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पहलगाम आतंकी हमले पर रूस की उदासीन प्रतिक्रिया भारत-पाकिस्तान कूटनीति को लेकर उसका नया रुख़ दिखाती है. क्षेत्रीय समीकरणों में बदलाव के बीच रूस अब सतर्कतापूर्ण रवैया अपना रहा है.
Image Source: Getty
रूस-भारत की साझेदारी एक अनूठी भागीदारी मानी जाती है. दोनों देशों के भू-राजनीतिक हितों में समानता की वजह से भारत और रूस के संबंध दीर्घकाल से मधुर रहे हैं. इस दौरान इनमें किसी प्रकार का विवाद भी नहीं दिखा. इसलिए, जब पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों ने पहलगाम में हमला किया, जिसमें 26 नागरिकों की जान चली गई, तो रूस की प्रतिक्रिया उम्मीदों के मुताबिक ही थी. रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने हमले के पीड़ितों के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त की और आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में भारत के साथ सहयोग बढ़ाने के लिए मास्को की प्रतिबद्धता को दोहराया. इसके बाद बाद में रूस की तरफ से जो बयान आए, उनमें भी इसी तरह की भावनाएं व्यक्त की गईं. हालांकि, ये घटना भारत-पाकिस्तान समीकरणों के प्रति रूस के नज़रिए में थोड़े बदलाव का भी संकेत देती है. कई जानकार ये कह रहे हैं कि भारत और पाकिस्तान बीच रूस के कूटनीतिक रुख़ को देखकर ये स्पष्ट संकेत मिल रहा है कि वो तटस्थता का रवैया अपना रहा है. ये माना जा रहा है कि उसके रुख़ में ये बदलाव बढ़ते रूस-पश्चिम विवाद के साथ-साथ क्षेत्रीय भू-राजनीतिक में नए समीकरण उभरने से आया है. वैश्विक स्तर पर हो रहे बदलावों ने रूस के रणनीतिक दृष्टिकोण में पाकिस्तान के महत्व को बढ़ा दिया है.
भारत और पाकिस्तान के बीच हालिया विवाद में रूस की तटस्थता को एक नए घटनाक्रम के रूप में देखना दिलचस्प हो सकता है. अगर इसी तर्क को आगे बढ़ाएं तो दिल्ली-इस्लामाबाद के बीच संघर्ष में रूस के रुख़ में कोई यूक्रेन युद्ध के संबंध में भारत के रवैये से समानता खोज सकता है. रूस-यूक्रेन युद्ध में भारत का रुख़ भी काफ़ी सतर्कतापूर्ण और "शांति के पक्ष में" वाला था. हालांकि, भारत-पाकिस्तान तनाव को लेकर मॉस्को का सावधान और संतुलित रवैया कोई नई बात नहीं है. 2019 में, पुलवामा में आतंकवादी हमले के बाद भी रूस ने इसी तरह का संतुलन बनाया था. पहलगाम हमले के बाद की तरह ही, रूस ने तब भी शब्दों के चयन में सोच-समझकर सावधानी बरती. 28 फरवरी 2019 और 5 मई 2025 को पुतिन-मोदी के फोन कॉल के बाद रूस ने जो औपचारिक बयान जारी किया था, उसके शब्द और उसका निचोड़ करीब-करीब एक जैसा है. दोनों ही पक्षों ने आतंकी हमलों की निंदा की और आतंकवाद के खिलाफ़ मिलकर लड़ने की अपनी प्रतिबद्धता दोहराई. दोनों ही मौकों पर, रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने संघर्ष में मध्यस्थता की पेशकश की. हालांकि, पहलगाम आतंकी हमले के मामले में, उनके पाकिस्तानी समकक्ष, इशाक डार के साथ कोई भी संभावित वार्ता इस शर्त पर टिकी थी कि दोनों पक्ष इस तरह की मध्यस्थता को स्वीकार करने के लिए "तैयार" होंगे. दोनों मामलों में रूस के बयानों में भारत की कार्रवाइयों के लिए स्पष्ट समर्थन और भारत के आत्मरक्षा के अधिकार की स्वीकृति का अभाव था. 2019 के बाद से, रूस ने सीमा पार आतंकवाद से जुड़े मामलों में पाकिस्तान की आलोचना करने से भी परहेज किया है. रूस के बयानों को ध्यान से पढ़ने पर ये भी पता चलता है कि भारत कश्मीर में किसी अज्ञात वैश्विक आतंकवादी समूहों से मुकाबला कर रहा है, जिनका कोई क्षेत्रीय आधार या पाकिस्तानी ज़मीन से कोई संबंध नहीं है. यानी रूस के आधिकारिक बयानों में पाकिस्तान का उल्लेख नहीं होता, फिर चाहे आतंकी हमले में पाकिस्तान की स्पष्ट भूमिका ही क्यों ना हो.
रूस के बयानों को ध्यान से पढ़ने पर ये भी पता चलता है कि भारत कश्मीर में किसी अज्ञात वैश्विक आतंकवादी समूहों से मुकाबला कर रहा है, जिनका कोई क्षेत्रीय आधार या पाकिस्तानी ज़मीन से कोई संबंध नहीं है.
अब सवाल है कि हमेशा भारत के पक्ष में खड़े रहने वाले रूस का रुख़ में ये बदलाव क्यों आया है? भारत-पाकिस्तान विवादों के प्रति रूस के ज़्यादा व्यावहारिक दृष्टिकोण की तरफ बदलाव मॉस्को द्वारा इस्लामाबाद के साथ अपने संबंधों को मजबूत करने की कोशिशों से आया है. सोवियत संघ के विघटन के बाद से, रूस की विदेश नीति अधिक लचीली और व्यवहारिक हो गई है. यही वजह है कि पाकिस्तान के साथ रूस के जुड़ाव के नए रास्ते खुल गए हैं. हालांकि 1990 और 2000 के दशक के दौरान दोनों देशों के उच्च-स्तरीय आदान-प्रदान बहुत कम हुआ था, लेकिन पिछले एक दशक में पाकिस्तान के साथ रूस की सुरक्षा वार्ता का लगातार विस्तार हुआ है. आतंकवाद-रोधी और संयुक्त आतंकवाद-रोधी अभ्यासों पर राजनीतिक परामर्श का महत्व बढ़ता जा रहा है. रूस ने अफ़ग़ानिस्तान में विकास के संदर्भ में पाकिस्तान के साथ अपनी साझेदारी को भी प्राथमिकता दी है. रूस ये मानकर चल रहा है कि पाकिस्तान की सरकार का अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान शासन पर काफ़ी प्रभाव है, इसलिए अगर अफ़ग़ानिस्तान में विकास के काम करने है तो पाकिस्तान को साथ लेकर चलना ज़रूरी है. 22 अप्रैल 2025 को, मास्को ने आतंकवाद-रोधी और अन्य सुरक्षा चुनौतियों पर रूस-पाकिस्तान कार्य समूह की एक बैठक की मेजबानी की. इस बैठक में रूस और पाकिस्तान ने "आतंकवाद के खिलाफ़ लड़ाई में दोनों देशों के दृष्टिकोणों में काफ़ी हद तक समानता" की बात को स्वीकार किया. इसके बाद रूस के उप विदेश मंत्री आंद्रे रुडेंको ने इस्लामाबाद का दौरा किया, जहां उन्होंने अंतर-मंत्रालयी परामर्श की सह-अध्यक्षता की. इस दौरान विभिन्न क्षेत्रों में द्विपक्षीय सहयोग के "सकारात्मक पहलुओं" की समीक्षा की गई. हालांकि, इस सबके बावजूद ये भी सत्य है कि रूस-पाकिस्तान संबंधों को कई संरचनात्मक सीमाओं का सामना करना पड़ रहा है. सबसे बड़ी बाधा तो पाकिस्तान की वित्तीय और राजनीतिक अस्थिरता से लेकर है. भुगतान के मुद्दे और रसद संबंधी बाधाएं भी इसमें शामिल हैं. दोनों पक्षों के बीच नियमित तौर पर राजनीतिक और कूटनीतिक बातें हो रही हैं. अपने आर्थिक संबंधों को उन्नत करने के दोनों देशों के घोषित इरादे के बावजूद, कई महत्वाकांक्षी परियोजनाएं आगे नहीं बढ़ पाई है. इसमें सबसे प्रमुख योजना है, कराची-लाहौर गैस पाइपलाइन, जिसे पाकिस्तान स्ट्रीम गैस पाइपलाइन भी कहा जाता है. द्विपक्षीय व्यापार भी बहुत ही कम है. दोनों देशों के बीच सिर्फ 1 अरब डॉलर से कुछ ही ज़्यादा का व्यापार होता है. ये व्यापार भी मुख्य रूप से रूसी कृषि निर्यात से बना है.
ये सच है कि पाकिस्तान और रूस के बीच सहयोग बढ़ रहा है. सुरक्षा मुद्दों पर उनके बीच तालमेल बन रहा है, लेकिन इससे ये नहीं समझा जाना चाहिए कि रूस के लिए रणनीतिक और सामरिक तौर पर भारत की अहमियत बढ़ी है. भारत अब रूस का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बनकर उभरा है. 2024 में द्विपक्षीय व्यापार रिकॉर्ड 66 अरब डॉलर तक पहुंच गया है. दोनों देशों ने इंटरनेशनल ट्रांजिट और लॉजिस्टिक जैसे क्षेत्रों में काफ़ी प्रगति की है. भारत-रूस के बीच अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा और पूर्वी समुद्री गलियारे जैसे प्रमुख ट्रेड कॉरिडोर पर सहयोग बढ़ा है. भारत अपनी सैन्य खरीदारी में विविधता ला रहा है. इस वजह से द्विपक्षीय सैन्य-तकनीकी साझेदारी में लगातार गिरावट के बावजूद, रूस से भारत अतिरिक्त हथियार और रक्षा प्रणाली खरीदने में रुचि दिखा रहा है. भारत ने रूस से हथियार खरीदे भी हैं. भारत-पाकिस्तान के बीच हालिया संघर्ष के दौरान रूस से मिली एस-400 वायु रक्षा प्रणाली और ब्रह्मोस मिसाइलों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. भारत को पाकिस्तान पर बढ़त दिलाने में मदद की. ऐसे में इस बात की संभावना जताई जा रही है कि भारत और रूस के बीच नए सुरक्षा उपकरणों के सह-उत्पादन की कोशिशों में तेज़ी आएगी.
रूस के हिसाब से भारत और पाकिस्तान के साथ उसका द्विपक्षीय सहयोग किसी तीसरे देश के खिलाफ़ नहीं है.
रूस के हिसाब से भारत और पाकिस्तान के साथ उसका द्विपक्षीय सहयोग किसी तीसरे देश के खिलाफ़ नहीं है. 2019 के पुलवामा हमले के बाद से, रूसी विशेषज्ञों ने तर्क दिया है कि भारत-पाकिस्तान संघर्ष में मास्को किसी एक देश का पक्ष लेने के लिए मज़बूर होने से बचना चाहता है. इसकी बजाय, रूस चाहता है कि शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) जैसे द्विपक्षीय और बहुपक्षीय तंत्रों के माध्यम से दोनों देशों के बीच तनाव को कम करना और विश्वास को बढ़ावा देने की कोशिश करनी चाहिए. भारत और पाकिस्तान के बीच संतुलन बनाने की रूस की कोशिशें 2017 के बाद से और भी जटिल हो गई हैं, जब भारत और पाकिस्तान दोनों ही शंघाई सहयोग संगठन में शामिल हो गए. यूरेशिया में सुरक्षा संबंधी खतरों से निपटने में अपने सामान्य ट्रैक रिकॉर्ड के बावजूद, रूस की कोशिश एससीओ को एक प्रमुख क्षेत्रीय संगठन के रूप में बढ़ावा देने की है. अब चूंकि भारत और पाकिस्तान दोनों ही एससीओ के क्षेत्रीय आतंकवाद विरोधी ढांचे (आरएटीएस) के सदस्य हैं. दोनों ही देश नियमित रूप से एससीओ शांति मिशन अभ्यासों में शामिल है. यही वजह है कि जब भी भारत और पाकिस्तान में कोई नया तनाव पैदा होता है, तब रूस को दोनों के बीच एक नाजुक संतुलन बनाए रखने के लिए मज़बूर होना पड़ता है. भारत और पाकिस्तान के बीच हालिया संघर्ष ने ने इस बात को भी उजागर किया है कि एससीओ की सदस्यता का विस्तार होने से इसकी जटिलता भी बढ़ी है. हालांकि एससीओ को द्विपक्षीय विवादों में दख़ल देने का अधिकार नहीं है, लेकिन भारत और पाकिस्तान के बीच तनावपूर्ण संबंध अनिवार्य रूप से इसके एजेंडे में शामिल होंगे. पहलगाम के बाद के बदले हालात ये स्पष्ट करते हैं कि एससीओ के तहत क्षेत्रीय सुरक्षा पर कोई आम सहमति तब तक नहीं बन सकती जब तक पाकिस्तान सीमा पार आतंकवाद के मुद्दे को प्रभावी ढंग से संबोधित करना शुरू नहीं करता. जब तक ऐसा नहीं होता, तब तक बहुपक्षीय मंच कलह में उलझे रहेंगे, जिससे एससीओ के प्रमुख समर्थक रूस को मुश्किल स्थिति का सामना करना पड़ेगा.
रूस के साथ भारत की प्रमुखता की एक वजह तो ये है कि दोनों देशों के बीच ऐतिहासिक संबंध हैं.
यूरेशिया को स्थिरता और सहयोग के क्षेत्र के रूप में देखने का रूस का नज़रिया भले ही आदर्शवादी क्यों न लगे, लेकिन ये भी एक तथ्य है कि उसकी क्षेत्रीय नीति की ये एक निरंतर विशेषता है. रूस ने इसे लेकर अपनी नीति पर मोटे तौर पर कायम रहा है. व्यापक क्षेत्र के प्रति रूस के दृष्टिकोण में भारत और पाकिस्तान दोनों का अलग-अलग महत्व है. रूस के साथ भारत की प्रमुखता की एक वजह तो ये है कि दोनों देशों के बीच ऐतिहासिक संबंध हैं. रूस को भारत के विशाल बाज़ार की ज़रूरत है. वहीं क्षेत्रीय मामलों पर रूस, भारत और चीन (आरआईसी) के बीच त्रिपक्षीय सहयोग के लिए मॉस्को की लंबे समय से चली आ रही वकालत भी इसका एक कारण है. दूसरी ओर, रूस अब पाकिस्तान को अफ़ग़ानिस्तान पर क्षेत्रीय सहमति बनाने के प्रयासों में एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में देख रहा है. ये एक ऐसा उद्देश्य है, जिसे रूसी कूटनीति 'मॉस्को फॉर्मेट' सहित विभिन्न बहुपक्षीय पहलों के माध्यम से आगे बढ़ाती है. यूरेशिया के लिए रूस की दूरगामी महत्वाकांक्षाएं बताती हैं कि वो भारत और पाकिस्तान के बीच भविष्य के टकरावों में तटस्थ रुख़ बनाए रखना चाहेगा.
अलेस्की ज़खारोव ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटेजिक स्टडीज़ प्रोग्राम में फेलो हैं.
रजोली सिद्धार्थ जयप्रकाश ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटेजिक स्टडीज़ प्रोग्राम में रिसर्च असिस्टेंट हैं.
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Aleksei Zakharov is a Fellow with ORF’s Strategic Studies Programme. His research focuses on the geopolitics and geo-economics of Eurasia and the Indo-Pacific, with particular ...
Read More +Rajoli Siddharth Jayaprakash is a Research Assistant with the ORF Strategic Studies programme, focusing on Russia's domestic politics and economy, Russia's grand strategy, and India-Russia ...
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