चीन में हाल में हुई ताबड़तोड़ कार्रवाइयों ने पूंजी, कारोबार और उद्योग जगत को तबाह कर दिया है. इन कार्रवाइयों के बाद से चीनी टेक कंपनियां का विदेशों में चीनी सरकार के लक्ष्यों को आगे बढ़ाने में भी इस्तेमाल होने लगा है. हाल ही में चीनी नियामकों ने समझौताकारी उपायों का एलान किया. नए ज़माने के जंगी तौर-तरीक़ों में तकनीक से जुड़ी सेवाओं की अहम सामरिक भूमिका है. इस लेख में इसी भूमिका के मद्देनज़र चीन में टेक्नोलॉजी कंपनियों के ख़िलाफ़ चले अभियान के ख़ात्मे का विश्लेषण किया गया है.
पृष्ठभूमि
“टोही पूंजीवाद” के तहत डिजिटल टेक्नोलॉजी निगरानी तंत्र प्रयोगकर्ताओं के बर्ताव का विश्लेषण और वर्गीकरण करता है. टेक्नोलॉजी कंपनियां अपने वाणिज्यिक लक्ष्यों के हिसाब से प्रयोगकर्ता के बर्ताव को बदलने की अपनी क़ाबिलियत का इज़हार कर चुकी हैं. ऐसे घटनाक्रम राज्यसत्ताओं से छिपे नहीं हैं. PRISM कार्यक्रम के तहत अमेरिकी टेक्नोलॉजी कंपनियों ने राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी (NSA) के साथ स्वैच्छिक रूप से सहयोग का प्रदर्शन किया है. इस कार्यक्रम के तहत वैश्विक स्तर पर बड़े पैमाने पर डेटा की निगरानी की गई है. चीन ने विदेशों से विशाल मात्रा में डेटा संग्रह करने के लिए निजी क्षेत्र की टेक्नोलॉजी कंपनियों का सहारा लिया है. चीन के टेक्नोलॉजी उत्पादों में बैकडोर्स जैसे फ़ीचर शामिल हैं. राष्ट्रीय ख़ुफ़िया क़ानून (NIL) के तहत चीनी कंपनियों पर विदेशी ख़ुफ़िया कार्यों के लिए चीनी अधिकारियों की मदद करने की ज़िम्मेदारी दी गई है.
चीन ने विदेशों से विशाल मात्रा में डेटा संग्रह करने के लिए निजी क्षेत्र की टेक्नोलॉजी कंपनियों का सहारा लिया है. चीन के टेक्नोलॉजी उत्पादों में बैकडोर्स जैसे फ़ीचर शामिल हैं. राष्ट्रीय ख़ुफ़िया क़ानून (NIL) के तहत चीनी कंपनियों पर विदेशी ख़ुफ़िया कार्यों के लिए चीनी अधिकारियों की मदद करने की ज़िम्मेदारी दी गई है.
नई ज़माने के जंगी तौर-तरीक़ों के लिए टोही पूंजी क्षमताएं बेहद अहम हैं. “ज़ेहनी जंग” के तहत “साइबर घुसपैठों और मानसिकता और जनमत से छेड़छाड़ के ज़रिए दूसरे पक्ष की सामाजिक विचारधाराओं, मानसिकता और क़ानून-व्यवस्था से जुड़ी समझ को एक अलग ही मोड़ देने” की कोशिश की जाती है. “बेहद कार्यकुशल और अत्याधुनिक कंप्यूटिंग सिस्टम, इंटरनेट और सोशल मीडिया” इस मक़सद के लिए अहम होते हैं. गठजोड़ों के बावजूद “दो आकाओं से जुड़ी दुविधा” में बुनियादी रूप से एक दरार मौजूद है. दरअसल टेक्नोलॉजी कंपनियां आपस में जुड़े (मगर अक्सर एक दूसरे के विरोधी) दो लक्ष्यों के अनुरूप काम करती हैं. टेक्नोलॉजी कंपनियां मुनाफ़ा कमाने के मक़सद से चलती हैं और शेयरहोल्डर्स के प्रति जवाबदेह होती हैं. इसके साथ ही ऐसी कंपनियां राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी अहम परिसंपत्तियां भी होती हैं. टेक्नोलॉजी कंपनियों की क्षमताएं ज़ेहनी जंग से जुड़े संसाधन के तौर पर भी काम आती हैं.
बहरहाल, इन दो गतिविधियों का आपस में टकराव होता है. प्रतिद्वंदी पक्ष के बाज़ार या पूंजी का लालच ऐसी क़वायदों को जन्म देते हैं. अमेरिका की विशाल टेक्नोलॉजी कंपनियों ने अपना गुज़ारा चलाने या चीन में प्रवेश करने या दोबारा प्रवेश की चाहत में चीन की टोही क्षमताओं का समर्थन किया है. हालांकि इस वजह से उन्हें अमेरिकी राज्यसत्ता के कोप का भागी भी बनना पड़ा है. चीन द्वारा भी जवाबी तौर पर ऐसे ही उपाय किए गए हैं. चीन डेटा को “बुनियादी सामरिक परिसंपत्ति” के तौर पर देखता है. वहां की घरेलू कंपनियों ने चीन के “वैश्विक डेटा संग्रह तंत्र” के निर्माण को मुमकिन बनाया है. डेटा “देश के विकास को आगे बढ़ाती है और राष्ट्रीय सुरक्षा का बचाव करती है.” डेटा पर निगरानी रखने की व्यवस्था “राज्यसत्ता और सियासी सुरक्षा” बरक़रार रखने में पार्टी और राज्यसत्ता की मदद करती है. चीन की “टोही राज्यसत्ता” के विकास में निजी कंपनियों ने बेहद अहम भूमिका निभाई है. “नागरिक-सैनिक एकीकरण” के तहत “राष्ट्रीय संप्रभुता, सुरक्षा और विकास से जुड़े हितों” के मसलों का “प्रभावी रूप से घालमेल” किया गया है.
महज़ “निष्क्रिय बचाव” से आगे निकलते हुए चीन अब आक्रामक पहलों को अंजाम दे रहा है. चीन तकनीकी रूप से महाशक्ति के दर्जे की तलाश में है. इस क़वायद में इन इकाइयों की तकनीकी क्षमताएं बेहद अहम हो जाती हैं. चीन की “सूचनाओं से संचालित रणभूमि” में “डेटा” को “लहू” की तरह देखा जाता है. चीन निजी कंपनियों के सहारे “वैचारिक युद्ध” लड़ता आ रहा है. निजी कंपनियों द्वारा जुटाई गई सूचनाओं के साथ-साथ टेक्नोलॉजी का “दोहन” करते हुए चीन “सूचना से जुड़े युद्ध का आग़ाज़” करता है. अमेरिकी अधिकारियों के मुताबिक “चीनी कंपनियों की डेटा-प्रॉसेसिंग क्षमताओं का इस्तेमाल कर चीन की जासूसी एजेंसियां सूचनाओं के एक विशाल भंडार को तेज़ गति से खंगालकर ख़ुफ़िया अहमियत वाले अहम हिस्से ढूंढ सकती हैं.”
चीन की “सूचनाओं से संचालित रणभूमि” में “डेटा” को “लहू” की तरह देखा जाता है. चीन निजी कंपनियों के सहारे “वैचारिक युद्ध” लड़ता आ रहा है. निजी कंपनियों द्वारा जुटाई गई सूचनाओं के साथ-साथ टेक्नोलॉजी का “दोहन” करते हुए चीन “सूचना से जुड़े युद्ध का आग़ाज़” करता है.
इस सिलसिले में सामने आ रही दुविधा से पार पाने के लिए चीन राष्ट्रीय ख़ुफ़िया क़ानून (NIL) आयद कर अपनी निजी कंपनियों में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) की समितियां स्थापित करता आ रहा है. बहरहाल इन क़वायदों के बावजूद चीन की कंपनियां विदेशी पूंजी आकर्षित करने में कामयाब रही हैं. चीन की कंपनियों ने विदेशी स्टॉक बाज़ारों से पूंजी का जुगाड़ किया है. ऐसे क़दमों में चीन की कंपनियों की वफ़ादारियां को नए सिरे से निर्धारित करने की संभावना मौजूद है.
तेवर में बदलाव
चीन द्वारा इस दुविधा से पार पाने की कोशिशों के बावजूद आख़िरकार अमेरिकी पूंजी की चाहत भारी पड़ी है. 2021 की पहली 2 तिमाहियों में चीन की 35 कंपनियों की अमेरिकी स्टॉक बाज़ारों में लिस्टिंग हुई. ये कंपनियां 12.3 अरब अमेरिकी डॉलर की पूंजी जुटाने में कामयाब रहीं. चीनी अधिकारियों को डर था कि इस क़वायद से अमेरिकी सरकार संवेदनशील सूचनाओं तक पहुंच बनाने में कामयाब हो जाएगी. इसके बाद टेक्नोलॉजी क्षेत्र के ख़िलाफ़ चलाई गई मुहिम के चलते “चीन की विशाल टेक्नोलॉजी कंपनियों की सामूहिक बाज़ार पूंजी में से 1 खरब अमेरिकी डॉलर से भी ज़्यादा की रकम हवा हो गई”. चीनी सरकार द्वारा अपनाए गए हथकंडों में जुर्माना लगाना, संगीत से जुड़े विशेष अधिकारों के त्याग का फ़रमान सुनाना, विलय की क़वायदों को रोकना, संबंधित ऐप बाज़ारों से ऐप्स को निकाल बाहर करना, रजिस्ट्रेशनों को मुल्तवी करना और साइबर सुरक्षा से जुड़ी जांच-पड़ताल शुरू करना शामिल थे.
हाल ही में चीन के नियामकों के तेवर में बदलाव देखा गया है. वित्तीय स्थिरता और विकास परिषद (FSDC) के मुताबिक उसने “विदेशी बाज़ारों में लिस्ट होने के लिए अनेक तरह की कंपनियों की मदद जारी रखी है.”
हाल ही में चीन के नियामकों के तेवर में बदलाव देखा गया है. वित्तीय स्थिरता और विकास परिषद (FSDC) के मुताबिक उसने “विदेशी बाज़ारों में लिस्ट होने के लिए अनेक तरह की कंपनियों की मदद जारी रखी है.” समिति ने अमेरिका में लिस्ट चीनी इकाइयों पर अमेरिका द्वारा ऑडिट की शर्तें थोपे जाने से जुड़े मसलों को सुलझाने की अपील की है. इसके साथ ही चीन अपने स्टॉक एक्सचेंजों में विदेशी कंपनियों को लिस्ट करने के लिए आकर्षित करने की क़वायदों में जुट गया है. इन घटनाक्रमों को इन कंपनियों के ख़िलाफ़ चलाए जा रहे अभियान के ख़ात्मे के तौर पर देखा गया है. इन बदलावों को “चीनी नेता शी जिनपिंग के लिए आर्थिक स्थिरता की अहमियत” को सामने रखे जाने के तौर पर भी देखा गया है. चीन ने अपने टेक सेक्टर में नई जान फूंकने के लिए “राष्ट्रीय स्तर की क़वायद” का एलान किया है. हालांकि चीन द्वारा इस सिलसिले में पलटी मारने की वजहें घरेलू आर्थिक क़वायदों से कहीं आगे की हो सकती हैं. टेक कंपनियों के ख़िलाफ़ मुहिम के इस कथित ख़ात्मे के पीछे सुरक्षा से जुड़ी चिंताएं भी हो सकती हैं.
विश्लेषण और प्रभाव
एक राजकीय पत्र में “निजी क्षेत्र और पार्टी का संयुक्त मोर्चा” तैयार करने के प्रयासों के संकेत दिए गए. टेक्नोलॉजी क्षेत्र के ख़िलाफ़ चलाए गए अभियान का मक़सद चीन की 2 आकाओं वाली दुविधा से पार पाना था. निजी उद्यमों को “पार्टी के दिशानिर्देशों के अमल से और ज़्यादा जुड़ने” के निर्देश दिए गए.
टेक कंपनियों के ख़िलाफ़ चलाए गए अभियान के ख़ात्मे को सुरक्षा चिंताओं से जोड़ा जा सकता है. चीन की निजी टेक कंपनियां चीनी सरकार के साथ विदेशी प्रयोगकर्ताओं के डेटा साझा करती रही हैं. मिसाल के तौर पर टिकटॉक चीन की सरकार के साथ अमेरिकी प्रयोगकर्ताओं के डेटा साझा करती रही थी. ये बात चीन के हित में है कि उसकी टेक्नोलॉजी इकाइयां उसकी सरहदों से परे ख़ासतौर से विरोधी राज्यसत्ताओं में भी सक्रिय रहें. ताबड़तोड़ कार्रवाइयों के दौर में भी चीन की इकाइयां विदेशी डेटा पर निगरानी से जुड़े चीनी राज्यसत्ता के ठेके हासिल करने में कामयाब रही थीं.
दरअसल UFWD ही वो एजेंसी है जो विदेशी और घरेलू कंपनियों को एकजुट कर प्रभाव जमाने से जुड़ी गतिविधियों के संचालन के लिए ज़िम्मेदार है. “चीनी अर्थव्यवस्था की रफ़्तार मंद पड़ने की आशंकाओं के चलते अधिकारियों के ख़िलाफ़ बढ़ती आलोचना” ने तात्कालिक रूप से UFWD की मज़बूती में योगदान दिया.
इन कंपनियों के लिए संदेश था “आगे बढ़ो विदेशी बाज़ारों में कमाई करो, मगर याद रखो कि तुम असलियत में किसकी ख़िदमत करते हो और विदेशी धरती पर तुमसे किसकी हिमायत करने की उम्मीद की जाती है.” कथित रूप से दमनात्मक कार्रवाइयों के शिकार टेक उद्योग की माली क़िस्मत महामारी में परवान चढ़ गई. टेंशेंट ने महामारी का लाभ उठाते हुए विदेशी ख़रीदारियां कर डाली. आज इस कंपनी का पोर्टफ़ोलियो “लगभग 350 अरब डॉलर के बराबर” हो गया है. चीन की सरकार के साथ गठजोड़ के चलते टेंशेंट को ये कामयाबी हासिल हो पाई है. टेंशेंट के वीचैट हेल्थ कोड ऐप ने चीनी सरकार को महामारी से जुड़े आंकड़ों पर निगरानी बनाने में भारी मदद की.
लिस्ट हुई अमेरिकी इकाइयों के मुनाफ़े भी महामारी के दौर में आसमान छूने लगे. अलीबाबा “कोरोना महामारी के बीच सबसे ज़्यादा मुनाफ़े में रहने वाली चीनी कंपनियों में शुमार है”. दरअसल चीन की सरकार अलीबाबा की क्लाउड सर्विसेज़ पर लगातार निर्भर रहने लगी है. कंपनी की बढ़त के पीछे ये एक प्रमुख कारक रहा है. एंट ग्रुप के एलिपे हेल्थ कोड ने भी महामारी से जुड़े आंकड़ों की निगरानी में चीनी राज्यसत्ता की मदद की. चीन सरकार “तकनीक के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता” हासिल करना चाहती है. अमेरिकी प्रतिबंधों के चलते चीन की टेक इकाइयां और चीनी सरकार अपने उद्देश्यों और हितों में और ज़्यादा तालमेल बिठाने को मजबूर हो गईं. महासचिव शी ने UFWD में नई जान फूंक दी है. दरअसल UFWD ही वो एजेंसी है जो विदेशी और घरेलू कंपनियों को एकजुट कर प्रभाव जमाने से जुड़ी गतिविधियों के संचालन के लिए ज़िम्मेदार है. “चीनी अर्थव्यवस्था की रफ़्तार मंद पड़ने की आशंकाओं के चलते अधिकारियों के ख़िलाफ़ बढ़ती आलोचना” ने तात्कालिक रूप से UFWD की मज़बूती में योगदान दिया. बहरहाल “संपूर्ण राष्ट्र की एक नई व्यवस्था” “सरकार और बाज़ार के बीच संबंधों को नए सिरे से स्थापित करने” की क़वायद है. टेक कंपनियों के ख़िलाफ़ अभियान ने जता दिया कि “सरकार देश की सबसे बड़ी डेटा प्रॉसेसर है और टेक क्षेत्र की विशाल निजी कंपनियां उससे बड़ी नहीं हो सकतीं.”
नेटवर्क सुरक्षा समीक्षा की नई क़वायद और एल्गोरिदम से जुड़े नियमनों से ये बात ज़ाहिर हो गई है. पहली व्यवस्था के तहत ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्मों और सूचना से जुड़े अहम बुनियादी ढांचा संचालकों पर विदेशों में लिस्टिंग के लिए साइबर सुरक्षा की पड़ताल से जुड़ी शर्तें थोपी गई हैं. नियमनों के तहत राष्ट्रीय सुरक्षा को जांच के दायरे में रखा गया है. दूसरी व्यवस्था के तहत एल्गोरिदम्स पर नियम पालना और जानकारियां देने से जुड़े दिशानिर्देश आयद किए गए हैं. टेक्नोलॉजी इकाइयों के डेटा संग्रहण, प्रॉसेसिंग और दुष्प्रचार से जुड़ी क्षमताओं का राज्यसत्ता के एजेंडे के साथ मज़बूती से तालमेल क़ायम कर दिया गया है.
अमेरिका के साथ रिश्ते सुधारने की क़वायद
अमेरिका और चीन के अलगाव ने चीन को विदेशों में अपने हित आगे बढ़ाने के लिए वैकल्पिक उपाय अपनाने को मजबूर कर दिया. यूक्रेनी संकट से अमेरिका का ध्यान भटक गया है. चीन इस मौक़े का लाभ उठाकर पश्चिमी बाज़ारों में दोबारा पहुंच बनाने की जुगत भिड़ा सकता है. अमेरिका के साथ नियमन से जुड़े मतभेद सुलझा लेने से विदेशी धरती पर अपना प्रभाव क़ायम करने की चीनी क़वायद को बढ़ावा मिलता है. चीन से जुड़ी इकाइयां अमेरिकी बुनियादी ढांचे से जुड़े ठेके पाने की कोशिशें कर चुकी हैं. पूर्वी यूरोप में जारी संकट के बीच ज़ेहनी जंग से जुड़ी चीनी मशीनरी अपने ख़ुद के विचारों को आगे बढ़ा रही है. चीन कूटनीतिक मोर्चे पर ज़बरदस्त संतुलनकारी गतिविधियों को अंजाम देने में जुटा है. चीन की टेक्नोलॉजी कंपनियां इस दिशा में अहम भूमिका निभाती हैं.
‘अलगाव’ से पहले अमेरिकी टेक कंपनियों पर चीन का दबदबा था. इन कंपनियों ने चीन के ख़िलाफ़ अमेरिकी क़ानूनों को कमज़ोर करने की जुगत भी भिड़ाई थी. आज भी तमाम सर्च इंजन दुष्प्रचार से जुड़ी चीनी क़वायदों का जमकर प्रचार-प्रसार कर रहे हैं. पश्चिम की इकाइयां दो आकाओं की ख़िदमत करती हैं. ऐसे में चीन में विदेशी कंपनियों की लिस्ट होने की क़वायद से निश्चित रूप से नए सिरे से संतुलनकारी गतिविधियां परवान चढ़ेंगी. चीन लिस्टिंग में सहूलियत पहुंचाकर विदेशी इकाइयों पर अपना नियंत्रण बढ़ा रहा है. फ़ंड मैनेजमेंट कंपनियों के लिए अब कम्युनिस्ट पार्टी की आंतरिक कमेटियां स्थापित करना अनिवार्य हो गया है. अमेरिकी नियामकों से मेलमिलाप करने से चीन के लिए बेरोकटोक डेटा संग्रहण/प्रॉसेसिंग और दुष्प्रचार से जुड़ी क़वायद जारी रखना सुनिश्चित हो जाता है. अमेरिका और पश्चिम में यूनाइटेड फ़्रंट वर्क डिपार्टमेंट (UFWD) की गतिविधियों से अपने हितों को आगे बढ़ाने की कोशिशों को बढ़ावा मिलना तय है. ज़ाहिर है अमेरिका और चीन के रिश्तों में नई जान फूंकने की क़वायद चीन द्वारा विदेशी मोर्चे पर अपनी चिंताएं कम करने के साथ-साथ अपनी ज़ेहनी जंगी क्षमताओं को आगे बढ़ाने की जुगत का इज़हार करती है.
अमेरिका और पश्चिम में यूनाइटेड फ़्रंट वर्क डिपार्टमेंट (UFWD) की गतिविधियों से अपने हितों को आगे बढ़ाने की कोशिशों को बढ़ावा मिलना तय है. ज़ाहिर है अमेरिका और चीन के रिश्तों में नई जान फूंकने की क़वायद चीन द्वारा विदेशी मोर्चे पर अपनी चिंताएं कम करने के साथ-साथ अपनी ज़ेहनी जंगी क्षमताओं को आगे बढ़ाने की जुगत का इज़हार करती है.
ये घटनाक्रम चीन की विदेश नीति में एक अहम लम्हा है. चीन और प्रशांत द्विपीय देशों का साझा विकास (CPICCD) कार्यक्रम इस इरादे को ज़ाहिर करता है. CPICCD ने अपने दृष्टिकोण में साइबर सुरक्षा और डिजिटल इंफ़्रास्ट्रक्चर पर ज़ोर दिया है. आयात-निर्यात से जुड़ी सुगम व्यवस्था, पुख्ता सरहद और ज़बरदस्त कनेक्टिविटी इस परियोजना के केंद्र में हैं. माइक्रोनेशिया के राष्ट्रपति डेविड डब्ल्यू पानयुलो के मुताबिक CPICCD का लक्ष्य “हमारे (प्रशांत द्वीपों) के संचार से जुड़े बुनियादी ढांचे पर नियंत्रण और मालिक़ाना हक़” क़ायम करना है. “हमारे द्वीपों (प्रशांत) में निवास करने वाले, यहां प्रवेश करने वाले और यहां से निकास करने वालों के बायोडाटा संग्रह और उनकी बड़े पैमाने पर निगरानी” सुनिश्चित करने के लिए इस क़वायद को अंजाम दिया जाता है.”
नाकाम हुए क़रार से अपनी निजी टेक्नोलॉजी कंपनियों पर चीन द्वारा दोबारा नियंत्रण क़ायम करने की बात ज़ाहिर हुई है. चीन विदेशों में अपनी हरकतों के लिए पूरे आत्मविश्वास के साथ इनका इस्तेमाल कर सकता है. इन घटनाक्रमों से ज़ाहिर है कि चीन एक बार फिर वैश्विक मंच पर टेक्नोलॉजी का दबदबा जमाने की अपनी मुहिम शुरू करने को तैयार है. हिंद-प्रशांत क्षेत्र में प्रभाव जमाने की चीनी करतूतों की काट निकालने में जुटी ताक़तों के लिए ये घटनाक्रम बड़ा ख़तरा बन सकते हैं.
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