Author : Harsh V. Pant

Published on Mar 17, 2021 Updated 0 Hours ago

शिथिल पड़े क्वॉड संगठन में एकाएक नई जान आना जितना चौंकाने वाला है उतना ही भारत को लेकर इसका रवैया भी. एक समय जो भारत क्वॉड के मंच पर इन्फ्रा फाइनेंसिंग और सांस्कृतिक विनिमय जैसे सॉफ्ट मसलों तक ही सीमित रहता था.

दुनिया को दिशा दिखाता क्वॉड: लगा चीन की दबंगई पर विराम

बीते एक हजार साल से दुनिया में उतना बदलाव नहीं आया, जितना बीते दस वर्षों में हुआ है. इसी तरह विगत एक वर्ष में दुनिया बदलाव के उससे भी बड़े दौर से गुजरी है, जितना पिछले दस वर्षों के दौरान हुआ. क्वॉड भी ऐसे परिवर्तनों का एक अहम पड़ाव और परिणाम है. यह चार देशों का एक ऐसा उभरता हुआ समूह है, जो विस्तारवादी, बिगड़ैल और अड़ियल चीन को चुनौती देने का माद्दा रखता है. भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया की चौकड़ी से बने इस समूह के राष्ट्राध्यक्षों ने गत शुक्रवार को अपने विचार साझा किए. मौजूदा दौर में यह घटनाक्रम अपने आप में अत्यंत महत्वपूर्ण है. इसे शीत युद्ध की समाप्ति के बाद सबसे उल्लेखनीय वैश्विक पहल कहा जा रहा है.

हिंद-प्रशांत क्षेत्र समकालीन भू-राजनीति का केंद्र बिंदु 

इसमें कोई संदेह नहीं कि हिंद प्रशांत क्षेत्र समकालीन भू-राजनीति का केंद्र बिंदु है. लंबे समय तक इस क्षेत्र को अनदेखा ही किया गया. कुछ समय पूर्व ही इसे मान्यता मिलनी शुरू हुई है, लेकिन अभी भी उसके लिए एक संस्थागत ढांचे का अभाव है. इसकी पूर्ति करने में क्वॉड पूरी तरह सक्षम है. अब यह एक औपचारिक मंच के रूप में आकार लेता दिख रहा है. इसे मिल रही महत्ता का अंदाजा इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि अमेरिकी राष्ट्रपति बनने के बाद जो बाइडेन ने अपनी पहली बहुपक्षीय वार्ता के लिए क्वॉड जैसे संगठन को चुना, जो अभी तक अनौपचारिक स्वरूप में ही है. बाइडेन का यह दांव उन लोगों के लिए किसी झटके से कम नहीं, जो यह अनुमान लगा रहे थे कि ट्रंप प्रशासन के बाद बाइडेन हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए एक अलग राह चुन सकते हैं. बाइडेन ने क्वॉड के सहयोगियों के साथ एक स्वतंत्र एवं मुक्त हिंद प्रशांत क्षेत्र की प्रतिबद्धता व्यक्त कर अपने पत्ते खोल दिए हैं.

बाइडेन का यह दांव उन लोगों के लिए किसी झटके से कम नहीं, जो यह अनुमान लगा रहे थे कि ट्रंप प्रशासन के बाद बाइडेन हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए एक अलग राह चुन सकते हैं.

क्वॉड का उभार: चीन को उसकी भाषा में जवाब देना आवश्यक

क्वॉड का विचार नया नहीं है. वर्ष 2007 में जापान ने इसकी पहल की थी, लेकिन भारत और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश इसे लेकर हिचक रहे थे. उनकी हिचक की मुख्य वजह यह थी कि कहीं चीन इससे कुपित न हो जाए, लेकिन बीते एक वर्ष के घटनाक्रम ने इन दोनों देशों की बीजिंग को लेकर सोच बदल दी. केवल भारत और ऑस्ट्रेलिया ही नहीं, अपितु अमेरिका की भी हाल के दौर में व्यापार, ताइवान और विश्व स्वास्थ्य संगठन जैसे कई मसलों पर चीन के साथ तनातनी बढ़ी है. वहीं कोरोना काल में अपनी हेठी दिखाने के साथ-साथ चीन ने ऑस्ट्रेलिया पर व्यापारिक और भारत पर सामरिक शिकंजा कसने का प्रयास किया. जापान के साथ तो उसके शाश्वत विवाद और सामुद्रिक सीमा के मुद्दे फंसे ही हुए हैं.

क्वॉड का उभार: चीन को उसकी भाषा में जवाब देना आवश्यक हो गया

इस प्रकार विगत एक वर्ष के घटनाक्रम ने क्वॉड के उभार में निर्णायक भूमिका निभाई, क्योंकि इससे जुड़े देशों को यह आभास हुआ कि चीन को उसकी भाषा में जवाब देना आवश्यक हो गया है. इस तरह कोरोना काल में नया आकार लेता वैश्विक ढांचा क्वॉड की नियति में नाटकीय बदलाव का निमित्त बना. इन चारों देशों के साथ आने से अब बीजिंग के तेवर भी बदले हुए हैं. उसे समझ आ गया है कि जब दुनिया की बड़ी शक्तियां लामबंद होंगी तो उसके क्या निहितार्थ हो सकते हैं? यही कारण है कि कुछ समय पहले तक क्वॉड को लेकर आंखें तरेरने वाला चीन अब सहयोग और मित्रता की भाषा बोल रहा है.

चीन की ऐसी चिकनी-चुपड़ी बातें हाथी के दांत खाने के और- दिखाने के और वाली कहावत को चरितार्थ करने जैसी हैं. ऐसा इसलिए, क्योंकि बीते कुछ दशकों से दुनिया चीन की दबंगई देख चुकी है और विगत एक वर्ष में चीन का पूरा चरित्र दुनिया के सामने उजागर हो चुका है. उसके बढ़ते दबदबे और दुस्साहस पर विराम लगाने के लिए क्वॉड वही विचार है, जिसके साकार रूप लेने का समय अब आ गया है. अच्छी बात यह है कि इससे जुड़े अंशभागी भी यह भलीभांति समझ रहे हैं. उनके बीच बढ़ता सहयोग इसका सूचक है.

गत वर्ष मालाबार साझा युद्ध अभ्यास में अमेरिका और जापान के साथ ऑस्ट्रेलिया की सक्रिय भागीदारी इस संगठन के लिए शुभ संकेत और वैश्विक भू-राजनीति में एक नई धमक के रूप में देखी गई. इन देशों की साझेदारी भी बहुत स्वाभाविक है, क्योंकि ये सभी मूल रूप से लोकतांत्रिक और उदार व्यवस्था वाले देश हैं, जिनकी तमाम अहम मुद्दों पर सोच एक दूसरे से मेल खाती है. जैसे ये सभी एकमत हैं कि धरती पर मौजूद उन दुर्लभ संसाधनों के संरक्षण के लिए कोई कारगर पहल करनी ही होगी, जिनका चीन बेहिसाब दोहन करने में लगा हुआ है. जलवायु परिवर्तन की गंभीरता को भी ये बख़ूबी समझते हैं. वैश्विक आर्पूित शृंखला को चीन से स्थानांतरित करने की दिशा में भी ये प्रयासरत हैं. इसका सबसे सुखद प्रमाण यह देखने को मिल रहा है कि अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया कोरोना वैक्सीन के उत्पादन में भारत की क्षमताओं को और बढ़ाने के पक्षधर हैं. ऐसे परस्पर सहयोग को देखते हुए क्वॉड में किसी किस्म की खटपट जैसी आशंका नहीं रह जाती.

आने वाले समय में यह समूह वैश्विक भू-राजनीति को दिशा देने वाला सिद्ध हो सकता है.

शिथिल पड़े क्वॉड संगठन में आई नई जान

शिथिल पड़े क्वॉड संगठन में एकाएक नई जान आना जितना चौंकाने वाला है, उतना ही भारत को लेकर इसका रवैया भी. एक समय जो भारत क्वॉड के मंच पर इन्फ्रा फाइनेंसिंग और सांस्कृतिक विनिमय जैसे सॉफ्ट मसलों तक ही सीमित रहता था, वही अब इसकी केंद्रीय भूमिका में आता प्रतीत होता है. यानी जिसे क्वॉड की कमजोर कड़ी माना जा रहा था, वही उसकी ताकत बनता दिख रहा है. अतीत में भारत के रवैये को ढुलमुल माना जाता था, लेकिन चीन के साथ सीमा पर तल्खी के दौरान अपने सख्त तेवरों के अलावा कई अन्य कदमों से उसने दुनिया का भरोसा जीता है. आने वाले समय में यह समूह वैश्विक भू-राजनीति को दिशा देने वाला सिद्ध हो सकता है. हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन से भयाक्रांत देशों को इससे बहुत बड़ा सहारा और चीन के मुकाबले एक उचित विकल्प मिलेगा. इसकी महत्ता और प्रासंगिकता इसी से समझी जा सकती है कि आसियान देशों के अलावा ब्रिटेन और फ्रांस जैसे राष्ट्र भी इसका दायरा बढ़ाकर उसमें शामिल होने की उत्सुकता दिखा रहे हैं, जिसके लिए क्वॉड प्लस जैसा नाम भी सोच लिया गया है. यह लगभग तय है कि आने वाले समय में क्वॉड का विस्तार होगा और वह और अधिक सशक्त रूप में उभरेगा. यही इसके उज्ज्वल भविष्य को दर्शाने के लिए पर्याप्त है.


यह आर्टिकल मूल रूप से दैनिक जागरण में प्रकाशित हो चुका है. 

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.