबे समय तक चलने की आशंका को देखते हुए, डोनबास क्षेत्र में रूस की सेना की बढ़त और यूक्रेन के समुद्री तटों तक पहुंच को काट देने की क्षमता को देखते हुए न केवल रूस को डराने के लिए किए गए उपायों के सीमित असर होने की आशंका है बल्कि उससे भी साफ़ बात तो ये है कि यूक्रेन को पश्चिमी देशों द्वारा दी जा रही मदद की विश्वसनीयता पर भी सवाल खड़े हो गए हैं.

अगर हम यूक्रेन की जंग की मौजूदा दिशा -दिशा का मूल्यांकन करें, तो ये बात साफ़ हो जाती है कि बहुत जल्द रूस, यूक्रेन के लगभग पूरे पूर्वी इलाक़े पर अपना क़ब्ज़ा स्थापित कर लेगा. 

यूक्रेन और रूस के बीच, क़रीब चार महीने से चल रही इस जंग का जो भी नतीजा रहा है, वो मोटे तौर पर लोगों की सोच और जानकारी के स्तर पर ही रहा है. रूस की सेना के यूक्रेन की राजधानी कीव पर क़ब्ज़ा कर पाने में नाकाम रहने और उसके पश्चिमी इलाक़ों से पीछे हटने की जानकारी को भले ही तोड़-मरोड़कर ये कहते हुए पेश किया गया कि रूस की सेना अभी भी बीसवीं सदी वाली है. वो तोपख़ाने पर निर्भर है और यूक्रेन के बेरक्टर ड्रोन के आगे रूस की सेना पूरी तरह लाचार साबित हुई है. इसका नतीजा ये हुआ है कि ज़मीनी स्तर पर जंग के रुख़ और उसके बारे में माहौल बनाने वाले दावों के चलते, यूक्रेन की रक्षा पंक्ति की ताक़त और रूस के आक्रमण की क्षमता को सच्चाई से बिल्कुल परे जाकर पेश किया जाता रहा है. रूस की रक्षा पंक्ति को भले ही, ‘कमज़ोर ज़मीनी रणनीति, सीमित हवाई सहयोग, रणनीति में लचीलेपन की कमी, शीर्ष से कमान और नाकामी को दोहराने वाली’ बताया जाता रहा हो. लेकिन, पूर्वी यूक्रेन में रूस की सेना की कामयाबी ये बताती है कि सैन्य टुकड़ियों की भारी तादाद भी अपने आप में एक ख़ूबी ही है.

पिछले चार महीनों के दौरान पश्चिमी देशों ने पूरी क्षमता से रूस के ख़िलाफ़ यूक्रेन की मदद की है. रूस और यूक्रेन के युद्ध को लेकर दोनों ही पक्षों द्वारा बढ़-चढ़कर किए जा रहे दावों को देखते हुए कुछ सवालों की अहमियत तो बढ़ गई है: पश्चिमी देश यूक्रेन की किस तरह से मदद कर रहे हैं और क्या ये मदद पर्याप्त रही है? इस मदद से रूस के अभियान पर क्या असर पड़ा है? यूक्रेन को पश्चिमी देशों से लगातार दी जा रही मदद ने अमेरिका और यूरोप के रिश्तों को किस तरह से ढाला है?

पश्चिमी देशों की मदद के ख़राब से ख़राब मूल्यांकन के तहत हम ये कह सकते हैं कि इस सहयोग के चलते यूक्रेन, रूस से लगातार जंग करते रहने को मजबूर हुआ है और उसे अपनी अर्थव्यवस्था, जनता और भविष्य के रूप में इसकी भारी क़ीमत चुकानी पड़ रही है.

आज जब यूक्रेन युद्ध के पांच महीने पूरे होने वाले हैं, तो यूक्रेन को पश्चिमी देशों से मिल रही मदद के फ़ायदों को लेकर गंभीर प्रश्न उठ रहे हैं. ज़्यादा से ज़्यादा हम यही कह सकते हैं कि पश्चिमी देशों द्वारा यूक्रेन की मदद करने के चलते रूस की सेना, कीव पर क़ब्ज़ा नहीं कर पाई और वो यूक्रेन के पूर्वी हिस्सों तक ही सीमित रह गई है; और पश्चिमी देशों की मदद के ख़राब से ख़राब मूल्यांकन के तहत हम ये कह सकते हैं कि इस सहयोग के चलते यूक्रेन, रूस से लगातार जंग करते रहने को मजबूर हुआ है और उसे अपनी अर्थव्यवस्था, जनता और भविष्य के रूप में इसकी भारी क़ीमत चुकानी पड़ रही है. पश्चिमी देशों ने यूक्रेन युद्ध को लेकर मिली-जुली सामरिक रणनीति अपनाई है. एक तरफ़ तो उन्होंने रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए हैं. वहीं दूसरी तरफ़ यूक्रेन को मदद कर रहे हैं. वैसे तो यूक्रेन को सबसे ज़्यादा मदद देने वाले देश अब तक 30 अरब यूरो के आर्थिक सहयोग का एलान कर चुके हैं. लेकिन, फ़रवरी 2022 से अब तक, इसमें से केवल 6 अरब यूरो ही यूक्रेन को दिए गए हैं. यूक्रेन की मदद में सबसे बड़ा दानदाता अमेरिका ही है. उसके बाद यूरोपीय संघ का नंबर आता है. हालांकि जब हम यूक्रेन को मदद देने वाले देशों द्वारा दी गई रक़म की तुलना उनकी आर्थिक हैसियत से करते हैं, तो यूरोप की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों जैसे कि, जर्मनी, इटली और फ्रांस की तुलना में बाल्टिक देशों और पोलैंड ने यूक्रेन की अधिक मदद की है. यूक्रेन में युद्ध की शुरुआत के बाद पश्चिमी देशों द्वारा दी गई मदद को मोटे तौर पर निम्नलिखित टेबल के ज़रिए समझा जा सकता है.

यूक्रेन को पश्चिमी देशों से सैन्य मदद 

Russia Ukraine War The Help Ukraine Is Getting From Western Countries During The War Is Proving To Be Ineffective

स्त्रोत – फोरम ऑन द आर्म्स ट्रेड, द वाशिंगटन जर्नल

इस बीच, पश्चिमी देशों द्वारा रूस पर लगाए गये प्रतिबंधों को नीचे की टेबल से समझ सकते हैं.

रूस पर पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंध 

Russia Ukraine War The Help Ukraine Is Getting From Western Countries During The War Is Proving To Be Ineffective

स्त्रोत – पीटरसन इंस्टीट्यूट ऑफ़ इकोनॉमिक्स, अल जज़ीरा 

पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों का सीमित असर

पश्चिमी देशों ने रूस को रोकने के लिए आवश्यक भय का माहौल बनाने के लिए कुछ संस्थागत क़दम उठाए हैं. इनमें रूस पर प्रतिबंध लगाने के साथ साथ यूक्रेन को संसाधनों और पैसे से मदद करना शामिल है. हालांकि, इनमें से कोई भी क़दम फिलहाल तो रूस को रोकने में कामयाब होते नहीं दिख रहे हैं. रूस पर पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों का अगर कोई दूरगामी विपरीत प्रभाव पड़ना था, तो वो अब तक तो नहीं दिखा है.

रूस पर लगे प्रतिबंधों के दूरगामी असर को लेकर कुछ आकलन किए जा रहे हैं. इस बीच यूरोपीय संघ, यूक्रेन में रूस की बढ़त रोकने का अप्रत्यक्ष कारण बना है. रूस के व्यापार का एक बड़ा हिस्सा यूरोप से ही होता है; रूस के व्यापार और कारोबारियों पर वित्तीय प्रतिबंध लागू होने का रूस की अर्थव्यवस्था पर काफ़ी बुरा असर पड़ा है. जैसा कि माटिना स्टेविस-ग्रिडनेफ ने इस साल मई में एक लेख में लिखा था कि रूस की अर्थव्यवस्था को ताज़ा झटका तब लगा था, जब यूरोपीय संघ ने आर्थिक प्रतिबंधों की छठीं किस्त को मंज़ूरी दी थी. इसमें रूस से तेल के आयात पर प्रतिबंध भी शामिल हैं, जिन्हें लागू कर पाने में पहले ही काफ़ी देर हो चुकी है. प्रतिबंधों की ये किस्त लागू होने के बाद कहा जा रहा है कि साल 2022 के अंत तक, यूरोपीय संघ समुद्र के रास्ते रूस से तेल के आयात को पूरी तरह से रोक देगा. इस प्रतिबंध से हंगरी को छूट दिए जाने के बाद भी रूस और यूरोप दोनों के लिए ही ये प्रतिबंध बहुत महंगे साबित होंगे. जैसे ही ये प्रतिबंध लागू होंगे, वैसे ही यूरोप में ऊर्जा की क़ीमतों में ज़बरदस्त उछाल आएगा. वहीं, रूस की अर्थव्यवस्था में और भी गिरावट आएगी. 

नेटो द्वारा यूक्रेन को राजनीतिक समर्थन देने के साथ ही उसे दी जा रही व्यवहारिक मदद, व्यापक सहायता पैकेज (CAP) के चलते उपयोगी साबित हुई है. ये पैकेज 2016 के वारसा  शिखर सम्मेलन का हिस्सा था. CAP के ज़रिए ही यूरोपीय संघ और अमेरिका ने यूक्रेन को अपने बेहतरीन सुरक्षा और रक्षा सुधारों के सबसे उपयोगी पहलू मुहैया कराए हैं. वारसा  संधि के वो देश जो अब नेटो के सदस्य बन चुके हैं, उन्होंने भी यूक्रेन को हथियार और कल-पुर्ज़े मुहैया कराए हैं. इस बीच, यूक्रेन को नेटो के मानकों वाले हथियार देने की मांग भी बड़े ज़ोर-शोर से उठ रही है. वैसे तो नेटो, यूक्रेन को सैन्य मदद देने में बड़ी भूमिका निभा रहा है, लेकिन नेटो के बारे में ध्यान देने वाली अहम बात ये है कि ये एक रक्षात्मक गठबंधन है, और इसका मक़सद किसी संघर्ष को रोकना है, न कि उसकी आग को और भड़काना.

बाइडेन प्रशासन ने रूस को तकलीफ़ देने वाले प्रतिबंध लगाने के साथ-साथ यूक्रेन को सैन्य मदद देने में भी सफलता हासिल की है. अमेरिका द्वारा यूक्रेन की अपील पर उसे लंबी अवधि के मल्टीपल लॉन्च रॉकेट सिस्टम मुहैया कराने को मंज़ूरी देना, यूक्रेन को अमेरिकी सैन्य मदद में एक बड़ा योगदान साबित हुआ है.

इस दौरान, बाइडेन प्रशासन ने रूस को तकलीफ़ देने वाले प्रतिबंध लगाने के साथ-साथ यूक्रेन को सैन्य मदद देने में भी सफलता हासिल की है. अमेरिका द्वारा यूक्रेन की अपील पर उसे लंबी अवधि के मल्टीपल लॉन्च रॉकेट सिस्टम मुहैया कराने को मंज़ूरी देना, यूक्रेन को अमेरिकी सैन्य मदद में एक बड़ा योगदान साबित हुआ है. हालांकि, अमेरिका ने यूक्रेन को ये रॉकेट उपलब्ध कराने को तभी मंज़ूरी दी, जब यूक्रेन ने ये वादा किया कि इनसे रूस की सीमा के भीतर निशाना नहीं लगाया जाएगा. राष्ट्रपति पुतिन ने चेतावनी दी थी कि अगर ऐसा होता है, तो ये पश्चिमी देशों द्वारा ‘लक्ष्मण रेखा लांघने’ के बराबर होगा. 

ये मल्टीपल लॉन्च रॉकेट सिस्टम, यूक्रेन को अमेरिका से मिलने वाली सुरक्षा संबंधी मदद की 11वीं किस्त है. जिसकी क़ीमत 70 करोड़ डॉलर आंकी जा रही है. इस ताज़ा मदद के साथ ही युद्ध की शुरुआत के बाद से अब तक अमेरिका, यूक्रेन को 5.6 अरब डॉलर (15 जून 2022 तक) की मदद दे चुका है. इसके अलावा, 21 मई को अमेरिकी संसद ने एडिशनल यूक्रेन सप्लीमेंटल एप्रोप्रिएशंस एक्ट को मंज़ूरी दी, जिसे तहत इस संकट से निपटने के लिए अमेरिकी सरकार को 40 अरब डॉलर की रक़म और ख़र्च करने की इजाज़त मिल गई है. इस एक्ट पर अमेरिकी संसद की मुहर के साथ ही, अमेरिकी कांग्रेस द्वारा बार-बार मदद को मंज़ूरी दिए जाने को लेकर जताई जा रही आशंकाएं भी ख़त्म हो गईं. क्योंकि इस एक्ट के पारित हो जाने के बाद यूक्रेन को अमेरिकी मदद का सिलसिला जारी रहेगा.

यूक्रेन को अमेरिकी सहायता

Russia Ukraine War The Help Ukraine Is Getting From Western Countries During The War Is Proving To Be Ineffective
Source: US Department of Defense, Congressional Research Service

अमेरिका-यूरोप के बीच तालमेल

रूस के आक्रमण के ख़िलाफ़ यूक्रेन को मदद देने की कोशिश में पश्चिमी देश एकजुट हो गए हैं. हालांकि, अब तक दी गई मदद बड़ी तेज़ी से ख़त्म हो रही है, जिससे ये संकेत मिल रहे हैं कि यूक्रेन को ज़रूरी सामान की आपूर्ति को और बढ़ाने की ज़रूरत है. अमेरिका द्वारा यूक्रेन को जो नए हथियार मुहैया कराए गए हैं, उनमें 1400 स्टिंगर एंटी एयरक्राफ्ट सिस्टम, 700 स्विचेबल टैक्टिकल अनमैन्ड एरियल सिस्टम 155 मिलीमीटर वाली 108 तोपें और 155 मिलीमीटर तोप के लिए 220,000 गोले और 121 फीनिक्स घोस्ट टैक्टिकल अनमैन्ड एरियल सिस्टम शामिल हैं. इनमें से कई हथियार चलाने के लिए यूक्रेन की सेना को अमेरिका में प्रशिक्षित किए जाने की ज़रूरत है. रूस के हमले के बाद से ही यूक्रेन में अमेरिका के प्रशिक्षण अभियान- साझा बहुराष्ट्रीय प्रशिक्षण समूह-यूक्रेन- को स्थगित कर दिया गया था. हालांकि, अप्रैल 2022 में जब अमेरिका के रक्षा मंत्रालय (DOD) ने अमेरिका और उसके सहयोगी देशों से मिल रहे हथियार चलाने के लिए यूक्रेन के सैनिकों को यूक्रेन से बाहर प्रशिक्षण देने का ऐलान  किया था, तब से ये प्रशिक्षण कार्यक्रम दोबारा शुरू किया गया है. इस बीच, यूरोप द्वारा यूक्रेन को हथियार और गोला-बारूद मुहैया कराने की कोशिशें लगातार जारी रही हैं. अपनी ज़मीन का इस्तेमाल करने देने के मामले में पोलैंड और बाल्टिक देशों ने बहुत दरियादिली दिखाई है; दोनों ही देशों ने अपने यहां नेटो के सैनिक तैनात करने की जगह दी है, और यूक्रेन से भाग रहे लोगों को जाने का रास्ता और संसाधन उपलब्ध कराए हैं. इन्हीं प्रयासों को और आगे बढ़ाते हुए अन्य यूरोपीय देशों ने यूक्रेन से भागकर आए लोगों को अपने यहां पनाह दी है.

इसमें कोई शक नहीं कि यूक्रेन पर रूस के हमले से यूरोप- अटलांटिक सुरक्षा के ढांचे को ख़तरा पैदा हो गया है. इसके बावजूद इस ख़तरे ने अमेरिका और यूरोप की एकता को और मज़बूती दी है. रूस ने यूक्रेन पर अपने हमले का एक कारण नेटो के विस्तार को बताकर इसे जायज़ ठहराया था. हालांकि, युद्ध के चार महीनों के भीतर ही नेटो का विस्तार रोकने की रूस की कोशिशों को तब झटका लगा, जब ऐतिहासिक रूप से निष्पक्ष रहे देशों, डेनमार्क, फिनलैंड और स्वीडन ने नेटो की सदस्यता के लिए आवेदन दिया और यूक्रेन ने यूरोपीय संघ का सदस्य बनने के लिए ‘उम्मीदवार’ का दर्जा हासिल किया. यूक्रेन युद्ध के शुरुआती दिनों में यूरोप और अमेरिका की एकता को रूस पर पलटवार की तैयारी के तौर पर देखा गया था. हालांकि हालिया गतिविधियां ये बताती हैं कि यूक्रेन को पश्चिमी देशों की मदद आक्रामक होने के बजाय रक्षात्मक रूप अख़्तियार कर चुकी है, जिसके तहत ‘क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता’ से समझौते के एवज़ में शांति क़ायम करने की कोशिश की जा रही है. आख़िर में, दोबारा स्थिरता क़ायम करना ही विश्व व्यवस्था की सबसे बड़ी चिंता का विषय बन चुका है.

अगर रूस के तेल और गैस पर निर्भरता ने यूरोपीय संघ द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों का असर कम कर दिया है, तो अमेरिका द्वारा रूस से सीधे टकराव को टालने की कोशिश ने यूक्रेन को उसकी मदद का असर सीमित कर दिया है.

अमेरिका और यूरोप के बीच काफ़ी तालमेल के बाद भी रूस और यूक्रेन को बातचीत के लिए राज़ी कर पाना मुमकिन नहीं हो सका है. इसके उलट युद्ध से हथियारों की होड़ तेज़ हो सकती है. यूक्रेन को तरह तरह के हथियारों से लैस करना असल में हथियारों की होड़ में शामिल होना ही है. इस जंग की मानवीय क़ीमत बहुत अधिक रही है: 15 हज़ार से ज़्यादा मौतें, 60 लाख से अधिक शरणार्थी, 77 लाख लोग अपने देश में बेघर, बड़े पैमाने पर बेरोज़गारी के अलावा, यूक्रेन के मूलभूत ढांचे को इस युद्ध से कम से कम 100 अरब डॉलर का नुक़ना पहुंचा है. वैसे तो इस वक़्त यूक्रेन की विजय की अपेक्षा कोई नहीं कर रहा है. लेकिन, अगर जंग में रूस की जीत होती है, तो ये संकट और बढ़ेगा. पश्चिमी देशों को यूक्रेन को लगातार सुरक्षा मदद देने की योजना पर काम करना होगा, ताकि रूस की सेना को यूक्रेन में और आगे बढ़ने से रोका जा सके.

निष्कर्ष

यूक्रेन युद्ध के लंबे समय तक खिंचने की आशंका है. बढ़ते मानवीय संकट और दुनिया में खाद्य संकट के मंडराते ख़तरे से यही संकेत मिलता है कि यूक्रेन को पश्चिमी देशों द्वारा दी जा रही मदद की विश्वसनीयता दांव पर लगी है. अगर ये युद्ध रुक भी जाता है, तो रूस ने मोटे तौर पर डोनबास क्षेत्र पर अपना क़ब्ज़ा जमा लिया है. इससे रूस को एक सामरिक विजय हासिल हो चुकी है. यूक्रेन के इस क्षेत्र का इस्तेमाल करके रूस को लंबे समय तक गृह युद्ध और छद्म युद्धों के ज़रिए क्षेत्रीय अस्थिरता बनाए रखने का मौक़ा मिल गया है. अगर युद्ध विराम के लिए दोनों पक्षों के बीच बातचीत शुरू भी हो जाती है, तो वो युद्ध में हुए ज़मीन के नफ़ा- नुक़सान पर ही आधारित होगी. यूक्रेन को पश्चिमी देशों की मदद से जुड़ी शर्तों ने ही इस सहयोग के असर को सीमित कर दिया है. अगर रूस के तेल और गैस पर निर्भरता ने यूरोपीय संघ द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों का असर कम कर दिया है, तो अमेरिका द्वारा रूस से सीधे टकराव को टालने की कोशिश ने यूक्रेन को उसकी मदद का असर सीमित कर दिया है.

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