Author : Ankita Dutta

Published on Oct 27, 2022 Updated 0 Hours ago

हालांकि ट्रान्स अटलांटिक गठबंधन ने अब तक अपने रूख़ में लचीलापन दिखाया है लेकिन कई उभरते रुझान भविष्य में संबंधों को प्रभावित कर सकते हैं.

ट्रांस अटलांटिक गठबंधन को लेकर रुझान

ट्रम्प प्रेसीडेंसी के कमज़ोर होने के बाद, बाइडेन प्रशासन ने अपने यूरोपीय सहयोगियों के साथ संबंधों को मज़बूत करने के अपने स्पष्ट इरादों के साथ ट्रांस अटलांटिक संबंधों में स्थिरता लाई है. यह बहुपक्षवाद के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका की प्रतिबद्धता और साल 2021 में राष्ट्रपति बाइडेन की महाद्वीपीय यात्रा में नज़र आता है. हालांकि अफ़ग़ानिस्तान से एकतरफा  वापसी और ऑकस (ऑस्ट्रेलिया, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका) के गठन की घोषणा के बाद इस गठबंधन के भविष्य को लेकर कई चिंताएं पैदा हो गई हैं. साल 2022 ने कई अभूतपूर्व राजनीतिक और आर्थिक मंथन के साथ ट्रांस अटलांटिक गठबंधन के लिए एक नया अध्याय खोला है. यूक्रेन में उपजा संकट सहयोगियों के आपसी तालमेल के लिए एक अहम परीक्षा के रूप में उभरा है. इसने यूक्रेन के लिए सैन्य और मानवीय समर्थन, यूरोप की सिक्युरिटी आर्किटेक्चर के आसपास चर्चा, युद्ध के आर्थिक प्रभाव, सहित कई मुद्दों को सामने लाया है. यह लेख कुछ महत्वपूर्ण रुझानों का विश्लेषण करने की कोशिश करता है जो पिछले कुछ महीनों में ट्रांस अटलांटिक संबंधों में मौजूद रहे और समय के साथ उभरे हैं. यह गठबंधन के महत्व के मुद्दों पर जनता की राय का विश्लेषण करने के लिए हाल ही में जारी किए गए ट्रांस अटलांटिक रुझान 2022 की ओर भी देखता है.

प्रमुख रुझान
ट्रांस अटलांटिक संबंधों में कुछ प्रमुख रुझान निम्नलिखित हैं:

रूस के प्रति दृष्टिकोण और यूक्रेन संकट पर प्रतिक्रिया : यूक्रेन संकट के सबसे महत्वपूर्ण परिणामों में से एक गठबंधन के बीमार होते शरीर में ऑक्सीजन भरना और रूस के प्रति इसकी समन्वित प्रतिक्रिया रही है. इस संकट के दौरान अब तक ट्रांस अटलांटिक एकता उल्लेखनीय रही है, जिसका उदाहरण रूस के ख़िलाफ़ व्यापक प्रतिबंधों के अलावा यूक्रेन को सैन्य, आर्थिक, मानवीय और राजनीतिक समर्थन और यूरोपीय ऊर्जा पर निर्भरता को कम करने की कोशिशों में दिखा है. जैसा कि 2022 के ट्रांस अटलांटिक रूझानों में दिखता है कि सहयोगी राष्ट्रों ने प्रतिबंधों के नए दौर को लागू किया है, मज़बूत आर्थिक प्रतिबंधों (71 प्रतिशत) के साथ-साथ तेल और गैस आयात पर बढ़ी क़ीमत (62 प्रतिशत) के बावज़ूद प्रतिबंध का समर्थन करता है. इसी तरह, यूक्रेन के लिए पब्लिक सपोर्ट भी ख़ासा बना हुआ है, ख़ास तौर पर यूक्रेन के उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नेटो) और यूरोपीय संघ (ईयू) दोनों की सदस्यता के समर्थन में. यूक्रेन को ज़्यादा आर्थिक (69 प्रतिशत) और सैन्य समर्थन (66 प्रतिशत) देने पर भी आम सहमति है लेकिन यूक्रेन में नेटो के विचार पर पब्लिक ओपिनियन में इस बात की प्रतिध्वनि पूरी तरह सुनाई नहीं देती है. लोगों की ऐसी राय संकट के प्रति यूक्रेन सरकार की प्रतिक्रिया को लेकर जनता के सामान्य सकारात्मक रवैये को उजागर करता है.

यूक्रेन में उपजा संकट सहयोगियों के आपसी तालमेल के लिए एक अहम परीक्षा के रूप में उभरा है. इसने यूक्रेन के लिए सैन्य और मानवीय समर्थन, यूरोप की सिक्युरिटी आर्किटेक्चर के आसपास चर्चा, युद्ध के आर्थिक प्रभाव, सहित कई मुद्दों को सामने लाया है.

नए तरीक़े से सुरक्षा को लेकर बहस : यूक्रेन संकट यूरोपीय सुरक्षा संरचना के लिए एक महत्वपूर्ण क्षण के रूप में सामने आया है. हालांकि यूरोपीय सुरक्षा पर चर्चा नई नहीं है लेकिन इस संकट ने कई यूरोपीय संघ के सदस्य देशों के रणनीतिक दृष्टिकोण को बदल दिया है.

पिछले कुछ महीनों में यह देखा गया है कि कई यूरोपीय सहयोगियों ने अपने रक्षा निवेश में काफी बढ़ोतरी की है, जिसमें जर्मनी सबसे अहम उदाहरण है. इसने अपने सशस्त्र बलों को अपग्रेड करने के लिए ना केवल 100 बिलियन यूरो का फंड बनाया है बल्कि साल 2014 में क्रीमिया संकट के बाद सहयोगियों द्वारा निर्धारित जीडीपी के 2 प्रतिशत लक्ष्य को पूरा करने के लिए ख़ुद की प्रतिबद्धता भी जताई है. इसी तरह, कई अन्य सदस्य राष्ट्रों ने भी अपने रक्षा ख़र्च को बढ़ाने के अपने इरादे की घोषणा की है जैसे कि बेल्जियम ने अगले आठ वर्षों में अपने ख़र्च को 0.9% से बढ़ाकर 1.54% कर दिया है; पोलैंड और लातविया ने अपने बज़ट में क्रमश: 2.5-3% की वृद्धि करने की योजना बनाई है. जबकि यूरोपीय रक्षा में अधिक योगदान देने के लिए सदस्य देशों ने नए सिरे से प्रतिबद्धता जाहिर की है. 2022 ट्रांस अटलांटिक रुझानों के मुताबिक़, यूक्रेन संकट के बाद सुरक्षा चिंताओं को लेकर यूरोपीय सुरक्षा में अमेरिकी भागीदारी में बढ़ोतरी करने के लिए जन समर्थन भी बढ़ा है, 72 प्रतिशत लोग चाहते हैं कि वाशिंगटन कुछ हद तक (38 प्रतिशत) या बहुत अधिक (34 प्रतिशत)’ इसमें शामिल हैं, यूरोपीय सुरक्षा ढांचे में अमेरिका के शामिल होने को दो तरह से देखा जा सकता है – पहला, महाद्वीप में अमेरिकी सैन्य उपस्थिति के ज़रिए, जिसका अनुरोध बाल्टिक देशों के साथ-साथ पोलैंड ने भी किया है; और दूसरा, नेटो के माध्यम से ट्रांस अटलांटिक सैन्य क्षमताओं को बढ़ाकर.

इसी तरह, ट्रांस अटलांटिक रुझानों के अनुसार, सर्वे में 78 प्रतिशत जवाब देने वालों के बीच नेटो की अहमियत लगातार बढ़ी है जो साल 2021 में 68 प्रतिशत तक सीमित थी. हालांकि सबसे महत्वपूर्ण रुझानों में से एक जो सामने आया है, वह स्वीडन और फिनलैंड को शामिल करने के लिए नेटो के विस्तार की संभावना को लेकर है – जिसके तहत सभी नॉर्डिक देशों को नेटो गठबंधन का हिस्सा बनाना मक़सद है. यूक्रेन में जारी संकट ने नॉर्डिक देशों में सुरक्षा के पूरे विमर्श को बदल दिया है. इन दोनों देशों का नेटो में समावेश उस तटस्थता के अंत का प्रतीक है जिसका स्वीडन और फिनलैंड दोनों ने लंबे समय से पालन किया है. दोनों देशों को नेटो में शामिल होने के लिए यूरोप (73 प्रतिशत) में भी समर्थन बढ़ा है.

अन्य सदस्य राष्ट्रों ने भी अपने रक्षा ख़र्च को बढ़ाने के अपने इरादे की घोषणा की है जैसे कि बेल्जियम ने अगले आठ वर्षों में अपने ख़र्च को 0.9% से बढ़ाकर 1.54% कर दिया है; पोलैंड और लातविया ने अपने बज़ट में क्रमश: 2.5-3% की वृद्धि करने की योजना बनाई है. जबकि यूरोपीय रक्षा में अधिक योगदान देने के लिए सदस्य देशों ने नए सिरे से प्रतिबद्धता जाहिर की है.

ख़तरे की धारणा : ख़तरे की धारणा के संदर्भ में, एक मूलभूत अंतर है कि सहयोगी राष्ट्रों के बीच ख़तरे को किस तरह देखा जा रहा है. शुरुआत में  पोलैंड और बाल्टिक राष्ट्रों जैसे कुछ यूरोपीय सदस्य देशों ने रूस को प्राथमिक ख़तरे के रूप में देखा, जबकि अन्य, मुख्य रूप से फ्रांस और ग्रीस, भूमध्यसागर से उभरने वाले ख़तरों को लेकर चिंतित थे और जर्मनी जलवायु परिवर्तन को लेकर ज़्यादा चिंतित था. दूसरी ओर, अमेरिका का ज़्यादातर ध्यान चीन और एशिया पर केंद्रित था, जो ज़रूरी नहीं कि यूरोपीय देशों की ख़तरे की धारणा के अनुकूल ही हो. महाद्वीप पर संकट के साथ यह प्रवृत्ति बदली है. ट्रांस अटलांटिक ट्रेंड्स के तहत जारी आंकड़ों के अनुसार, जलवायु परिवर्तन (18 प्रतिशत), रूस (17 प्रतिशत), और राष्ट्रों के बीच युद्ध (17 प्रतिशत) ने प्रमुख तीन चिंताओं के तौर पर अपनी जगह बनाई है, जबकि इसके बाद इमिग्रेशन (14 प्रतिशत) और साइबर सुरक्षा (7 प्रतिशत) जैसे मुद्दों का स्थान रहा है. हालांकि, अलग-अलग राष्ट्रों के बीच ख़तरों की गंभीरता अलग-अलग थी – उदाहरण के लिए, 34 प्रतिशत इटली के लोगों ने जलवायु परिवर्तन को सबसे गंभीर ख़तरे के रूप में माना, क्योंकि हाल की गर्मियों में इटली ने गंभीर मौसम की स्थिति का सामना किया था; और 27 प्रतिशत रोमानिया के लोगों ने, चूंकि यूक्रेन से इसकी सीमा बेहद क़रीब है, लिहाजा राष्ट्रों के बीच युद्ध को सबसे अहम ख़तरे के तौर पर माना. इसी तरह, चूंकि वे रूसी सीमाओं के क़रीब हैं, 42 प्रतिशत लिथुआनिया के लोगों के लिए, मॉस्को उनकी सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा ख़तरा है और तुर्की के 37 प्रतिशत लोगों के लिए इमिग्रेशन एक बड़ी चुनौती है, जो सीरिया संकट के बाद से तेजी से बढ़ा है. सर्वे में जिन अमेरिकी नागरिकों ने हिस्सा लिया उनके लिए जलवायु परिवर्तन (14 प्रतिशत), युद्ध (13 प्रतिशत), इमिग्रेशन (11 प्रतिशत), और रूस (10 प्रतिशत) मुख्य चुनौतियां थीं.

चीन के साथ संबंध : चीन के साथ रिश्ता ट्रांस अटलांटिक संबंधों के लिए सबसे महत्वपूर्ण एज़ेंडा में से एक है. ऐसी उम्मीदें हैं कि बाइडेन सरकार चीन के ख़िलाफ़ सख़्त रुख़ अपनाएगी, जैसा कि यूरोपीय संघ ने पिछले कुछ महीनों में चीनी कंपनियों द्वारा यूरोप में रणनीतिक संपत्तियों के अधिग्रहण के ख़िलाफ़ कई सुरक्षा उपायों को उठाकर साबित किया है. चीन की आर्थिक गतिविधियों और टेक्नोलॉजी ट्रांसफर पर सवाल उठाने के अलावा, हांगकांग में सुरक्षा से जुड़े कानून से संबंधित मुद्दे, शिनजियांग में मानवाधिकार के मुद्दे और 5 जी तकनीक़ पर सबसे ज़्यादा चर्चा किए जाने की उम्मीद है. चीन को “विशेष चुनौती” के तौर पर राष्ट्रपति बाइडेन का मानना, यूरोपीय संघ द्वारा चीन को ” एक प्रतिद्वंद्वी, प्रतियोगी और भागीदार” के तौर पर देखने के विचार से पूरी तरह फिट बैठता है, जिससे सहयोगी राष्ट्रों को चीन के प्रति एक सुसंगत ट्रांस अटलांटिक दृष्टिकोण तैयार करने के लिए सामान्य आधार मुहैया कराता है. यूक्रेन संकट ने चीन के प्रति कई राष्ट्रों की सोच में बहुत ज़्यादा बदलाव नहीं किया है; बल्कि बीजिंग के प्रति सख़्त रुख़ अपनाने पर ट्रांस अटलांटिक देशों में एक सहमति पैदा की है. ट्रांस अटलांटिक ट्रेंड्स में चीन के साथ संबंधों की जटिलता को सर्वे में उजागर किया गया था, जिसमें बताया गया था कि 29 प्रतिशत लोगों ने कहा कि, “वे नहीं जानते कि चीन एक भागीदार है, एक प्रतियोगी है, या उनके देश का प्रतिद्वंद्वी है”. जबकि 25 प्रतिशत ने चीन को भागीदार के रूप में देखा, 29 प्रतिशत और 18 प्रतिशत ने इसे क्रमशः एक प्रतियोगी और प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखा. ताइवान पर चीनी आक्रमण की स्थिति में, अधिकांश उत्तरदाताओं ने अपने देशों को केवल राजनयिक कदम उठाने का समर्थन किया. सर्वेक्षण के अनुसार 35 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने केवल राजनयिक उपायों का समर्थन किया, 32 प्रतिशत ने प्रतिबंधों का समर्थन किया  और 12 प्रतिशत चाहते थे कि उनका देश कोई कार्रवाई न करे. केवल 4 प्रतिशत और 2 प्रतिशत चाहते थे कि उनका देश क्रमशः ताइवान को हथियार या सेना भेजे-यह एक नए संघर्ष के लिए कम इच्छा को बताता है.

चीन की आर्थिक गतिविधियों और टेक्नोलॉजी ट्रांसफर पर सवाल उठाने के अलावा, हांगकांग में सुरक्षा से जुड़े कानून से संबंधित मुद्दे, शिनजियांग में मानवाधिकार के मुद्दे और 5 जी तकनीक़ पर सबसे ज़्यादा चर्चा किए जाने की उम्मीद है.

ट्रांस अटलांटिक गठबंधन में तुर्किये : यूरोपीय संघ के साथ तुर्किए के संबंध पिछले कुछ सालों में बढ़ रहे हैं, ख़ास तौर पर पूर्वी भूमध्यसागरीय मुद्दों की वज़ह से, तुर्किये ने यूक्रेन संकट में ख़ुद को एक अनोखी स्थिति में पाया है. ऊर्जा और सुरक्षा को लेकर अंकारा और मॉस्को एक दूसरे के बेहद क़रीबी साझेदार के तौर पर उभरे हैं. दूसरी ओर, तुर्किए ने रक्षा क्षेत्र में भी यूक्रेन के साथ साझेदारी विकसित की है. अब तक, तुर्की मॉस्को और कीव दोनों के साथ अपनी साझेदारी को बनाए रखने में क़ामयाब रहा है और रूस पर प्रतिबंध लगाने में पश्चिमी देशों में शामिल होने से बचता रहा है, जिससे रूस और यूक्रेन के बीच तुर्किए ने प्रमुख मध्यस्थ की भूमिका निभाई है. रूस के साथ संघर्ष और संबंधों के प्रबंधन में एक स्वतंत्र दृष्टिकोण अपनाने को लेकर भी सर्वे में लोगों का (56 प्रतिशत) रूझान दिखता है. तुर्किए के ज़्यादातर लोग रूस के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने को लेकर उत्साहित नहीं दिखते हैं ; 70 प्रतिशत लोग रूसी तेल और गैस पर प्रतिबंध लगाने के ख़िलाफ़ थे जबकि 58 प्रतिशत युद्ध अपराधों के लिए रूस पर मुकदमा चलाने के ख़िलाफ़ दिखे. इसी तरह, नेटो में शामिल होने वाले नॉर्डिक देशों के लिए भी समर्थन बढ़ा है लेकिन इस भावना को तुर्किए में ज़्यादा समर्थन नहीं मिला है, जहां 49 प्रतिशत लोग असहमत हैं, जो कुर्द आतंकवादी समूहों का समर्थन करने के लिए स्वीडन और फिनलैंड के ख़िलाफ़ शिकायत करते हैं, जिसे वह आतंकवादी संगठन मानता है. यही वजह हो सकती है कि अंकारा ने अभी तक स्वीडन और फ़िनलैंड की नेटो की सदस्यता की खुलकर वकालत नहीं की है.

निष्कर्ष

ट्रांस अटलांटिक गठबंधन के लिए साल 2022 बेहद चुनौतीपूर्ण वर्ष के रूप में उभर रहा है. उपरोक्त विश्लेषण ट्रांस अटलांटिक संबंधों में प्रमुख रूझानों को संक्षेप में प्रस्तुत करता है और तत्काल और मुख्य चिंताओं के मुद्दों पर यूरोप में रणनीतिक सोच कैसे विकसित हो रही है इसके बारे में बताता है. लेकिन यह तय है कि यूक्रेन संकट के सबसे महत्वपूर्ण नतीजों के तौर पर नेटो गठबंधन फिर से ताक़तवर हो रहा है. ट्रांस अटलांटिक एकता दोबारा से गठबंधन राष्ट्रों की रणनीतिक आकांक्षाओं को पूरा करने, रूस और चीन पर अपनी स्थिति का समन्वय करने, नेटो की बढ़ी हुई उपस्थिति को मज़बूत करने के साथ-साथ उसकी शक्ति को लागू करने और सबसे महत्वपूर्ण बात, यूक्रेन संकट को समाप्त करने की क्षमता पर नए सिरे से चर्चा करने में दिखता है. हालांकि ट्रांसअटलांटिक गठबंधन ने अब तक अपने रूख़ में लचीलापन दिखाया है लेकिन कई उभरते रुझान भविष्य में संबंधों को प्रभावित कर सकते हैं जिसकी संभावना बरकरार है.

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Ankita Dutta

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Ankita Dutta was a Fellow with ORFs Strategic Studies Programme. Her research interests include European affairs and politics European Union and affairs Indian foreign policy ...

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