Published on Jun 14, 2023 Updated 0 Hours ago
इंटीग्रेटेड रॉकेट फोर्स: अधूरा लेकिन सही दिशा में एक क़दम

भारत सरकार की तरफ़ से एक इंटीग्रेटेड रॉकेट फोर्स (IRF) की स्थापना का ऐलान उन लोगों के लिए राहत की ख़बर है जिन्होंने इसकी वक़ालत की थी. IRF के एक ट्राई-सर्विस (तीनों सेना से जुड़े) संगठन होने की उम्मीद की जा रही है. संपर्क में आए बिना परंपरागत युद्ध (नॉन-कॉन्टैक्ट कन्वेंशनल वॉरफेयर) के लिए तैयार IRF की स्थापना के फ़ैसले का प्रस्ताव और उसे लोगों की जानकारी में सबसे पहले 2021 में पूर्व चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) जनरल बिपिन रावत के द्वारा लाया गया था. ये नई मिसाइल फोर्स सिर्फ़ परंपरागत मिसाइलों को युद्ध क्षेत्र में तैनात करेगी जिनमें कम दूरी (शॉर्ट रेंज) से लेकर मध्यम दूरी (मीडियम रेंज) की बैलिस्टिक मिसाइल जैसे कि प्रलय एवं क्रूज़ मिसाइल जैसे कि ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल और आवाज़ से कम रफ़्तार वाली (सब-सोनिक) लंबी दूरी (लॉन्ग रेंज) की लैंड अटैक क्रूज़ मिसाइल (LR-LACM) शामिल हैं. 

शांति के समय में पूरी तरह से परमाणु ऊर्जा विभाग (DAE) के नियंत्रण में है और संकट एवं युद्ध के दौरान डिलीवरी सिस्टम के साथ मिलने के लिए तैयार रहती है. इस नये ट्राई-सर्विस ऑर्गेनाइज़ेशन के बारे में और ज़्यादा विस्तृत जानकारी की ज़रूरत है लेकिन इसे स्थापित करने की आवश्यकता पहले से मौजूद थी.

IRF 2003 में स्थापित स्ट्रैटेजिक फोर्सेज़ कमांड (SFC) से अलग है. हालांकि SFC भी एक ट्राई-सर्विस कमांड ऑर्गेनाइजेशन है और ये युद्ध की स्थिति में भारत की तरफ़ से परमाणु हथियार को लॉन्च करने के लिए ज़िम्मेदार है. SFC भारत के प्रधानमंत्री की अगुवाई वाली न्यूक्लियर कमांड अथॉरिटी (NCA) के नियंत्रण और आदेश पर काम करने वाला संगठन है. हालांकि SFC वॉरहेड की फिसाइल कोर (ऐसी चीज़ जो न्यूक्लियर फिसाइल चेन रिएक्शन को थामने में सक्षम हो) को नियंत्रित नहीं करती है जो कि शांति के समय में पूरी तरह से परमाणु ऊर्जा विभाग (DAE) के नियंत्रण में है और संकट एवं युद्ध के दौरान डिलीवरी सिस्टम के साथ मिलने के लिए तैयार रहती है. इस नये ट्राई-सर्विस ऑर्गेनाइज़ेशन के बारे में और ज़्यादा विस्तृत जानकारी की ज़रूरत है लेकिन इसे स्थापित करने की आवश्यकता पहले से मौजूद थी. 

चीन की रॉकेट फोर्स 

भारत का नज़रिया पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (PRC) से काफ़ी अलग है लेकिन IRF की स्थापना के पीछे चीन मुख्य कारण भी है. ये साफ़ नहीं है कि IRF ट्राई-सर्विस जैसे कि डिफेंस साइबर एजेंसी (DCyA) और डिफेंस स्पेस एजेंसी (DSA) जैसी एजेंसी स्तर की संस्था है या कमांड-लेवल ऑर्गेनाइज़ेशन जैसे कि SFC या फिर अंडमान और निकोबार कमांड (A&NC) की तरह है. अभी तक ऐसा लग रहा है कि ये एक एजेंसी स्तर का संगठन है. IRF के संगठन का दर्जा कुछ भी हो लेकिन सवाल ये है कि IRF की स्थापना के पीछे क्या कारण है और चीन जो कर रहा हैये उससे कैसे अलग है.  

चीन की तेज़ी से बढ़ रही मिसाइल और न्यूक्लियर फोर्स साफ़ तौर पर भारत की परंपरागत मिसाइल फोर्स के पीछे की वजह है. चीन के साथ-साथ पाकिस्तान भी IRF की स्थापना के पीछे एक कारण है. नयी-नवेली IRF और पीपुल्स लिबरेशन आर्मी रॉकेट फोर्स (PLARF) के बीच प्रमुख अंतर के बारे में बताना भारत और चीन के अलग-अलग सामरिक रवैये को समझने के लिए महत्वपूर्ण है. सबसे अहम बात ये है कि PLARF और IRF के बीच अंतर को समझने के लिए चीन और भारत- दोनों के द्वारा अपने-अपने देश की कमांड और कंट्रोल (C2) संरचनास्थिति और सांगठनिक ढांचे के मामले में जोखिम के स्तर की समझ ज़रूरी है. 

चीन की तेज़ी से बढ़ रही मिसाइल और न्यूक्लियर फोर्स साफ़ तौर पर भारत की परंपरागत मिसाइल फोर्स के पीछे की वजह है. चीन के साथ-साथ पाकिस्तान भी IRF की स्थापना के पीछे एक कारण है. 

सबसे पहलेचीन की सेना की PLARF शांति के समय और युद्ध के दौरान- दोनों ही वक़्त में चीन की संयुक्त परमाणु एवं मिसाइल फोर्स (कंबाइंड न्यूक्लियर एंड मिसाइल फोर्स) की संरक्षक (कस्टोडियन) और संचालक (ऑपरेटर) है और ये सीधे राष्ट्रपति शी जिनपिंग के नेतृत्व वाले सेंट्रल मिलिट्री कमीशन (CMC) को रिपोर्ट करती है. चीन ने परंपरागत मिसाइल क्षमता के साथ परमाणु ताक़त से लैस मिसाइलों की तैनाती को मिलाने का काम शुरू किया है. ये भारत की IRF और चीन की PLARF के बीच महत्वपूर्ण अंतर है. इसने परमाणु और ग़ैर-परमाणु या परंपरागत मिसाइलों को एक-दूसरे को छूने वाले भौगोलिक क्षेत्रों (ओवरलैपिंग ज्योग्राफिक लोकेशन) में स्थापित किया है. चीन ने परमाणु क्षमता से लैस और परंपरागत फोर्स को साझा करके जानबूझकर अस्पष्टता का एक रवैया अपनाया है और लॉन्च ऑन वॉर्निंग (LoW यानी दुश्मन की मिसाइल का पता लगते ही परमाणु हमला) के रुख़ के क़रीब आ गया है. संकट की स्थिति में भारत समेत किसी भी दुश्मन के लिए परंपरागत और परमाणु हमले के बीच के अंतर का आकलन और निर्धारण मुश्किल होने की उम्मीद है. ये परमाणु क्षमता से लैस चीन के विरोधियों के लिए हमले के विकल्प को मुश्किल बनाता है क्योंकि उनके लिए PLARF की परंपरागत और परमाणु हथियार से लैस फोर्स के बीच अंतर करना बेहद मुश्किल हो जाएगा. ये रणनीति चीन के विरोधियों को हमला करने से रोकेगी. 

PLARF की मिसाइल फोर्स का भी महत्वपूर्ण विस्तार हुआ है. वैसे तो PLARF मिसाइल की व्यापक रेंज को युद्ध क्षेत्र में तैनात करती है लेकिन भारत के लिए विशेष रूप से चिंता की बात है चीन की दोहरी क्षमता वाली डॉन्ग फेंग (DF)-21 और डॉन्ग फेंग (DF)-26 बैलिस्टिक मिसाइल. DF-21 और DF-26 मिसाइल थियेटर स्तर के टारगेट पर हमले के लिए परमाणु और परंपरागत- दोनों मिशन को पूरा करने की क्षमता रखती हैं. थियेटर स्तर के इन टारगेट में चीन के मेनलैंड से 1,500-2,000 किलोमीटर का दायरा या पूरा एशिया महाद्वीप शामिल हो सकता है. चीन ने अपने मौजूदा परमाणु रवैये को सही ठहराते हुए इसे अमेरिका के ग्लोबल कन्वेंशनल प्रॉम्प्ट स्ट्राइक (GCPS यानी अमेरिकी सेना के द्वारा वो सिस्टम विकसित करने की कोशिश जिसके तहत दुनिया में कहीं भी एक घंटे के भीतर परंपरागत हवाई हमला किया जा सकता है) और मिसाइल डिफेंस (MD) का सीधा नतीजा बताया है. GCPS और MD के अमेरिका के मक़सद ने भी कुछ हद तक चीन को अस्पष्ट प्रतिरोधी रवैया अपनाने के लिए मजबूर किया है. इसके साथ-साथ चीन को अपने परमाणु और मिसाइल भंडार को महत्वपूर्ण रूप से बढ़ाने के लिए भी प्रेरित किया है. इससे भारत पर दबाव बढ़ गया है. 

PLARF के उलट IRF एक पूरी तरह से परंपरागत मिसाइल फोर्स है और चीन के मिसाइल टारगेट के ख़िलाफ़ इसका इस्तेमाल PLARF की मिली-जुली तैनाती से मुश्किल बना रहेगा और ये एक चुनौती बनी रहेगी.

PLARF के उलट IRF एक पूरी तरह से परंपरागत मिसाइल फोर्स है और चीन के मिसाइल टारगेट के ख़िलाफ़ इसका इस्तेमाल PLARF की मिली-जुली तैनाती से मुश्किल बना रहेगा और ये एक चुनौती बनी रहेगी. इसके बावजूद IRF के हिस्से के रूप में तैनात मिसाइल फोर्स पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) और पीपुल्स लिबरेशन आर्मी एयरफोर्स (PLAFF) के स्थिर और चलते-फिरते लक्ष्यों के ख़िलाफ़ काफ़ी असरदार होगी. भारत के द्वारा जोखिम से भरे उस नज़रिये को अपनाने की संभावना कम है जिसको चीन ने अपनी परमाणु और परंपरागत फोर्स को मिलाकर अपनाया है. इसकी आसान वजह ये है कि भारत की कमांड और कंट्रोल (C2) संरचना एहतियात पर काफ़ी महत्व देते है और देश की सामरिक क्षमताओं के ऊपर साफ़ तौर से सिविलियन नियंत्रण है.

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