Author : Rupali Handa

Published on Nov 24, 2021 Updated 0 Hours ago

शुरुआती चरण में भंडारण योग्य ग्रीन हाइड्रोजन बनाने के लिए ज़रूरी पूंजी की व्यवस्था करने में सरकार और बहुराष्ट्रीय वित्तीय एजेंसियों की भूमिका बहुत अहम रहेगी.

भारत में ग्रीन हाइड्रोजन क्रांति में ग्रीन फाइनेंस की भूमिका
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ग्रीन हाइड्रोजन के लिए यह साल निश्चित रूप से काफ़ी अहम रहा है. ग्रीन हाइड्रोजन एक तरह का हाइड्रोजन इंधन है जिसे जीवाश्मों के बजाय नवीकरणीय उर्जा या अक्षय उर्जा के ज़रिए बनाया जाता है. हाइड्रोजन कांउसिल द्वारा तैयार की गई द हाइड्रोजन इंसाइट्स 2021 रिपोर्ट ( The Hydrogen Insights 2021 report) इस बात की गवाह है. तीस से भी अधिक देशों ने इस साल हाइड्रोजन रोडमैप जारी किया है. उद्योग जगत ने 200 से अधिक हाइड्रोजन परियोजनाओं और इस सेक्टर में भारी निवेश की घोषणा की है. इसके साथ ही दुनिया भर की सरकारों ने इस के लिए 70 अरब डॉलर के पब्लिक फाइनेंस की घोषणा की है. अब उम्मीद की जा रही है कि अगर ये सभी परियोजनाएं पूरी हो जाती हैं तो 2030 तक हाइड्रोजन उत्पादन को लेकर कुल खर्च 300 अरब डॉलर को पार कर जाएगा. यह राशि वैश्विक स्तर पर ऊर्जा क्षेत्र में निवेश के 1.4 फीसदी के बराबर है. भारत में भी हाइड्रोजन को लेकर कुछ इसी तरह की तेज़ी देखी जा रही है. सरकार और उद्योग जगत की इसके प्रति प्रतिबद्धता का पता हाइड्रोजन परियोजनाओं की बढ़ती संख्या से चलता है. इससे इस सेक्टर को सरकार की ओर से मिल रहे समर्थन का भी पता चलता है. हालांकि ये चीज़ें अब भी शुरुआती चरण में हैं, क्योंकि हाइड्रोजन को उसके ग्रीन रूप में उत्पादन करने में आने वाली अत्याधिक लागत के कारण अब भी कई बाधाएं हैं. ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन में 3 डॉलर प्रति किलो से 6.55 डॉलर प्रति किलो की लागत आती है वहीं जीवाश्म ईंधन से इसके उत्पादन में 1.80 डॉलर प्रति किलो की लागत आती है. इसके साथ ही इसकी ढुलाई और वितरण में भी तकनीकी और आर्थिक समस्याएं हैं. यह भी तथ्य है कि तमाम तरह के उद्योगों को हाइड्रोजन से संचालित करने का मामला भी शिशु अवस्था में है. साल 2030 तक भारत का लक्ष्य हर साल क़रीब 10 लाख टन ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन करना है. हालांकि, ग्रीन हाइड्रोजन को तब तक संभावित ईंधन के रूप में स्वीकार नहीं किया जाएगा जब तक कि उसकी कीमत जीवाश्म आधारित हाइड्रोजन के बराबर न आ जाए. भारत के पास ग्रीन हाइड्रोजन की उत्पादन लागत को उचित स्तर पर लाने का एक अच्छा मौका है, क्योंकि भारत में रिन्यूएबल ऊर्जा यानी नवीकरणीय उर्जा या अक्षय उर्जा के उत्पादन की भरपूर क्षमता है.

साल 2030 तक भारत का लक्ष्य हर साल क़रीब 10 लाख टन ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन करना है. हालांकि, ग्रीन हाइड्रोजन को तब तक संभावित ईंधन के रूप में स्वीकार नहीं किया जाएगा जब तक कि उसकी कीमत जीवाश्म आधारित हाइड्रोजन के बराबर न आ जाए. 

शुरुआती चरण में सरकारी सहयोग तंत्र सबसे ज़्यादा ज़रूरी

हालांकि, ये चीज़ें अपने आप नहीं हो जाएंगी. लागत अंतर को पाटने, निम्न लागत वाली रिन्यूएबल क्षमता बनाने और ढुलाई व भंडारण केंद्रों को बढ़ाने के लिए आगे सहयोग की जरूरत है. इस विस्तार में वित्त की जरूरत पैदा होगी और निवेशक इस ऑपरेशन को बनाने और बढ़ाने में अहम भूमिका निभाएंगे. भारत में ग्रीन हाइड्रोजन को अपनाने और इस्तेमाल बढ़ाने की गति में तेज़ी लाने के लिए एक सहयोगात्मक वित्तीय तंत्र (supportive financial mechanism) की जरूरत है. जैसा कि हर उभरते हुए सेक्टर में शुरुआती पहल के लिए सरकार, बहुराष्ट्रीय वित्तीय एजेंसियों और प्रमुख उद्योगपतियों की ओर से वित्तीय सहायता की जरूरत पड़ती है. शुरुआती चरण में सरकारी सहयोग तंत्र सबसे ज़्यादा ज़रूरी है, लेकिन यह मूल्य श्रृंखला यानी वैल्यू चेन में तमाम तरह के उपकरणों को लगाने के लिए ज़रूरी व्यापक निवेश को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं है. ऐसा होने से अर्थव्यवस्था के बढ़ने और लागत में भारी कमी आने का मार्ग खुलेगा. एक मज़बूत हाइड्रोजन बाजार वित्त प्रदाताओं, सरकारी एजेंसियों, तकनीकी प्रदाताओं और एक व्यापक उद्योग के बीच एक सुदृढ़ गठजोड़ की शुरुआत करेगा. इस उभरते इकोसिस्टम में हरित वित्त यानी ग्रीन फाइनेंस एक अहम भूमिका निभा सकता है. यह क्षेत्र के विकास के हेतु वित्तपोषण के लिए उपलब्ध धन को जुटाने और निजी पूंजी के उपयोग में पारदर्शिता सुनिश्चित करने और निवेशकों में विश्वास पैदा करने में मदद कर सकता है. हालांकि, हम पहले से ही इस सेक्टर में ठीक-ठाक निजी निवेश देख रहे हैं, लेकिन इसका नेतृत्व विशिष्ट नीतियों, सब्सिडी, लक्ष्यों और रणनीतियों के रूप में सरकारों द्वारा किया जा रहा है. अन्य सभी उद्योगों की तरह ग्रीन हाइड्रोजन सेक्टर भी सरकार पर अत्याधिक निर्भर रहेगा. ऐसा होने पर ही इस सेक्टर के विकास में निजी वित्त पोषण का रास्ता खुलेगा, क्योंकि निजी क्षेत्र उच्च रिटर्न और न्यूनतम जोखिम वाले क्षेत्रों में ही निवेश करने के लिए अधिक इच्छुक होते हैं.

सरकार पहले से ही निवेश आकर्षित करने के लिए एक सक्षम पारिस्थितिकी तंत्र बनाने में लगी हुई है. उसने इस साल के आम बजट में हाइड्रोजन में शोध व विकास के लिए 25 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं. सरकार का लक्ष्य 2050 तक अपने तीन-चौथाई हाइड्रोजन का उत्पादन रिन्यूएबल स्रोतों से करना है. 

अभी भी प्रारंभिक अवस्था में है यह सेक्टर

सरकार पहले से ही निवेश आकर्षित करने के लिए एक सक्षम पारिस्थितिकी तंत्र बनाने में लगी हुई है. उसने इस साल के आम बजट में हाइड्रोजन में शोध व विकास के लिए 25 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं. सरकार का लक्ष्य 2050 तक अपने तीन-चौथाई हाइड्रोजन का उत्पादन रिन्यूएबल स्रोतों से करना है. सरकार हरित हाइड्रोजन को तेज़ी से बढ़ाने हेतु इलेक्ट्रोलाइजर निर्माण के लिए प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेन्टिव (पीएलआई) स्कीम लाने की भी तैयारी कर रही है. पेरिस समझौते के तहत बहुपक्षीय विकास बैंक और वित्तीय तंत्र इस वक्त सरकार के प्रयासों में पूरक बनकर इस बदलाव में बड़ी भूमिका निभा सकते हैं. यह उन प्रमुख कारकों में से एक होगा जो इस क्षेत्र में भारी निवेश लाने में मदद कर सकता है. यह सेक्टर अभी भी प्रारंभिक अवस्था में है. हालांकि, विकसित देशों को अभी भी प्रति साल 100 अरब अमेरिकी डॉलर की अपनी प्रारंभिक प्रतिबद्धता को पूरा करना है. आगे सार्वजनिक और निजी वित्तीय साधनों का संयोजन महत्वपूर्ण और विशिष्ट लाभ प्रदान करने के लिए ज़रूरी होगा. उदाहरण के लिए अनुदान से इनोवेशन या शुरुआती चरण की परियोजनाओं को सहयोग मिल सकता है. इक्विटी स्वामित्व के जरिए उद्यम पूंजीपति अहम विकास क्षमता वाली परियोजनाओं में निवेश कर अग्रणी बन सकते हैं. वित्त के अन्य साधनों में प्रोजेक्ट वित्त पोषण और ग्रीन बॉन्ड्स शामिल किए जा सकते हैं. स्टैंडअलोन प्रोजेक्ट फाइनेंसिंग यानी अलग-अलग परियोजनाओं के मूल्यांकन के आधार पर ज़रूरत आधारित निवेश पर टिकी परियोजनाओं के लिए भंडारण योग्य ग्रीन हाइड्रोजन बनाना महत्वपूर्ण होता है और इस संबंध में ऑफटेक समझौते निवेशकों के बीच भरोसा बढ़ाने में मददगार साबित हो सकते हैं. ग्रीन बॉन्ड्स इन परियोजनाओं के लिए सस्ता वैश्विक वित्त जुटाने में मदद कर सकते हैं. इससे इन परियोजनाओं के लिए तरलता का एक नया क्षेत्र बन जाएगा. हाइड्रोजन उपकरणों की लागत कम करने का एक विकल्प और भी है. इसके लिए उपकरणों की आपूर्ति करने वालों के साथ लीजिंग या भुगतान-प्रति-उपयोग (leasing or pay-per-use) व्यवस्था अपनाई जा सकती है. कार्बन पर शुल्क लगाने से भी हरित हाइड्रोजन परियोजनाओं को फ़ायदा होगा. वित्तीय प्रोत्साहन जैसे हरित हाइड्रोजन वैव्यू चेन के विभिन्न स्तर पर टैक्स छूट दिए जाने से उच्च पूंजी लागत के कारण परियोजना से लाभ कमाने पर पड़ने वाले असर को कम किया जा सकता है. इसके अलावा तकनीक के आदान-प्रदान और सार्वजनिक-निजी साझेदारी में शोध और विकास के साथ सिनर्जी व पूरकता का फ़ायदा उठाकर भी लागत को कम किया जा सकता है. इंडिया हाइड्रोजन एलायंस (India Hydrogen Alliance), उद्योगों के नेतृत्व में बना एक गठबंधन है. इसने राष्ट्रीय स्तर पर काम करने वाले एक नेशनल हाइड्रोजन थीम्ड एनर्जी ट्रांजिशन फंड (Hydrogen-themed Energy Transition Fund) बनाने का सुझाव दिया है. इसमें विभिन्न देशों, बहुराष्ट्रीय एजेंसियों और हरित ऊर्जा कोष को सह वित्तपोषक के रूप में साझेदार बनाने को भी कहा गया है. इससे एक निश्चित स्तर पर राष्ट्रीय हाइड्रोजन परियोजनाओं के विकास के लिए 2030 तक एक अरब डॉलर की राशि इकट्ठा की जा सकेगी. इन परियोजनाओं को वित्तीय और गैर वित्तीय प्रोत्साहनों का भी लाभ मिलेगा. साथ ही भारत में हाइड्रोजन सप्लाई चेन बनाने में निवेश करने वाली बड़ी प्रोजेक्ट कंसोर्टियम के लिए यह कोष उपलब्ध रहेगा. इन वित्तीय साधनों से बड़ी परियोजनाएं शुरू करने और एक उचित नियामकीय ढांचे में उद्योग के विकास में सहायता मिलेगी. नियामकीय ढांचे का निर्माण सरकार द्वारा किया जा रहा है.

ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन से लेकर अंतिम उपयोग तक एक विशाल मूल्य शृंखला है. इसके हर मोड़ पर अपनी तरह की समस्याएं और जोखिम हैं. इसलिए, इन जोखिमों और चिंताओं का समाधान वित्त पोषण तंत्र और साधनों में निकालना और एकीकृत करना महत्वपूर्ण है. 

ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन से लेकर अंतिम उपयोग तक एक विशाल मूल्य शृंखला है. इसके हर मोड़ पर अपनी तरह की समस्याएं और जोखिम हैं. इसलिए, इन जोखिमों और चिंताओं का समाधान वित्त पोषण तंत्र और साधनों में निकालना और एकीकृत करना महत्वपूर्ण है. कुल मिलाकर शुरुआती चरण में आवश्यक पूंजी जुटाने के लिए सरकार और बहुपक्षीय वित्त पोषण एजेंसियों की भूमिका महत्वपूर्ण होगी. इसके बाद जब इस उद्योग में एक उचित समय सीमा के भीतर रिटर्न का विश्वसनीय ट्रैक रिकॉर्ड दिखने लगेगा तो निजी निवेशक इसकी पूंजी संरचना में प्रवेश करेंगे. यह प्रवेश इक्विटी वित्तपोषण, परिसंपत्ति-आधारित वित्तपोषण या फिर संस्थागत निवेशकों के लिए विभिन्न क्रेडिट इंस्ट्रूमेंट्स के संभावित प्रतिभूतिकरण के रूप में होगी.

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