Author : Sunjoy Joshi

Published on Apr 25, 2022 Updated 1 Days ago

ये लेख ओआरएफ़ के वीडियो मैगज़ीन इंडियाज़ वर्ल्ड के ताज़ा एपिसोड ‘रायसीना डायलॉग 2022: एक नई दुनिया’ पर आधारित है, जिसमें चेयरमैन संजय जोशी और नग़मा सह़र ने विस्तार से रायसीना-2022 के सरोकारों पर चर्चा की है.

#Raisina Dialogue 2022: एक नई दुनिया!

तीन माह पूर्व ही जनवरी 2022 में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की रिपोर्ट में आशा जताई गयी थी की कोविड के बाद अब स्थिति धीरे-धीरे सुधर रही है. मुद्रा कोष के अनुमान के आसरे रोशनी की एक किरण दिखाई दे रही थी कि हम संभवतः सामान्यता की ओर बढ़ रहे हैं. 

किंतु यकायक 24 फरवरी को रूस की सेना का के यूक्रेन में प्रवेश के बाद स्थिति फिर पलट गयी. युद्ध शुरू हो गया जो अब भी जारी है. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष कि अब आयी रिपोर्ट विश्व की आर्थिक स्थिति को वैश्विक अस्थिरताओं का शिकार पा रही है. दूसरी तिमाही में से अर्थव्यवस्था में सुधार की आशा अब कल्पना मात्र ही रह गयी है. कोविड की समस्या के समकक्ष रूस-यूक्रेन युद्ध अप्रत्याशित समस्या बन गया है, जिसने पूरे विश्व को अनिश्चितता के वातावरण में वापस धकेल दिया है. अनिश्चितता ऐसी की अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के अनुसार उनके द्वारा लगाये गए अनुमान भी मिथ्या हो सकते हैं क्योंकि स्थिति और बदतर हो सकते हैं.

जो रायसीना संवाद इस वर्ष आयोजित होगा उसमें इसी परिप्रेक्ष्य में इस नई अनजान दुनिया के विषय पर चर्चा होगी एवं इसके क्या समाधान है एवं इसके समक्ष क्या चुनौतीयाँ है उन पर चर्चा होगी. 2022 संस्करण के लिए विषय “टेरा नोवा: आंदोलित, अधीर और जोख़िमपूर्ण” है. तीन दिनों के दौरान, डायलॉग में छह विषयगत स्तंभों पर कई प्रारूपों में पैनल चर्चा और बातचीत होगी.

जो रायसीना संवाद इस वर्ष आयोजित होगा उसमें इसी परिप्रेक्ष्य में इस नई अनजान दुनिया के विषय पर चर्चा होगी एवं इसके क्या समाधान है एवं इसके समक्ष क्या चुनौतीयाँ है उन पर चर्चा होगी. 2022 संस्करण के लिए विषय “टेरा नोवा: आंदोलित, अधीर और जोख़िमपूर्ण” है. तीन दिनों के दौरान, डायलॉग में छह विषयगत स्तंभों पर कई प्रारूपों में पैनल चर्चा और बातचीत होगी.

24 फ़रवरी का सबक़? युद्ध के फलस्वरूप लगाए गए प्रतिबंधों का कितना असर होगा? क्या प्रतिबंधों से युद्ध को रोकने में सफ़लता मिलेगी?

अगस्त 2021 में बीस बर्ष के घमासान के बाद अमेरिका को अफ़ग़ानिस्तान से अपने पाँव पीछे खींच देश को फिर उसी तालिबान के हवाले सौंपना पड़ गया. आतंकवाद के खिलाफ युद्ध लड़ देश में स्थिरता लाने के उसके प्रयासों को भारी झटका लगा. इन बीस बरस में तालिबान ने तमाम तरह के प्रतिबंध लगाए गये, भरपूर बल का प्रयोग हुआ लेकिन अंतत पुनः अफ़ग़ानिस्तान उसी स्थिति के हवाले कर दिया गया जिससे निजात दिलाने के लिए अमेरिका ने वहाँ प्रवेश किया था. ऐसे प्रश्न खड़े होना सामान्य है कि तमाम प्रतिबंधों का, बल प्रयोग का, भारी जान माल के नुक़सान का नतीजा क्या रहा. इस रायसीना संवाद में यूक्रेन के साथ-साथ अफ़ग़ानिस्तान के विषय पर भी चर्चा होगी, क्योंकि यूक्रेन युद्ध का जिस प्रकार प्रभाव यूरोप के साथ-साथ सभी देशों पर पड़ता है, ठीक उसी प्रकार अफ़ग़ानिस्तान में अस्थिरता का असर भारत के साथ-साथ पूरे क्षेत्र पर पड़ता है. वह आतंकवाद जिसकी जड़ें पाकिस्तान तथा काबुल से जुड़ी हैं, उनका सीधा असर भारत पर होता है इसलिए रायसीना संवाद में इस विषय पर भी चर्चा होगी की इसके समाधान की रूपरेखा क्या होनी चाहिए.

कोविड के कारण पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था पर भारी आघात पहुँचा एवं जिसका व्यवस्था का हिस्सा चीन भी है जो वैश्विक अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण स्थान रखता है. कोविड के कारण आपूर्ति शृंखलाएँ बुरी तरह प्रभावित हुईं. यह आपूर्ति शृंखलाएँ रूस-यूक्रेन युद्ध के फलस्वरूप लगाए गए कठोर प्रतिबंधों के कारण अब और भी बिखर रही हैं जिसका सीधा प्रभाव दुनिया भर में मंहगाई का संकट पैदा कर रहा है. वे सब वस्तुयें जो सप्लाई चेन के माध्यम से सभी को सहज रूप व कम क़ीमत पर बहुत आसानी से उपलब्ध हो जातीं थी अब पहले कोविड के कारण और फिर रुस-यूक्रेन युद्ध से जनित प्रतिबंधों के कारण बुरी तरह से बाधित हो रही हैं. वहीं दूसरी ओर एक बार फिर से चीन में कोरोना अपने पाँव पसार रहा है, जिसके कारण आपूर्ति श्रृंखला और मंद होती नज़र आ रही है. भारत समेत लगभग सभी राष्ट्र आत्मनिर्भर होने कि बात कर रहे हैं, पर क्या वास्तव में पहले ही बढ़ती महंगाई के ज़माने में लोग स्वदेशी निर्मित वस्तुओं की क़ीमत चुकाकने को तैयार होंगे? पहले ही कोरोना जैसी महामारी ने आर्थिक स्थिति बिगाड़ के रख दी थी और अब रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद लगे प्रतिबंधो ने इसे और हवा देने का कार्य किया है. अतः इन सबके कारण ना सिर्फ़ भारत बल्कि अन्य देशों में बढ़ती महंगाई और उसके असर पर चर्चाएँ रायसीना संवाद का हिस्सा बनेंगे. 

भारत समेत लगभग सभी राष्ट्र आत्मनिर्भर होने कि बात कर रहे हैं, पर क्या वास्तव में पहले ही बढ़ती महंगाई के ज़माने में लोग स्वदेशी निर्मित वस्तुओं की क़ीमत चुकाकने को तैयार होंगे? पहले ही कोरोना जैसी महामारी ने आर्थिक स्थिति बिगाड़ के रख दी थी और अब रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद लगे प्रतिबंधो ने इसे और हवा देने का कार्य किया है.

यूक्रेन युद्ध का साया तो इस संवाद के दौरान पूरे संवाद पर छाया रहेगा. एक ऐसा युद्ध जिसमें दोनों पक्ष एक दूसरे को धमकी तो खूब देते हैं – एक पक्ष न्यूक्लियर बम के बटन दबाने की धमकी देता है तो दूसरा पक्ष प्रतिबंधों की ऐसी बौछार करने में लगा है जिससे उबरते नहीं बनेगा. दोनों ही पक्ष इस युद्ध के दौरान हर चीज़ को हथियार बनाने पर आमादा है, चाहे वो टेक्नॉलजी हो या फिर ग्लोबल फाइनेंशियल सिस्टम – सब युद्ध में झोंकने को तत्पर हैं, पर आपस में बातचीत करने को कोई तैयार नहीं. ऐसे में सवाल उठता है कि कैसे अब फिर से बहुध्रुवीय व्यवस्था खड़ी की जा सके जिसके ज़रिये इन नये ज़माने के ख़तरनाक़ हथियारों के ग़लत इस्तेमाल पर नियंत्रण किया जा सके.    

सूचनाओं को एक ख़तरनाक़ हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है? रायसीना डायलॉग में इसपर क्या अवलोकन करेगा? 

वर्तमान समय में दुनिया भर में आम इंसान ग़लत सूचनाओं के जाल में बुरी तरह तरह से फँस चुका है. इस धंधे को आग देने में नवांतुक सोशल मीडिया से लेकर पुरातन समाचार मीडिया भी शामिल है. लोगों को फर्ज़ी सूचना के ऐसे भंवर जाल में फंसाया जा रहा है जिसके बीच वह उसी में गोल-गोल घोम असली मुद्दों की ओर ध्यान देने की स्थिति में ही न रहे. इस संकट की स्थिति में भयभीत कर लोगों को आपस में विभाजित करने का काम पूरे ज़ोर पर है. वास्तविकता में जो असली समस्या है वो आगे आने वाली परिस्थिति है, जिसमें बेरोज़गारी एवं बढ़ती महंगाई शामिल है, लेकिन इन सबसे ध्यान भटकाकर उनके आपसी भय की ठेकेदारी कर ग़लत तथ्य एवं नकली सूचनाओं के माध्यम से गुमराह़ करने का काम बखूबी जारी है. ऐसा डर जिसके आगे अपने भविष्य को लेकर अपने ही शासकों से प्रश्न न किए जाएँ. आज फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्स एप्प आदि के माध्यम से कई गलत सूचनाओं को हवा दे इतनी तेज़ी से फैलाने का कार्य किया जाता है. साथ ही किसकी आवाज को बढ़ाना है किसकी बोलती ब्लॉक कर के बंद करनी है – यह अधिकार कैसे आज सोशल मीडिया कंपनियाँ के हाथ में आ गया है? 

यह वास्तव में भयानक स्थिति है जब हम क्या सोचते हैं, क्या करते हैं – सब पर इन सोशल मीडिया कंपनियों की नज़र है. कैसे इससे निजात मिल सकती है ये एक बड़ा सवाल बन जाता है? क्या हम इन बड़ी टेक कंपनियों को ये तय करने का अधिकार दे सकते हैं क्या कि किसको बोलने की आज़ादी हो और किसे नहीं?

यह वास्तव में भयानक स्थिति है जब हम क्या सोचते हैं, क्या करते हैं – सब पर इन सोशल मीडिया कंपनियों की नज़र है. कैसे इससे निजात मिल सकती है ये एक बड़ा सवाल बन जाता है? क्या हम इन बड़ी टेक कंपनियों को ये तय करने का अधिकार दे सकते हैं क्या कि किसको बोलने की आज़ादी हो और किसे नहीं?

जब हम पारंपरिक हथियारों से युद्ध करते हैं तब 1864 में तय जिनेवा कन्वेंशन के अंतर्गत स्थापित नियमावलियों के अनुसार ऐसे युद्ध के दौरान अपनाए जाने वाले तौर तरीकों के नियम क़ायदे सर्वसम्मति से स्थापित हुए थे. युद्ध के दौरान घायलों के उपचार, युद्ध बंदियों के अधिकारों का संरक्षण, तथा गैर-सैनिकों की सुरक्षा के लिए कुछ क़ायदे बनाए गए थे. किंतु आज जब युद्ध करने के हथियाओं में कई गैर परंपरागत हथियार आ चुके हैं क्योंकि जो चीज़ हाथ लगे उसी को हथियार बना उसका उपयोग जारी है. जिनमें मुख्य रूप से वित्तीय प्रणाली, वित्तीय प्रतिबंध, गलत एवं भ्रामक सूचनाओं की ठेकेदारी, इत्यादि शामिल हैं, तब नए नियामक बनाने की आवश्यकता है जिससे इनके प्रयोग पर नियंत्रण पाया जा सके. युद्ध के दौरान सरकारें और कॉरपोरेट संस्थायें क्या कर सकते हैं और क्या नहीं, किस तरह के प्रतिबंध लगा सकते हैं और किस तरह के नहीं. ऐसे एक नये जिनेवा कन्वेंशन कायम करने का समय आ गया है. इन सभी बातों एवं निर्णयों पर चर्चा आवश्यक है अगर आज की टूट चुकी नियम आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में फिर से नयी जान फूंकनी है. स्पष्ट है की वित्तीय प्रतिबंधो का असर किसी भी देश की उद्दंड नीतियों पर कम और आम नागरिक के जीवन को ज्य़ादा प्रभावित करता है. उन्हें भोजन और दवा जैसे रोज़मर्रा के उत्पाद मुहैया नहीं हो पाते, क़ीमतों में हुई वृद्धि जीवन दुष्कर कर देती है. रायसीना संवाद इसी परिप्रेक्ष्य से संबंधित तथ्यों एवं कानून आधारित विषयों पर विस्तार से चर्चा करेगा.

पोस्ट कोविड विश्व व्यवस्था में भारत की भूमिका कैसी होगी?

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की रिपोर्ट में भारत की अर्थव्यवस्था के बारे में अटकल लगाई गयी है कि क्या भारत आशा की किरण बन सकता है? अभी इसका स्पष्ट उत्तर हाँ में भले ही नहीं दिया जा सके किन्तु भारत के विश्व में बढ़ते महत्व को कम नहीं आँका जा सकता. भारत जनसंख्या की दृष्टि से विश्व में दूसरा स्थान रखता है, इसी कारण वह विश्व के अर्थव्यवस्था की, एक बाज़ार के रूप में शक्तिशाली नींव है. यूक्रेन युद्ध के बाद चीन, रूस एवं सभी पश्चिमी देश भारत के साथ को लेकर चर्चा करना चाहते हैं. भारत दुनिया का सबसे बड़ा प्रजातांत्रिक देश है, जिसकी अपनी एक अलग शक्ति है. वैश्विक सार्वजनिक वस्तु जैसे पर्यावरण, वायुमंडल, वैश्विक संस्थाओं की शक्ति- सभी के लिए सभी को संजोये रखने के लिए भारत की अहम् भूमिका है. साथ ही आज विश्व के हर देश में भारतीय मूल के लोगों का वजूद ऐसा है कि संकट के वक्त़ उन्हें वहां से निकाले जाने की चिंता भारत की सरकार के लिए अहम हो जाती है. इसलिये हर देश में भारत का महत्व है, और भारत के लिए आवश्यक है कि वह हमेशा एक ग़ैरपक्षपाती वैश्विक व्यवस्था का हिमायती रहेगा जो कि हर परिस्थिति में शांति के लिए प्रयासरत रहे. अतः भारत ने तटस्थता की नीति अपनाते हुए बार-बार यही कहा है कि हम किसी के पक्ष में नहीं हैं, हम शांति चाहते हैं, हम ऐसी व्यवस्था चाहते हैं जो कानून आधारित हो एवं वो कानून समान रूप से सभी पर लागू हो, हम सभी को ट्विटर वॉर छोड़कर वार्ता के माध्यम से एक नई व्यवस्था को लागू करने की आवश्यकता है, जिसमें साइबर अपराध को कम करने, जलवायु परिवर्तन संबंधित मुद्दे, हिंद प्रशांत क्षेत्र संबंधित तथा नकली एवं गलत सूचना संबंधित समाधान शामिल है.

पिछले वर्ष 2021 में रायसीना संवाद की जब वर्चुअल वार्ता हुई थी तब भारत ने दिल्ली के साथ साथ रायसीना चर्चाओं का सिलसिला अमेरिका, यूरोप, ऑस्ट्रेलिया आदि  में प्रारम्भ किया था. सफ़लता ऐसी मिली की आज हम रायसीना डायलॉग को सिर्फ़ दिल्ली तक सीमित नहीं रखते हैं. इस बार दिल्ली में परिचर्चाओं के साथ ही बर्लिन एवं वॉशिंगटन में वर्चुअल वार्ता की जगह व्यक्तिगत रूप से रायसीना संवाद का आयोजन किया जा रहा है. 

अंत में इसी सिलसिले में रायसीना संवाद के बदलते स्वरूप की ओर ध्यान दें. पिछले वर्ष 2021 में रायसीना संवाद की जब वर्चुअल वार्ता हुई थी तब भारत ने दिल्ली के साथ साथ रायसीना चर्चाओं का सिलसिला अमेरिका, यूरोप, ऑस्ट्रेलिया आदि  में प्रारम्भ किया था. सफ़लता ऐसी मिली की आज हम रायसीना डायलॉग को सिर्फ़ दिल्ली तक सीमित नहीं रखते हैं. इस बार दिल्ली में परिचर्चाओं के साथ ही बर्लिन एवं वॉशिंगटन में वर्चुअल वार्ता की जगह व्यक्तिगत रूप से रायसीना संवाद का आयोजन किया जा रहा है. क्योंकि हमारा मानना है की संवाद का कभी अंत नहीं होना चाहिए. आज की अनिश्चितता ग्रस्त दुनिया में तो संवाद थम या थक नहीं सकता, ज़रूरी है की वह चौबीसों घंटे लगातार चलता रहे. 

2022 के संस्करण में 90 से अधिक देशों और बहुपक्षीय संगठनों के 210 से अधिक वक्ताओं के साथ 100 से अधिक सत्र होंगे. पिछले सात वर्षों में, रायसीना डायलॉग ने अंतरराष्ट्रीय मामलों पर एक प्रमुख वैश्विक सम्मेलन के रूप में उभरने के लिए अपने कद और पहचान में वृद्धि की है. यह वैश्विक रणनीतिक और नीति-निर्माण समुदाय के प्रमुख विचारक नेताओं को दुनिया के सामने आने वाले प्रमुख भू-राजनीतिक विकास और रणनीतिक मुद्दों पर चर्चा करने के लिए आकर्षित करता है. 

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