Published on Feb 03, 2022 Updated 0 Hours ago

एसडीजी के लक्ष्यों को पूरा करने में भारत की कामयाबी वैश्विक समुदाय की सफलता को सुनिश्चित करती है, जिससे "इंडिया मॉडल" का ब्लूप्रिंट दुनिया के बड़े हिस्से में अनुकरण किया जा सके.. 

स्वास्थ्य पर पुनर्विचार: भारत और विश्व

कुछ अनुमान बताते हैं कि भारत में पहले से ही दुनिया की सबसे ज़्यादा आबादी बसती है और साल 2011 तक शहरी क्षेत्रों में 31 फ़ीसदी लोग रहते थे. दुनिया में छठी सबसे बड़ी और सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था और 3.25 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के सकल घरेलू उत्पाद के बावजूद भारत का स्थान मानव विकास सूचकांक में बेहद नीचे है. कुछ विश्लेषकों का यह तर्क है कि अगर भारत अपने टिकाऊ विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को पूरा करने में नाकाम रहता है तो इससे वैश्विक एसडीजी में भारी कमी आएगी. दूसरी ओर, भारत की सफलता वैश्विक समुदाय की सफलता को सुनिश्चित करेगी जिससे “इंडिया मॉडल” का ब्लूप्रिंट दुनिया के बड़े हिस्से में अनुकरण किया जाएगा.

बेहद कम शुरुआत के साथ जिस तरह से भारत ने अपने परीक्षण और टीकाकरण के बुनियादी ढांचे को तेज़ी से बढ़ाया है, वह कोरोना महामारी द्वारा लाई गई चुनौतियों से पार पाने के लिए उल्लेखनीय कहे जा सकते हैं.

भारत में स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में यह हक़ीकत है कि विश्व स्तर पर कुछ जानी पहचानी वजहों के चलते लोगों तक गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच सीमित हो जाती है और यह परेशानी बढ़ती ही चली गई है, हालांकि- इस ओर महामारी के दौरान ध्यान दिया गया है. बेहद कम शुरुआत के साथ जिस तरह से भारत ने अपने परीक्षण और टीकाकरण के बुनियादी ढांचे को तेज़ी से बढ़ाया है, वह कोरोना महामारी द्वारा लाई गई चुनौतियों से पार पाने के लिए उल्लेखनीय कहे जा सकते हैं. कोविन सॉफ्टवेयर को ओपन-सोर्स बनाकर, जिसके ज़रिए देश के वैक्सीन योजना की कोशिशों का समन्वय किया गया है, भारत ने यह भी घोषणा की है कि टीकों के साथ ही वह दूसरे देशों के साथ टीकों को जल्द से जल्द लोगों तक वितरित करने के अपने अनुभव को भी साझा करने को तैयार है.

वास्तव में, कोरोना को लेकर इस बात की आशंका बनी हुई है कि क्या दुनिया समय पर एसडीजी के लक्ष्य को हासिल कर पाएगी. दो राय नहीं कि महामारी ने विश्व स्तर पर स्वास्थ्य व्यवस्था को प्रभावित किया है और जिसका असर जीवन और आजीविका दोनों पर पड़ा है. इस संदर्भ में एसडीजी की प्रगति महामारी के चलते बाधित हुई है, जिसके चलते निम्न और निम्न-मध्यम आय वाले देशों में भारी तबाही देखने को मिली है. कई लोगों ने इसे मानव इतिहास का सबसे ख़राब मानवीय और आर्थिक संकट बताया है. पूरे देश में कोरोना महामारी ने ज़रूरी स्वास्थ्य और पोषण सेवाओं को बुरी तरह बाधित किया है, ख़ास कर शहरी क्षेत्रों में, जिससे यहां के लोग कुपोषण, खाद्य सुरक्षा और बीमारियों के जोख़िम का शिकार हुए हैं.

पूरे देश में कोरोना महामारी ने ज़रूरी स्वास्थ्य और पोषण सेवाओं को बुरी तरह बाधित किया है, ख़ास कर शहरी क्षेत्रों में, जिससे यहां के लोग कुपोषण, खाद्य सुरक्षा और बीमारियों के जोख़िम का शिकार हुए हैं.

आबादी का बड़ा हिस्सा अस्वस्थ

भारत का शहरीकरण सभी इलाकों से पलायन के साथ-साथ समय के साथ ग्रामीण क्षेत्रों के शहरी क्षेत्रों में धीरे-धीरे बदलने से प्रेरित है और यह अनुमान लगाया गया है कि 2047 तक, भारत की कुल आबादी में से करीब 65 प्रतिशत शहरी क्षेत्रों में रह रहे होंगे, जिससे आने वाले भविष्य में कम से कम 80 करोड़ भारतीयों के लिए शहरी जीवन शैली उपलब्ध कराने की ज़रूरत पड़ सकती है. हालांकि भारतीय स्वास्थ्य व्यवस्था में धन की कमी को देखते हुए, यह नीति निर्माताओं के लिए गंभीर चुनौतियां पेश करता है. उदाहरण के लिए, शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में समाज के हाशिए पर और कमज़ोर लोगों तक पहुंचना और एक जैसा स्वास्थ्य नतीजों को सुनिश्चित करना बेहद गंभीर चुनौती है और यही वजह है कि शहरी स्वास्थ्य व्यवस्था को दुरुस्त करने की ज़रूरत है. इसके अलावा, यह सुनिश्चित किया जाना भी ज़रूरी है कि शहरी क्षेत्रों में संसाधनों को बढ़ाने के चलते ग्रामीण क्षेत्रों के लिए संसाधन की कमी नहीं हो. भारतीय संघीय व्यवस्था के तहत स्वास्थ्य राज्य की ज़िम्मेदारी है और इतिहास बताता है कि नियामक को लेकर केंद्रीय आधारित कोशिशों का नतीजा बेहतर नहीं रहा है. पंद्रहवें वित्त आयोग के तहत गठित स्वास्थ्य पर उच्च स्तरीय समूह ने हाल ही में “समवर्ती विषयों” के तहत स्वास्थ्य सेवा को शामिल करने की अपनी सिफारिश दी थी. आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (एबी-पीएमजेएवाई) पहले ही 10,000 से अधिक निजी अस्पतालों को सूचीबद्ध कर चुकी है और इन अस्पतालों को बेहतर सेवा मुहैया कराने के लिए प्रोत्साहन के रूप में नए “ग़रीब रोगियों के बाज़ार” में पहुंच बनाने की कोशिश के लिए कहा गया है.

भारत के कई राज्यों में, अलग-अलग सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि के तहत आबादी का एक बड़ा हिस्सा अस्वस्थ है. प्रजनन की उम्र में महिलाओं में खून की कमी गंभीर समस्या बनती जा रही है, यहां तक कि पंजाब और गुजरात जैसे अपेक्षाकृत समृद्ध राज्यों में भी इसे देखा जा रहा है. 

नये राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार, भारत के कई राज्यों में, अलग-अलग सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि के तहत आबादी का एक बड़ा हिस्सा अस्वस्थ है. प्रजनन की उम्र में महिलाओं में खून की कमी गंभीर समस्या बनती जा रही है, यहां तक कि पंजाब और गुजरात जैसे अपेक्षाकृत समृद्ध राज्यों में भी इसे देखा जा रहा है. ये भी कि बेहतर पोषण वाले राज्य जीवन शैली से संबंधित बीमारियों से सबसे ज़्यादा प्रभावित हैं जो एक बड़ी चुनौती है, जो स्वास्थ्य व्यवस्था को अपने कम संसाधनों को और भी बढ़ाने के लिए मज़बूर करता है. यह मुद्दा ख़ास तौर पर कोरोना महामारी के दौरान सामने आया है. वर्ल्ड हार्ट फेडरेशन के मुताबिक, गैर-संचारी रोग (एनसीडी), विशेष रूप से क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज़, हृदय रोग, उच्च रक्तचाप और मधुमेह कोरोना के गंभीर लक्षण विकसित करने में अहम किरदार निभाते हैं.

जैसा कि महामारी के दौरान स्पष्ट किया गया था, अपर्याप्त बुनियादी ढांचा और मानव संसाधन की कमी भारतीय स्वास्थ्य सेवा के सामने अहम चुनौतियां हैं. साल 2017 के एक अध्ययन की मानें तो वर्ष 2030 तक समान स्वास्थ्य देखभाल के लिए 2.07 मिलियन डॉक्टरों की ज़रूरत होगी. भारत सरकार सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों में मेडिकल कॉलेजों की सीट बढ़ाने में लगी है जिससे अस्पतालों में स्वास्थ्य कर्मियों की कमी को दूर किया जा सके. अंडरग्रेजुएट मेडिकल सीटों की संख्या में 48 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखी गई है, जो साल 2014-15 में 54,348 से 2019-20 में 80,312 हो गई है. 2014-19 के दौरान सार्वजनिक क्षेत्र के मेडिकल कॉलेजों में भी 47 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जबकि पिछले पांच वर्षों में, 2014-15 में 404 से 2019 में 539 तक, मेडिकल कॉलेजों की कुल संख्या में 33 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है. मौजूदा समय में भारत कोरोना महामारी के कारण हुए व्यवधान से निपटने के लिए टेलीहेल्थ सेवा की शुरुआत करने जा रहा है.

जर्जर बुनियादी ढांचे

हालांकि, ख़र्च के मौजूदा स्तर को देखते हुए बुनियादी ढांचे की कमी को दूर करना आसान नहीं है. ग्रामीण स्वास्थ्य आंकड़ा जो 2019-20 में प्रस्तुत किया गया था उसके मुताबिक झारखंड और पश्चिम बंगाल में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की कमी क्रमश: 73 फ़ीसदी और 58 फ़ीसदी है. सीएचसी (सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र) की कमी बिहार में 94 प्रतिशत तक है. ग्रामीण क्षेत्रों में प्राथमिक और माध्यमिक बुनियादी ढांचे की भारी कमी के कारण शहरी क्षेत्रों में तीसरे स्तर के अस्पतालों पर भारी दबाव बढ़ता जा रहा है और तमाम व्यवस्थाएं चरमराती जा रही हैं.

बुनियादी ढांचे और शहरी योजना, ग्रामीण बुनियादी ढांचे से जुड़े हुए हैं क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में आपूर्ति की बाधा शहरी क्षेत्रों में अतिरिक्त मांग को पैदा करती है और किसी भी योजना को नाकाम बनाने के लिए मज़बूर करती है. 

बुनियादी ढांचे और शहरी योजना, ग्रामीण बुनियादी ढांचे से जुड़े हुए हैं क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में आपूर्ति की बाधा शहरी क्षेत्रों में अतिरिक्त मांग को पैदा करती है और किसी भी योजना को नाकाम बनाने के लिए मज़बूर करती है. पंद्रहवें वित्त आयोग को प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने के लिए अगले पांच वर्षों में 5.38 लाख करोड़ रुपये की ज़रूरत है. ऐसा अनुमान लगाते हुए, स्वास्थ्य मंत्रालय को यह उम्मीद है कि स्वास्थ्य समस्याओं से जल्द से जल्द निपटने और व्यापक प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल को मज़बूत करके तीसरे स्तर की स्वास्थ्य सेवा की बढ़ती मांग का ठीक तरीके से प्रबंधन किया जा सकेगा.

पिछले सात वर्षों में सत्ता में मौजूद गठबंधन (एनडीए), स्वास्थ्य क्षेत्र को लेकर पूर्व के गठबंधन वाली सरकार (यूपीए) के मुक़ाबले बेहतर स्थिति में है और एबी-पीएमजेएवाई, आयुष्मान भारत डिज़िटल मिशन (एबीडीएम), आयुष्मान भारत हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर्स और प्रधानमंत्री भारतीय जनऔषधि परियोजना (पीएमबीजेपी) जैसी योजनाओं को लेकर उसने अपने आधार को और व्यापक किया है. इसके अलावा, एनडीए गठबंधन बड़ी ख़ामोशी से स्वास्थ्य के सामाजिक संकेतकों (एसडीएच) को वास्तविकता में लागू करने की कोशिशों में लगी है, सरकार ऐसा प्रमुख क्षेत्रों जैसे पोषण (राष्ट्रीय पोषण मिशन), पेयजल (जल मिशन), इनडोर वायु प्रदूषण (उज्ज्वला योजना), स्वच्छता (स्वच्छ भारत), सड़क तक लोगों की पहुंच (ग्राम सड़क योजना), और लिंग अनुपात  (बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ) के क्षेत्र में योजनाओं को शुरू कर आगे बढ़ रही है. इन परियोजनाओं और कदमों ने महामारी से निपटने के लिए भारत की बहुआयामी कोशिशों में भारी योगदान दिया है और निश्चित तौर पर दूसरी स्वास्थ्य व्यवस्थाओं को स्वीकार करने, उन्हें अनुकूलित करने और निर्माण करने के लिए ज़रूरी फ्रेमवर्क प्रदान करेंगे.

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