Expert Speak Raisina Debates
Published on Aug 07, 2024 Updated 0 Hours ago

बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के माध्यम से कंबोडिया में चीन के रणनीतिक बुनियादी ढांचे के विकास में भागीदारी की प्रक्रिया का तेजी से विस्तार हुआ है. जबकि कंबोडिया को इस पूरी प्रक्रिया का आर्थिक रूप से लाभ हुआ है लेकिन वह अब चीन पर अपनी निर्भरता को कम करने के लिए अपनी विदेश नीति में विविधता लाना चाहता है.

रीम नेवल बेस और कंबोडिया में चीन का बढ़ता प्रभाव

पिछले दो दशकों के दौरान चीन-कंबोडिया के बीच द्विपक्षीय संबंध में ख़ासा बदलाव आया है. वह अब एक सैन्य साझेदारी से आगे बढ़कर एक बहुमुखी व्यापार, विकास वित्त, सैन्य संबंधों और सुरक्षा में सहयोग की दिशा में आगे बढ़ रहा है और इसमें दोनों देशो के लोगों के बीच संबंधों को गहरा करने का अहम पहलू भी शामिल है. इस गहराते रिश्ते के कई कारण हैं जिसमें प्रमुख रूप से उल्लेखनीय हैं वर्तमान कंबोडिया के प्रधानमंत्री के चीनी सरकार के साथ घनिष्ट संबंध, द्विपक्षीय भागीदारी में BRI की भूमिका और संयुक्त राज्य अमेरिका (USA) के साथ कंबोडिया के बिगड़ते संबंध. सन् 2020 के बाद से कंबोडिया के रीम नेवल बेस के वित्तपोषण और निर्माण में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी नेवी (PLAN) की भागीदारी और दिसंबर 2023 के बाद से दो चीनी नौसैनिक युद्धपोतों की यहाँ उपस्थिति गहराते चीन-कंबोडिया संबंध का एक महत्वपूर्ण पर्याय है. यहां यह बात भी उल्लेखनीय है कि कंबोडिया सरकार ने चीनी नौसेना के बंदरगाह विकास में शामिल होने से पहले अपने नौसेना बंदरगाह में चार अमेरिकी और ऑस्ट्रेलिया की मदद से बनाए गए निर्माण को ध्वस्त कर दिया था

यह लेख BRI के माध्यम से कंबोडिया में चीन के रणनीतिक बुनियादी ढांचे के विकास का विश्लेषण करता है और इसके भू-राजनीतिक और भू-रणनीतिक पहलुओं और प्रभावों को चित्रित करने के उद्देश्य से लिखा गया है. 

चीन के लिए रीम नेवल बेस जिओ स्ट्रैटेजिक (रणनीतिक) और जियो राजनीतिक (राजनैतिक) महत्व रखता है. यह नेवल बेस मलक्का स्ट्रेट के करीब स्थित है जो समुद्री रास्ते का एक महत्वपूर्ण चोक पॉइंट है जिसके माध्यम से चीन का 70 प्रतिशत ऊर्जा आयात होता है. थाईलैंड और दक्षिण चीन सागर की खाड़ी में भी चीन द्वारा किए जा रहे रणनीतिक बुनियादी ढांचे के विकास को भी इस क्षेत्र में चीन की बढ़ती शक्ति और पहुंच की कोशिश के हिस्से के रूप में ही देखना चाहिए. यह इसलिए भी ज़रूरी है क्योंकि चीन इस क्षेत्र को अपना होने का दावा भी करता है. इस क्षेत्र में रणनीतिक बुनियादी ढांचा के विकास को हिंद महासागर क्षेत्र के दक्षिण पूर्व एशिया में और भारत में अमेरिकी सुरक्षा संरचना के ख़िलाफ़ एक घेराबंदी के रूप में भी देखा जा सकता है. यह लेख BRI के माध्यम से कंबोडिया में चीन के रणनीतिक बुनियादी ढांचे के विकास का विश्लेषण करता है और इसके भू-राजनीतिक और भू-रणनीतिक पहलुओं और प्रभावों को चित्रित करने के उद्देश्य से लिखा गया है. 

कंबोडिया में चीन की बढ़ती आर्थिक पैठ 

कंबोडिया और चीन ने 2013 में बीजिंग में पहली BRI शिखर सम्मेलन में अपने BRI सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर किए थे. तब से अब तक चीन ने कंबोडिया में पूरे 15 बिलियन अमेरिकी डॉलर के मूल्य या तो निवेश किए हैं या ऋण दिए हैं या फिर अनुबंधित परियोजनाओं में अपना पैसा लगाया है. 2013 और 2023 के बीच चीन के द्वारा कंबोडिया में BRI समझौते के माध्यम से किए गए कुल निवेश का लगभग 68 प्रतिशत परिवहन और ऊर्जा क्षेत्र के कार्यों में ख़र्च हुआ है और यह आंकड़ा क्रमशः US$ 8.1 बिलियन परिवहन क्षेत्र में और US$ 3.75 बिलियन ऊर्जा के क्षेत्र में ख़र्च हुआ. हालांकि चीन को कंबोडियाई लोगों का विरोध का भी सामना करना पड़ा है जो ज़्यादातर BRI के अंतर्गत अमल में लाए जा रहे प्रोजेक्टों की बढ़ती लागत, इन परियोजनओं के कारण हो रहे विस्थापन और रोज़गार सृजन की कमी को लेकर रहें हैं, लेकिन कंबोडियाई सरकार का BRI योजनाओं के विस्तार को लेकर चीन को समर्थन सतत बना रहा है. BRI के 10 साल पुरे होने के बाद अब चीन इस दक्षिण पूर्व एशियाई देश कंबोडिया के विकास की यात्रा का सबसे बड़ा भागीदार (US$ 20 बिलियन) बन गया है और चीन द्वारा कंबोडिया को दिए गया कुल उधार अब US$ 7 बिलियन पहुंच गया है. इतना ही नहीं, चीन द्वारा कंबोडिया में किया गया FDI (US$ 2.46 बिलियन) और सहायता कंबोडिया के आय वर्ष 2023 के कुल आवक निवेश (US$ 4.92 बिलियन) का 50 प्रतिशत है और इस देश में आई कुल सहायता राशि (US$ 2.76 बिलियन) का 84 प्रतिशत (US$ 2.31 बिलियन) है. चीन 2007 के बाद से कंबोडिया का सबसे बड़ा ट्रेडिंग पार्टनर होने के साथ -साथ, भुगतान के संतुलन के मामले में बीजिंग कंबोडिया पर भारी तौर पर हावी है. 2023 में, चीन और कंबोडिया के बीच का व्यापार 10 बिलियन अमेरिकी डॉलर का था और इसमें चीनी निर्यात 8.2 बिलियन US$ का है

ये आंकड़े चीन पर कंबोडिया की आर्थिक निर्भरता की तस्वीर को साफ़ करते हैं लेकिन इस तथ्य को इस बात से भी जोड़कर देखना होगा कि यह निर्भरता कोई ज़ोर ज़बरदस्ती से नहीं बल्कि कंबोडिया सरकार ने इस परिस्थिति को अपनी इच्छा से निर्मित किया है. इसके पीछे कई कारण हैं. कंबोडिया एक ऐसा देश है जिसका दक्षिण चीन सागर इलाके और थाईलैंड की ख़ाड़ी में चीन के साथ कोई मतभेद नहीं है. कंबोडिया की सरकार और शाही परिवार के चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के साथ पारम्परिक तौर पर घनिष्ठ और गहरे संबंध रहे हैं. माओ जेडोंग के समय से ही चीन के कंबोडिया में अच्छे ख़ासे आर्थिक निवेश रहें हैं. और अब यह संबंध इस तर्ज़ पर पहुंच गया है कि अब कुल मिलाकर कम्बोडिया पर चीन का बकाया ऋण (US$ 7.5 बिलियन) हो गया है और 2010 और 2023 के बीच अमल में लाए जा रहे और सफ़लता पूर्वक ख़त्म किए गए निवेश जो कि अब US$ 21.23 बिलियन पहुंच चुका है यह कंबोडिया की नॉमिनल जीडीपी US$ 45.15 बिलियन का लगभग 64 प्रतिशत है

टेबल 1: कंबोडिया में चीन द्वारा बनाए गए डुअल यूज़ इंफ्रास्ट्रक्चर 

Source: AidData

इन बहुमुखी और गहरे संबंधों के कारण कंबोडिया में चीन की BRI रणनीति ने चीन की सैन्य क्षमताओं को बढ़ाने के लिए राष्ट्रपति शी जिनपिंग के मकसद को बखूबी आगे बढ़ाया है जोसिविल-सैन्यके मेल के विचार को बढ़ावा देने के उद्देश्य से दोहरे उपयोग के लायक बुनियादी ढांचे के निर्माण पर केंद्रित है. कई देशों में चीन के BRI परियोजनाओं के तहत किए गए निवेशों लिए एक अनिवार्य शर्त इन परियोजनाओं का सैन्य मानकों के अनुरूप होना है. BRI के तहत अब तक चीन द्वारा किए गए US$ 15 बिलियन के कुल निवेश में से चीन द्वारा वित्त पोषित परियोजनाएं जो 9.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर की कीमत की हैं इनमेसिविल-सैन्यदोहरे उपयोग के सभी प्रावधानों को अमल में लाया गया है (टेबल 1 देखें). इन परियोजनाओं में दो हवाई अड्डे, एक सड़क नेटवर्क, एक नहर, दो बंदरगाह और दो बिजली संयंत्र शामिल हैं. ये परियोजनाएं मुख्य रूप से 10 चीनी सरकार के स्वामित्व वाली कंपनियों द्वारा अमल में लाई गई हैं और आठ सरकारी बैंकों द्वारा वित्तपोषित हैं (टेबल 1 देखें). सिविल-सैन्यदोहरे उपयोग के बुनियादी ढांचे के उदाहरणों में जो परियोजनाएं शामिल हैं, वे हैं - टेको नहर परियोजना जो कि थाईलैंड की खाड़ी पर नोम पेन्ह शहर को कम्पोट, रीम और टेक बंदरगाहों से जोड़ती है. यह परियोजना एशिया के सबसे बड़े जलमार्गों में से एक के मुहाने पर वियतनाम की पारंपरिक सर्वोपरि दर्ज़े को दरकिनार करती है. इस परियोजना ने इस क्षेत्रीय संदेह को भी बढ़ावा दिया है कि यह नहर कंबोडिया और वियतनाम की भूमि के अंदरूनी हिस्सों में चीनी नौसेना की पहुंच को सुलभ बना सकती है. इसी तरह BRI के तहत बनाये जा रहे चीन-निर्मित और पुनर्निर्मित हवाई अड्डों में लंबे और चौड़े रनवे हैं जो लड़ाकू जेट्स के उतरने और उड़ान भरने के लिए ज़रूरी हैं. इसी तरह वाणिज्यिक बंदरगाहों को भी इस तरह पुनर्निर्मित किया गया है कि युद्धपोतों के आने जाने के लिए पर्याप्त गहरी और व्यापक जगह बंदरगाह में उपलब्ध रहे

इस परियोजना ने इस क्षेत्रीय संदेह को भी बढ़ावा दिया है कि यह नहर कंबोडिया और वियतनाम की भूमि के अंदरूनी हिस्सों में चीनी नौसेना की पहुंच को सुलभ बना सकती है.

इसके अलावा यह बात भी उल्लेखनीय है कि सात में से पांच परियोजनाएं सिहानोकविले SEZ ( टेबल 1 देखें) में स्थित हैं जो चार चीनी सरकार और एक कंबोडिया सरकार के एक संघ के स्वामित्व वाली कंपनियों द्वारा चलाए जा रहे हैं और यह बात कंबोडिया प्रांत पर चीनी प्रभाव को रेखांकित करता हैं. इन घटनाक्रमों से वियतनाम की राजधानी हनोई और अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन DC में चिंता के बादल ज़रूर उत्पन्न किए हैं जो थाईलैंड की खाड़ी में चीन के क्षेत्रीय विकास का प्रतिद्वंद्वी हैं और चीन के अतिक्रमणकारी इन कदमों से इनके हितो को ख़ासा नुक़सान होता है

बीजिंग के भू-राजनीतिक कारण और कंबोडिया की प्रतिरक्षा नीति 

2017 के बाद चीन की रणनीति क्षेत्र में अमेरिका द्वारा खाली की गई जगह को हासिल करना था. इस कार्य को चीन ने BRI तहत आर्थिक निवेश, राजनीतिक समर्थन और सहायता से परिपूर्ण और मजबूत रक्षा सहयोग बढ़ाने के साथ किया. बीजिंग ने कंबोडिया की राजधानी नोम पेन्ह और वाशिंगटन के बीच बिगड़ते संबंधों को दक्षिण चीन सागर में एक रणनीतिक तौर पर महत्वपूर्ण देश में अधिक निवेश को आगे बढ़ाने के एक स्वर्णिम अवसर के रूप में देखा. इन बढ़ते संबंधों के बीच, अधिकांश BRI परियोजनाओं में पारदर्शिता की कमी और अनियमितताओं के आरोप लगाए गए हैं जो कि पाकिस्तान, गैबॉन, इक्वेटोरियल गिनी, श्रीलंका और प्रशांत द्वीप समूह में बीजिंग की दोहरी-उपयोग निवेश रणनीति को लेकर उठाए जा रहे सवालों की तरह ही है. (चित्र 1 देखें) हालांकि चीन ने रीम नेवल बेस के अधिग्रहण को एकमुश्त ख़ारिज नहीं किया है लेकिन इसके बजाय चीन ने कंबोडिया के संप्रभुता कार्ड का उपयोग कर इस बंदरगाह के दोहरे उपयोग के बुनियादी ढांचे से लैस परियोजना में निवेश से दुनिया का ध्यान हटाने की कोशिश की है. यह संभावना व्यक्त की जा रही है कि चीन का यह निवेश रणनीतिक है और दक्षिण चीन सागर में अगर ख़तरा बढ़ता है तो यह उसके लॉजिस्टिक समर्थन को हासिल करने के लिए हैं

चित्र 1: चीन का विस्तार और उसके विदेशी ठिकाने

Source: Foundation of Defense of Democracies

इसके ठीक विपरीत, कंबोडिया के लिए चीन से प्राप्त सहायता उसका अपने देश में निवेश बढ़ाने का एक तरीका है. वह कम्बोडिया की हुन सरकार के लिए समर्थन का एक साधन भी है जिसकी सत्ता को उसके गैर लोकतांत्रिक तौर तरीकों के कारण पश्चिमी देशों का कोई ख़ास समर्थन अब तक हासिल नहीं हो पाया है. इसलिए, अमेरिका से बढ़ते दबाव के बीच कंबोडिया के अब तक के कदमों को एक छोटे देश द्वारा अपने हितों की रक्षा के लिए उठाए गए कदमों के रूप में देखा जाना चाहिए. एक ऐसा देश जो बीजिंग के साथ मिलकर अपने शासन को मजबूती प्रदान करना चाहता है और किसी बाहरी दबाव का सामना भी करने की कोशिश में है. हालांकि, हुन सेन के बेटे हुन मानेट के प्रधानमंत्री के रूप में पदभार संभाले जाने के बाद से कंबोडिया की विदेश नीति में कुछ मौलिक परिवर्तन सामने आया है जो अमेरिका, जापान, दक्षिण कोरिया, फ्रांस और ऑस्ट्रेलिया से अपने रिश्तों को फिर से टटोलने की कोशिश कर रहे हैं. वे ऐसा इलाके के बदलते भूराजनीतिक रुझानों को मद्देनज़र रखते हुए इंडो-पैसिफिक क्षेत्र और कंबोडिया की स्वतंत्र, नियम-आधारित और स्मार्ट विदेश नीति को फिर से कायम करने के उद्देश्य से कर रहे हैं. इस पृष्ठभूमि के चलते कंबोडिया फिर से अमेरिका के साथ अपने रिश्ते सुदृढ़ करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है. हाल ही में अमेरिकी रक्षा सचिव और CIA प्रमुख ने द्विपक्षीय रक्षा सहयोग को फिर से शुरू करने पर चर्चा करने के लिए कंबोडिया का दौरा किया. इस कदम को वाशिंगटन की ओर से अपनी भूल में सुधार और कंबोडिया की ओर से रणनीतिक तौर पर बेहतर स्थिति को हासिल करने की जुगत के रूप में देखा जा सकता है. कंबोडिया की सोच में यह बदलाव वियतनाम में अमेरिका की बढ़ती साझेदारी और दक्षिण चीन सागर में चीन की कार्यवाहियों के चलते माना जा रहा है. इन विदेश नीतियो में बदलाव से कंबोडिया अपने पड़ोसियों वियतनाम और थाईलैंड को भी संकेत देना चाहता है कि वह संबंधों को मजबूत करने के लिए प्रतिबद्ध है और महान शक्तियों के बीच के द्वंद में केवल एक प्यादा बनकर नहीं रहना चाहता. बेशक, यह सब बदलाव कंबोडिया के राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखकर लिया गया है लेकिन इन सब के बावजूद कंबोडिया के चीन के साथ सहयोग में और वृद्धि अभी संभव है जबकि वह अपनी विदेश नीति में विविधता को लेकर भी प्रतिबद्धित नज़र रहा है.

कंबोडिया की सोच में यह बदलाव वियतनाम में अमेरिका की बढ़ती साझेदारी और दक्षिण चीन सागर में चीन की कार्यवाहियों के चलते माना जा रहा है.

निष्कर्ष

बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के तहत कंबोडिया में चीन के बढ़ते प्रभाव ने दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों को बेशक सुदृढ़ किया है. रीम नेवल बेस जैसी दोहरी-उपयोग परियोजनाओं सहित बड़े तौर पर बुनियादी ढांचे में निवेश, आर्थिक और रणनीतिक दोनों मकसदों को पूरा करता है. जबकि इन सब बातों से कंबोडिया आर्थिक रूप से लाभान्वित तो हो ही रहा है लेकिन चीन का चढ़ता ऋण और बढ़ती निर्भरता को लेकर भी चिंताएं बनी हुई हैं. हालांकि पश्चिमी शक्तियों के प्रति कंबोडिया के हाल में बदले राजनीतिक दृष्टिकोण ने कंबोडिया की अधिक संतुलित विदेश नीति को अपनाने की इच्छा को प्रकट किया है लेकिन ऐसे समय में जबकि कंबोडिया इस जटिल स्थिति से गुजर रहा है, कंबोडिया को अपनी रणनीतिक स्वायत्तता के साथ-साथ अपने आर्थिक लाभ को संतुलित करना भी एक जटिल चुनौती होगी.


पृथ्वी गुप्ता ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में एक जूनियर फेलो हैं.

अभिषेक शर्मा ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में एक रिसर्च असिस्टेंट हैं.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.