भारतीय विदेश सचिव, विनय मोहन कवात्रा, ने पिछले महीने की 8-9 तारीख़ को बांग्लादेश की दो दिवसीय यात्रा की थी. अपनी यात्रा के दौरान, उन्होंने बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना, विदेश मंत्री हसन महमूद, और उनके सहयोगी विदेश सचिव मसूद बिन मोमेन से मुलाकात की. ये यात्रा कई वजहों से कूटनीतिक रूप से काफी महत्वपूर्ण रही. चूंकि, ये जनवरी 2024 में पड़ोसी देश में नई सरकार के आने के बाद, भारत की पहली उच्च स्तरीय आधिकारिक यात्रा रही है, इससे भारत द्वारा अपने पड़ोसी देश को दी जाने वाली वरीयता एक बार फिर से स्थापित होती है. इस यात्रा के तुरंत बाद बांग्लादेशी विदेश मंत्री हसन महमूद ने इस साल न्यू दिल्ली और कोलकाता की यात्रा की; ये दोनों ही यात्राएं अगले कुछ दिनों में संभावित रूप से होने वाली बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना की भारत यात्रा के लिये आधारशिला रखने का काम करेगी.
इस यात्रा के तुरंत बाद बांग्लादेशी विदेश मंत्री हसन महमूद ने इस साल न्यू दिल्ली और कोलकाता की यात्रा की; ये दोनों ही यात्राएं अगले कुछ दिनों में संभावित रूप से होने वाली बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना की भारत यात्रा के लिये आधारशिला रखने का काम करेगी.
हालांकि, भारतीय विदेश मंत्रालय एव बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय दोनों ने ही बैठक के किसी भी विवरण का खुलासा नहीं किया है, परंतु ऐसी जानकारी मिली कि “दोनों पक्षों ने तीस्ता नदी समेत अन्य नदियों (जो दोनों देशों से गुज़रती हैं) उनसे जल बंटवारों के मुद्दे, और 1996 में साझा गंगा जल बंटवारे की संधि के दोबारा नवीनीकरण के मुद्दों पर बातचीत की.” महमूद ने इस मौके पर कहा, “आप जानते हैं कि तीस्ता पर हमने एक काफी बड़ी परियोजना शुरू की है. भारत इसमें आर्थिक मदद करना चाहता है. और हमने उन्हें कहा है कि ये परियोजना हमारी ज़रूरत के अनुसार होनी चाहिए. इस परियोजना से हमारी ज़रूरतें पूरी होनी चाहिए. ये प्रगति इस बात को उजागर करता है कि तीस्ता नदी का मुद्दा कहीं न कहीं बांग्लादेश में चीन के बढ़ते प्रभाव पर भारत की आशंकाओं के साथ जुड़ा हुआ है.
ड्रैगन का संभावित ‘मांद’
जनवरी 2024 में, बांग्लादेश में चीनी राजदूत याओ वें ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि तीस्ता परियोजना जल्द ही दोबारा शुरू हो जायेगा. उन्होंने ये बातें ढाका की 1 बिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य की तीस्ता नदी की व्यापक प्रबंधन एवं बहाली परियोजना को शीघ्र लागू करने के 2022 में जारी बीजिंग के प्रस्ताव का जिक्र करते हुए कहा. हालांकि, ये प्रस्ताव भारत और बांग्लादेश के बीच तीस्ता जल बंटवारे को लेकर काफी लंबे अरसे से बने द्विपक्षीय अनसुलझे विवाद पर भू-राजनीतिक जटिलता की एक परत जोड़ता है. ये मसला आज तक नहीं सुलझ पाने की वजह कहीं न कहीं भारत की भारत की संघीय राजनीति है, जिसका अंतरराष्ट्रीय समझौते तक पहुँच पाना मुश्किल हो गया है. तीस्ता परियोजना में चीन की संलिप्तता उसे भारतीय सीमा के 100 किलोमीटर के दायरे में ले आएगी. ये विशेष रूप से इसलिए भी चिंताजनक है क्योंकि भारत के प्रमुख ज़मीनी प्रांतों को इसके दक्षिणपूर्वी सीमाओं से जोड़ने वाली एकमात्र संकरी ज़मीन संपर्क लिंक - सिलीगुड़ी कॉरीडोर के समीप से गुज़रेगी. भारत सरकार के लिए यह क्षेत्र काफी संवेदनशील है क्योंकि ये अरुणाचल प्रदेश सीमा पर चीन के साथ विवादों से जूझ रहा है.
ऐसी परिस्थिति में, तीस्ता नदी पर जलाशय के निर्माण संबंधी भारत का कथित प्रस्ताव आशा पैदा करता है. अगर ये प्रयास सार्थक हो जाता है तो, इससे भारत – बांग्लादेश संबधों के बीच खड़ी एक बड़ी अड़चन का समाधान निकल जाएगा. अब तक, बीजिंग के प्रस्ताव को स्वीकार करने में की जा रही देरी, और ऐसा करने से पहले भू-राजनीतिक प्रभावों पर विचार किए जाने को लेकर उसकी प्रतिबद्धता व पिछले फरवरी महीने में भारत भ्रमण के बाद तीस्ता नदी मुद्दे के जल्द समाधान को लेकर महमूद की आशावादिता, ये सब कुछ नई दिल्ली के लिए काफी सुकुनदायक एवं आश्वस्त करने वाला साबित हो रहा है. हालांकि, भारत की चिंता तब तक बनी रहेगी, जब तक कि बांग्लादेश इन दो प्रस्तावों में से किसी एक को चुन न ले या फिर बीच के रास्ते के समाधान तक नहीं पहुंच जाता है.
बांग्लादेश के भीतर चीन की उपस्थिति एवं हो रहे निवेश से इनकार नहीं किया जा सकता है. वर्तमान में, बीजिंग, ढाका का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार, एवं प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) का तीसरा सबसे बड़ा स्रोत है,
बांग्लादेश के भीतर चीन की उपस्थिति एवं हो रहे निवेश से इनकार नहीं किया जा सकता है. वर्तमान में, बीजिंग, ढाका का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार, एवं प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) का तीसरा सबसे बड़ा स्रोत है, और विदेशी सहायता देने वाला दूसरा सबसे बड़ा मददगार है. ढाका में अन्य विदेशी विदेशी सहायता की तरह ही चीन के ज्य़ादातर अनुदान, विकास की परियोजनाओं के लिए दी जाती है.
इस तरह से, देश के भीतर विभिन्न महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचों जैसे पद्मा बहु-उद्देश्यीय रेल एवं रोड पुल, कर्णफूली नदी सुरंग, और चट्टोग्राम एवं मोंगला बंदरगाह आदि के निर्माण में बीजिंग शामिल रहा है. हाल के महीनों में, प्रधानमंत्री शेख हसीना ने चीन से देश के दक्षिणी भाग के विकास के लिए आर्थिक मदद मांगी है और साथ ही देश को वर्तमान चल रहे आर्थिक संकट से उबरने के लिए अमेरिकी डॉलर में 5 बिलियन का सरल ऋण भी मांगा है.
सार्वजनिक उद्यमों के अलावा, चीन ने बांग्लादेश के चट्टोग्राम डिवीजन के कॉक्स बाजार के तट पर उनका सबसे पहला सबमरीन बेस बीएनएस शेख हसीना का निर्माण भी किया है. चीन, बांग्लादेश में हथियारों की खरीदी का सबसे बड़ा स्त्रोत भी है; हालांकि देर से ही सही पर, ढाका ने चीनी हथियारों की आपूर्ति में पाये जा रहे गुणवत्ता की भारी कमी पर भी अपना भारी असंतोष दर्ज किया है. इसके बावजूद, इस महीने आयोजित होने वाली आगामी प्रथम चीन-बांग्लादेश सैन्य अभ्यास के बाद उनकी साझेदारी को एक बार फिर नया आयाम मिलने की शीघ्र संभावना है. इस होने वाले अभ्यास की पृष्ठभूमि में संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना, आतंकवाद निरोधी अभियानों पर निगरानी रखने का लिया गया निर्णय, एक कूटनीतिक प्रयास है, जो शेख हसीना सरकार के ‘आतंकवाद के प्रति शून्य सहिष्णुता’ के रुख़ को रेखांकित करता है. पीपल लिबरेशन आर्मी ऑफ चीन की टुकड़ियाँ, बांग्लादेश की यात्रा कर रही हैं, जहां ढाका स्थित रूपगंज के बंगबंधु बांग्लादेश-चीन मैत्री प्रदर्शन सेंटर में वे अभ्यास प्रदर्शन करेंगे.
भारत-बांग्लादेश साझेदारी की ताकत की पुनःस्थापना, बांग्लादेश में बढ़ती भारत विरोधी भावनाओं, विरोधी दलों के एक धड़े द्वारा चलाए जा रहे ‘इंडिया आउट’ और ‘बॉयकॉट इंडियन प्रोडक्ट’ जैसे अभियानों को देखते हुए भी काफी महत्वपूर्ण है.
इसके बावजूद, अवामी लीग सरकार ने भारत और चीन के साथ की अपनी साझेदारी को काफी विवेकपूर्ण एवं कूटनीतिक तरीके से संतुलित बनाए रखा है. हालांकि, नई दिल्ली स्वाभाविक रूप से – अपने पड़ोसी देश के भीतर चीन के बढ़ते प्रभुत्व के प्रति आशंकित एवं सचेत है. जो कि देश की आर्थिक और रणनैतिक हितों एवं विदेश नीति की आकांक्षाओं की वजह से काफी संवेदनशील है. इसके साथ ही वो अमेरिका को इस बात के लिए आगाह करता आ रहा है कि घरेलू राजनीतिक मुद्दों के लिए शेख हसीना सरकार पर बार-बार निशाना साधना कही न कहीं, बीजिंग को ढाका के साथ नजदीकियाँ बढ़ाने का मौका देगा.
कूटनीतिक प्रतिरोध
इसलिए, बांग्लादेश सरकार की तरफ से की जा रही ये यात्रा काफी महत्वपूर्ण है, खासकर तब जब दोनों देशों के बीच के संबंधों को दोबारा से मज़बूत करने की आवश्यकता नज़र आ रही है. क्योकि बांग्लादेश में चीनी ‘ड्रैगन’ के बढ़चे पदचिन्हों को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है. तीस्ता नदी मुद्दा, भारत-बांग्लादेश सीमा पर मारे गए बांग्लादेशी नागरिकों की मौत, और रोहींग्या शर्णार्थियों का प्रत्यावर्तन जैसी चुनौतियों पर ज़रूरी बातचीत के अलावा, दोनों देशों ने उन क्षेत्रों पर भी विचार विमर्श किया जिससे आपसी द्विपक्षीय साझेदारी और भी बेहतर एवं मज़बूत हो सके. इसमें ऊर्जा, संचार, और रक्षा क्षेत्र भी शामिल हैं. हरित ऊर्जा, डिजिटल इकोनॉमी, और अंतरिक्ष प्रोद्योगिकी क्षेत्र में बढ़ते सहयोग के अवसर पर भी बातचीत की गई.
भारत-बांग्लादेश साझेदारी की ताकत की पुनःस्थापना, बांग्लादेश में बढ़ती भारत विरोधी भावनाओं, विरोधी दलों के एक धड़े द्वारा चलाए जा रहे ‘इंडिया आउट’ और ‘बॉयकॉट इंडियन प्रोडक्ट’ जैसे अभियानों को देखते हुए भी काफी महत्वपूर्ण है. इसमे बांग्लादेशी नागरिकों को भारत से दूर रहने को प्रेरित करने और देश के भीतर चीनी प्रभुत्व एवं मौजूदगी को स्वीकारने की पूरी संभावना है. इसलिए, ऐसे समय में भारत की तरफ से इस आश्वासन कि याद दिलाना कि वो बांग्लादेश के साथ मिलकर चुनौतियों का सामना करेगा, और सहयोगी रवैया बरतेगा ज़रूरी है. ऐसा करके भारत बांग्लादेशी नागरिकों के सामने अपनी घटती साख को पुनः बहाल कर सकता है.
अपनी भौगोलिक निकटता एवं साझा संसाधनों समेत भारत एवं बांग्लादेश एक स्वाभाविक साझीदार रहे हैं और दोनों देशों के बीच के सहयोग, दोनों के परस्पर विकास के सीधे तौर पर जुड़ा है. भारतीय विदेश सचिव की बांग्लादेश यात्रा इस बात की फिर से वकालत करता है कि दोनों देश एक दूसरे पर परस्पर तौर पर इस बात के लिये निर्भर हैं कि चीनी-बांग्लादेश स्वर्ण मैत्री 2024 कहीं भारत-बांग्लादेश संबंधों के स्वर्णिम अध्याय पर हावी न हो जाये और उसे अतीत में न ढकेल दें.
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