Author : Sunaina Kumar

Published on Oct 13, 2022 Updated 0 Hours ago

अताविका आदिवासियों के बारे में कहा जाता था कि वो बहुत बहादुर होते थे और उन पर जीत नहीं हासिल की जा सकती थी. और, अपने पूर्वज़ों की तरह, कोरापुट के डंगरापाली गांव की रहने वाली चालीस बरस की प्रमिला कृष्ण भी हमेशा से मज़बूत इरादों वाली रही हैं.

प्रमिला कृष्णा: ओडिशा के जंगलों में रहने वाले बाशिंदों की ज़िंदगी बदलने वाली महिला!

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ओडिशा के कोरापुट ज़िले के निवासी अपनी रोज़ी रोटी के लिए हमेशा जंगलों पर निर्भर रहे हैं. भारत के पूर्वी समुद्र तट पर स्थित कोरापुट ज़िला, अपने बेहद घने हरे-भरे जंगलों और संरक्षित आदिवासी संस्कृति के लिए जाना जाता है. इस जगह के इतिहास की पड़ताल करें, तो ये तीसरी सदी तक जाती है, जब आज का कोरापुट ज़िला, उस दौर के अताविका जनजाति से आबाद हुआ करता था. अताविका इस इलाक़े के जंगलों में रहने वालों का पुराना नाम है.[i]  अताविका आदिवासियों के बारे में कहा जाता था कि वो बहुत बहादुर होते थे और उन पर जीत नहीं हासिल की जा सकती थी. और, अपने पूर्वज़ों की तरह, कोरापुट के डंगरापाली गांव की रहने वाली चालीस बरस की प्रमिला कृष्ण भी हमेशा से मज़बूत इरादों वाली रही हैं.

प्रमिला के बचपन की सबसे पुरानी यादें जंगल से जुड़ी हुई हैं. उन दिनों को याद करते हुए प्रमिला कहती हैं कि, ‘जब मैं छोटी बच्ची थी, तो अपनी मां के साथ घर में चूल्हा जलाने के लिए लकड़ियां इकट्ठा करने जंगलों में जाया करती थी. मैं बहुत डरती थी. लेकिन अब मैं अपने समुदाय की महिलाओं को इसी जंगल से रोज़ी-रोटी कमाने में मदद करती हूं.’ प्रमिला, महिला समूहों के साथ एक डिजिटल चैंपियन के तौर पर काम करती हैं और तकनीक का इस्तेमाल करके आदिवासी महिलाओं को उनके जंगल के उत्पाद बेचने और कारोबार बढ़ाने में मदद करती हैं.

कोरापुट, ओडिशा के केबीके क्षेत्र (कोरापुट, बलांगीर और कालाहांडी) का एक हिस्सा है, जो बहुत कम विकसित है और अक्सर सूखे और अकाल का शिकार होता है. इन क़ुदरती आपदाओं के चलते स्थानीय लोग मुश्किल में पड़ जाते हैं और अपना घर-बार छोड़कर भागने को मजबूर होते हैं. [ii]  इस इलाक़े में पूरे साल खेती करना मुमकिन नहीं है, क्योंकि ज़मीन बहुत ऊबड़-खाबड़ है और उसकी सिंचाई नहीं हो सकती है. जब मॉनसून की बारिश होती है, तो यहां के लोग चावल, मक्का और बाजरा बोते हैं. साल के बाक़ी महीनों में ये समुदाय, अपनी रोज़ी रोटी के लिए जंगलों के बिना लकड़ी वाले उत्पादों (NTFPs)- यानी लकड़ी को छोड़कर जंगल से मिलने वाले बाक़ी के उत्पादों- पर निर्भर होते हैं. इस इलाक़े के जंगली उत्पादों में सबसे आम है इमली और साल के बीज. पहले महिलाएं, जंगल से जुटाए गए अपने उत्पाद को अपने गांवों के पास के बाज़ार जैसे कि कुंद्रा, कोटपद और जेपुर में बेचा करती थीं. लेकिन, उन्हें अपना माल लाने- ले जाने में बहुत ख़र्च उठाना पड़ता था. आज प्रमिला की मदद से स्थानीय महिलाएं अपने उत्पाद अपने गांव में बेच सकती हैं, क्योंकि प्रमिला ने अपने स्मार्टफ़ोन की मदद से इन महिलाओं को बाहर के बाज़ार से भी जोड़ दिया है.

कोरापुट, ओडिशा के केबीके क्षेत्र (कोरापुट, बलांगीर और कालाहांडी) का एक हिस्सा है, जो बहुत कम विकसित है और अक्सर सूखे और अकाल का शिकार होता है. इन क़ुदरती आपदाओं के चलते स्थानीय लोग मुश्किल में पड़ जाते हैं और अपना घर-बार छोड़कर भागने को मजबूर होते हैं.

प्रमिला अपने समुदाय को जागरूक बनाने के लिए भी काम कर रही हैं. वो महिलाओं को उनके जंगल से जुटाए गए उत्पादों (NTFPs) के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP)* की जानकारी देती हैं. जब पिछली बार इमली की फसल हुई थी, तो प्रमिला ने इसका न्यूनतम समर्थन मूल्य ऑनलाइन देखा और पाया कि इमली का थोक भाव 36 रुपए किलो था.

ओडिशा में महिलाओं (15 से 49 वर्ष आयु) का तकनीकी सशक्तिकरण
जिन महिलाओं के पास मोबाइल है और वो उसका इस्तेमाल ख़ुद करती हैं 50.1%
जिन महिलाओं के पास अपना मोबाइल फोन है उनमें से वो महिलाएं जो SMS पढ़ सकती हैं 68.3%
मोबाइल से पैसों का लेन-देन करने वाली महिलाओं की तादाद 17.3%
जिन महिलाओं ने कभी न कभी इंटरनेट का इस्तेमाल किया है 24.9%

स्रोतNational Family Health Survey, 2019-21[iii]

a[1] न्यूनतम समर्थन मूल्य वो क़ीमत है जो सरकार किसी कृषि उत्पाद के लिए तय करती है और जो किसानों की आमदनी बढ़ाने में मददगार बनता है.

ये क़ीमत, 23 रुपए किलो के उस भाव से ज़्यादा थी जो कारोबारी दे रहे थे. महिलाओं के समूह ने अपने उत्पाद के लिए बेहतर क़ीमत हासिल करने के लिए मोल-भाव किया. प्रमिला कहती हैं कि, ‘अब हमें किसी जानकारी के लिए दूसरों के भरोसे नहीं रहना होता. हम सीधे ख़रीदारों से बात करते हैं. हम डिजिटल पेमेंट ऐप के ज़रिए सीधे लेन-देन भी कर सकते हैं.’

प्रमिला को ‘ट्रांसफॉर्मिंग ट्राइबल विमेन ऐज़ डिजिटली एम्पावर्ड एंटरप्राइज़ लीडर्स’ कार्यक्रम के तरत प्रशिक्षित किया गया है. ये कार्यक्रम 2021 में आदिवासी महिलाओं के बीच डिजिटल साक्षरता और कारोबार को बढ़ावा देने के लिए शुरू किया गया था. इस कार्यक्रम के दायरे में ओडिशा के आदिवासी ज़िलों की 6600 महिलाएं आती हैं. इस कार्यक्रम को सेंटर फॉर यूथ ऐंड सोशल डेवेलपमेंट (CYSD) नाम के एक अलाभकारी संगठन ने तैयार किया है. इस कार्यक्रम को रिलायंस फाउंडेशन और USAID की पहल वुमेन कनेक्ट चैलेंज इंडिया के ज़रिए मदद भी दी गई है. इस कार्यक्रम का एक आविष्कार, बनश्री नाम के ऐप का विकास है. ये आदिवासी महिलाओं को बाज़ार से जोड़ने और सामारिक सुरक्षा की योजनाओं की जानकारी देने में मदद करता है. ये कार्यक्रम वन धन विकास योजना लागू करने से बड़ी नज़दीकी से जुड़ा है. वन धन विकास योजना 2018 में केंद्र सरकार ने शुरू की थी. इस योजना के दायरे में देश भर के वो 307 ज़िले आते हैं, जहां जंगलों में रहने वाली आदिवासी बसते हैं. आदिवासी महिलाओं के बीच उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए इस योजना के तहत, उन्हें कौशल विकास का प्रशिक्षण दिया जाता है. न्यूनतम समर्थन मूल्य के ज़रिए उनके जंगल से जुटाए गए उत्पादों की मार्केटिंग भी की जाती है.

प्रमिला, तीन बहनों में सबसे बड़ी हैं. वो जमुनाहांडी गांव में पैदा हुई थीं, जो डंगरापाली से एक घंटे की दूरी पर है. प्रमिला के पिता छत्तीसगढ़ में लोहे के एक कारखाने में काम करते थे. जब प्रमिला आठ बरस की थीं, तो उनके पिता की मौत बीमारी से हो गई थी और परिवार को छत्तीसगढ़ से जमुनाहांडी लौटना पड़ा था. प्रमिला की मां, परिवार चलाने के लिए खेती के साथ साथ सिलाई का काम भी करती थीं. प्रमिला को आज भी याद है कि उनकी मां बिना आराम किए लगातार काम करती थीं. ताकि अकेले दम पर अपनी तीन बेटियों की परवरिश कर सकें. प्रमिला उन दिनों को याद करते हुए कहती हैं कि, ‘मेरी मां ने तीसरे दर्जे तक पढ़ाई की थी. उन दिनों महिलाओं को इससे ज़्यादा पढ़ने का मौक़ा नहीं मिल पाता था. हालांकि मेरी मां अपनी पढ़ाई आगे भी जारी रखना चाहती थीं.’ प्रमिला और उनकी बहनों ने एक ख़ैराती स्कूल में दसवीं कक्षा तक की पढ़ाई की है.

प्रमिला को ‘ट्रांसफॉर्मिंग ट्राइबल विमेन ऐज़ डिजिटली एम्पावर्ड एंटरप्राइज़ लीडर्स’ कार्यक्रम के तरत प्रशिक्षित किया गया है. ये कार्यक्रम 2021 में आदिवासी महिलाओं के बीच डिजिटल साक्षरता और कारोबार को बढ़ावा देने के लिए शुरू किया गया था.

16 साल की उम्र में प्रमिला की शादी हो गई और वो अपनी ससुराल डंगरापाली चली आईं. उनके पति उदय चंद्र कृष्ण ने भी दसवीं तक पढ़ाई की है. वो खेती करते हैं और कभी कभार ऑटो रिक्शा भी चला लेते हैं. प्रमिला कहती हैं कि उदय ने उन्हें अपने मन का काम करने में पूरा साथ दिया है. दोनों के दो बच्चे हैं. एक सोलह बरस की बेटी है और 13 साल का बेटा है. प्रमिला की बेटी भी मां की तरह अपने समुदाय के बीच में काम करने में दिलचस्पी रखती है और पढ़ लिखकर, प्रशिक्षित नर्स बनना चाहती है. b [2]

अपनी शादी के शुरुआती दिनों में, प्रमिला के ऊपर घरेलू काम का बोझ बहुत अधिक था. ऐसे में वो अपने मन का काम करने के लिए वक़्त नहीं निकाल पाती थीं. उन दिनों का डंगरापाली गांव आज से बहुत अलग था. गांव, जंगल के एक कोने पर आबाद था. रात होते ही पूरा गांव स्याह अंधेरे में डूब जाता था, क्योंकि गांव में बिजली नहीं थी. पानी का भी कनेक्शन नहीं था. प्रमिला के दिन की शुरुआत रौशनी होने के साथ ही हो जाती थी. सबसे पहले वो डंगरापाली की अन्य लड़कियों और महिलाओं के साथ ट्यूबवेल से पानी भरने की क़तार में खड़ी होती थीं. दोपहर के वक़्त वो घर साफ़ करके खाना बनाने की तैयारी करती थीं. चावल निकालने के लिए उन्हें धान को कूटकर साफ़ करना पड़ता था. इसके लिए वो हाथ से धिनकी चलाती थीं. ये बेहद लंबा और थकाऊ काम था, जो गांव की हर महिला को करना ही पड़ता था. बाद में वो चावल पकाने के लिए लकड़ी लाने जंगल में जाती थीं. आज डंगरापाली गांव में चावल की मिल है और लगभग हर घर में पानी और गैस का कनेक्शन है. लेकिन, प्रमिला अपनी ज़िंदगी में और भी बहुत कुछ करना चाहती थीं.

एक सामुदायिक नेता और उद्ममी के तौर पर प्रमिला का करियर उस वक़्त शुरू हुआ, जब उन्होंने शादी के बाद गांव के बच्चों को पढ़ाना शुरू किया. वो गांव की उन गिनी चुनी महिलाओं में से एक थीं, जिन्होंने पढ़ाई कर रखी थी. हालांकि अब हालत में कुछ सुधार ज़रूर आया है- राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2019-21 के मुताबिक़, कोरापुट ज़िले की 40.6 प्रतिशत महिलाएं शिक्षित हैं. हालांकि केवल 17.6 फ़ीसद महिलाओं ने दस साल या इससे ज़्यादा तक शिक्षा प्राप्त की है. [iv]

साल 2004 के आस-पास गांव में स्वयं सहायता समूह (SHGs) बनाने का अभियान चला था और ज़रूरत इस बात की थी कि कोई स्वयं सहायता समूह का हिसाब रखने वाला भी होना चाहिए. प्रमिला ने स्वयं सहायता समूह बनाने की अगुवाई की. पहले साल के बाद, जब बैंक ने उन्हें कर्ज़ दिया तो उन्होंने इमली की एक खेप बेची और थोड़ा सा मुनाफ़ा कमाया. 2008 के बाद से उन्होंने गांव के स्कूल के लिए मिड-डे मील पकाने का ठेका ले लिया. प्रमिला के काम पर लोगों का ध्यान गया और धीरे धीरे तरक़्क़ी करके वो स्वयं सहायता समूह के ग्राम पंचायत स्तर के संघ की प्रमुख बन गईं. c [3]

प्रमिला को उनके बेटे ने इंटरनेट पर ब्राउज़िंग और व्हाट्सऐप पर बात करना सिखा दिया है. वो बनश्री ऐप के ज़रिए गांव की महिलाओं की कई तरह से मदद करती हैं. उनके उत्पादों के बाज़ार भाव जानने के साथ साथ सामाजिक योजनाओं के बारे में जानकारी जुटाने में भी मदद करती हैं. बनश्री ऐप विधवा पेंशन और वृद्धावस्था पेंशन जैसी कई योजनाओं के बारे में ताज़ातरीन जानकारी उपलब्ध कराता है. प्रमिला ये जानकारियां अपने समुदाय की दूसरी महिलाओं के साथ साझा करती हैं.

2010 में जब CYSD को ऐसे सामुदायिक नेताओं की तलाश थी, जो स्कूल छोड़ने वाले बच्चों को दोबारा स्कूल में पढ़ने लाने का कार्यक्रम लागू करने में मदद करें, तो प्रमिला को इस योजना से जोड़ा गया. उसके बाद से ही प्रमिला अपने समय का एक हिस्सा इस काम के लिए भी निकालती हैं. कोरापुट, नीति आयोग के ‘एस्पिरेशनल डिस्ट्रिक्ट्स प्रोग्राम’[v]  का एक हिस्सा है. इस कार्यक्रम के तहत देश के सबसे पिछड़े 112 ज़िलों का विकास किया जा रहा है. पिछले साल शिक्षा के मामले में कोरापुट इन 112 ज़िलों में सबसे ज़्यादा प्रगति करने वाला ज़िला चुना गया था. हालांकि, आदिवासी महिलाओं के बीच डिजिटल कनेक्टिविटी अभी भी बहुत कम है; CYSD द्वारा किए गए सर्वे के मुताबिक़ कोरापुट ज़िले में केवल 12 प्रतिशत महिलाओं के पास डिजिटल कनेक्टिविटी है. दो साल पहले प्रमिला ने अपने बचाए हुए पैसों से एक स्मार्टफ़ोन ख़रीदा था. पहले तो वो इस फ़ोन का इस्तेमाल केवल अपने परिवार वालों से बात करने के लिए करती थीं. लेकिन, CYSD का कोर्स करने के बाद हालात बिल्कुल बदल गए. प्रमिला कहती हैं कि, ‘पहले मुझे बात करने के सिवा फ़ोन का कोई और इस्तेमाल नज़र नहीं आता था. लेकिन अब तो इसने मेरी ज़िंदगी बहुत आसान बना दी है. आज मैं एक ही जगह पर रहते हुए अपना बहुत सारा काम इस फ़ोन से ही कर लेती हूं.’ प्रमिला को उनके बेटे ने इंटरनेट पर ब्राउज़िंग और व्हाट्सऐप पर बात करना सिखा दिया है. वो बनश्री ऐप के ज़रिए गांव की महिलाओं की कई तरह से मदद करती हैं. उनके उत्पादों के बाज़ार भाव जानने के साथ साथ सामाजिक योजनाओं के बारे में जानकारी जुटाने में भी मदद करती हैं. बनश्री ऐप विधवा पेंशन और वृद्धावस्था पेंशन जैसी कई योजनाओं के बारे में ताज़ातरीन जानकारी उपलब्ध कराता है. प्रमिला ये जानकारियां अपने समुदाय की दूसरी महिलाओं के साथ साझा करती हैं.[vi]

जब प्रमिला काम नहीं कर रही होती हैं, तो वो फ़ोन पर नई नई चीज़ें सीखती हैं. हाल ही में उन्होंने बिरयानी बनाने की ऑनलाइन रेसिपी सीखी है. अब वो सिलाई सीखने की तैयारी कर रही हैं. अपनी मां की तरह, प्रमिला भी लगातार काम करती रहती हैं और वो भी एक नहीं, एक साथ कई काम. प्रमिला बड़े गर्व से कहती हैं कि, ‘लोगों को मेरी ज़रूरत हर वक़्त होती है और मैं मदद कर सकती हूं. इसी बात से मुझे लगातार काम करने की ताक़त मिलती है’.

मुख्य सबक़

  • बुनियादी डिजिटल सारक्षता के साथ एक जोड़ने वाले ई-प्लेटफॉर्म को मिलाकर जानकारी जुटाई जा सकती है और दूर-दराज़ के इलाक़ों को बाज़ार से जोड़ा जा सकता है.
  • महिलाओं के समूहों से जुड़े कार्यक्रमों में तकनीक को शामिल करना, उद्यमिता को बढ़ावा देने का एक सकारात्मक नज़रिया है.

NOTES

[1] Minimum support price is the minimum price set by the government for certain agricultural products, which acts as a safety net for farmers.

[2] A cadre of female health workers

[3] An SHG federation combines a number SHGs for common cause and administration. Gram panchayat is a council at the village level.

[i]  Koraput District, Government of Odisha, https://koraput.nic.in/.

[ii] Socio-Economic Profile of KBK Districts, Niti Aayog, https://niti.gov.in/planningcommission.gov.in/docs/plans/stateplan/sdr_orissa/sdr_orich10.pdf.

[iii] International Institute for Population Sciences, National Family Health Survey (NFHS-5), 2019–21: India: Volume 1, March 2022, http://rchiips.org/nfhs/NFHS-5Reports/NFHS-5_INDIA_REPORT.pdf.

[iv] National Family Health Survey (NFHS-5), 2019–21, District Fact Sheet, Koraput, Odisha, http://rchiips.org/nfhs/NFHS-5_FCTS/OR/Koraput.pdf.

[v] Aspirational Districts Programme, Niti Aayog, https://www.niti.gov.in/aspirational-districts-programme.

[vi] Van Dhan Yojana, Mera Van-Mera Dhan-Mera Udyan, 200 Days Report, March 2020, https://trifed.tribal.gov.in/sites/default/files/2020-05/200%20DAYS%20PMVDY%2025_05_2020-compressed.pdf.

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