Author : Rumi Aijaz

Published on Jan 16, 2021 Updated 0 Hours ago
वर्ष 2021 में भारत में शहरीकरण की रूपरेखा

हर 10 में से सात भारतीय जहां रहते हैं, उन्हें ‘ग्रामीण’ क्षेत्र का दर्जा मिला हुआ है. हालांकि, इनमें से कई इलाके ऐसे दिखने लगे हैं कि उन्हें ‘ग्रामीण’ नहीं माना जा सकता. यह कहना अधिक मुफीद होगा कि ये इलाके ‘शहर’ बनने की राह पर बढ़ रहे हैं. मिसाल के लिए, कई बड़े शहरों में टाउन प्लानिंग डिपार्टमेंट और विकास प्राधिकरण ( डिवेलपमेंट अथॉरिटीज) उन क्षेत्रों का विस्तार कर रहे हैं, जहां शहरीकरण हो सकता है. ऐसा इसलिए किया जा रहा है ताकि शहरों में आने वाली अतिरिक्त आबादी के लिए जगह हो. लेकिन इससे एक समस्या भी खड़ी हो रही है.

ग्रामीण इलाकों में शहरी विकास के पहुंचने और शहरों का विस्तार होने से वहां खेती की जमीन घट रही है और गांव वालों के पेशे में भी बदलाव आ रहा है. ऐसे इलाकों में अधिक से अधिक लोग गैर-कृषि कार्यों को अपना रहे हैं. इसके अलावा, पॉपुलेशन डेंसिटी (तय क्षेत्र में अधिक लोगों के बसने) में बढ़ोतरी और रोजगार के पैटर्न में बदलाव से शहरों के पास के कई ग्रामीण इलाके भारत के जनगणना कार्यालय के ‘शहरी क्षेत्र’ की शर्तों को पूरा करने लगे हैं. इसलिए इन्हें ‘शहरी’ क्षेत्र माना जा रहा है. बड़े शहरों में जगह न बचने, टियर 2 शहरों में आबादी बढ़ने और आर्थिक गतिविधियों में तेजी आने से भी शहरीकरण की प्रक्रिया प्रभावित हो रही है. मसलन, अब टियर 2 शहर विकास के नए केंद्र बन रहे हैं.

2011 जनगणना के आंकड़ों से पहली बार शहरों की तरफ झुकाव बढ़ा दिखा. 2001-11 के बीच, देश की शहरी आबादी में बढ़ोतरी ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में अधिक रही. नेशनल कमीशन ऑन पॉपुलेशन (NCP) का अनुमान है कि अगले 15 वर्षों में यानी 2036 तक 38.6 फीसदी भारतीय, शहरी इलाकों में रहेंगे यानी तब 60 करोड़ लोगों का बसेरा इनमें हो जाएगा. संयुक्त राष्ट्र (UN) ने भी कहा है कि 2018 से 2050 के बीच भारत में शहरी आबादी 46.1 करोड़ से बढ़कर 87.7 करोड़ यानी दोगुनी हो जाएगी. मौजूदा ट्रेंड और भविष्य के अनुमानों से इसका संकेत मिल रहा है कि भारत लगातार शहरीकरण की तरफ बढ़ रहा है. अभी देश की कुल आबादी के मुकाबले शहरों में रहने वालों का प्रतिशत जापान, ब्राजील, अमेरिका, रूस, इंडोनेशिया और चीन से कम है. वैसे, संख्या के लिहाज से देखने पर यह स्थिति बदल जाती है. इस मामले में भारत के शहरों में रहने वालों की संख्या सिर्फ चीन से कम है. भारत में शहरीकरण का बढ़ना अच्छी बात है, लेकिन यह अपने साथ कई चुनौतियां भी लेकर आया है. शहरीकरण बढ़ने पर माल और सेवाओं की मांग बढ़ती है. साथ ही शहरी विकास की बेहतर योजना, शहरों की देखरेख और प्रशासन संबंधी जिम्मेदारियां भी बढ़ती हैं.

संयुक्त राष्ट्र (UN) ने भी कहा है कि 2018 से 2050 के बीच भारत में शहरी आबादी 46.1 करोड़ से बढ़कर 87.7 करोड़ यानी दोगुनी हो जाएगी. मौजूदा ट्रेंड और भविष्य के अनुमानों से इसका संकेत मिल रहा है कि भारत लगातार शहरीकरण की तरफ बढ़ रहा है. 

दुनिया में इस बात को लेकर आम सहमति है कि शहरीकरण को बढ़ावा दिया जाना चाहिए. भारत सहित कई देश शहरीकरण को अपने विकास एजेंडा के लिए अहम मानते हैं. उसकी वजह यह है कि शहरीकरण बढ़ने से देश और समाज को कई फायदे होते हैं. जब अलग-अलग स्किल (कौशल), विचार, सामाजिक और सांस्कृतिक सोच वाले लोग साथ आते हैं, प्रोडक्टिव एक्टिविटी में शामिल होते हैं और आपस में संवाद करते हैं तो उससे एक रचनात्मक माहौल बनता है. और यह किसी देश और समाज के लिए अच्छा हो सकता है.

शहरीकरण का नफ़ा-नुकसान

इस तरह का माहौल, कम से कम सिद्धांत रूप में, सबके लिए बेशुमार मौके मुहैया कराता है और आप इसे दुनिया के कई शहरों में देख भी सकते हैं. लोगों को चाहे जैसी शिक्षा मिली हो, उनके पास जिस तरह के स्किल हों या वे जिस आय वर्ग से आते हैं, इन शहरों में उन्हें कई तरह के फायदे हो रहे हैं. इसमें भी कोई शक नहीं कि शहरीकरण से देश की ग्रोथ बढ़ती है और एक बड़ा वर्ग गरीबी की दलदल से बाहर निकल पाता है.

बेशक शहरीकरण के कई फायदे हैं, लेकिन इसका यह भी अर्थ नहीं कि किसी देश का 100 फीसदी शहरीकरण होना चाहिए. किसी भी देश में एक बड़ा वर्ग उन लोगों का होता है, जो शहरी जीवन को पसंद नहीं करते. इसके साथ, शहरों के लिए नीतियां बनाने वालों, प्लानिंग करने वालों और विकास एजेंसियों को भी अहसास हो रहा है कि ग्रामीण क्षेत्रों की संस्कृति और पारंपरिक चीजों को बचाने की जरूरत है और उन्हें बढ़ावा दिया जाना चाहिए. खासतौर पर उन इलाकों में, जो शहरों के दायरे में आ गए हैं. भारत में प्रशासन की तरफ से इस तरह की पहल के साक्ष्य भी मौजूद हैं.

अमीर देशों में शहरी इलाकों में नस्ली और दूसरी सामाजिक समस्याएं हैं. इसके साथ वहां ऊंची खपत का पैटर्न दिख रहा है और भारी बर्बादी भी हो रही है. पिछड़े देशों में बुनियादी जरूरतों तक लोगों की पहुंच और गरीबी बड़े मुद्दे हैं. 

यह भी सच है कि जब सरकारें इन मौकों को ठीक से भुना नहीं पातीं या इन्हें अच्छी तरह से मैनेज नहीं कर पातीं तो वे इन परिस्थितियों का फायदा उठाने से तो चूक ही जाती हैं, साथ ही इससे नुकसान और बर्बादी भी होती है. इसलिए लोगों के आमदनी वाली गतिविधियों से जुड़ने या रचनात्मक कार्यों में दिलचस्पी दिखाने के बावजूद मुमकिन है कि उनका जीवनस्तर अच्छा न हो. इसी वजह से दुनिया भर में शहरों में मौजूद इन परिस्थितियों को मैनेज करने के लिए जबरदस्त काम हो रहा है.  इसके साथ शहरी जीवन से जुड़ी चुनौतियों को दूर करने की कोशिश भी चल रही है. लेकिन यह आसान काम नहीं है. इस मामले में कुछ देशों का प्रदर्शन दूसरों से बेहतर है. अमीर देशों में शहरी इलाकों में नस्ली और दूसरी सामाजिक समस्याएं हैं. इसके साथ वहां ऊंची खपत का पैटर्न दिख रहा है और भारी बर्बादी भी हो रही है. पिछड़े देशों में बुनियादी जरूरतों तक लोगों की पहुंच और गरीबी बड़े मुद्दे हैं.

इस क्षेत्र में अलग-अलग देशों में जो काम चल रहा है, उनके जरिये शहरों के स्तर पर की जाने वाली पहल के असर को समझा जा सकता है. बर्लिन और सिंगापुर में अलग-अलग यातायात व्यवस्था शहर के कई इलाकों को जोड़ती है. दूसरी तरफ, चीन के बीजिंगहाइकू, और शंघाई, और ओस्लो व लंदन में वहां की संस्कृति और परंपरा को संजोकर रखा गया है. यूरोप में कई देश अपनी पिछली गलतियों से सीख रहे हैं और वे शहरों में सड़कों पर मोटरगाड़ियों की संख्या घटा रहे हैं.  डरबन में सड़क पर आपको बहुत कम ट्रैफिक जाम दिखेगा. वहां लोग आसपास स्थित अपने दफ्तरों में चलकर जाना पसंद करते हैं. मॉस्को का शहरी प्रशासन ट्रांसपोर्ट और हेल्थ सेक्टर के लिए डिजिटल टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करता है, ताकि वे बेहतर ढंग से काम कर सकें. अबू धाबी  में शानदार अर्बन प्लानिंग और डिवेलपमेंट दिखता है। उधर, जापानी शहर ग्रीन हाउस गैसों के एमिशन और ध्वनि प्रदूषण को कम करने की कोशिश कर रहे हैं. भारत में भी शहर शहरीकरण की चुनौतियों से दो-चार हो रहे हैं. इनमें से कई समस्याओं को कम करने में नीतियों, योजनाओं और सुधार प्रक्रिया से मदद मिल रही है, लेकिन कई समस्याएं जस की तस बनी हुई हैं. आज जब हम एक नए साल में दाखिल हो चुके हैं तो इस क्षेत्र में बहुत सारा काम बाकी है.

सबसे पहले तो राज्य सरकारों को यह बात समझनी होगी कि शहरीकरण उनके दायरे में आने वाले इलाकों में हो रहा है. असल में, जब ग्रामीण बसावट बदलती है तो वहां शहरी क्षेत्रों वाले लक्षण दिखने लगते हैं. आदर्श स्थिति में ऐसी बसावट को शहरी क्षेत्र का दर्जा मिल जाना चाहिए. ऐसा होने पर उस इलाके की देखरेख का जिम्मा नगर निगम और स्थानीय प्रशासन का हो जाएगा, जो ऐसी समस्याओं और चुनौतियों से निपटने के लिए सक्षम होते हैं.

लेकिन भारत में राज्य सरकारें ऐसे गांवों को शहरों में बदलने को लेकर अनिच्छा दिखाती आई हैं. उसकी वजह यह है कि गांव को शहरी क्षेत्र का दर्जा देने से वहां शहर के नियम-कायदे लागू हो जाते हैं. तब उन इलाकों में रहने वालों को बिल्डिंग बायलॉज पर अमल करना पड़ता है. उन क्षेत्रों के विकास पर सरकारी एजेंसियों का नियंत्रण हो जाता है और स्थानीय बाशिंदों पर टैक्स का बोझ भी बढ़ता है. इस सूरत में सत्ताधारी राजनीतिक दल को अपनी सियासी जमीन कमजोर होने की चिंता सताने लगती है. इसी वजह से भारत में जितना शहरीकरण हुआ है, कागज पर उसे कम करके दिखाया जाता है.

लेकिन भारत में राज्य सरकारें ऐसे गांवों को शहरों में बदलने को लेकर अनिच्छा दिखाती आई हैं. उसकी वजह यह है कि गांव को शहरी क्षेत्र का दर्जा देने से वहां शहर के नियम-कायदे लागू हो जाते हैं. 

इसका नतीजा यह होता है कि ऐसे इलाकों में बेतरतीब निर्माण होते हैं, जिससे खुली जगह कम होती जाती है. लैंड यूज को मनमाने ढंग से बदला जाता है. इसलिए शहरों के पास के ग्रामीण क्षेत्रों और कस्बों में जीवनस्तर गिरता है. जितना महत्वपूर्ण शहरों के पास के ग्रामीण इलाकों की देखरेख है, उतना ही शहरी क्षेत्र के पुराने इलाकों, उसके एकदम बाहर के क्षेत्रों, छोटे और मझोले टाउन की स्थिति में सुधार लाना भी. ज्यादातर शहरों और छोटे शहरों में पुराने इलाकों पर तुरंत ध्यान देने की जरूरत है.

आर्थिक क्षमता बड़ा मसला

इन क्षेत्रों की इकॉनमी मजबूत है, वहां इंफ्रास्ट्रक्चर और सेवाएं भी मिल जाती हैं, लेकिन उनकी हालत बहुत खराब है. शहरों के पुराने इलाकों में सड़कें, स्ट्रीट लाइट, फुटपाथ, खुली जगहें, ड्रेनेज, सीवेज और सैनिटरी सिस्टम अक्सर बदहाल दिखते हैं. मिसाल के लिए, मॉनसून सीजन में जर्जर इमारतें अक्सर गिरती हैं क्योंकि लंबे समय तक उनकी पहचान नहीं होती और इस समस्या की अनदेखी की जाती है. नगर निगमों को इस मामले में तुरंत सुधार करना चाहिए और इनकी सूरत-ए-हाल सुधारने के लिए स्थानीय लोगों की मदद लेनी चाहिए.

एक मसला नगर निगमों की क्षमता का भी है. इलाकों के रखरखाव, पैसे जुटाने, मास्टरप्लान बनाने और उसे लागू करने में इनका रिकॉर्ड अच्छा नहीं रहा है. खासतौर पर शहरी इलाकों में बनाई गई योजना को लागू करना बेहद महत्वपूर्ण है. आखिर वे जो मास्टरप्लान बनाते और लागू करते हैं या जिस तरह का गवर्नेंस मुहैया कराते हैं, उसी से शहरी क्षेत्रों में लोगों का रहन-सहन तय होता है. अगर वे अपना काम ठीक से न करें तो उससे कई समस्याएं खड़ी होती हैं. ऐसा नहीं है कि नगर निगम अपना काम ठीक से नहीं करना चाहते, लेकिन उनके पास इसके लिए प्रबंधन क्षमता नहीं है, ना ही उनके पास पर्याप्त पैसा होता है. इस मामले में उन्हें राज्य सरकारों पूरा सहयोग भी नहीं मिलता. इसलिए कई शहरों के लिए अभी तक मास्टरप्लान तैयार नहीं हो पाया है. साथ ही, प्रशिक्षित अर्बन प्लानरों और डिवेलपमेंट एक्सपर्ट की भी कमी बनी हुई है. संविधान में (74वें) संशोधन कानून, 1992 के जरिए नगर निगमों के सशक्तीकरण, पदाधिकारियों को प्रशिक्षित करने की पहल हुई थी, लेकिन उसका सीमित असर ही हुआ है.

ऐसा नहीं है कि नगर निगम अपना काम ठीक से नहीं करना चाहते, लेकिन उनके पास इसके लिए प्रबंधन क्षमता नहीं है, ना ही उनके पास पर्याप्त पैसा होता है. इस मामले में उन्हें राज्य सरकारों पूरा सहयोग भी नहीं मिलता.

पिछले साल देश के शहरी इलाकों में झुग्गियां बढ़ीं और वहां असंगठित आर्थिक गतिविधियां तेज हुईं. ये काम विकास के लिए बने नियमों की अनदेखी करके किए गए. इससे वहां की आबोहवा खराब हुई, कुदरती संसाधनों का दोहन बढ़ा, यातायात के साधनों की कमी हुई और सॉलिड-लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट का बुरा हाल रहा. इस अनियमित विकास का असर बिजली आपूर्ति, जलजमाव, विरासत और संस्कृति के प्रतीकों के लोप, शहरी-ग्रामीण क्षेत्रों के एकीकरण में कमी, हिंसा और अपराध की घटनाओं के बढ़ने के रूप में भी सामने आई. इस बीच, पिछले साल आई महामारी ने इन चुनौतियों को और बढ़ा दिया. आज इन इलाकों की जो हालत है, उसे देखते हुए शहरी रिफॉर्म की नई रणनीति बनाने की जरूरत है.

2021 में भारत के लिए वंचित तबके की जिंदगी में सुधार लाना जरूरी है. इसकी खातिर उसे निकाय संबंधित मामलों में लोगों की भागीदारी बढ़ानी होगी. साथ ही, बढ़ती आबादी को नियंत्रित करने पर भी ध्यान देना होगा. अभी शहरी इलाकों के लिए केंद्र और राज्य स्तर पर अटल मिशन फॉर रिजूवेनेशन एंड अर्बन ट्रांसफॉर्मेशन (अमृत)हाउसिंग फॉर ऑलस्मार्ट सिटीजस्वच्छ भारत और रर्बन मिशंस, जैसी योजनाएं चल रही हैं. इनके जरिये देश के शहरीकरण को अच्छी तरह से मैनेज किया जा सकता है. शहरीकरण का फायदा समाज के हर वर्ग तक पहुंचे, इसके लिए केंद्र, राज्य और स्थानीय प्रशासन को मिलकर काम करना होगा.

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