Author : Soumya Bhowmick

Published on Aug 09, 2022 Updated 26 Days ago

भारतीय संघवाद के लिए केंद्र-राज्य सहयोग बेहद अहम है, लेकिन उनके बीच प्रतिस्पर्धा को भी महत्वहीन नहीं माना जा सकता.

कोविड-19 के बीच स्वास्थ्य प्रणालियों की दृढ़ता और भारतीय संघवाद

जीएसटी परिषद से लेकर भारतीय कृषि बाज़ारों में सुधार की सिफ़ारिश के लिए मुख्यमंत्रियों की उच्च-शक्तिसंपन्न कमेटी के गठन तक, अतीत की विभिन्न नीतियों को लागू करने में भारतीय राज्यों और संघीय सरकार के बीच सहयोग अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है. मौजूदा महामारी के बाद भारतीय संघवाद में सहयोग की भावना और भी प्रासंगिक हो जाती है, जहां हम ऑक्सीजन की आपूर्ति से लेकर वैक्सीन की उपलब्धता तक विभिन्न मुद्दों पर केंद्र और राज्य के बीच घटता-बढ़ता राजनीतिक तनाव देख चुके हैं.

यह अध्ययन इस क्षेत्र में स्थानिक और देशांतरीय अध्ययनों की संभावनाओं को विस्तृत करता है, जो अनुकूलनशील शासन के लिए प्रमाण-आधारित क़दम उठाने के महत्व को उजागर करता है.

निश्चित रूप से, केंद्र और राज्य की नीतियों के संयोजन के महामारी के दौरान जिस तरह के शृंखलाबद्ध  प्रभाव सामने आये, उसका तात्कालिक असर न सिर्फ़ 2030 के लिए संयुक्त राष्ट्र टिकाऊ विकास लक्ष्य (एसडीजी) एजेंडे जैसे एसडीजी 3 (अच्छा स्वास्थ्य और कुशलक्षेम), एसडीजी 8 (सम्मानजनक काम और आर्थिक वृद्धि) और एसडीजी 10 (गैरबराबरी में कमी) इत्यादि पर पड़ेगा, बल्कि वैश्विक महामारी जैसे बाहर से आने वाले झटकों और उनके मैक्रोइकोनॉमिक प्रभावों के प्रति भारतीय राज्य द्वारा विकसित की गयी समग्र दृढ़ता पर भी पड़ेगा.

एचएसआरआई का उप-राष्ट्रीय विश्लेषण

इस सिलसिले में, ओआरएफ की ‘हेल्थ सिस्टम्स रेज़िलिएंस इंडेक्स : ए सब-नेशनल एनालिसिस ऑफ इंडियाज़ कोविड-10 रिस्पॉन्स’ नामक एक हालिया रिपोर्ट इस वैश्विक संकट के शमन के लिए केंद्रीय नीतियों की निर्देशात्मक भूमिका के साथ राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों (यूटी) के प्रदर्शन को उजागर करती है. भारत के उप-राष्ट्रीय प्रदर्शन का सूक्ष्म विश्लेषण स्थापित करने के लिए 33 अवयव सूचकों का इस्तेमाल कर स्वास्थ्य प्रणाली दृढ़ता सूचकांक (एचएसआरआई) विकसित किया गया था. गतिशील और स्थिर दोनों तरह के इन सूचकों के लिए सरकारी स्रोतों से हासिल आंकड़ों का उपयोग किया गया और ये मोटामोटी पांच उप-सूचकों में बंटे थे : सामान्य स्वास्थ्य प्रोफाइल; चिकित्सकीय बुनियादी ढांचा; तकनीकी बुनियादी ढांचा; संस्थागत समर्थन; और कोविड-19 संबंधी स्वास्थ्य परिणाम.

तालिका 1 : एचएसआरआई- एक रिपोर्ट कार्ड

Source:Health Systems Resilience Index: A Sub-National Analysis of India’s COVID-19 Response,’ ORF

महामारी का सामना करने के दौरान बीते दो सालों में भारत ने काफ़ी उतार-चढ़ाव देखा है. कुछ मोर्चों पर उसकी सफलता के बावजूद, देश की स्वास्थ्य प्रणालियों में ज़्यादा निवेश करने और साथ ही साथ राष्ट्र में चिकित्सा उद्योग की मज़बूती का फ़ायदा उठाने की ज़रूरत है. भारत के उप-राष्ट्रीय प्रदर्शन की एक झलक पेश करने के अलावा, यह विश्लेषण नीति-निर्माण में मदद के लिए दूसरे आयामों को भी खंगालता है.

राज्यों और केंद्र के बीच क्षैतिज एवं ऊर्ध्व समन्वय का उत्कृष्ट स्तर भारत के कामयाब चरणबद्ध टीकाकरण अभियानों का एक सबूत है.

सबसे पहले, यूटी ने स्वास्थ्य प्रणालियों की दृढ़ता के मामले में राज्यों की तुलना में काफ़ी बेहतर प्रदर्शन किया है, जो दिखाता है कि बेहतर नतीजों के लिए कौन-से शासन पैटर्न अपनाये जाने चाहिए. दूसरा, रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि अधिक प्रति-व्यक्ति आय वाले राज्य और यूटी इन स्वास्थ्य आपात स्थितियों को झेल पाने में तुलनात्मक रूप से ग़रीब इलाक़ों के मुक़ाबले ज़्यादा सक्षम हैं. यह बड़ी संसाधन निधियों और उन्हें जुटाने के लिए आवश्यक संस्थागत समर्थन के बीच संपूरकताओं पर सबक मुहैया कराता है. तीसरा, राज्य-वार स्कोर कार्ड निश्चित रूप से यह इंगित करते हैं कि कौन-सी नीतियों ने काम किया है और कौन-सी ने नहीं किया है. यह भारतीय क्षेत्रों में आवश्यक, संसाधनों के सर्वोत्तम पुर्नावंटन के लिए मार्गदर्शन करता है. चौथा, कुछ क्षेत्रों में मौजूद ख़ामी अभी चल रही मंकीपॉक्स बीमारी जैसी भावी चिकित्सकीय आवश्यकताओं से मुक़ाबले के लिए अपनी कमज़ोरियों पर काम करने में देश को एक इकाई के बतौर सक्षम बनाती हैं. अंत में, यह अध्ययन इस क्षेत्र में स्थानिक और देशांतरीय अध्ययनों की संभावनाओं को विस्तृत करता है, जो अनुकूलनशील शासन के लिए प्रमाण-आधारित क़दम उठाने के महत्व को उजागर करता है.

भारतीय संघवाद पर पड़ने वाले प्रभाव

कोविड-19 महामारी के आरंभ के साथ ही, भारत ने महामारी की वजह से उत्पन्न औचक अवरोधों से निपटने के लिए, शुरू में एक मज़बूत केंद्रीय नेतृत्व का प्रयोग किया. हालांकि, इसके संग-संग, संकट को संभालने के लिए अलग-अलग राज्यों व रणनीतियों के साथ राज्य और स्थानीय सरकारों की भूमिका भी महत्वपूर्ण रही, जिसने भारत के ‘सहयोगात्मक संघवाद’ की परीक्षा ली. यह कहने की ज़रूरत नहीं कि, प्रवासी श्रमिकों के लिए पहले राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन से उत्पन्न चुनौतियों से लेकर देशभर में कोविड-19 की रिपोर्टिंग से संबंधित विवादों तक, ऐसे कई सारे मुद्दे थे जो राज्यों और केंद्र के बीच समन्वय से दरपेश थे. देश के भौगोलिक आकार, विशाल आबादी और बहुआयामी विविधता को देखते हुए, बहुत सारे मुद्दे सबसे आगे आकर खड़े हो गये. हालांकि, राज्यों और केंद्र के बीच क्षैतिज एवं ऊर्ध्व समन्वय का उत्कृष्ट स्तर भारत के कामयाब चरणबद्ध टीकाकरण अभियानों का एक सबूत है.

भारत के संघीय ढांचे के कामकाज के लिए केंद्र-राज्य सहयोग बेहद अहम है, लेकिन उनके बीच प्रतिस्पर्धा को भी महत्वहीन नहीं माना जा सकता. दरअसल, नीति आयोग का ‘प्रतिस्पर्धी संघवाद’ का एजेंडा ‘सहयोगात्मक संघवाद’ के ऊपर एक स्वाभाविक प्रगति है और आदर्श रूप से, इन दोनों को आगामी वर्षों में भारत की विकास गाथा (गवर्नेंस पैटर्न विकसित करने से लेकर स्वास्थ्य और आर्थिक दोनों प्रणालियों में घरेलू दृढ़ता तक) आगे बढ़ाने के लिए राजनीतिक तालमेल के साथ काम करना चाहिए. उप-राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं के बीच प्रतिस्पर्धा के एक नवीकृत बोध को अक्सर दक्षता बढ़ाने, ज़्यादा जवाबदेही व स्वतंत्रता की अनुमति देने, और राज्य की नीतियों में सुधारात्मक क़दमों को प्रेरित करने के एक तरीक़े के रूप में देखा जाता है. लेकिन यह सवाल बरक़रार है कि ‘सहयोगात्मक संघवाद’ और ‘प्रतिस्पर्धी संघवाद’ कैसे बार-बार एक ‘टकरावपूर्ण संघवाद’ के लक्षण दिखाये बिना संपूरक विचारों के रूप में काम करें.

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