Author : Arjun Dubey

Expert Speak India Matters
Published on Apr 03, 2024 Updated 0 Hours ago

औद्योगिकीकरण और तेज़ी से हो रहे शहरीकरण की वजह से जल निकायों पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों को रोकने के लिए भारत को अपने वॉटरफ्रंट्स यानी जल स्रोतों के कायाकल्प के लिए पर्याप्त एवं टिकाऊ उपायों को अमल में लाना चाहिए.

शहरों और जल निकायों के बीच संबंधों की पुनर्स्थापना: टिकाऊ जल संसाधनों की ओर भारत के बढ़ते क़दम

इतिहास पर नज़र डालें, तो हमेशा से ही शहरों और नदियों के बीच नज़दीकी संबंध रहा है, यानी शहरों का विकास नदियों के किनारे होता रहा है. मानव सभ्यता में नदियों का स्थान हमेशा से ही बहुत महत्वपूर्ण रहा है. नदियां न केवल धर्मिक और संस्कृतित विरासत की प्रतीक रही हैं, बल्कि लोगों की आजीविका का भी प्रमुख साधन रही हैं. तेज़ी से होने वाले शहरीकरण और वैश्वीकरण ने हालांकि भारत के शहरों को पूरी तरह से परिवर्तित कर दिया है. इसका असर शहरों के नज़दीक स्थित जल निकायों पर भी पड़ा है और उनकी हालत ख़राब हो गई है. इसके साथ ही शहरवासियों और जल संसाधनों के बीच अलगाव जैसे हालात पैदा हो गए हैं. पानी के स्रोतों की बिगड़ती स्थिति की दूसरी वजह औद्योगीकरण है, जिसने व्यापक रूप से जल निकायों को प्रदूषित करने का काम किया है. इस वजह से पानी के यह स्रोत आज मनुष्यों के उपयोग करने लायक नहीं रह गए हैं. इसके अलावा, नदियों पर बांधों के निर्माण और नदी संसाधनों के अत्यधिक उपयोग ने नदी प्रणालियों पर निर्भर पारंपरिक स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं एवं संस्कृतियों को नष्ट करने का काम किया है. इतना ही नहीं, हाल के वर्षों में, जलवायु परिवर्तन की वजह से भी प्राकृतिक ठौर-ठिकानों एवं जल प्रवाहों पर असर पड़ा है.

भारत के हर हिस्से में शहरों में व्यापक स्तर पर परिवर्तन हो रहा है, साथ ही शहरों में वॉटरफ्रंट्स यानी जल के स्रोतों, जल प्रवाहों, नदियों आदि का कायाकल्प किया जा रहा है, ताकि शहरों के किनारे पर स्थित इन जल निकायों को लोगों के लिए सुलभ बनाया जा सके.

वर्तमान समय की बात की जाए तो इन हालातों में बदलाव दिखाई दे रहा है. इसकी वजह यह है कि भारत के हर हिस्से में शहरों में व्यापक स्तर पर परिवर्तन हो रहा है, साथ ही शहरों में वॉटरफ्रंट्स यानी जल के स्रोतों, जल प्रवाहों, नदियों आदि का कायाकल्प किया जा रहा है, ताकि शहरों के किनारे पर स्थित इन जल निकायों को लोगों के लिए सुलभ बनाया जा सके. इसका मकसद पर्यावरण में सुधार, सामाजिक विकास और टिकाऊ विकास करना है. इसके लिए नदियों में सीवेज प्रवाहित होने से रोका जा रहा है, नदी को स्वच्छ और प्रदूषण मुक्त बनाने की कोशिश की जा रही है, नदियों से होने वाले कटाव एवं बाढ़ से होने वाले नुक़सान को कम करने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं. इसके साथ ही नदियों के किनारों यानी रिवरफ्रंट्स का विकास किया जा रहा है, वहां लोगों के घूमने-फिरने के लिए जगह बनाई जा रही हैं, सामाजिक-सांस्कृतिक सुविधाएं विकसति की जा रही हैं, ताकि वहां पर्यटन को बढ़ावा मिल सके, रोज़गार के अवसर पैदा हो सकें और आर्थिक विकास का मार्ग प्रशस्त किया जा सके.

 

पर्यावरण संरक्षण और पारिस्थितिकी के लिहाज़ से देखा जाए, तो लोगों और नदियों के बीच के रिश्ते को दोबारा क़ायम करना यानी स्थानीय लोगों को नदियों के क़रीब लाने की कोशिश करना एक अहम रणनीति है. इस विचार में न केवल नदियों के प्राकृतिक निवास स्थानों की पुनर्स्थापना शामिल है, बल्कि इसमें नदियों द्वारा प्रदान की जाने वाली पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं की बहाली भी शामिल है. इस सबका मकसद एक तरफ नदियों के संरक्षण को लेकर लोगों को जागरूक करना है, लोगों की अधिक से अधिक भागीदारी को प्रोत्साहित करना है, साथ ही दूसरी ओर नदी के इकोसिस्टम का बचाव करने के लिए और उसमें सुधार करने के लिए ज़मीन के टिकाऊ उपयोग की कोशिशों पर ज़ोर देना है. कहीं न कहीं ऐसा करके पानी की गुणवत्ता में सुधार, जैव विविधिता में बढ़ोतरी और नदी के आस-पास मनोरंजक गतिविधियों का विस्तार जैसे कई प्रकार के लक्ष्यों को हासिल करना है. ज़ाहिर है कि नदियों के संरक्षण के प्रति लोगों में जागरूकता पैदा करने के फायदे यहीं तक सीमित नहीं हैं, बल्कि इससे कहीं अधिक सकारात्मक नतीज़े हासिल किए जा सकते हैं. नदियों का पानी स्वच्छ होने से न केवल उसमें रहने वाले जलीय जीवों को फायदा होता है, बल्कि उन लोगों को भी लाभ होता है जो मानव उपयोग में आने वाले जल के लिए नदियों पर निर्भर हैं. जब बायो डायवर्सिटी में इज़ाफा होता है, तो इससे पर्यावरणीय परिवर्तनों और विभिन्न चुनौतियों के प्रति पारिस्थितकी तंत्र के लचीलेपन या सहनशीलता में भी बढ़ोतरी होती है. इसके अतिरिक्त, तमाम दूसरी गतिविधियों के लिए विलुप्त हो चुके प्राकृतिक स्थानों की दोबारा उपलब्धता से लोगों को जहां गुणवत्तापूर्ण जीवन जीने का अवसर मिलता है, वहीं प्रकृति के बीच रहने से उनकी शारीरिक और मानसिक सेहत भी दुरुस्त होती है.

 

भारत में वॉटरफ्रंट्स के कायाकल्प का कार्य तेज़ी के साथ किया जा रहा है. हाल के वर्षों में भारत में कई रिवरफ्रंट्स और जल प्रवाहों का पुनर्विकास एवं जीर्णोद्धार किया गया है, इनमें गुजरात में साबरमती, राजस्थान में चंबल और मध्य प्रदेश में नर्मदा रिवरफ्रंट का कायाकल्प शामिल है. अहमदाबाद में साबरमती रिवरफ्रंट विकास परियोजना 1990 के दशक में शुरू की गई इस प्रकार की पहली परियोजना थी. भारत सरकार ने वर्ष 2021 में रिवर सिटीज़ अलायंस (RCA) की शुरुआत की थी, यह जल शक्ति मंत्रालय (MoJS) और आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय (MoHUA) के बीच एक साझा प्रयास था, जिसका मकसद नदी और शहरों के बीच पारस्परिक संबंधों को सशक्त करना था, साथ ही नदियों के आसपास टिकाऊ विकास पर ध्यान केंद्रित करना था. पूरे भारत में जल-संवेदनशील शहरी विकास योजना के साथ-साथ नदियों के रखरखाव से जुड़ी योजनाओं को विकसित करने के लिए 142 से अधिक ऐसे शहरों की पहचान की गई है, जो नदियों के किनारे बसे हुए हैं.

NMCG के अंतर्गत सबसे पहले जिन परियोजनाओं को प्रारंभ किया गया था, उनमें पटना रिवरफ्रंट प्रोजेक्ट का नाम शामिल है. सहयोगी एवं बहुआयामी प्रयास के तौर पर देखा जाए तो पटना रिवरफ्रंट परियोजना शहर के किनारे नदी तट के विकास का एक सफल उदाहरण प्रस्तुत करती है.

रिवर सिटीज़ अलायंस की अवधारणा को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से वर्ष 2023 में जल शक्ति मंत्रालय के तहत राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (NMCG) की अगुवाई में COP28 की बैठक के दौरान ग्लोबल रिवर सिटीज़ अलायंस (GRCA) की शुरुआत की गई थी. ग्लोबल रिवर सिटीज़ अलायंस के गठन का उद्देश्य नदियों एवं शहरों के संबंधों को नए सिरे से परिभाषित करने, जानकारियों के आदान-प्रदान को सुगम बनाने एवं इस दिशा में विश्व की सर्वोत्तम और व्यावहारिक नीतियों के प्रसार के लिए एक विशिष्ट मंच प्रदान करना था. NMCG के अंतर्गत सबसे पहले जिन परियोजनाओं को प्रारंभ किया गया था, उनमें पटना रिवरफ्रंट प्रोजेक्ट का नाम शामिल है. सहयोगी एवं बहुआयामी प्रयास के तौर पर देखा जाए तो पटना रिवरफ्रंट परियोजना शहर के किनारे नदी तट के विकास का एक सफल उदाहरण प्रस्तुत करती है. साथ ही साथ यह परियोजना इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास के साथ पारिस्थितिकी, पर्यावरण और पानी से संबंधित विभिन्न मसलों को भी संबोधित करती है. इसी प्रकार से मैंगलोर के ज़िला प्रशासन द्वारा मैंगलोर स्मार्ट सिटी लिमिटेड (MSCL) के ज़रिए नेत्रावती रिवरफ्रंट परियोजना पर कार्य किया जा रहा है. इस परियोजना के अंतर्गत नदी के किनारे कई तरह के विकास कार्य किए जा रहे हैं. इसके तहत 2.2 किलोमीटर के पैदल पथ का निर्माण, बायो डायवर्सिटी पार्क और छोटे-छोटे मैंग्रोव वनों का विकास किया जा रहा है. इस सबका मकसद लोगों को रिवरफ्रंट से दोबारा जोड़ना है.

 

ज़ाहिर है कि जल निकायों और जल स्रोतों का कायाकल्प शहरों की पानी से जुड़ी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए वरदान साबित हो सकता है. ऐसे में इन जल निकायों की स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए इस नज़रिए का विस्तृत आकलन करना और इससे पैदा होने वाली संभावित चुनौतियों पर विचार-विमर्श करना बेहद ज़रूरी हो जाता है. गौरतलब है कि शहरों में अर्बन ब्लू-ग्रीन एसेट्स यानी शहरी नीली-हरित संपत्तियों की भरमार होती है और ऐसे कई तरीक़े हैं, जिनके ज़रिए ये रिवर वाटरफ्रंट परियोजनाएं शहरों एवं वहां के निवासियों के हित में इनका लाभ उठा सकती हैं.

 

मिश्रित उपयोग के लिए भूमि का विकास

 

मिलेजुले उपयोग के लिए भूमि का विकास करने का नज़रिया देखा जाए तो न सिर्फ़ क्षेत्र के उपयोग में विविधिता लाने का काम करता है, बल्कि वहां के ऐतिहासिक और विसारत से जुड़े मूल्यों का संरक्षण करते हुए उसे एक नया आयाम भी देता है और जीवंतता लाता है. भारत में साबरमती रिवरफ्रंट इस मिश्रित उपयोग का एक सटीक उदाहरण प्रस्तुत करता है. साबरमती रिवरफ्रंट का कायाकल्प इतने सुनियोजित तरीक़े से किया गया है कि किसी समय नदी का जो तट पूरी तरह से उपेक्षित था और जहां का पानी प्रदूषित था, वो आज लोगों के आकर्षण का प्रमुख केंद्र बन गया है. आज साबरमती रिवरफ्रंट पर पार्कों, उद्यानों, पैदल पथ, हाटों (व्यावसायिक स्थानों) आदि का विकास होने से यह जगह जीवंत हो उठी है और लोगों के आकर्षण का केंद्र बन गई है. इसी प्रकार से पटना रिवरफ्रंट के विकास के दौरान वहां चंडी घाट से लगा हुआ लंबा पैदल पथ बनाया गया है. यह पैदल पथ वहां आने वालों के लिए ऐसी बेहतरीन जगह साबित हुई है, जहां वे प्रकृति के बीच स्वच्छंद होकर घूम सकते हैं. उल्लेखनीय है कि नदियों के किनारे विकसित किए गए ये पैदल पथ विभिन्न सामाजिक-आर्थिक गतिविधियों के लिए बेहतर जगह उपलब्ध कराते हैं. इतना ही नहीं, शहरों के नज़दीक पुनर्विकसित की गई ऐसी जगहें लोगों को नदियों के निकट आने और उनसे दोबारा रिश्ता क़ायम करने का माध्यम भी बनती हैं.

 

हितधारकों की सहभागिता

 

अगर किसी शहर में नदी के किनारे जीवंत और सभी सुविधाओं से संपन्न रिवरफ्रंट का विकास करना है, तो उसके लिए विभिन्न हितधारकों को एक साथ लाना बेहद ज़रूरी हो जाता है. यानी अलग-अलग क्षेत्रों के हितधारक जब स्थानीय नगर पालिका या नगर निगम एवं योजना व विकास का कार्य करने वाली एजेंसियों या विभागों के साथ मिलकर काम करते हैं, साथ ही शहर के नेताओं एवं अलग-अलग समुदायों के लोगों भी साथ में जुटते हैं, तब जाकर रिवरफ्रंट का समुचित विकास संभव हो पाता है. उदाहरण के तौर पर कोटा चंबल रिवरफ्रंट जीर्णोद्धार परियोजना के अंतर्गत अलग थीम पर आधारित 27 घाट विकसित किए गए हैं. इनमें से हर घाट अर्बन इम्प्रूवमेंट ट्रस्ट यानी शहरी सुधार ट्रस्ट (UIT) द्वारा विकसित भारत की सांस्कृतिक विरासत के एक आयाम को प्रदर्शित करता है. इतना ही नहीं, इन घाटों के विकास में  स्थानीय नेताओं की तरफ से भी व्यापक समर्थन दिया गया है. एक अहम बात यहा है कि शहरों में जब इस तरह के विकास कार्य किए जाते हैं, तो उस क्षेत्र में निवास करने वाली आबादी के विस्थापन को रोका जाना चाहिए और अगर उनका विस्थापन बेहद आवश्यक है, तो ऐसे समुदायों के समुचित पुनर्वास की व्यवस्था करना प्राथमिकता में होना चाहिए. इसके लिए विभिन्न विभागों के बीच समन्वय को मज़बूत करने वाली इकाइयों की स्थापना की जा सकती है. जैसे कि विशेष प्रयोजन इकाई या पुनर्वास ट्रस्ट और जल निकाय सुधार ट्रस्ट आदि संस्थाओं या इकाइयों को स्थापित किया जा सकता है. ये संस्थाएं विभिन्न हितधारकों के बीच समन्वय और सहयोग को और पुख्ता करने में मददगार साबित हो सकती हैं. अहमदाबाद नगर निगम द्वारा वर्ष 1997 में साबरमती रिवरफ्रंट डेवलपमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड को एक विशेष प्रयोजन संस्था के रूप गठित किया गया था. इसका कार्य साबरमती नदी के आसपास के क्षेत्रों में अहमदाबाद की पहचान को नए सिरे से निर्धारित करना था, साथ ही रिवरफ्रंट का सकारात्मक रूप से कायाकल्प करते हुए शहर और नदी के बीच दोबारा संपर्क स्थापित करना था.

 

पर्यावरण एवं जलवायु के प्रति संवेदनशीलता

 

शहरी वॉटरफ्रंट्स के कायाकल्प के दौरान बेहद एहतियात बरतना चाहिए और इस बात का विशेष ख्याल रखा जाना चाहिए कि प्रकृति एवं इकोलॉजी को कोई नुक़सान न पहुंचे. अर्थात शहरी जल प्रवाहों का पुनरुद्धार, या कहा जाए कि सौंदर्यीकरण किसी भी सूरत में पर्यावरण की क़ीमत पर नहीं किया जाना चाहिए. कहने का तात्पर्य यह है कि रिवरफ्रंट्स के कायाकल्प के दौरान किसी भी निर्माण कार्य को करते हुए जेहन में पर्यावरण का संरक्षण अवश्य होना चाहिए. नासिक में गोदावरी रिवरफ्रंट के पुनर्विकास के दौरान जो नज़रिया अपनाया गया है, वो इस दिशा में एक सटीक उदाहरण प्रस्तुत करता है. दरअसल, वहां कायाकल्प के दौरान बाढ़ के ख़तरे को कम करने के लिए गोदावरी नदी से गाद को हटाया गया था, साथ ही नदी पर वर्षों के दौरान बनाए गए कंक्रीट के पक्के निर्माणों को भी तोड़ा गया था.

कुल मिलाकर जल निकायों के पुनरुद्धार से जुड़ी परियोजनाओं को इस प्रकार से विकसित किया जाना चाहिए कि अगर भविष्य में जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों की वजह से कोई अड़चन पैदा हो, तो उन्हें उसके अनुकूल ढाला जा सके, यानी ऐसे प्रोजेक्ट्स की योजना लचीली होनी चाहिए.

कुल मिलाकर जल निकायों के पुनरुद्धार से जुड़ी परियोजनाओं को इस प्रकार से विकसित किया जाना चाहिए कि अगर भविष्य में जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों की वजह से कोई अड़चन पैदा हो, तो उन्हें उसके अनुकूल ढाला जा सके, यानी ऐसे प्रोजेक्ट्स की योजना लचीली होनी चाहिए. इस दृष्टिकोण का सटीक उदाहरण कोयंबटूर के स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के अंतर्गत पुनर्जीवित की गई सात पुरानी झीलों में से एक झील में देखने को मिलता है. इस झील के किनारों का विकास करने के दौरान ग्रीन इंफ्रास्ट्रक्चर को पर्याप्त तवज्जो देने का प्रयास किया गया है. ज़ाहिर है कि सौंदर्यीकरण के साथ-साथ पर्यावरणीय चिंताओं को प्राथमिकता देने वाला एक संतुलित नज़रिया ही टिकाऊ वॉटरफ्रंट्स का विकास सुनिश्चित करने वाला सिद्ध होगा.

 

आर्थिक रूप से व्यावहारिक पुनर्विकास

 

शहरों में नदियों या जल निकायों के तटों को विकसित करने वाली परियोजनाओं की आर्थिक रूप से व्यवहार्यता यानी सकारात्मक आर्थिक योगदान देने की क्षमता भी महत्वपूर्ण होती है. अगर इन परियोजनाओं के विकास के दौरान आय के अलग-अलग स्रोतों की स्थापना पर भी ध्यान दिया जाए, तो ये परियोजनाएं टिकाऊ साबित हो सकती हैं. भारत के कोयंबटूर की बात की जाए, तो वहां पर वलंकुलम लेकफ्रंट यानी झील के तट का कायाकल्प किया गया है. यहां पर एक लैंडफिल अर्थात कूड़ा फेंकने के स्थान को विकसित कर बिलकुल नया रूप प्रदान किया गया है और प्रदर्शिनी, को-वर्किंग स्थानों एवं रेस्टोरेंट आदि की स्थापना की गई है, जिनसे अच्छी ख़ासी आय भी होती है. इंदौर में कान्ह नदी को पुनर्जीवित किया गया है और वहां नदी के किनारे 3.3 किलोमीटर लंबे रिवरफ्रंट का विकास होने के बाद से आसपास की प्रॉपर्टी की क़ीमतों में 40 प्रतिशत की उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई है. देखा जाए तो कान्ह नदी के रिवरफ्रंट का विकास करने से स्थानीय बिजनेस और पर्यटन को प्रोत्साहन मिला है और इससे अप्रत्यक्ष रूप से इंदौर शहर की अर्थव्यवस्था को भी बढ़ावा मिला है. इससे स्पष्ट होता है कि नदियों या झीलों के किनारे व्यावसायिक स्थानों को विकसित करना बेहद अहम है, क्योंकि इससे न केवल एक वाटरफ्रंट आत्मनिर्भर बन जाते हैं, बल्कि लंबे समय तक उसकी व्यावहारिकता भी क़ायम रहती है.

इन वॉटरफ्रंट्स के विकास के दौरान एक ख़ास रणनीतिक नज़रिए को अपनाया जाना बेहद अहम हो जाता है, यानी ऐसा दृष्टिकोण जो विभिन्न समुदायों के सामूहिक हितों का ध्यान रखने वाला हो, साथ ही शहर और वहां के निवासियों की आवश्यकताओं को पूरा करे और संगठित रूप से धीरे-धीरे परिवर्तन लेकर आए.

कुल मिलाकर देखा जाए, तो कोई भी नदी या जल निकाय ज़्यादातर किसी शहर का सबसे आकर्षक और जीवंत स्थान होता है और पूरी दुनिया में इन जगहों पर निवेश करने से सबसे अधिक रिटर्न हासिल होता है. ऐसे में यह ज़रूरी हो जाता है कि इन वॉटरफ्रंट्स की क्षमता का पूरा लाभ उठाया जाए. इसलिए, इन वॉटरफ्रंट्स के विकास के दौरान एक ख़ास रणनीतिक नज़रिए को अपनाया जाना बेहद अहम हो जाता है, यानी ऐसा दृष्टिकोण जो विभिन्न समुदायों के सामूहिक हितों का ध्यान रखने वाला हो, साथ ही शहर और वहां के निवासियों की आवश्यकताओं को पूरा करे और संगठित रूप से धीरे-धीरे परिवर्तन लेकर आए. ज़ाहिर है कि इस प्रकार का नज़रिया न सिर्फ़ विकास की प्रक्रिया को एक मुकम्मल रास्ते पर ले जाता है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि शहर में जिस वॉटरफ्रंट का कायाकल्प किया जा रहा है, वो भरोसेमंद भी है और टिकाऊ भी है. इसलिए, जल निकायों के किनारों को पुनर्जीवित करने के दौरान पर्यावरणीय संवेदनशीलता, सामाजिक समावेशिता, न्यायोचित नतीज़ों और जलवायु परिवर्तन के मुताबिक़ ढ़लने जैसी बातों को प्रमुखता दी जानी चाहिए.

 

रिवरफ्रंट के निर्माण के बाद इनका रखरखाव भी बेहद अहम है, क्योंकि समुचित रखरखाव से ही लंबे समय तक इन्हें बरक़रार रखा जा सकता है. इसके अलावा रिवरफ्रंट परियोजनाओं की देखरेख करने से ही इनके आसपास रहने वाले लोगों के लिए जीवन की गुणवत्ता में सुधार हो सकेगा, साथ ही प्राकृतिक आबोहवा को संरक्षित करने में भी मदद मिलेगी. उल्लेखनीय है समुचित रखरखाव के लिए रिवरफ्रंट परियोजनाओं का हर लिहाज़ से ध्यान रखने की ज़रूरत होती है. इसके लिए बेहतर भौतिक रखरखाव से लेकर लोगों की सहभागिता और पर्यावरण प्रबंधन के बीच तालमेल ज़रूरी है. यानी कि रिवरफ्रंट पर गंदगी न हो, इसके लिए नियमित सफाई करने, लैंडस्केपिंग अर्थात खूबसूरत पौधे लगाने, पार्क आदि विकसित करने और उनकी देखभाल करने, बुनियादी ढांचे की मरम्मत और देखभाल करने, पानी की गुणवत्ता पर नज़र रखने, वनस्पति और वन्य-जीव संरक्षण एवं मिट्टी के कटाव को रोकने की आवश्यकता होती है.

 

ऐसे में रिवरफ्रंट को लेकर लोगों में जानकारी और जागरूता पैदा करने के लिए अभियान चलाना कारगर सिद्ध हो सकता है, क्योंकि इससे लोगों में विकसित किए गए नदी तटों के प्रति लगाव और ज़िम्मेदारी का भाव जगाया जा सकेगा, साथ ही पर्यावरण संरक्षण को लेकर उनकी सोच को बदलने में मदद मिलेगी. जागरूकता अभियान के दौरान लोगों को रिड्यूस, रियूज़ और रिसाइकिल के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है, स्वैच्छिक सफाई कार्यक्रमों के ज़रिए सामुदायिक भागीदारी को बढ़ाया जा सकता है और प्रदूषण व भीड़भाड़ आदि को कम करने के लिए टिकाऊ परिवहन अर्थात हरित परिवहन को प्रोत्साहित किया जा सकता है. इसके अलावा रिवरफ्रंट्स के पुनर्विकास के दौरान टिकाऊ तकनीक़ का इस्तेमाल करके न केवल लंबे समय तक उनके रखरखाव की आवश्यकताओं को कम किया जा सकता है, बल्कि उन पर पड़ने वाले पर्यावरण के प्रभाव को भी रोका जा सकता है.


अर्जुन दुबे इंस्टीट्यूट फॉर ह्यूमन डेवलपमेंट में रिसर्च एसोसिएट हैं.

अदिति मदान इंस्टीट्यूट फॉर ह्यूमन डेवलपमेंट में फेलो हैं.

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