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भू-राजनीतिक तनावों के बावजूद, रियो सम्मेलन ने BRICS को विकास आधारित साझेदारी का नया मार्गदर्शक बना दिया है.
जुलाई 2025 में जिस समय दुनिया की अग्रणी अर्थव्यवस्थाएं 17वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के लिए रियो डी जेनेरो में इकट्ठा हुईं, उस समय तनाव चरम पर था और उम्मीदें बहुत कम थीं. शिखर सम्मेलन की शुरुआत के कुछ हफ्ते पहले से संगठन के विस्तार, रणनीतिक बंटवारे और भू-राजनीतिक तनाव को कम करने को लेकर चर्चा हावी रही. रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन अपने ख़िलाफ़ ICC की तरफ से जारी गिरफ्तारी के वारंट की वजह से शिखर सम्मेलन से दूर रहे; चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिए शामिल होने का फ़ैसला लिया, वहीं भारत और ब्राज़ील संगठन में शामिल होने की इच्छा रखने वाले देशों पर फैसला लेने में तेज़ी लाने को लेकर उदासीन बने रहे. इन मतभेदों ने एक ऐसे गठबंधन की कमज़ोरी को उजागर किया है जो आम सहमति से आगे बढ़ता है, गैर-बाध्यकारी है और अक्सर महत्वाकांक्षा एवं निरंतरता के बीच फंसा रहता है.
बारी के आधार पर शिखर सम्मेलन की अध्यक्षता करने वाले ब्राज़ील ने संवाद को नई दिशा दी और स्थिरता, समावेशी विकास एवं जलवायु नेतृत्व के इर्द-गिर्द शिखर सम्मेलन की पहचान को केंद्रित किया.
फिर भी, एकता में दरार की पृष्ठभूमि के बावजूद इस शिखर सम्मेलन ने नए सिरे से लक्ष्य की भावना के साथ विश्लेषकों को हैरान कर दिया. बारी के आधार पर शिखर सम्मेलन की अध्यक्षता करने वाले ब्राज़ील ने संवाद को नई दिशा दी और स्थिरता, समावेशी विकास एवं जलवायु नेतृत्व के इर्द-गिर्द शिखर सम्मेलन की पहचान को केंद्रित किया. “अधिक समावेशी एवं सतत शासन व्यवस्था के लिए विकासशील देशों के बीच सहयोग को मज़बूती” की थीम के तहत रियो घोषणापत्र न केवल एक और कूटनीतिक दस्तावेज़ बल्कि एक महत्वपूर्ण मोड़ के रूप में भी उभरा जो ब्रिक्स को एक प्रतिक्रियावादी गुट से एक सक्रिय विकास गठबंधन में बदल सकता है.
रियो शिखर सम्मेलन का सबसे महत्वपूर्ण आकर्षण था जलवायु वित्त को लेकर नेताओं की रूप-रेखा के घोषणापत्र को अपनाना. ये जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र रूप-रेखा सम्मेलन (UNFCCC) और पेरिस समझौते के तहत अपनी तरह की पहली सामूहिक ब्रिक्स प्रतिबद्धता है. घोषणापत्र में जलवायु से जुड़े निवेश के लिए 2035 तक सालाना 300 अरब अमेरिकी डॉलर इकट्ठा करने का प्रस्ताव किया गया है और स्पष्ट रूप से ये सुनिश्चित करने पर ज़ोर दिया गया है कि ऐसा वित्त “सुलभ, समय पर और रियायती” हो. ऐसा करके शिखर सम्मेलन ने उच्च सीमा, धीमी गति से वितरण और भारी कर्ज़ की स्थिति को लेकर विकासशील देशों की पुरानी चिंताओं का सीधा जवाब दिया है जो मौजूदा वैश्विक जलवायु वित्त के तंत्र की विशेषता रही है.
इस साल की शुरुआत में ब्राज़ील ने ट्रॉपिकल फॉरेस्ट फॉरएवर फंड (TFFF) की शुरुआत की जो कि एक परिणाम आधारित पहल है. उम्मीद जताई जा रही है कि इस पहल के ज़रिए वन के मामले में समृद्ध जो देश वनों की कटाई 0.5 प्रतिशत के नीचे बरकरार रखेंगे, वो प्रति वर्ष 4 अरब अमेरिकी डॉलर जुटा सकेंगे. ब्राज़ील के ही शहर बेलेम में इस साल के अंत में COP30 (संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन) आयोजित होने वाला है. ये कदम रणनीतिक रूप से ब्राज़ील को जलवायु कूटनीति और विकासशील देशों के बीच सहयोग के केंद्र में स्थापित करता है. उल्लेखनीय है कि TFFF की सफलता दान की पूंजी को आकर्षित करने पर निर्भर करती है लेकिन रियो में कोई विशेष प्रतिबद्धता नहीं जताई गई. इस तरह कार्यान्वयन और राजनीतिक इच्छाशक्ति को लेकर सवाल बने हुए हैं. शिखर सम्मेलन के दौरान ब्रिक्स बहुपक्षीय गारंटी (BMG) सुविधा की भी शुरुआत की गई जिसका लक्ष्य विकासशील देशों में बुनियादी ढांचे की सतत परियोजनाओं में निजी क्षेत्र के निवेश को जोखिम मुक्त करना है.
शिखर सम्मेलन के दौरान ब्रिक्स बहुपक्षीय गारंटी (BMG) सुविधा की भी शुरुआत की गई जिसका लक्ष्य विकासशील देशों में बुनियादी ढांचे की सतत परियोजनाओं में निजी क्षेत्र के निवेश को जोखिम मुक्त करना है.
वित्त के आगे, ब्राज़ील ने ठोस संस्थागत तंत्र के माध्यम से स्थिरता को संचालित करने पर ध्यान केंद्रित किया. शिखर सम्मेलन के दौरान ब्रिक्स जलवायु अनुसंधान मंच की स्थापना की घोषणा की गई ताकि आंकड़ों को सुसंगत बनाया जा सके, सर्वश्रेष्ठ पद्धतियों को साझा किया जा सके और ज्वाइंट मॉडलिंग (दो या अधिक संबंधित डेटासेट का एक समय विश्लेषण) को आगे बढ़ाया जा सके. व्यापार, जलवायु परिवर्तन और सतत विकास पर एक प्रयोगशाला की भी शुरुआत की गई जिसका उद्देश्य उभरती हरित व्यापार की बाधाओं- विशेष रूप से विकसित देशों के द्वारा थोपे गए कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मेकेनिज़्म (CBAM)- की पड़ताल करना और विकास पर उनके प्रभाव की समीक्षा करना है. इसके अलावा, सतत सरकारी ख़रीद पर ब्रिक्स सेमिनार श्रृंखला निर्धारित की गई है जो सार्वजनिक ख़रीद की नीतियों में ESG (पर्यावरण, सामाजिक और शासन व्यवस्था) के मानदंडों को मुख्यधारा में लाएगी. इसके समानांतर सामाजिक रूप से निर्धारित बीमारियों के उन्मूलन के लिए एक साझेदारी की शुरुआत की गई ताकि स्वास्थ्य और विकास से जुड़ी नीतियों के बीच की दूरी को ख़त्म किया जा सके. ये पहल जलवायु से जुड़ी कमज़ोरियों, ग़रीबी और बीमारी के बोझ के बीच संबंध को स्वीकार करती है.
रियो शिखर सम्मेलन ने वैश्विक शासन व्यवस्था के सबसे परिवर्तनकारी क्षेत्रों में से एक- आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI)- पर भी चर्चा की. ऐसे भू-राजनीतिक माहौल में जहां AI को लेकर बहस तेज़ी से अमेरिका के वाणिज्यिक वर्चस्व और चीन के केंद्रीकृत डिजिटल नियंत्रण के बीच तय हो रही है, वहां ब्रिक्स ने एक तीसरे रास्ते की शुरुआत की है जो विकास पर आधारित है. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की वैश्विक शासन व्यवस्था के बारे में ब्रिक्स के नेताओं के बयान में इस बात पर ज़ोर दिया गया कि AI समावेशी विकास को आगे बढ़ाने, डिजिटल असमानताओं को कम करने और बहुपक्षीय, संयुक्त राष्ट्र के नेतृत्व वाली रूप-रेखा के माध्यम से विकासशील देशों को सशक्त बनाने वाले साधन के रूप में काम करे.
ये दृष्टिकोण स्पष्ट रूप से AI को सतत विकास लक्ष्यों (SDG) से जोड़ता है जैसे कि डिजिटल लर्निंग प्लैटफॉर्म तक न्यायसंगत पहुंच के माध्यम से SDG 4 (गुणवत्तापूर्ण शिक्षा), छोटे और मध्यम उद्यमों (SME) में उत्पादकता बढ़ाने वाले ऑटोमेशन के ज़रिए SDG 8 (अच्छा काम और आर्थिक विकास) और क्षमता निर्माण एवं स्थानीय स्तर पर इनोवेशन को प्राथमिकता देकर SDG 10 (असमानता में कमी). वैसे तो ब्रिक्स नेताओं का बयान उच्च-स्तरीय है और इसमें नियामकीय विवरण की कमी है लेकिन ये ब्रिक्स में उस बढ़ती आम सहमति को दर्शाता है कि तकनीक को केवल बाज़ार तंत्र या रणनीतिक प्रतिस्पर्धा द्वारा नियंत्रित नहीं किया जाना चाहिए बल्कि स्थिरता, मानवाधिकार एवं न्यायसंगत विकास की व्यापक अनिवार्यताओं से इसका नियंत्रण हो.
रियो शिखर सम्मेलन का इनोवेशन 2024 में रूस के कज़ान घोषणापत्र में रखी गई नींव पर आधारित है जिसके तहत जलवायु एवं सतत विकास विकास पर संपर्क समूह का निर्माण तो किया गया था लेकिन स्पष्ट समय सीमा या फंडिंग के स्रोत की कमी थी. साथ मिलकर हाल के दिनों की ये पहल ब्रिक्स को पश्चिमी देशों के नेतृत्व वाले संस्थानों के आलोचक से कहीं अधिक के रूप में स्थापित करती हैं. ये पहल संकेत देती हैं कि ब्रिक्स हरित विकास और समानता पर आधारित समानांतर ढांचे का निर्माण करने वाले संगठन के रूप में उभरा है.
अपनी महत्वाकांक्षाओं के बावजूद रियो 2025 ने ब्रिक्स के अनसुलझे विरोधाभासों को भी उजागर कर दिया. रियो घोषणापत्र में चरणबद्ध ढंग से जीवाश्म ईंधन को समाप्त करने के बारे में कोई प्रतिबद्धता नहीं व्यक्त की गई. इसके बदले इसने न्यायसंगत और समावेशी ऊर्जा परिवर्तन में इसकी निरंतर भूमिका की पुष्टि की. इसके अलावा, TFFF और BMG जैसी मुख्य पहल के लिए फंडिंग का इंतज़ाम नहीं किया गया और ये पूरी तरह से अनिर्धारित दाता के योगदान पर निर्भर है. निश्चित समय सीमा, फंड के प्रवाह या रूप-रेखा की निगरानी का नहीं होना, अपने प्रस्तावों को लागू करने की इस संगठन की क्षमता के बारे में चिंताएं पैदा करता है.
2026 में भारत को ब्रिक्स की अध्यक्षता ऐसे समय में मिल रही है जब वैश्विक समुदाय अपने 2030 के SDG लक्ष्यों से काफी पीछे चल रहा है और नए सिरे से बहुपक्षीय अभियान की तत्काल आवश्यकता है.
इसके बावजूद, रियो शिखर सम्मेलन केवल नैरेटिव बनाने से अधिक साबित हो सकता है. ये ब्रिक्स के लिए न केवल पश्चिमी देशों के प्रतिस्पर्धी के रूप में काम करने वाले संगठन का आधार तैयार करता है बल्कि विकासशील देशों के बीच सहयोग के रूप में रचनात्मक इंजन का भी काम करता है. संकेतों से अधिक ये सम्मेलन इस संगठन की काम-काज की शैली में बदलाव के बारे में बताता है. अपने सहयोग के स्तंभों को SDG से जोड़कर ब्रिक्स व्यापक राजनीतिक घोषणापत्रों से आगे विषयगत, मापनीय और अनुकरणीय विकास का मॉडल बनाने की तरफ बढ़ रहा है. ये ऐसी चीज़ है जिनकी विकासशील देशों को सख्त ज़रूरत है.
2026 में भारत को ब्रिक्स की अध्यक्षता ऐसे समय में मिल रही है जब वैश्विक समुदाय अपने 2030 के SDG लक्ष्यों से काफी पीछे चल रहा है और नए सिरे से बहुपक्षीय अभियान की तत्काल आवश्यकता है. इस पृष्ठभूमि में भारत को मिली अध्यक्षता ब्रिक्स के इस दावे की महत्वपूर्ण परीक्षा है कि वो एक भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धी से कहीं आगे बढ़कर विकास पर आधारित एक गठबंधन है जो कार्यान्वयन की उन खामियों को भरने में सक्षम है जिन्हें पाटने में दूसरे मंचों को संघर्ष करना पड़ा है. 2023 में G20 की अध्यक्षता के दौरान हासिल संस्थागत विश्वास और मापनीय (स्केलेबल) डिजिटल समाधानों के लिए अपनी प्रतिष्ठा के आधार पर भारत रियो की प्रतिबद्धताओं को आकांक्षा से व्यवहार तक ले जाने के लिए अच्छी स्थिति में है. इस तरह वो दिखा सकता है कि कैसे विकासशील देशों के बीच सहयोग जलवायु कार्रवाई, ग़रीबी में कमी और समावेशी विकास की दिशा में प्रगति को तेज़ कर सकता है.
यदि भारत रियो के एजेंडा को स्पष्ट रूप से लोगों के सामने रखने के लिए ब्रिक्स की सामूहिक वित्तीय ताकत, वैज्ञानिक क्षमता और जनसंख्या से जुड़े महत्व का उपयोग कर सकता है- संसाधनों, समय सीमा और परिणामों पर निगरानी रखते हुए- तो रियो 2025 को उस क्षण के रूप में याद किया जा सकता है जब ब्रिक्स SDG को हासिल करने के लिए एक विश्वसनीय इंजन के रूप में बदल गया. हालांकि ऐसा करने में विफलता इस पहल को महत्वाकांक्षी लेकिन पूरा करने में नाकाम बहुपक्षीय प्रयासों की बढ़ती सूची में डाल देगी और इस तरह एक बार फिर वैश्विक विकास के वादों और ज़मीनी वास्तविकताओं के बीच बढ़ती खाई के बारे में बताएगी.
सौम्य भौमिक ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के सेंटर फॉर न्यू इकोनॉमिक डिप्लोमेसी (CNED) में वर्ल्ड इकोनॉमीज़ एंड सस्टेनेबिलिटी में फेलो और लीड हैं.
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Soumya Bhowmick is a Fellow and Lead, World Economies and Sustainability at the Centre for New Economic Diplomacy (CNED) at Observer Research Foundation (ORF). He ...
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