Author : Niranjan Sahoo

Published on Mar 31, 2023 Updated 0 Hours ago

घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर बढ़ते दबावों के बीच, शी जिनपिंग अपने अधिकारों की वैधानिकता पर उठे सवालों को दबाने के लिए अति-राष्ट्रवाद का सहारा ले सकते हैं.

चीन का भविष्य: लाल से भी ज़्यादा लाल

यह लेख "द चाइना क्रॉनिकल्स" शृंखला का 139वां भाग है.


10 मार्च को चीन की विधायिका पीपल्स नेशनल कांग्रेस ने सर्वसम्मति से शी जिनपिंग को तीसरे कार्यकाल के लिए राष्ट्रपति चुना, जो अपने आप में अभूतपूर्व है. उन्होंने शी जिनपिंग को एक और कार्यकाल के लिए केंद्रीय सैन्य आयोग का अध्यक्ष भी नियुक्त किया. ये घोषणाएं काफ़ी हद तक औपचारिक थीं क्योंकि पिछले साल अक्टूबर में 20वीं पार्टी कांग्रेस ने एक और कार्यकाल के लिए चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) और सेना के महासचिव के पद पर शी जिनपिंग को बिठाने की अनुशंसा की गई थी. शक्तिशाली पदों पर शी जिनपिंग के वफ़ादारों और सहयोगियों की भरमार है. ली कियांग, जो शंघाई के पूर्व अध्यक्ष और शी के भरोसेमंद सहयोगी रहे हैं, उन्हें नए प्रधानमंत्री के रूप में चुना गया, जबकि शी के क़रीबी सहयोगी और पूर्व उप-प्रधानमंत्री हान झेंगाट को उप-राष्ट्रपति के रूप में पदोन्नत किया गया. हालांकि रक्षा मंत्री के रूप में ली शांफू की नियुक्ति सबसे महत्त्वपूर्ण थी. वे शी जिनपिंग के पक्के समर्थक और चीनी सेना (पीपल्स लिबरेशन आर्मी, PLA) के आधुनिकीकरण के प्रमुख सूत्रधार रहे हैं, जिन पर अमेरिका ने 2018 में प्रतिबंध लगाया था क्योंकि उन पर वॉशिंगटन द्वारा रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों के उल्लंघन का आरोप था. संक्षेप में, तीसरे कार्यकाल के लिए शी जिनपिंग की नियुक्ति पार्टी, राज्य और सेना पर उनके पूर्ण नियंत्रण को प्रदर्शित करती है, जो माओ ज़ेडॉन्ग के शासनकाल के बाद पहली बार देखा जा रहा है.

शक्तिशाली पदों पर शी जिनपिंग के वफ़ादारों और सहयोगियों की भरमार है. ली कियांग, जो शंघाई के पूर्व अध्यक्ष और शी के भरोसेमंद सहयोगी रहे हैं, उन्हें नए प्रधानमंत्री के रूप में चुना गया, जबकि शी के क़रीबी सहयोगी और पूर्व उप-प्रधानमंत्री हान झेंगाट को उप-राष्ट्रपति के रूप में पदोन्नत किया गया.

सामूहिक नेतृत्व के दौर का अंत

शी जिनपिंग को तीसरे कार्यकाल के लिए चुना जाना अभूतपूर्व है, जो डेंग शियाओ पिंग द्वारा स्थापित दो कार्यकाल (10 वर्ष) की सीमा के नियम का उल्लंघन करता है. माओ के लंबे शासनकाल (1949-1976) और उनके वैचारिक परीक्षणों, ख़ासकर सांस्कृतिक क्रांति ने चीन को लगभग दीवालिया कर दिया था और लाखों लोगों को मौत के घाट उतार दिया दिया था, जिसके कारण डेंग को राष्ट्रपति पद के कार्यकाल सीमा को तय करने के लिए बाध्य कर दिया था. इसलिए, डेंग के नेतृत्व में 12वीं पार्टी कांग्रेस (1982) ने अगले 35 सालों के लिए चीन की वैचारिक, राजनीतिक और आर्थिक दिशा तय की. चीनी कम्युनिस्ट पार्टी को निर्देश दिया गया कि वह आर्थिक विकास को प्राथमिकता दे और वैचारिक कठोरता को कम करे. डेंग के आदेशानुसार, जियांग जेमिन और हू जिंताओ ने 10 साल की कार्यकाल सीमा का पालन किया, और पार्टी भी काफ़ी हद तक निजी क्षेत्र के सूक्ष्म प्रबंधन और आर्थिक गतिविधियों पर नियंत्रण से दूर रही. संयोग से, इस दौरान चीन ने आर्थिक क्षेत्र में काफ़ी तेज़ी से तरक्की की और एक समय तक ग़रीबी से जूझने वाला यह देश कुछ ही दशकों में दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया.

एक गुमनाम पार्टी सदस्य से शासक तक का सफ़र 

मार्च 2013 में हू जिंताओ के कार्यकाल की समाप्ति के बाद जब से शी जिनपिंग ने पदभार संभाला है, तभी से वह डेंग के सामूहिक नेतृत्व के सिद्धांत को मिटाने की कोशिश कर रहे हैं, जिसने जियांग जेमिन और हू जिंताओ के नेतृत्व को एक सीमा के भीतर बांधने का काम किया था. काई ज़िया, जो चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की एक पूर्व अधिकारी हैं (जब 2012 में शी जिनपिंग के महासचिव बने थे, तब वह राजनीतिक प्रशिक्षण कार्यक्रम की देख-रेख कर रही थीं), के मुताबिक, पार्टी इससे पहले तुलनात्मक रूप से स्वतंत्र थी लेकिन अब पूरी तरह से शी जिनपिंग और उनके सहयोगियों के नियंत्रण में है. जिन तौर-तरीकों से शी जिनपिंग ने इस स्थिति को हासिल किया है, वह है: राष्ट्रव्यापी भ्रष्टाचार विरोधी पहलें. जिसके माध्यम से उन्होंने अपने सभी प्रमुख प्रतिद्वंदियों का सफ़ाया किया. पार्टी और सरकार पर अपनी पकड़ मज़बूत करने के लिए शी जिनपिंग ने काफ़ी क्रूरता से राजनीतिक हथकंडों का सहारा लिया, जहां मंत्री और उप-मंत्री स्तर के क़रीब 200 अधिकारियों को या तो पार्टी से निकाल दिया गया या फिर जेल में डाल दिया गया.

आगे की चुनौतियां

चीन के नेतृत्व परिवर्तन की विशेषता यह है कि सत्ता का अभूतपूर्व केंद्रीकरण हुआ है और यह ऐसे दौर में हुआ है जब देश आंतरिक और बाह्य दोनों स्तरों पर गंभीर चुनौतियों का सामना कर रहा है. आर्थिक मंदी और बेरोजगारी में हुई ऐतिहासिक वृद्धि ने देश के सामने सबसे बड़ी चुनौती पेश की है. जब शी जिनपिंग के कार्यभार संभाला था, तब देश के आर्थिक विकास की दर दोहरे अंकों में अपने सर्वोच्च स्तर पर थी. एक दशक बाद, चीन की विकास दर गिरकर क़रीब 3 प्रतिशत के स्तर पर पहुंच गई है, जो देश के प्रमुख नीति नियंताओं के बीच हड़कंप की वजह बन गई है. हैरानी नहीं है कि नेशनल पीपल्स कांग्रेस की हालिया बैठक में जिन प्रमुख मुद्दों पर चर्चा हुई उसमें अर्थव्यवस्था के पुनर्जीवीकरण (आर्थिक विकास दर को 5 प्रतिशत तक ले जाना) और रोज़गार अवसरों में तेजी के मुद्दे भी शामिल थे. हालांकि, इन लक्ष्यों को हासिल करना लगातार कठिन होता जा रहा है. इसके अलावा, वैश्विक अर्थव्यवस्था में ठहराव, प्रतिकूल अंतर्राष्ट्रीय माहौल (आपूर्ति शृंखला चीन से बाहर जा रही है क्योंकि विदेशी निवेशक अनिश्चित व्यावसायिक संभावनाओं और घरेलू हस्तक्षेप से संशकित हैं), घरेलू विकास कारकों के मंद पड़ जाने (उपभोक्ता मांगों में कमी, बूढ़ी होती आबादी, बढ़ती असमानता आदि) और ज़ीरो कोविड-नीति के दुष्प्रभावों ने चीन की विकास संभावनाओं को काफ़ी हद तक कम कर दिया है. आधुनिक प्रौद्योगिकी, ख़ासकर सेमी-कंडक्टरों तक पहुंच में खड़ी की गई बाधाओं, बढ़ती भू-राजनीतिक अस्थिरता (पश्चिम विशेष रूप से अमेरिका के साथ विवाद बढ़ता जा रहा है) और हिंद-प्रशांत में हो रही नई गतिविधियों ने चीन के अर्थव्यवस्था को वापिस पटरी पर लाने के प्रयासों को काफ़ी कठिन बना दिया है.

जब शी जिनपिंग के कार्यभार संभाला था, तब देश के आर्थिक विकास की दर दोहरे अंकों में अपने सर्वोच्च स्तर पर थी. एक दशक बाद, चीन की विकास दर गिरकर क़रीब 3 प्रतिशत के स्तर पर पहुंच गई है, जो देश के प्रमुख नीति नियंताओं के बीच हड़कंप की वजह बन गई है.

फिर भी, आर्थिक गतिविधियों में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के बढ़ते दखल ने आर्थिक पुनर्जीवीकरण के प्रयासों के सामने सबसे बड़ी बाधा खड़ी की है. चीन के करिश्माई आर्थिक विकास के पीछे निजी क्षेत्र का बड़ा हाथ रहा है, जिन पर कम्युनिस्ट पार्टी के नेताओं की नज़र गड़ी हुई है. शी जिनपिंग के शासनकाल में, निजी क्षेत्र, विशेष रूप से प्रौद्योगिकी और वित्तीय क्षेत्रों के बड़े-बड़े उद्यमियों पर चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का दबाव कई गुना बढ़ गया है. प्रौद्योगिकी क्षेत्र में देश के सबसे मशहूर व्यक्ति जैक मा को हाल ही में मज़बूरी में अपनी महत्त्वपूर्ण संपत्तियों पर अपने नियंत्रण को छोड़ना पड़ा है, जिसका अन्य उद्यमियों पर बुरा प्रभाव पड़ा है. जबकि पार्टी के आकाओं को इस गलती का एहसास हुआ है, और एनसीपी के आखिरी सत्रों में आवश्यक सुधारों की घोषणा की गई, लेकिन समस्या काफ़ी गहरी हो चुकी है. शी जिनपिंग के नेतृत्व में जिस तेज़ी के साथ पार्टी और सरकार का विलय किया गया है, उसके लिए असाधारण प्रयासों की आवश्यकता होगी. उदाहरण के लिए, अर्थव्यवस्था के दो प्रमुख क्षेत्रों पर पार्टी की पकड़ को और अधिक मज़बूत बनाने के लिए दो नए संस्थानों के निर्माण की घोषणा की गई है: राष्ट्रीय वित्तीय नियामक प्रशासन (नेशनल फाइनेंशियल रेगुलेटरी एडमिनिस्ट्रेशन) और केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी आयोग (सेंट्रल साइंस एंड टेक्नोलॉजी कमीशन).

एक व्यक्ति का नियंत्रण, राजनीतिक व्यवस्था और  ख़तरे

जबकि ऐसा लगता है कि शी जिनपिंग के राजनीतिक प्रभुत्व ने पूरी तरह से अपना सिक्का जमा लिया है और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने चीनी समाज और अर्थव्यवस्था पर अपना पूर्ण नियंत्रण स्थापित कर लिया है, फिर भी इस स्थिति के सामने चुनौतियों और ख़तरों की कोई कमी नहीं है. उदाहरण के लिए, आर्थिक विकास की उच्च दर, रोज़गार अवसरों में तेज़ी और तीव्र मानव विकास जैसे कारकों के बलबूते चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने अपना जनाधार मज़बूत किया है, जो जीरो-कोविड नीति के कारण होने वाले राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शनों के कारण कमज़ोर पड़ता हुआ नज़र आ रहा है. 2020 से एक कठोर जीरो-कोविड नीति को लागू किए जाने से आर्थिक विकास बुरी तरह प्रभावित हुआ है, जिसके कारण लाखों लोग बेरोजगार हो गए हैं और विदेशी कंपनियां अपने व्यापार को दूसरे देशों में स्थानांतरित कर रही हैं. महामारी से पहले सामान्य बेरोजगारी को दर 5 प्रतिशत थी, जो वर्तमान में 20 प्रतिशत के रिकॉर्ड स्तर तक पहुंच गई है. इसलिए, जबकि शी जिनपिंग ने सरकार, पार्टी और सेना पर अपना पूर्ण नियंत्रण स्थापित कर लिया है, लेकिन अर्थव्यवस्था की डांवाडोल स्थिति और बढ़ते भू-राजनीतिक संघर्ष के कारण वह कमज़ोर पड़ते हुए नज़र आ रहे हैं. जनता के बीच उनकी लोकप्रियता लगातार घटती जा रही है, ऐसा चौंका देने वाला खुलासा तब हुआ जब हालिया राष्ट्रव्यापी विरोध-प्रदर्शनों में गुस्साए आंदोलनकारियों ने उनसे पद छोड़ने की मांग की. यह एक ऐसे देश के लिए एक अभूतपूर्व घटना है, जिसकी निगरानी व्यवस्था सबसे मजबूत है. संक्षेप में, धीमी विकास दर, बढ़ती बेरोजगारी, कोविड संबंधी प्रतिबंधों और निजी उद्यमों में बढ़ते दखल ने पार्टी की वैधानिकता पर बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं.

हालांकि, वैधानिकता संकट और बढ़ती समस्याओं के बीच भू-राजनीतिक और सुरक्षा ख़तरे भी जन्म ले सकते हैं. जिस तरह से शी जिनपिंग (जो चीन को फिर से महान बनाने के लिए संशोधनवादी महत्त्वाकांक्षा के साथ काम कर रहे हैं) घरेलू स्तर पर भारी दबावों का सामना कर रहे हैं, और बाहरी वातावरण लगातार संघर्ष की स्थिति और अलग-थलग पड़ जाने के जोख़िम से प्रभावित है, ऐसे में वह उन्हीं पारंपरिक तौर-तरीकों का इस्तेमाल कर सकते हैं, जिसका उपयोग भारी जनसमर्थन वाली ज़्यादातर अधिनायकवादी सरकारें अक्सर करती है: राष्ट्रवाद का सहारा लो और सुरक्षा ख़तरे की कहानियां गढ़ो. जब से उन्होंने चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव का पद संभाला है, तब से उन्होंने बड़ी चतुराई से राष्ट्रवाद का सहारा लिया है. उदाहरण के लिए, 2012 में शी जिनपिंग ने चीनी जनता के बीच राष्ट्रवाद की भावना को भड़काने के लिए "चीनी राष्ट्र का महान कायाकल्प", "पुनरुद्धार का चीनी सपना" और "समृद्ध बनो" से लेकर "ताकतवर बनो" जैसे नारों का सहारा लिया. घरेलू स्तर पर अपने पद की वैधानिकता पर उठने वाले सवालों को दबाने के लिए वह अतिराष्ट्रवाद का सहारा ले सकते हैं. हालांकि, असल ख़तरा तो ताइवान के मुद्दे पर बढ़ते संघर्ष, और दक्षिणी चीन सागर में पड़ोसियों, विशेष रूप से भारत, जापान और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के साथ टकराव की स्थिति के बढ़ जाने से है. 

2012 में शी जिनपिंग ने चीनी जनता के बीच राष्ट्रवाद की भावना को भड़काने के लिए "चीनी राष्ट्र का महान कायाकल्प", "पुनरुद्धार का चीनी सपना" और "समृद्ध बनो" से लेकर "ताकतवर बनो" जैसे नारों का सहारा लिया. घरेलू स्तर पर अपने पद की वैधानिकता पर उठने वाले सवालों को दबाने के लिए वह अतिराष्ट्रवाद का सहारा ले सकते हैं.

युद्ध और बड़े संघर्ष हमेशा राष्ट्रवादी और सत्तावादी लोकलुभावनवादियों को अपने को पीड़ित के रूप में पेश करने और उनका सहारा लेकर अपनी विफलताओं से ध्यान हटाने में मदद करते हैं. सामूहिक नेतृत्व की परंपरा और अपनी शक्तियों को चुनौती देने वाले या उसकी सीमा बताने वालों के ख़ात्मे के कारण नीतिगत फ़ैसलों में बड़ी चूक या विनाशकारी घटनाओं की संभावनाओं को ख़ारिज नहीं किया जा सकता, जैसा कि माओ के शासनकाल में देखा गया था. संक्षेप में, जिस तरह से चीन की सत्तावादी सरकार की ताकत और ज़्यादा बढ़ती जा रही है, दुनिया को आने वाली चुनौतियों के लिए तैयार रहना होगा.

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