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काफी हद तक 1920 के दशक की तरह ऐसा लग रहा है कि अमेरिका वैश्विक मंच से तेज़ी से पीछे हट रहा है और ख़ुद को अलग-थलग कर रहा है. विश्व के सबसे अमीर देश के रूप में दुनिया के बाकी हिस्सों से अमेरिका की वापसी के परिणाम होंगे, न केवल यूरोप की सुरक्षा के लिए बल्कि अमेरिकी सहायता पर निर्भर कम विकसित देशों और विकासशील देशों के लिए भी.
अमेरिका के समर्थन के बिना यूरोप ख़ुद को व्यवस्थित कर रहा है, अपनी रक्षा क्षमताओं को बढ़ाकर और विशाल अमेरिकी बाज़ार पर निर्भर हुए बिना समृद्ध होने के रास्ते तलाश रहा है. इसमें समय लग सकता है लेकिन ये नहीं मान लेना चाहिए कि यूरोप ऐसा नहीं कर सकता है. ऐसी स्थिति में हम बाकी देश कहां हैं?
द्वितीय विश्व युद्ध के समय से यूरोप ने करीबी मेल-जोल की कल्पना की है और वो ख़ुद को एक इकाई के रूप में एकीकृत करने का प्रयास कर रहा है. यूरोप ने एक साझा बाज़ार और एकल मुद्रा के माध्यम से काफी हद तक अपना लक्ष्य हासिल कर लिया है. ये बस कुछ समय की बात है जब यूरोप की एक संगठित सेना हो जाएगी.
यूनाइटेड किंगडम (UK) राष्ट्रमंडल (कॉमनवेल्थ) की कीमत पर साझा बाज़ार में शामिल हुआ. ब्रिटेन को मछली का निर्यात करने के लिए मालदीव को 25 प्रतिशत शुल्क देना होगा. ब्रिटिश पर्यटकों के लिए मालदीव में छुट्टियां बिताना यूरोप में छुट्टियां बिताने की तुलना में बहुत ज़्यादा महंगा है. ब्रिटिश पर्यटक छुट्टी बिताने के लिए मालदीव सिर्फ इस वजह से आते हैं क्योंकि वो यूरोप में उसी तरह की शानदार भव्यता वाली छुट्टी नहीं बिता सकते हैं. मालदीव अकेला नहीं है बल्कि राष्ट्रमंडल के दूसरे देशों को भी ब्रिटेन के साझा बाज़ार में शामिल होने पर नुकसान का सामना करना पड़ा.
ब्रिटेन यूरोपीय संघ से अलग हो चुका है और राष्ट्रमंडल देश ब्रिटेन के साथ व्यापार समझौते को लेकर लगातार बातचीत कर रहे हैं. ब्रिटेन की बाकी चीज़ों की तरह ये भी कतार में लगकर किया जाता है. मालदीव और राष्ट्रमंडल के कई देश धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा कर रहे हैं जबकि कुछ देश ये सवाल उठा रहे हैं कि क्या ब्रिटेन के साथ व्यापार समझौता उनके लिए वाकई लाभदायक है. चूंकि चीन और भारत तेज़ी से समृद्ध हो रहे हैं, ऐसी स्थिति में उन बाज़ारों में सामान बेचना बहुत अधिक आकर्षक होता जा रहा है.
राष्ट्रमंडल का मतलब सिर्फ ब्रिटेन नहीं है बल्कि इसमें 56 संप्रभु देश और 2.7 अरब से ज़्यादा लोग हैं. राष्ट्रमंडल देशों का संयुक्त सकल घरेलू उत्पाद (GDP) 2021 में लगभग 13 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर था. अनुमान लगाया जा रहा है कि 2027 तक ये आंकड़ा 20 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर पर पहुंच जाएगा जो 10 साल पहले की GDP की तुलना में लगभग दोगुना होगा.
राष्ट्रमंडल का मतलब सिर्फ ब्रिटेन नहीं है बल्कि इसमें 56 संप्रभु देश और 2.7 अरब से ज़्यादा लोग हैं. राष्ट्रमंडल देशों का संयुक्त सकल घरेलू उत्पाद (GDP) 2021 में लगभग 13 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर था. अनुमान लगाया जा रहा है कि 2027 तक ये आंकड़ा 20 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर पर पहुंच जाएगा जो 10 साल पहले की GDP की तुलना में लगभग दोगुना होगा. राष्ट्रमंडल के 2.7 अरब लोगों का साझा मूल्य उनके औपनिवेशीकरण के इतिहास से बढ़कर है. लेकिन ये अतीत है और बदलती भू-राजनीति के साथ इसको लेकर खुमार में रहना बुद्धिमानी नहीं होगी. हम महज़ अत्याचार की विरासत की तुलना में और भी बहुत कुछ साझा करते हैं.
पुनर्कल्पना परियोजना
पिछले साल इस लेखक ने ‘राष्ट्रमंडल की पुनर्कल्पना’ नाम की एक परियोजना में भाग लिया था. कनाडा के पूर्व प्रधानमंत्री स्टीफन हार्पर ने UK के न्यूकैसल-अंडर-लाइम से लेबर पार्टी के सांसद एडम जोगी के साथ इस परियोजना की सह-अध्यक्षता की. इस समूह में ऑस्ट्रेलिया के विदेश मामलों के पूर्व मंत्री माननीय अलेक्ज़ेंडर डाउनर एसी और राष्ट्रमंडल के लिए UK के सर्वदलीय संसदीय समूह के अध्यक्ष एंड्रयू रोसिन्डेल भी शामिल थे.
चर्चा में सहायता के लिए UK, भारत, नाइजीरिया, ऑस्ट्रेलिया और मलेशिया में एक सर्वे कराया गया. इस सर्वे में UK के प्रति लोगों के रवैये का पता लगाया गया और जवाब देने वालों से पूछा गया कि उनके मुताबिक भविष्य में राष्ट्रमंडल को किन बातों को प्राथमिकता देनी चाहिए.
राष्ट्रमंडल के देशों में हाल-फिलहाल के किसी समय की तुलना में पिछले दो दशकों के दौरान बहुत ज़्यादा बदलाव आया है, विशेष रूप से सर्वे में शामिल देशों में. वैसे तो नाइजीरिया आर्थिक विकास और अपने लोगों की समृद्धि के मामले में पीछे है लेकिन भारत विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है और मालदीव विकसित देश बनने की कगार पर है. इन्हीं दो दशकों के दौरान UK तेज़ी से बदलकर बहु-जातीय लोकतंत्र बन गया है और वहां के राजनीतिक और वाणिज्यिक अभिजात वर्ग के लोग कॉकेशियन की जगह अलग-अलग जातीय मूल के हो गए हैं. UK जिस बहुसांस्कृतिक समाज का निर्माण कर रहा है, वो सभी के लिए स्पष्ट है. इससे पहले के ब्रिटिश प्रधानमंत्री भारतीय मूल के थे और वहां के मंत्री, शैडो मंत्री (विपक्षी नेता) और हाउस ऑफ कॉमन्स के कई सदस्य अलग-अलग जातीय पृष्ठभूमि से आते हैं. सरकारी अधिकारियों और कॉरपोरेट बोर्ड रूम में भी तेज़ी से ये बदलाव हो रहा है. सर्वे के नतीजे इन बदलावों को दिखाते हैं.
UK जिस बहुसांस्कृतिक समाज का निर्माण कर रहा है, वो सभी के लिए स्पष्ट है. इससे पहले के ब्रिटिश प्रधानमंत्री भारतीय मूल के थे और वहां के मंत्री, शैडो मंत्री (विपक्षी नेता) और हाउस ऑफ कॉमन्स के कई सदस्य अलग-अलग जातीय पृष्ठभूमि से आते हैं.
सर्वे के पहले सवाल में बदलती दुनिया में UK की भूमिका की पड़ताल की गई है जो पूरी तरह से भू-राजनीति में राष्ट्रमंडल की भूमिका को दिखाता है. राष्ट्रमंडल के मेज़बान देश के रूप में लोगों के बीच UK की धारणा राष्ट्रमंडल से नज़दीकी तौर पर जुड़ी हुई है. सर्वे से पता चला कि जहां ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया के उत्तर देने वालों का मानना था कि UK का प्रदर्शन बहुत प्रभावशाली नहीं था, वहीं उसके पूर्व उपनिवेशों के लोगों का मानना था कि UK का प्रदर्शन अच्छा है.
सर्वे में यूक्रेन और रूस को लेकर सवाल थे जिससे ये संकेत मिलता है कि अतीत के औपनिवेशिक देश रूस-यूक्रेन युद्ध को केवल यूरोप का मुद्दा मानने से दूरी रखने के पक्ष में थे. मलेशिया, नाइजीरिया और भारत के ज़्यादातर उत्तर देने वालों का मानना है कि यूक्रेन को राष्ट्रमंडल में शामिल होने के लिए न्योता देने से युद्ध को ख़त्म करने में मदद मिल सकती है. पूर्व औपनिवेशिक देशों और रूस के बीच ऐतिहासिक रूप से सौहार्दपूर्ण संबंधों को देखते हुए ज़रूरी नहीं कि इस रवैये का मक़सद रूस के अंतरराष्ट्रीय प्रभाव को सीमित करना है. सर्वे के नतीजों से पता चलता है कि राष्ट्रमंडल के देश अपने लोगों की बेहतरी और व्यापार एवं निवेश बढ़ाने को प्राथमिकता देते हैं.
नये व्यक्ति को ज़िम्मेदारी
इन जानकारियों के आधार पर राष्ट्रमंडल की फिर से कल्पना की जा सकती है. ब्रिटिश साम्राज्य और UK राष्ट्रमंडल का मेज़बान बना रह सकता है जिसका सचिवालय मार्लबोरो हाउस में होगा लेकिन राष्ट्रमंडल का प्रमुख कोई नया व्यक्ति हो. राष्ट्रमंडल प्रमुख की ज़िम्मेदारी हर तीन से चार साल के बाद सदस्य देशों के बीच घूमती रह सकती है. जिस देश का राष्ट्रमंडल प्रमुख हो, उसके राजदूत को बकिंघम पैलेस में रहना चाहिए और प्रमुख हमेशा किसी राष्ट्रमंडल देश का पूर्व नेता ही होना चाहिए.
सुरक्षा के लिए राष्ट्रमंडल देश सदस्य देशों के बीच एक सैन्य गठबंधन की स्थापना कर सकते हैं. इसमें एक-दूसरे की संप्रभुता की रक्षा के लिए स्पष्ट समझौता होना चाहिए और एक साझा राष्ट्रमंडल सेना तैयार करनी चाहिए जो राष्ट्रमंडल के द्वारा ज़रूरी समझे जाने वाले संघर्षों में हस्तक्षेप करने के लिए तैयार रहे. सैन्य दखल पर नज़र रखने के लिए एक निर्णय लेने की प्रक्रिया विकसित की जानी चाहिए.
राष्ट्रमंडल प्रमुख की ज़िम्मेदारी हर तीन से चार साल के बाद सदस्य देशों के बीच घूमती रह सकती है. जिस देश का राष्ट्रमंडल प्रमुख हो, उसके राजदूत को बकिंघम पैलेस में रहना चाहिए और प्रमुख हमेशा किसी राष्ट्रमंडल देश का पूर्व नेता ही होना चाहिए.
कर्ज़ के जाल में फंसे सदस्य देशों को उनके ऋण के पुनर्गठन में सहायता प्रदान करने के लिए एक राष्ट्रमंडल विकास बैंक बनाने की आवश्यकता है. बैंक उन्हें अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की शैली में खर्च में कटौती का उपाय बताने के बदले ऋण स्थिरता के लिए हरित समृद्धि का रास्ता अपनाने में मदद कर सकता है. इसके अलावा बैंक सदस्य देशों को विकास के लिए कर्ज़ मुहैया करा सकता है.
कॉमनवेल्थ देश कार्बन उत्सर्जन पर कानूनी रूप से बाध्यकारी एक समझौता भी कर सकते हैं जिसके तहत बीते हुए वर्षों और वर्तमान उत्सर्जन के स्तर पर आधारित उत्सर्जन भत्ता आवंटित किया जा सकता है. वो इसके अनुसार अनुकूलन के लिए फंडिंग का स्तर निर्धारित कर सकते हैं और सदस्य देशों को जलवायु से जुड़े नुकसान और क्षति में मदद कर सकते हैं.
नया राष्ट्रमंडल सदस्य देशों के लिए स्कॉलरशिप और सभी विश्वविद्यालयों में मानकीकृत पढ़ाई के साथ क्षेत्रीय विश्वविद्यालयों की स्थापना कर सकता है. सदस्य देशों के सभी नागरिकों को स्वास्थ्य देखभाल प्रदान करने वाले क्षेत्रीय अस्पतालों की भी स्थापना की जा सकती है. हमारे सामने एक काल्पनिक आदर्श दुनिया मौजूद है और इसके लिए हमें अमेरिका और वहां के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का शुक्रिया अदा करना होगा जिन्होंने हमें इस दिशा में सोचने के लिए प्रेरित किया है.
मोहम्मद नशीद मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति हैं.
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