दक्षिण पूर्वी एशिया के संवेदनशील चौराहे पर बसा है थाईलैंड, जहां संस्कृतियों की जीवंत चित्रपट भू-राजनीति के जटिल बुनावट के साथ जाकर मिल जाती है. जिस तरह से ये देश, म्यांमार शरणार्थियों के बढ़ती संख्या की समस्या से घिरता जा रहा है, वो न सिर्फ़ एक भू-राजनीतिक पहेली बनता जा है बल्कि एक ऐसा मानवीय संकट का भी रूप ले रहा है, जिसके लिये दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचना बेहद ज़रूरी है.
दो साल से चल रहे गृहयुद्ध की समस्या को खत्म करने के लिये थाईलैंड के प्रधानमंत्री स्रेत्था थाविसिन, म्यांमार के सैन्य शासक के साथ मिलकर इसमें केंद्रीय भूमिका निभाने की सजगतापूर्ण कोशिश करते आ रहे है.
दो साल से चल रहे गृहयुद्ध की समस्या को खत्म करने के लिये थाईलैंड के प्रधानमंत्री स्रेत्था थाविसिन, म्यांमार के सैन्य शासक के साथ मिलकर इसमें केंद्रीय भूमिका निभाने की सजगतापूर्ण कोशिश करते आ रहे है. दक्षिण पूर्वी एशियाई देश (आसियान) के द्वारा प्रस्तावित शांति योजना का पालन करने के लिये सहमति जताने के साथ ही वो थाईलैंड और म्यांमार के बीच की भौगोलिक निकटता को रेखांकित करते हैं, जिसके कारण इस इलाके में विस्थापितों की ऐसी बड़ी संख्या का आना हो रहा है, जो सुरक्षा की मांग कर रहे हैं. बड़ी संख्या में पलायन के ज़रिये यहां पहुंच रही इस आबादी की जरूरतों को पूरा करने के लिये ये ज़रूरी हो जाता है कि यहां आवश्यक सेवाओं का प्रावधान जल्द से जल्द किया जाये.
प्रधानमंत्री स्रेत्था थाविसिन द्वारा हाल ही दिया गया बयान, थाईलैंड की पिछली सरकार के उस रुख़ में बदलाव की ओर इशारा करता है, जहां वे पहले बड़े पैमाने पर जूंटा का समर्थन करते थे, लेकिन अब उसके उलट वे मानवता केंद्रित भूमिका निभाने का ज़ोर दे रहे हैं. हालांकि, वर्तमान सरकार का जूंटा के साथ काफी सीमित जुड़ाव है, जो अन्य समूहों के साथ व्यापक संबंध स्थापित करने की ज़रूरत को बल देता है.
विस्थापन की जड़ें
पूर्व में करेन राज्य के नाम से प्रचलित, वर्तमान का काईन राज्य, इस समय स्वायत्ता की मांग कर रहे करेन समुदाय की अल्पसंख्यक आबादी के खिलाफ़ जूंटा द्वारा किए गए मानवाधिकार हनन के बड़े इतिहास का गवाह रहा है. कारेनी महिलाओं और लड़कियों के साथ की गई नियोजित हिंसा, जिनमें बलात्कार, प्रताड़ना, और जबरन श्रम भी शामिल था इस स्थिति की भयावहता को दर्शाता है. सेना द्वारा महिलाओं और पुरुषों, दोनों को मानव ढाल के तौर पर इस्तेमाल किया गया जो अन्तराष्ट्रीय मनावाधिकार कानून का उल्लंघन है.
इस तख्त़ापलट ने इन लोगों को हिंसक व्यवहार के लिये एक आसान लक्ष्य बना दिया, जिससे ये संकट को और भी गहरा हो गया. म्यांमार के भीतर, आंतरिक रूप से विस्थापित लोगों (आईडीपी) के लिए यात्रा प्रतिबंधित है और जिन कैंपों में इन्हें रखा गया है वहां ज़रूरी संसाधनों की सख्त़ कमी है. लोगों की मदद में लगे मानवीय कार्यकर्ता, सेना द्वारा किए जाने वाले संभावित उत्पीड़न और गिरफ़्तारी को टालने की मंशा से अन्य वैकल्पिक रास्तों या उपायों का इस्तेमाल करते हुए खुद उसके अनुरूप ढाल रहे हैं. इसी तरह से, बदतर होते हालात से बचने के लिए भारी मात्रा में लोग जिनमें पुरुष, महिला और बच्चे भी शामिल हैं, थाई-म्यांमार सीमा पर शरण ले रहे हैं.
विस्थापितों की देखरेख
बैंकॉक का इतिहास स्पष्ट रूप से म्यांमार से विस्थापित लोगों के आश्रय रूप में जाना जाता है. 1980 के दशक के मध्य से, इस देश ने म्यांमार के लगभग 90,801 विस्थापितों को अपने यहां के नौ शर्णार्थी शिविरों में आश्रय दिया है. फरवरी 2021 में म्यांमार में हुए तख्त़ापलट के बाद, 45,025 और लोगों ने यहां शरण ली है. थाईलैंड के मानवीय प्रयासों में अस्थायी आश्रय, कुछ महत्वपूर्ण राहत सामग्री, भोजन और चिकित्सा सहायता प्रदान करना शामिल है.
जुलाई 2023 में, करेनी राज्य में लगातार हवाई हमलों के कारण थाईलैंड के माई होंग सोन जिले में लगभग 9,000 असहाय लोगों ने अपनी जान बचाने के लिए पुलिस से संपर्क किया.
नए आगंतुकों को सीमा के पास अस्थायी आश्रयों में रहने की अनुमति दी गई थी, लेकिन थाई सरकार ने उन्हें धीरे-धीरे पीछे धकेल दिया है. विशेष रूप से, हाल ही में विस्थापित लोगों को नव निर्मित शरणार्थी शिविरों में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी है, और थाई अधिकारी उनकी आवाजाही पर कड़े प्रतिबंध लगाते रहते हैं.
जुलाई 2023 में, करेनी राज्य में लगातार हवाई हमलों के कारण थाईलैंड के माई होंग सोन जिले में लगभग 9,000 असहाय लोगों ने अपनी जान बचाने के लिए पुलिस से संपर्क किया. शुरू में, उन्हें थाई सरकार ने अस्थायी आश्रयों में रहने की अनुमति दी, लेकिन 21 अक्टूबर को दो सप्ताह के भीतर उन लोगों को म्यांमार लौटने का आदेश दे दिया गया था. जिसके कारण, उन अस्थायी आश्रयों को खाली कर दिया गया क्योंकि वे सभी लोग सीमा पार कारेनी राज्य में वापिस चले गए, जिसमें उन्हें तकरीबन चार से पांच दिन लगे. दोह नोह कू, जो थाई-म्यांमार सीमा पर आंतरिक रूप से विस्थापित लोगों की एक बस्ती है वहीं पर यहां से भेजे गये बहुत से लोग बाद में बस गए.
27 अक्टूबर तक, उत्तरी शान राज्य में म्यांमार की सेना के खिलाफ़ सशस्त्र जातीय और प्रतिरोध समूहों के एक गठबंधन द्वारा किए गए हमले के साथ संघर्ष जारी रहा. इसके बाद म्यांमार में कई अन्य जगहों पर विपक्षी बलों ने सेना पर हमले किए, जिसके जवाब में कारेनी राज्य सहित कई अन्य जगहों पर हवाई हमले भी किए गए. जिसके फलस्वरूप 27 नवंबर तक, माई होंग सोन जिले में एक बार फिर से करीब 2,387 की संख्या में म्यांमार के लोगों फिर से शरण लिया.
3 दिसंबर को थाई विदेश मंत्री द्वारा विस्थापित लोगों के लिए आश्रय बनाए जाने की घोषणा, इलाके में बढ़ती हिंसा और उस वजह से और भी ज्य़ादा लोगों के शरण लेने की गुंजाइश को रेखांकित करती है.
म्यांमार के सैन्य शासन के साथ जुड़ने और मानवीय प्रावधानों की वकालत करने के बीच जो नाजुक संतुलन स्थापित करना होता है उससे राजनयिक दुविधा पैदा होती है.
8 दिसंबर को, थाईलैंड के विदेश मंत्रालय ने खुलासा किया कि म्यांमार के कुछ अधिकारी वहां लगातार चल रहे संघर्ष के कारण म्यांमार के भीतर विस्थापित लोगों के लिए मानवीय सहायता बढ़ाने के लिए एक कार्यबल या टास्कफोर्स स्थापित करने के समझौते पर राज़ी हो गए हैं. लेकिन अच्छे इरादों के बावजूद, जुंटा के ट्रैक रिकॉर्ड को देखते हुए, इन सभी हिंसा प्रभावित इलाकों में सहायता प्रभावी तरीके से पहुंच भी पायेगी या नहीं, इस बारे में चिंता पैदा होती है.
हालात
इस संकट को लेकर थाईलैंड की प्रतिक्रिया काफी चुनौतियों से भरी हुई है. म्यांमार के सैन्य शासन के साथ जुड़ने और मानवीय प्रावधानों की वकालत करने के बीच जो नाजुक संतुलन स्थापित करना होता है उससे राजनयिक दुविधा पैदा होती है. शरणार्थियों की लगातार बढ़ रही आबादी के कारण बुनियादी ढांचे और संसाधनों पर पड़ रहा दबाव एक बड़ी चिंता बनकर उभरा है. मानवीय संकट से असरदार ढंग से निपटने के लिए लगातार घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की ज़रूरत है.
थाईलैंड ने जो प्रतिक्रिया दी वो 1951 के रिफ्यूजी कन्वेंशन या 1967 के प्रोटोकॉल की पुष्टि न होने कारण रुकी हुई है. हालाँकि, साल 2018 में, थाईलैंड ने शरणार्थियों के लिये लाये गये ग्लोबल कॉम्पैक्ट के पक्ष में मतदान किया था, और बाद में, वर्ष 2019 में राष्ट्रीय स्क्रीनिंग तंत्र (एनएसएम) की स्थापना की गई. एनएसएम की स्थापना का उद्देश्य थाईलैंड में उन विदेशी नागरिकों को "संरक्षित व्यक्ति या नागरिक" का दर्जा देना है जो एनएसएम समिति द्वारा निर्धारित किये उत्पीड़न की पहचान या मापदंड से जन्मे डर के कारण अपने गृह देश या तो लौटने में असमर्थ हैं या अनिच्छुक हैं. कोविड-19 महामारी के कारण आवेदन में देरी के बावजूद, मार्च 2023 में, थाईलैंड के मंत्रिमंडल ने एनएसएम का दर्जा देने के लिये आवेदनकर्ता व्यक्तियों के लिए प्रक्रिया और पात्रता के मानदंडों को तय करने वाले एक नियम को मंज़ूरी दी, जो आधिकारिक तौर पर सितंबर 2023 से लागू हुआ. इसके अतिरिक्त, एनएसएम का रोलआउट क्रम वार तरीके से किया जायेगा क्योंकि थाई सरकार, यूएनएचसीआर से तकनीक़ी सहायता और वक़ालत के साथ-साथ, इस कार्य के सफल कार्यान्वयन के लिए ज़रूरी प्रक्रिया से जुड़े मानकों और नीतियों के व्यापक सेट या सिस्टम को तैयार करना जारी रखेगी.
हालांकि, एनएसएम की प्रभावशीलता और आप्रवासन अधिनियम और उसकी कानूनी वैधता के बारे में कई तरह की चिंताएं भी मौजूद हैं. जबकि एनएसएम नियमावली की धारा-15 संरक्षित व्यक्ति की स्थिति का दावा करने वाले व्यक्तियों के निर्वासन में देरी करता है, यह उन्हें उनकी आप्रवासन स्थिति के आधार पर गिरफ्तारी, निरोध या अभियोजन से बचाने में विफल रहता है. इसके अतिरिक्त, चूंकि एनएसएम कानूनी रूप से आप्रवासन कानून के अंतर्गत या नीचे आता है, इसलिए थाईलैंड में NSM के तहत सुरक्षा की मांग करने वाले शरणार्थियों जिस तरह के अनुभव का सामना करना पड़ता है उसमें गिरफ्त़ारी, जेल में डालने और केस चलाये जाने के साथ प्रारंभिक मुठभेड़ शामिल होता है. इस बात की भी आशंका बनी हुई रहती है कि एनएसएम अपने प्रावधान के तहत म्यांमार, कंबोडिया और लाओस के प्रवासी श्रमिकों को अपने यहां दिये जाने वाले सुविधाओं के दायरे से ये कहकर बाहर रख सकता है जिसमें ये कह दिया जाये कि उन्हें थाईलैंड में पर्याप्त सुरक्षा नहीं मिलेगी.
आवश्यक कदम
इन चुनौतियों का समाधान करने के लिए, थाई सरकार को NSM आवेदकों को गिरफ्तारी, क़ैद या अभियोजन से छूट देने के लिए आप्रवासन अधिनियम की धारा 17 द्वारा दी गई ताकत का इस्तेमाल करना चाहिए. एनएसएम के तहत संरक्षित स्थिति निर्धारित करने के लिए स्पष्ट प्रावधान स्थापित करने की ज़रूरत है. आप्रवासन अधिनियम के तहत शरणार्थियों को गिरफ्तारी, क़ैद और अभियोजन से छूट, जैसा कि 12 दिसंबर को आठ संगठनों द्वारा एक खुले पत्र में ज़ोर दिया गया है, शरणार्थियों पर वैश्विक कॉम्पैक्ट के लिए थाईलैंड की प्रतिबद्धता की ओर इशारा करता है.
अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप, उत्पीड़न से भागने वालों को उचित दर्जा और सुरक्षा देने के प्रयासों को बढ़ाने के लिए थाई अधिकारियों की ओर से तत्काल कार्रवाई एक ज़रूरी कदम होगा.
अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप, उत्पीड़न से भागने वालों को उचित दर्जा और सुरक्षा देने के प्रयासों को बढ़ाने के लिए थाई अधिकारियों की ओर से तत्काल कार्रवाई एक ज़रूरी कदम होगा.
म्यांमार के बढ़ते शरणार्थी संकट के कारण थाई अधिकारियों से व्यापक और त्वरित प्रतिक्रिया बेहद ज़रूरी है. ऐसे में जबकि चुनौतियां बदस्तुर बनी हुई हैं, तब थाईलैंड ज़रूरी शरणार्थी नीतियों को लागू करके इस क्षेत्र में एक उदाहरण पेश कर सकता है। मानवीय चिंताओं को संबोधित करना, क्षेत्रीय सहयोग में शामिल होना और आवश्यक नीतिगत सुधारों को लागू करना वो ज़रूरी कदम हैं जो थाईलैंड को इस बढ़ती समस्या को प्रभावी ढंग से निपटाने और शरणार्थियों व विस्थापित नागरिकों के लिए स्थायी समाधान देने में मददगार साबित होगा.
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