Author : Amanda Roark

Published on Mar 11, 2021 Updated 0 Hours ago

चौथी औद्योगिक क्रांति की ओर शायद सबसे ज़रूरी कदम भरोसे से जुड़ा है

चौथी औद्योगिक क्रांति से जुड़े सवाल, चिंताएं और असमानता

मोबाइल नेटवर्क्स और क्लाउड टेक्नोलॉजी, स्मार्ट फैक्ट्रियां और वियरेबल टेक (ऐसे उपकरण जिन्हें पहना जा सके) से कनेक्ट होने वाली टेक्नोलॉजी हमारे रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा बन चुकी हैं. हमने इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) डिवाइसेज यानी उपकरणों के जरिये चौथी औद्योगिक क्रांति (4th IR) की तरफ बढ़ना भी शुरू कर दिया है. लेकिन ये सब वैश्विक स्तर पर नए टेक्नोलॉजिकल उभार की शुरुआत ही है. ऑटोमेटेड जॉब्स (ऐसे काम जो मशीन करती हों), सायबरस्पेस के जरिये लड़ी जाने वाली जंग और हमारे शरीर में टेक्नोलॉजिकल डिवाइसेज लगाए जाने के दौर की शुरुआत में भी अब बहुत देर नहीं होगी.

चौथी औद्योगिक क्रांति की चुनौतियां

लेकिन इसके दुष्परिणाम भी सामने आएंगे. जैसे-जैसे हम चौथी औद्योगिक क्रांति की ओर आगे बढ़ रहे हैं, इनसे पैदा होने वाली गैर-बराबरी बढ़ रही है. हम यह भी जानते हैं कि जब आर्थिक-सामाजिक गैर-बराबरी बढ़ती है तो हिंसा के मामले भी बढ़ने लगते हैं. इसलिए इस नई तकनीकी क्रांति की किन चीजों का स्वागत किया जाए, उसे लेकर प्रोड्यूसर्स और एंड-यूजर्स दोनों को सावधानी बरतनी होगी, तभी भविष्य में असमानता से बचा जा सकेगा. वहीं, अगर इस चुनौती से नहीं निपटा गया तो इससे पैदा होने वाली समस्याएं कहीं अधिक तेजी से बढ़ती जाएंगी.

हम यह भी जानते हैं कि जब आर्थिक-सामाजिक गैर-बराबरी बढ़ती है तो हिंसा के मामले भी बढ़ने लगते हैं. इसलिए इस नई तकनीकी क्रांति की किन चीजों का स्वागत किया जाए, उसे लेकर प्रोड्यूसर्स और एंड-यूजर्स दोनों को सावधानी बरतनी होगी, तभी भविष्य में असमानता से बचा जा सकेगा.

क्या नई औद्योगिक क्रांति के सिलसिले में हमें सबसे पहले आर्थिक-सामाजिक असमानता की चुनौती से निपटना चाहिए? क्या यह हम लोगों के लिए सबसे बड़ी समस्या होगी? इसे लेकर लोगों की अलग-अलग राय है. 2013 में संयुक्त राष्ट्र संघ के उप-महासचिव ने कहा था कि दुनिया में जितने टॉयलेट्स हैं, उससे ज्यादा मोबाइल फोन हैं.  यह भी स्पष्ट है कि काफी समय तक चौथी और तीसरी औद्योगिक क्रांतियां साथ-साथ चलेंगी. दरअसल, दुनिया के कई दूरदराज के इलाकों में अभी डिजिटल क्रांति के प्रभाव को महसूस किया जा रहा है.

यहां तक कि जिन देशों में लंबे वक्त से तीसरी औद्योगिक क्रांति चल रही है, वहां भी आर्थिक-सामाजिक असमानता की चुनौती सामने आ सकती है. अमीरी और ग़रीबी की खाई बढ़ सकती है. जैसे-जैसे रोबोटिक्स और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस मेच्योर होंगे, अमीर देशों में कई नौकरियों के ख़त्म होने की आशंका बढ़ेगी. रेस्टोरेंट्स में होस्ट/होस्टेस, होटल इंडस्ट्री में कई अन्य रोजगार, टेलीमार्केटिंग करने वाले और यहां तक कि खेल अधिकारियों की नौकरियां चौथी औद्योगिक क्रांति के आगे बढ़ने से खतरे में पड़ जाएंगी. अधिक उम्र वाले जिन लोगों की नौकरियां ऑटोमेशन की वजह से जाएंगी, वे जिंदा रहने के लिए स्थानीय प्रशासन की वित्तीय मदद या सामाजिक योजनाओं के भरोसे रहेंगे. नए करियर या नई स्किल के लिए भी वे स्थानीय प्रशासन पर ही आश्रित होंगे.

अच्छी बात यह है कि नौजवान पीढ़ी के लिए नई नौकरी या स्किल की संभावना कहीं बेहतर होगी. वर्ल्ड इकॉनमिक फोरम ने 2016 में बताया था कि प्राथमिक शिक्षा की शुरुआत करने वाले 65 फीसदी बच्चों को वैसे रोजगार के लिए तैयार करना होगा, जो अभी हैं ही नहीं.  यह चौंकाने वाला आंकड़ा है, लेकिन हम इस बात को लेकर आश्वस्त हो सकते हैं कि इन बच्चों के पास ख़ुदको क्लासरूम में तैयार करने के लिए वक्त और मौका होगा. वहीं, एक समाज के तौर पर हमें यह पक्का करना होगा कि हमारे बच्चों को वैसी स्किल सिखाई जाएं, जिनसे वे आने वाले भविष्य के लिए तैयार हो सकें. अक्सर हम जो काम करते हैं, वह एक तरह से हमारी पहचान बन जाता है. और इससे वह सवाल खड़ा होता है, जिस पर हम आगे विचार करने जा रहे हैं.

वर्ल्ड इकॉनमिक फोरम ने 2016 में बताया था कि प्राथमिक शिक्षा की शुरुआत करने वाले 65 फीसदी बच्चों को वैसे रोजगार के लिए तैयार करना होगा, जो अभी हैं ही नहीं.  यह चौंकाने वाला आंकड़ा है, लेकिन हम इस बात को लेकर आश्वस्त हो सकते हैं कि इन बच्चों के पास ख़ुदको क्लासरूम में तैयार करने के लिए वक्त और मौका होगा. 

इंसानी जीवन के लिए यह पहचान बहुत मायने रखती है. इसी वजह से हम सोशल मीडिया पर पिछले वर्षों के दौरान राजनीतिक बहस को बढ़ता हुआ देख रहे हैं. हमें लगता था कि अगर हमारी उंगलियों पर दुनिया भर की सूचनाएं होंगी तो दुष्प्रचार रुक जाएगा. तब लोगों को गलत सूचनाओं से बरगलाना संभव नहीं होगा. अफसोस की बात यह है कि सोशल मीडिया से हमारी सोच का दायरा संकीर्ण हुआ है. इसका नतीजा यह हुआ है कि पहले जो वर्ग हाशिये पर पड़ा हुआ था, उसने सावधानी से एक जाल बुन लिया है, जहां उसकी तरफ से पेश की गई सोच को अधिक से अधिक लोग अपना रहे हैं.

एंबेडेड टेक्नोलॉजी के उभार से इंसान की पहचान में एक अनोखा पहलू जुड़ेगा. एक तरफ तो ये इंप्लांट ख़ुद को अभिव्यक्त करने का ऐसा जरिया दे सकते हैं, जिसके लिए अभी लोग टैटू का इस्तेमाल करते हैं तो दूसरी तरफ कई इंप्लांट्स खास मकसद के लिए होंगे. अगली पीढ़ी में एंबेडेड टेक्नोलॉजी की क्षमता इतनी बढ़ सकती है कि उससे एक नई तरह की असमानता पैदा हो सकती है. यह असमानता ऐसी होगी, जिसकी अभी तक हम कल्पना भी नहीं कर पाए हैं.

सामाजिक-आर्थिक गैरबराबरी बढ़ने पर लोगों में सुरक्षा संबंधी मसले भी खड़े होते हैं. यह असुरक्षा उन जगहों पर भी खड़ी होती है, जहां वे रहते हैं. कंपनियां, उद्योगों और सरकारों ने अभी से ‘इंटरनेट ऑफ थिंग्स’ टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल शुरू कर दिया है. जहां-जहां इंटरनेट कनेक्टिविटी आम है, वे वहां मौजूद ख़ामियों का फायदा उठाने की कोशिश कर रहे हैं. बायोलॉजिकल और बायोकेमिकल हथियार, ऑटोनॉमस वॉर मशीन, ड्रोन और इंटरनेट ऑफ थिंग्स से जुड़े वियरेबल डिवाइसेज से जुड़ी क्षमताएं घनी आबादी में लड़ी जाने वाली लड़ाइयों की सूरत बदल सकते हैं.

कैसे भविष्य के कामगार तैयार किया जाए?

इनमें से कई मसले ऐसे हैं, जिनका हल तलाशना आसान नहीं होगा. इसके लिए दुनिया को लेकर हमें अपनी सोच में क्रांतिकारी बदलाव लाना होगा. जैसे-जैसे मैनुअल लेबर की ज़ररत ख़त्म होती जाएगी और टेक्नोलॉजी का दखल हमारे जीवन में बढ़ेगा, तब हो सकता है कि हम तकनीक को बुनियादी मानवाधिकार मानने लगें, भले ही हमारी सामाजिक हैसियत कुछ भी हो. भविष्य के कामगार तैयार करने के लिए हमें स्कूलों में नए एजुकेशन प्रोग्राम की शुरुआत करनी होगी. मशीनों के कारण जिन लोगों का रोजगार छिनेगा, उन्हें फिर से ट्रेनिंग देनी पड़ेगी ताकि वे वर्कफोर्स में शामिल हो सकें. इसके बावजूद जिन लोगों को रोजगार नहीं मिल पाएगा, अमीर देशों में उनके लिए यूनिवर्सल बेसिक इनकम जैसी योजनाओं पर विचार शुरू हो सकता है.

मशीनों के कारण जिन लोगों का रोजगार छिनेगा, उन्हें फिर से ट्रेनिंग देनी पड़ेगी ताकि वे वर्कफोर्स में शामिल हो सकें. इसके बावजूद जिन लोगों को रोजगार नहीं मिल पाएगा, अमीर देशों में उनके लिए यूनिवर्सल बेसिक इनकम जैसी योजनाओं पर विचार शुरू हो सकता है.

चौथी औद्योगिक क्रांति में समावेशी समाज के लिए शायद सबसे ज़ररी कदम ट्रस्ट यानी भरोसा हो सकता है. अगर रोबोट इंसानों की तरह व्यवहार करने लगें तो हमें उन पर भरोसा करने में कितना वक्त लगेगा? सोशल मीडिया का इस्तेमाल हमारे शोषण के लिए होगा या हम तक सही सूचना पहुंचाने के लिए? क्या लोग कंपनियों को अपने डेटा देने को तैयार होंगे? आज जब हम चौथी औद्योगिक क्रांति की ओर बढ़ रहे हैं तो हमें ख़ुद से ये सवाल करने चाहिए. यह कोई कुदरती बदलाव नहीं है, जिसे नियंत्रित नहीं किया जा सकता. यह हमारी सामूहिक सोच और फैसलों के मेल से आकार ले रहा है. जो जहीन दिमाग इन तकनीक को तैयार कर रहे हैं, उनकी बात जितना मायने रखती है, उतनी ही अहमियत कंज्यूमर्स यानी उपभोक्ताओं और एंड-यूजर्स की पसंद की भी है. निवेशक, खोज करने वाले और कंज्यूमर्स, सबको ख़ुद से सवाल करना चाहिए कि चौथी औद्योगिक क्रांति ने हमारे सामने जो अवसर पेश किए हैं, हम उनसे क्या हासिल करना चाहते हैं.

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