Author : Snehashish Mitra

Published on Jan 11, 2024 Updated 0 Hours ago

चूंकि, हाल के दिनों में भारत में शहरी विस्तार की कई परियोजनाओं को ख़राब योजना की वजह से आलोचना का सामना करना पड़ा है. ऐसे में सॉल्टलेक, शहरी नवीनीकरण और टाउन प्लानिंग का एक भारतीय मॉडल बनकर उभर सकता है.

शरणार्थियों का पुनर्वास और भविष्य की योजना पर काम: कोलकाता के सॉल्टलेक टाउनशिप से मिले सबक़!

पिछले कई दशकों से शहरों का विस्तार, पूरे ग्लोबल साउथ के तमाम देशों की एक आम बात बन गया है. इसके तहत शहर के बाहरी इलाक़ों की पारिस्थितिकी और सामाजिक ताने-बाने में बदलाव के साथ उनको शहरों का हिस्सा बनाया जा रहा है. वैसे तो इस परिवर्तन का एक बड़ा हिस्सा निजी क्षेत्र की पूंजी की मदद से हो रहा है. लेकिन, भारत में आज़ादी के बाद के दौर में शहरों का विस्तार लगभग पूरी तरह से सरकार के नेतृत्व में किया गया था. चंडीगढ़, दुर्गापुर, नेवेल्लि, भिलाई और बोकारो जैसे शहर सार्वजनिक क्षेत्र के निवेश और कई मामलों में (भिलाई) तो दूसरे देशों के साथ साझेदारी (जैसे कि पूर्व सोवियत संघ) ने भी इन शहरों के विकास में अहम भूमिका अदा की थी. ये शहरी क्षेत्र कई कारणों के आधार पर विकसित किए गए थे. इनमें न केवल प्रशासनिक ज़रूरतें और बड़े स्तर की निर्माण इकाइयों की स्थापना शामिल थे, बल्कि देश के चार महानगरों यानी कोलकाता, मुंबई, नई दिल्ली और चेन्नई पर बढ़ती आबादी का दबाव कम करना भी एक मक़सद था.

कोलकाता के बगल में विकसित किए गए इस उपनगर की परिकल्पना 1950 के दशक में की गई थी और इसके पीछे कारण, अविभाजित बंगाल के उन इलाक़ों से पश्चिम बंगाल आ रहे शरणार्थियों को बसाने का था, जिन्हें उस समय पाकिस्तान को आवंटित किया गया था.

लेकिन, कोलकाता की सॉल्टलेक टाउनशिप (जिसे बिधाननगर भी कहा जाता है) को विकसित करने की अलग ही वजह था. कोलकाता के बगल में विकसित किए गए इस उपनगर की परिकल्पना 1950 के दशक में की गई थी और इसके पीछे कारण, अविभाजित बंगाल के उन इलाक़ों से पश्चिम बंगाल आ रहे शरणार्थियों को बसाने का था, जिन्हें उस समय पाकिस्तान को (अब बांग्लादेश) आवंटित किया गया था. आज सॉल्टलेक को भारत की बेहद सतर्कता से और भविष्योन्मुखी योजना के तहत बसाए गए उपनगरीय इलाक़े के रूप में जाना और माना जाता है. सॉल्टलेक की चौड़ी सड़कें, बड़े चौराहे, खुले इलाक़े और हरियाली की पट्टियां, इसे ख़ास बनाती हैं. चूंकि, हाल के दिनों में भारत में शहरी विस्तार और ग्रीनफील्ड शहरों की कई परियोजनाओं को ख़राब योजना और रहन-सहन के बुरे मूलभूत ढांचे के लिए आलोचनाओं का सामना करना पड़ा है. ऐसे में सॉल्टलेक सिटी, शहरी नवीनीकरण और योजना निर्माण का एक शानदार भारतीय उदाहरण बन सकता है.

सॉल्टलेक का निर्माण कैसे हुआ था

देश के बंटवारे के बाद, पश्चिम बंगाल में पूर्वी पाकिस्तान से बड़ी तादाद में शरणार्थी आए थे. इन शरणार्थियों का एक बड़ा हिस्सा कोलकाता और आस-पास के इलाक़ों में बस गया था. पश्चिम बंगाल के उस वक़्त के मुख्यमंत्री ने कोलकाता से लगा एक नया शहर बसाने का फ़ैसला दो लक्ष्यों के साथ किया था: 1) कोलकाता में मौजूदा और आने वाले समय की बढ़ती आबादी का बोझ घटाना; 2) शरणार्थियों का पुनर्वास और, ख़ास तौर से बंगाल के मध्यम वर्ग के लिए रहने लायक़ जगह का निर्माण करना.

सॉल्टलेक की ये नई टाउनशिप, कोलकाता के पूर्वी हिस्से की दलदली ज़मीन को शहर बसाने लायक़ बनाकर बसाने की योजना बनाई गई थी; ये दलदली इलाक़े पूर्वी कोलकाता वेटलैंड्स (EKW) का हिस्सा थे. इस दलदली ज़मीन को शहर बसाने लायक़ बनाने का विचार, मोटे तौर पर नीदरलैंड्स में दलदली ज़मीन को दोबारा हासिल करने के विचार से प्रेरित था. सॉल्टलेक के लिए जिस दलदली इलाक़े को प्रकृति से दोबारा हासिल किया गया, उसका मालिकाना हक़ उस वक़्त कोलकाता के मेयर के पास था, जिन्होंने ये ज़मीन एक रूपए की प्रतीकात्मक क़ीमत पर सरकार के हवाले कर दी थी.

खारे पानी की झीलों के सर्वेक्षण का काम एक डच इंजीनियरिंग कंपनी नेडेको ने 1953 में किया था. 15 फरवरी 1955 को सरकार ने दलदल से ठोस ज़मीन में बदलने के लिए सॉल्टलेक इलाक़े के उत्तरी हिस्से में 173.7 एकड़ ज़मीन का अधिग्रहण किया था. इसमें नयाबाद, करीमपुर, हदिया, जगतिपोटा, परगछिया, पंचपोता, मुकुंदापुर और तेंटुलबाड़ी के मौजा (एक प्रशासनिक इकाई) शामिल थे. पूर्व युगोस्लाविया की इवान मिलुटिनोविच इन्वेस्ट इंपोर्ट कंपनी (IMIIC) ने 1959 में इस दलदली ज़मीन को ठोस बनाने का ठेका हासिल किया. सॉल्टलेक शहर के नक़्शे (ले-आउट प्लान) 1964 में मंज़ूरी दी गई. IMIIC जिसे कोलकाता की हुगली नदी से तलछट साफ करने का ठेका भी दिया गया था, उसने 1961 से 1967 के बीच हुगली नदी से निकाले गए कचरे को सॉल्टलेक के दलदली इलाक़ों में डाला और सॉल्टलेक के उन इलाक़ों को बसाने लायक़ बनाया. जैसे ही ज़मीन को पानी से दोबारा हासिल कर लिया गया, तो सॉल्टलेक शहर बसाने का काम शुरू कर दिया गया.

योजनाबद्ध तरीक़े से बसाए गए शहर के तौर पर सॉल्टलेक के मुहल्लों को ब्लॉक के आधार पर बांटा गया है. और, हर ब्लॉक के आकार के हिसाब से वहां खुली जगह, हरित पट्टी और सामुदायिक बाज़ारों को पांच सेक्टरों में बांटकर बनाया गया है.

सॉल्टलेक की योजना और भविष्य को ध्यान में रखकर शामिल किए गए तत्व

योजनाबद्ध तरीक़े से बसाए गए शहर के तौर पर सॉल्टलेक के मुहल्लों को ब्लॉक के आधार पर बांटा गया है. और, हर ब्लॉक के आकार के हिसाब से वहां खुली जगह, हरित पट्टी और सामुदायिक बाज़ारों को पांच सेक्टरों में बांटकर बनाया गया है. सॉल्टलेक को आयताकार टुकड़ों में बांटा गया था, जो ग्रिड के पैटर्न पर एक-दूसरे के बगल में बसाए गए थे. ये अमेरिका के न्यूयॉर्क (मैनहट्टन इलाक़े) और स्पेन के बार्सिलोना शहर जैसे थे. चौड़ी चौड़ी मुख्य सड़कें एक दूसरे के समानांतर बनाई गई थीं, जो एक दूसरे को 90 डिग्री के कोण पर काटती थीं. ज़मीन के इस्तेमाल का पैटर्न फिक्स रखा गया था. ज़मीन के आवंटन में रिहाइशी इलाक़ों का हिस्सा 50 प्रतिशत रखा गया था और कम से कम अब तक तो यही पैटर्न बरकरार रखा गया है. ज़्यादातर रिहाइशी इलाक़ों के पास ही सामुदायिक बाज़ार और केंद्र रखे गए थे, जिससे लोग रोज़मर्रा के सामान ख़रीदने से लेकर सांस्कृतिक और धार्मिक आयोजनों के लिए आपस में आसानी से मिल जुल सकें. खेल के कई मैदानों और भरपूर खुली जगह होने की वजह से सॉल्टलेक भारत की एकदम अनूठी टाउनशिप बन जाती है, जहां बच्चों और बड़ों दोनों को ही शारीरिक गतिविधियों और मनोरंजन के लिए पर्याप्त सार्वजनिक स्थान उपलब्ध है. राज्य सरकार ने यहां निजी मकान के प्लॉटों के साथ साथ, कई बहुमंज़िला रिहाइशी मकान भी बनाए थे. केंद्र और राज्य की सरकार के कई विभागों ने भी यहां ज़मीन लेकर सरकारी कर्मचारियों के लिए हाउसिंग कॉम्प्लेक्स बनाए थे. रिहाइश की सुविधा देने वाली ऐसी पहलों की वजह से निम्न और मध्यम आमदनी वाले समूह के लोग भी सॉल्टलेक में बस सके.

सॉल्टलेक के टाउन प्लानर डोब्रिवोहे टोस्कोविच ये सुनिश्चित करने पर भी काफ़ी ध्यान दिया था कि इस टाउनशिप में आर्थिक गतिविधियों के लिए सारे प्रावधान हों, ताकि यहां का माहौल ऊर्जावान बना रहे. सरकारी इमारतें बनाने के लिए व्यवस्था की गई थी, जो 2000 के दशक तक रोज़गार का प्रमुख माध्यम थे. सॉल्टलेक के इर्द-गिर्द बसा IT सेक्टर, पिछले कई वर्षों से पूर्वी भारत का सबसे बड़ा IT और निर्यात का केंद्र है. सॉल्टलेक में 2000 के दशक से IT सेक्टर के विकास ने इस उप-नगर में एक नई जान डाल दी, जिससे यहां पर ग्राहक पर केंद्रिक कारोबारों के विकास में मदद मिल सकी.

सॉल्टलेक में सड़कों के लिए 23 प्रतिशत इलाक़ा आवंटित किया गया था. पड़ोस के कोलकाता शहर में केवल सात प्रतिशत हिस्से में सड़के हैं, उसकी तुलना में ये काफ़ी बड़ा सुधार था. इसका नतीजा ये हुआ कि यहां के ट्रैफिक अधिकारियों को हर साल बढ़ते जाने वाले यातायात के प्रबंधन में कोई ख़ास दिक़्क़त नहीं हुई. ख़ास तौर से यहां पर IT सेक्टर का केंद्र विकसित होने के बाद भी. कोलकाता की पूर्वी पश्चिमी मेट्रो लाइन अब सॉल्टलेक को सेंट्रल कोलकाता से जोड़ती है और बहुत जल्द ये हावड़ा स्टेशन से भी जुड़ जाएगी. कनेक्टिविटी की इस पहल ने कोलकाता महानगर क्षेत्र के दूसरे इलाक़ों से सॉल्टलेक आने-जाने की सुविधा और आसान बना दी है.

अगर हम पूरे देश में विकसित हुए नए शहरों पर नज़र डालें, तो मोटे तौर पर इन शहरों को अतार्किक योजना निर्माण और अपर्याप्त मूलभूत ढांचे की वजह से ज़्यादा जाना- पहचाना जाता है.

सॉल्टलेक: आदर्श शहर की मिसाल

भारत द्वारा हाल के वर्षों में शहरीकरण पर ज़ोर देने को, युवाओं को रोज़गार देने के अलावा, उसके बड़ी आर्थिक शक्ति बनने की महत्वाकांक्षा का एक अहम पहलू माना जा रहा है. हालांकि, अगर हम पूरे देश में विकसित हुए नए शहरों (गुरुग्राम, न्यूटाउन कोलकाता, नोएडा) पर नज़र डालें, तो मोटे तौर पर इन शहरों को अतार्किक योजना निर्माण और अपर्याप्त मूलभूत ढांचे (पानी की आपूर्ति, जल निकासी, कचरे का निपटारा, कनेक्टिविटी, इस्तेमाल नहीं होने वाले खुले क्षेत्र) की वजह से ज़्यादा जाना- पहचाना जाता है. ऐसे भी कई उदाहरण हैं, जिनमें दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) जैसे सरकारी संस्थानों ने अनुचित जगहों पर हाउसिंग कॉलोनियां विकसित कीं, जिनको बेचने के लिए ग्राहक ही नहीं मिले. जिसकी वजह से आज 18 हज़ार करोड़ रुपए से ज़्यादा के प्रोजेक्ट बिना बिके पड़े हैं. बदक़िस्मती से ये हाल उस दौर में है जब बड़े आंकड़े, पूर्वानुमान के मॉडल और शहर पर केंद्रित तकनीकी आविष्कार हो रहे हैं. शहरी मामलों के ऐसे कुप्रबंधन की वजह से भारत के शहरी वासियों को अक्सर अन्य देशों और ख़ास तौर से पश्चिम के अच्छे तरीक़े से प्रबंध किए जाने वाले शहरों का रुख़ करने को मजबूर होना पड़ रहा है. राजनेता बार बार भारत के शहरों को अगला लंदन, सिंगापुर या शंघाई बनाने के वादे करते हैं. हालांकि, ऐसी योजनाएं आम तौर पर खोखली बयानबाज़ी बनकर रह जाते हैं और कोई ठोस काम नहीं होता. बस कुछ गिने चुने हिस्सों में सौंदर्यीकरण करके काम निपटा दिया जाता है. ऐसे में अच्छा यही होगा कि ख़ुद भारत में सॉल्टलेक जैसे शहरी योजना निर्माण के कामयाब उदाहरणों से सीखा जाए. इस बारे में विस्तार से ज़मीनी अध्ययन करने से सॉल्टलेक की उसको रहने लायक़ बनाने की ख़ूबियों का पता चल सकेगा और उसमें सुधार की अन्य संभावनाओं की जानकारी भी हो सकेगी. 

कोलकाता के सामाजिक विज्ञान के संस्थान ‘इंस्टीट्यूट ऑफ डेवेलपमेंट स्टडीज़’ द्वारा साल्टलेट आर्काइव्स के विकास की पहल ने बड़े व्यापक स्तर के अच्छे आंकड़ों को सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध कराया है. इनमें सॉल्टलेक को लेकर अख़बारों की कवरेज, विधानसभा में इस मुद्दे पर हुई बहसें और नक़्शे वग़ैरह शामिल हैं. सॉल्टलेक आर्काइव्स रिसर्चरों और शहरी योजना निर्माताओं के लिए एक महत्वपूर्ण संदर्भ साबित हो सकता है, जो समतावादी और टिकाऊ शहरीकरण का उदाहरण है. इससे भी अहम बात, कोलकाता महानगर के इर्द-गिर्द शहरी इलाक़े बढ़ाकर शरणार्थियों को बसाने और आधुनिक शहरी योजना निर्माण की ज़िम्मेदारी अन्य लोगों को देने का विज़न, समावेशी और भविष्योन्मुखी लक्ष्यों का एक सफल समायोजन है. ये भारत और अन्य देशों के शहरी योजनाकारों के लिए एक ताक़तवर संदर्भ का काम कर सकता है.

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