Published on Oct 06, 2022 Updated 0 Hours ago

समाज के आर्थिक रूप से कमज़ोर तबकों को शहरी क्षेत्रों में किराये के ऐसे हाउसिंग कॉम्प्लेक्सों तक पहुंच मुहैया कराने की ज़रूरत है जो सुरक्षित और वहनीय हों.

‘भारत के गैर-स्वामित्व वाले आवासीय योजना पर पुनर्विचार की आवश्यकता’

हाल में कोविड-19 महामारी के चलते लगे लॉकडाउन के नतीजतन बड़ी संख्या में शहरी प्रवासियों ने गांवों का रुख़ किया. शहरी प्रवासियों की इस हृदय-विदारक पीड़ा ने शहरी क्षेत्रों में सुरक्षित और वहनीय आवासन तक पहुंच की गहरे तक पैठी समस्या को उजागर किया. आवासन के स्वामित्व को बढ़ावा देना अत्यंत महत्वपूर्ण है. हालांकि, गैर-स्वामित्व आवासन भी शहरी क्षेत्रों के लिए उतना ही आवश्यक और व्यावहारिक है. देश भर में यह देखा गया है कि आवासीय नीतियों का झुकाव स्वामित्व-आधारित आवासन की ओर होता है. हालांकि, कुछ वैकल्पिक और उतने ही प्रासंगिक संपत्ति-धारण अधिकार (टेन्योर) हैं, जिन पर ध्यान देने की ज़रूरत है.

प्रवासन और आर्थिक गतिविधियां आपस में गुंथी हुई हैं. लोगों की क्षैतिज और ऊर्ध्व दोनों तरह की गतिशीलता के लिए गैर-स्वामित्व आवासन बेहद अहम है

प्रवासन और आर्थिक गतिविधियां आपस में गुंथी हुई हैं. लोगों की क्षैतिज और ऊर्ध्व दोनों तरह की गतिशीलता के लिए गैर-स्वामित्व आवासन बेहद अहम है, क्योंकि यह उन्हें बिना ख़रीदे रहने की उपयुक्त जगह तक पहुंच मुहैया कराता है. इसलिए, किराये के आवासन की आपूर्ति पर ज़ोर देना अत्यंत महत्वपूर्ण है. यह सबके लिए आवास के उद्देश्य में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.

किराये के वहनीय हाउसिंग कॉम्प्लेक्स

शहरी क्षेत्र, निर्माण और औद्योगिक क्षेत्र में काम करने वाले विशेष मौसम में यहां काम की तलाश में आने वाले शहरी प्रवासियों को काफी आकर्षित करते हैं. ऐसे ज़्यादातर क्षेत्र एक ही जगह इकट्ठे में पाये जाते हैं, और किराये के घरों तक पहुंच की ज़रूरत इन लोगों को होती है. बहुत से प्रवासी कामगार और शहरी ग़रीब झुग्गी बस्तियों, अनौपचारिक बसावटों, और शहर के परिधीय क्षेत्रों में रहते हैं. समुचित आवासीय आपूर्ति के अभाव में, बड़े पैमाने पर ख़राब ढंग से नियोजित, निम्न गुणवत्ता के आवास कुकुरमुत्ते की तरह फैल रहे हैं. स्थानीय सरकारों को अक्सर इन इलाक़ों को बुनियादी नागरिक अवसंरचना मुहैया कराने के लिए जूझना पड़ता है, जिससे ख़राब आवासीय स्थितियां पैदा होती हैं. प्रवासी अमूमन अपनी आजीविका की जगह और अपने सामुदायिक नेटवर्क के आसपास रहना पंसद करते हैं. इस तबके की ज़रूरतें पूरी करने के लिए कामकाज की जगह के क़रीब वहनीय दरों पर किराये के आवास की आवश्यकता होती है.

आवासन एवं शहरी मामलों के मंत्रालय (MoHUA) ने किराये के वहनीय हाउसिंग कॉम्प्लेक्सों (एआरएचसी) की शुरुआत की है, जो प्रधानमंत्री आवास योजना-शहरी के तहत एक उप-योजना है.

आवासन एवं शहरी मामलों के मंत्रालय (MoHUA) ने किराये के वहनीय हाउसिंग कॉम्प्लेक्सों (एआरएचसी) की शुरुआत की है, जो प्रधानमंत्री आवास योजना-शहरी के तहत एक उप-योजना है. एआरएचसी के लक्षित समूहों में शहरी प्रवासी, आर्थिक रूप से कमज़ोर तबके, और निम्न-आय वाले समूह आते हैं. सरकार विशेष प्रावधानों को सुनिश्चित करके एआरएचसी को बढ़ावा दे रही है. इसमें बिना अतिरिक्त भुगतान के 50 प्रतिशत अतिरिक्त एफएसआई, एकल खिड़की मंज़ूरी, मौजूदा किराया नियंत्रण क़ानूनों में नरमी इत्यादि शामिल हैं.

सरकार ने एआरएचसी योजना लागू करने के दो मॉडल डिजाइन किये हैं.

  • मॉडल 1 – अभी ख़ाली पड़े सरकारी-वित्तपोषित आवासों का इस्तेमाल सार्वजनिक निजी भागीदारी के ज़रिये या सरकारी एजेंसियों द्वारा एआरएचसी में बदलने के लिए करना

जैसा कि नाम से ज़ाहिर है, सरकार ख़ाली पड़े घरों की मौजूदा तादाद का इस्तेमाल गैर-स्वामित्व आवासन की मांग पूरी करने के लिए करना चाहती है. उसने देश भर में सरकारी एजेंसियों/उद्यमों के स्वामित्व वाले 80,000 से ज़्यादा ख़ाली घरों को चिह्नित किया है. लक्ष्य यह है कि इन घरों की मरम्मत की जाए और बिजली, पानी, सीवर, साफ़-सफ़ाई, सड़क और संबंधित कामों जैसी बुनियादी ढांचा संबंधी कमियों को दूर किया जाए. एआरएचसी के प्रबंधन में सरकारी और निजी दोनों एजेंसियां भागीदार बन सकती हैं. यह पहल किराये के आवासन क्षेत्र में निवेश के अवसरों के लिए कोशिश करना और उद्यमिता को प्रोत्साहित करना चाहती है. 

योजना के मॉडल-1 के तहत राज्य/केंद्रशासित प्रदेश-वार प्रगति

Sr. No. State No. of Houses available for ARHCs Converted into ARHCs  Conversion %
1 Arunachal Pradesh 752 0 0
2 Chandigarh 2,195 2,195 100
3 Delhi 29,112 0 0
4 Gujarat 4,414 2,467 56
5 Haryana 2,545 0 0
6 Himachal Pradesh 314 0 0
7 Madhya Pradesh 364 0 0
8 Maharashtra 32,345 0 0
9 Nagaland 664 0 0
10 Rajasthan 4,884 480 10
11 Uttar Pradesh 5,232 0 0
12 Uttarakhand 377 0 0
13 UT of Jammu & Kashmir 336 336 100
TOTAL 83,534 5,478 7

Source: Ministry of Housing and Urban Affairs- September 2022

उपरोक्त तालिका से, निम्नलिखित निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं:

  1. लगभग 108,000 सरकार-निर्मित ख़ाली मकान हैं, जिनमें से 83,000 घरों को एआरएचसी में बदलने के लिए चिह्नित किया गया. फिर भी योजना के मॉडल-1 ने धीमी प्रगति (7 प्रतिशत) दिखायी है. यह चिह्नित ख़ाली मकानों को एआरएचसी में नहीं बदले जा सकने की व्यवस्थागत विफलता को उजागर करता है.
  1. 36 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में से केवल 13 इस योजना में शामिल हुए हैं. बाकी के पास ख़ाली मकान नहीं हो सकते हैं या वे इस योजना में भागीदारी नहीं कर रहे हैं. जिन राज्यों के पास भागीदारी के लिए ख़ाली घर हैं, उनके लिए ‘पुल एंड पुश मेकेनिज्म’ को प्रोत्साहित करने की तुरंत ज़रूरत है.
  1. 7 प्रतिशत की परिवर्तन दर भी पूरी तस्वीर पेश नहीं करती. इससे यह पता नहीं चलता कि परिवर्तित घरों में से कितनों में लोग रह रहे हैं.
  • मॉडल-2 : सरकारी या निजी संस्थाओं द्वारा अपनी ज़मीन पर एआरएचसी का निर्माण, संचालन और रख-रखाव

यह मॉडल सरकारी और निजी एजेंसियों द्वारा किराये के आवासन के निर्माण को बढ़ावा देना चाहता है. इसका उद्देश्य मॉडल-1 के अतिरिक्त और उससे अधिक आने वाली मांग पूरी करने के लिए किराये के आवासन की आपूर्ति बढ़ाना है. यह किराये के आवासन की आपूर्ति में सरकारी और निजी संस्थाओं की अग्र-सक्रिय भागीदारी को बढ़ावा देता है. यह एआरएचसी विकसित करने के वास्ते अपनी ख़ाली पड़ी ज़मीन का कार्यकुशलतापूर्वक इस्तेमाल करने के लिए निजी व सरकारी संस्थाओं को प्रोत्साहित करके, किराये के आवासन क्षेत्र में नये निवेश अवसरों को प्रेरित करेगा और उद्यमिता को बढ़ावा देगा. सरकार ने कई तरह के प्रोत्साहन दिये हैं, जैसे – इन गतिविधियों से हुए किसी लाभ पर आयकर और जीएसटी से छूट, प्रोजेक्ट फाइनेंस, क़र्ज़ के लिए निम्न ब्याज दरों की पेशकश इत्यादि.

योजना के मॉडल-2 के तहत राज्य/केंद्रशासित प्रदेश-वार प्रगति

Sr. No. Name of state Total Units
1 Assam 2,222
2 Chhattisgarh 2,222
3 Gujarat 453
4 Tamil Nadu 58,386
5 Telangana 14,490
6 Uttar Pradesh 1,112
Total 78,885

Source: PIB Delhi, March 2022

उपरोक्त आंकड़े निम्नलिखित रुझानों को दिखाते हैं :

  1. केवल छह राज्य हैं जिन्होंने मॉडल-2 के तहत नतीजे दिखाये हैं. ज़्यादातर राज्य और केंद्रशासित प्रदेश इस योजना में भागीदारी नहीं कर रहे हैं.
  1. 92 प्रतिशत आवासन आपूर्ति तमिलनाडु और तेलंगाना से आती है. अगर हम इनके योगदान को घटा दें, तो मॉडल-2 के तहत अन्य राज्यों द्वारा केवल 6000 घर बनाये जा रहे हैं. अन्य राज्यों ने इस योजना में भागीदारी तो की है, लेकिन वे अपनी पूरी क्षमता का इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं. देश के सभी राज्यों द्वारा सक्रिय भागीदारी किये जाने और पूर्ण क्षमता का इस्तेमाल किये जाने की ज़रूरत है.
  1. इसके अलावा, इस तरह के जो घर बनाये जायेंगे, उनमें से ज़्यादातर को बाज़ार में आने में वर्षों लगेंगे.

आगे की राह

सरकार ने वहनीय गैर-स्वामित्व आवासन की ज़रूरत को पहचाना और उपयुक्त नीतियां विकसित कीं. इसने एफएआर, एफएसआई, आयकर व जीएसटी से छूट, एकल-खिड़की मंज़ूरी जैसे कई प्रोत्साहन मुहैया कराये. हालांकि, जो मौजूदा नीति है, वह किराये के आवासन से जुड़ी एकदम बुनियादी समस्याओं पर ध्यान नहीं देती. मॉडल-1 में, सरकार को निर्माण की गुणवत्ता, ट्रंक इंफ्रास्ट्रक्चर और नगरपालिका सेवाओं की समस्याओं का तुरंत निवारण करना होगा. मॉडल-2 को एआरएचसी विकसित करने के लिए, आवश्यकता वाले क्षेत्रों में ज़मीन की ऊंची क़ीमतों और ठीकठाक आकार के भूखंडों के अभाव पर फोकस करने की ज़रूरत है. इस योजना की शुरुआत 31 जुलाई 2020 को की गयी थी. तब से लेकर दो साल का समय बीत चुका है, और यह योजना घोंघे की चाल से आगे बढ़ रही है. किराये के आवासन पर फोकस बढ़ाने के लिए मौजूदा नीति में संशोधन की तुरंत ज़रूरत है.

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Contributor

Akshay Joshi

Akshay Joshi

Akshay Joshi is working as Deputy Manager Chief Ministers Good Governance Associate Program at Ashoka University. He has completed Master's in Public Policy and Governance ...

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