इस बात की संभावना अब बन रही है कि क्वॉड– जो कि ऑस्ट्रेलिया, भारत, जापान और अमेरिका के बीच एक सामरिक सुरक्षा संवाद है– और ऑकस– जो कि ऑस्ट्रेलिया, यूनाइटेड किंगडम (UK) और अमेरिका के बीच एक त्रिपक्षीय सुरक्षा समझौता है– के साथ एसोसिएशन ऑफ साउथ ईस्ट एशियन नेशंस (दक्षिण पूर्व एशियाई देशों का संघ यानी ASEAN या आसियान) कामकाजी संबंधों के मामले में ज्यादा तैयार दिख रहा है. अकादमिक जगत से इस तरह के संकेत मिल रहे हैं लेकिन आसियान के देशों की ज्यादातर सरकारों के सूत्र इसे ज्यादा महत्व नहीं दे रहे हैं.
“आसियान इकलौता क्षेत्रीय संगठन है जो अलग-अलग तरह की कूटनीति की पेशकश करता है. आसियान का सिद्धांत तालमेल, सहयोग और सक्रिय भागीदारी है. हम कोई संघर्ष नहीं चाहते हैं. हम अलग-थलग नहीं होना चाहते हैं.
हालांकि पिछले दिनों न्यू स्ट्रेट टाइम्स के साथ एक इंटरव्यू में इंडोनेशिया के राष्ट्रपति जोकोवी, जो कि 2023 के लिए आसियान के अध्यक्ष भी हैं, से पूछा गया कि क्या इंडो–पैसिफिक क्षेत्र में आसियान की प्रमुखता के कारण बेचैनी है, खास तौर पर क्वॉड और ऑकस के उभरने के बाद से जो आसियान केंद्रित क्षेत्रीय सुरक्षा व्यवस्था नहीं हैं. आसियान के अध्यक्ष के तौर पर इंडोनेशिया इस संदर्भ में उसकी प्रासंगिकता को कैसे सुनिश्चित कर सकता है? इसका गंभीर जवाब देते हुए जोकोवी ने कहा, “आसियान इकलौता क्षेत्रीय संगठन है जो अलग–अलग तरह की कूटनीति की पेशकश करता है. आसियान का सिद्धांत तालमेल, सहयोग और सक्रिय भागीदारी है. हम कोई संघर्ष नहीं चाहते हैं. हम अलग–थलग नहीं होना चाहते हैं. हमें क्वॉड और ऑकस को एक साझेदार के तौर पर देखना चाहिए, प्रतिस्पर्धी के रूप में नहीं.”
इसके बाद इंडोनेशिया के प्रतिनिधियों के द्वारा गलत संदेश पहुंचने से रोकने के लिए एक अभियान चलाया गया. हालांकि उन्होंने इंडोनेशिया की अध्यक्षता में क्वॉड और ऑकस के साथ संबंधों में बेहतरी से इनकार नहीं किया. आसियान में इंडोनेशिया के स्थायी प्रतिनिधि एंबेसडर देरी अमान ने 15 मई को फॉरेन पॉलिसी कम्यूनिटी ऑफ इंडोनेशिया (FPCI) के फॉरेन पॉलिसी फोरम पर जवाब दिया.
अपने डायलॉग पार्टनर के साथ सहयोग को लेकर आसियान का रवैया खुला है. इसमें क्वॉड और ऑकस– दोनों की सदस्यता शामिल है. आसियान और इन संगठनों के बीच कोई औपचारिक जुड़ाव नहीं था. जोकोवी का जवाब क्वॉड और ऑकस के साथ पूरी तरह जुड़ने के मुकाबले आसियान के खुलेपन को जाहिर करता है क्योंकि ये 42वें आसियान शिखर सम्मेलन के दौरान अध्यक्ष के बयान में नहीं दिखा था. लेकिन क्या ये सितंबर 2023 में इंडोनेशिया की अध्यक्षता में होने वाले 43वें आसियान शिखर सम्मेलन के दौरान उभर सकता है?
जोकोवी के शुरुआती विदेश नीति सलाहकार रिजल सुकमा ने उसी सम्मेलन के दौरान कहा था कि परमाणु पनडुब्बी जैसे मुद्दे वो क्षेत्र नहीं हैं जहां ऑकस के साथ आसियान सहयोग कर सकता है लेकिन उभरती तकनीकों जैसे पहलू आपसी हितों से जुड़े हुए हैं. उन्होंने जोकोवी के जवाब को इसी संदर्भ में बताया. जहां तक बात क्वॉड की है तो कई क्षेत्रों, जिनमें आपदा प्रबंधन और महामारी से निपटना शामिल हैं, में आसियान इसके साथ अच्छी तरह सहयोग कर सकता है.
निस्संदेह जब से क्वॉड 2.0 शिखर सम्मेलन के तरीके में आया है, तब से उसने अपनी सैन्य दलीलों को छोड़ दिया है. उसका संदेश और फोकस भविष्य को ध्यान में रखकर कामकाज से जुड़े सहयोग पर है. भौगोलिक तौर पर उसने बड़े इरादे के साथ इंडो–पैसिफिक पर ध्यान दिया और हर शिखर सम्मेलन के साथ प्रमुखता और एकजुटता के लिए आसियान की चाहत को लेकर तारीफ बढ़ती गई. ये थोड़ा अजीब लग सकता है कि क्वॉड, जो कि चीन का मुकाबला करने के लिए उभरा है क्योंकि आसियान ऐसा करने में नाकाम रहा, सम्मान के साथ आसियान तक पहुंच रहा है क्योंकि इस क्षेत्र में दिल और दिमाग का युद्ध शामिल हो गया है.
क्वॉड के द्वारा गैर–सैन्य शर्तों के साथ आसियान और साउथ पैसिफिक तक पहुंचने को जिस तरह जाहिर किया गया, उसमें भारत की भूमिका की तारीफ हो रही है. पिछले दिनों सिंगापुर में आयोजित एक परिचर्चा (सिंपोजियम), जिसकी मेजबानी एस. राजारत्नम स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज (RSIS) ने की थी, के दौरान चीन के प्रतिनिधि रिटायर्ड कर्नल झाऊ बो ने अपनी बात रखी कि कैसे ऑकस चीन विरोधी है, जबकि क्वॉड नहीं है. उन्होंने कहा कि चीन क्वॉड को इस तरह नहीं देखता कि वो चीन को उकसा रहा है. उन्होंने कहा कि ये बदलाव मुख्य रूप से भारत के द्वारा क्वॉड को एक दिशा, जो गैर–सैन्य और सहयोगी है, देने में निभाई गई भूमिका की वजह से आया है.
सिंगापुर के अकादमिक जगत में इसके महत्व पर जोर दिया गया और इस मौके पर भारतीय भागीदारों ने इस बात की पुष्टि की कि ये शायद एक व्यापक संदर्भ में कहा गया है. चूंकि चीन की आपत्तियां कम हो रही हैं तो क्या इसका ये मतलब है कि क्वॉड और आसियान एक सार्थक साझेदारी की तरफ बढ़ सकते हैं? ये वही चीज है जो क्वॉड पिछले दो वर्षों से चाह रहा था यानी आसियान के साथ गैर–सैन्य, सार्थक तरीके से जुड़ना. लगता है कि जोकोवी भी इसी बात को स्वीकार कर रहे थे.
चीन क्वॉड को इस तरह नहीं देखता कि वो चीन को उकसा रहा है. उन्होंने कहा कि ये बदलाव मुख्य रूप से भारत के द्वारा क्वॉड को एक दिशा, जो गैर-सैन्य और सहयोगी है, देने में निभाई गई भूमिका की वजह से आया है.
महाशक्तियों के बीच दुश्मनी आसियान के लिए असुविधाजनक है. शुरुआत में उसे लगा कि क्वॉड और ऑकस चीन के लिए चुनौती हैं और वो आसियान को एक पक्ष की तरफ करना चाहते हैं. क्वॉड के धीरे–धीरे आगे बढ़ने और इंडो–पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क (IPEF) के तहत बातचीत में छह आसियान देशों की भागीदारी, जिसकी शुरुआत क्वॉड शिखर सम्मेलन के दौरान हुई थी, इशारा करती है कि अपनी सामरिक स्वायत्तता के हिस्से के तौर पर वो अपने साझेदारों के साथ जुड़ने के लिए तैयार हैं. ये फायदेमंद है.
आसियान की प्रमुखता को क्वॉड के द्वारा कमजोर करने से जुड़े डर को लेकर बेचैनी के बावजूद साउथ ईस्ट एशिया की स्थिति को लेकर 2023 के सर्वे में भाग लेने वाले आसियान के 50.4 प्रतिशत लोग इस बात को लेकर सहमत हैं कि क्वॉड की मजबूती मददगार साबित होगी. इस विचार को सबसे ज्यादा समर्थन ब्रुनेई, इंडोनेशिया, मलेशिया, म्यांमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम से मिला है. केवल 12.2 प्रतिशत लोग असहमत हुए जो कि 2022 के 13.1 प्रतिशत के आंकड़े से थोड़ा कम है. असहमत होने वाले में सिंगापुर (19.7 प्रतिशत), थाईलैंड (15.3 प्रतिशत) और इंडोनेशिया (14.9 प्रतिशत) के लोग क्वॉड को लेकर सबसे ज्यादा निराशावादी हैं. तटस्थ होने वाले लोगों की संख्या 28.5 प्रतिशत से बढ़कर 37.4 प्रतिशत हो गई. इनमें सबसे ज्यादा कंबोडिया (67.2 प्रतिशत) और लाओस (60.7 प्रतिशत) के लोग हैं.
ये अनुमान लगाना सरल है कि आर्थिक साझेदार के तौर पर आसियान चीन को प्राथमिकता देता है लेकिन इसके बावजूद IPEF में भागीदारी करने के लिए तैयार है; वो सामरिक पसंद से परहेज करना चाहता है लेकिन क्वॉड के साथ जुड़ने के लिए तैयार है. ये आधी–अधूरी सोच है और इसमें आसियान के फैसला लेने की जटिलता का ध्यान नहीं रखा गया है. आसियान के अलग–अलग देश क्वॉड के देशों के साथ काम–काजी तौर पर जुड़े हुए हैं. ये क्वॉड के साथ भागीदारी नहीं है बल्कि उसके सदस्य देशों के साथ है. मिसाल के तौर पर भारत–इंडोनेशिया–ऑस्ट्रेलिया त्रिपक्षीय गठबंधन एक सीमित कोशिश है. फिलीपींस मजबूती के साथ सैन्य मामलों में जापान और अमेरिका के साथ जुड़ रहा है. ये आसियान के सदस्य देशों की अपनी–अपनी पसंद है. अब इंडोनेशिया जिस बात की कोशिश कर रहा है वो है आसियान–क्वॉड के बीच भागीदारी, अगर ये संभव है.
एक संभावना?
किन परिस्थितियों के तहत आसियान क्वॉड के साथ काम करेगा? सबसे पहले तो क्वॉड को चीन विरोधी बयानों से खुद को अलग कर लेना चाहिए, शायद अधिक समावेशी बन जाना चाहिए और उसे आसियान को तो ये बिल्कुल नहीं कहना चाहिए कि वो चीन के खिलाफ रवैया अपनाए. दूसरी परिस्थिति ये है कि क्वॉड आसियान को बड़ी ताकतों के बीच दुश्मनी से अलग रखें. तीसरी परिस्थिति ये है कि क्वॉड आसियान के सामने ऐसा प्रस्ताव रखे जो दूसरे नहीं रख सकते हैं.
क्वॉड के पास कई तकनीक और कामकाज के विचार हैं जिन्हें वो आसियान के सामने पेश करने का इरादा रखता है. इनमें क्वॉड वैक्सीन पार्टनरशिप, व्यापक क्वॉड हेल्थ सिक्योरिटी पार्टनरशिप; बेहतर, टिकाऊ और जलवायु अनुकूल इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए निवेश तक पहुंच; इंडो–पैसिफिक में समुद्र के भीतर अच्छे केबल नेटवर्क में समर्थन देने के उद्देश्य से केबल कनेक्टिविटी और लचीलेपन के लिए क्वॉड के साथ साझेदारी; सार्वजनिक इस्तेमाल के लिए डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर, इंडो–पैसिफिक में टिकाऊ विकास, सप्लाई चेन के लचीलेपन को मजबूत करना और 5G नेटवर्क समेत महत्वपूर्ण और उभरती तकनीकों एवं आधुनिक दूरसंचार तकनीक तक पहुंच के जरिए क्षेत्रीय डिजिटल कनेक्टिविटी में सुधार शामिल हैं. क्वॉड इन्वेस्टर्स नेटवर्क (QUIN) स्वच्छ ऊर्जा, सेमीकंडक्टर, महत्वपूर्ण खनिजों और क्वांटम समेत सामरिक तकनीकों में निवेश को आसान बना सकता है. महत्वपूर्ण पहल में इंडो–पैसिफिक पार्टनरशिप फॉर मैरीटाइम डोमेन अवेयरनेस (IPMDA) शामिल है.
फिलहाल ये सभी विचार पर्याप्त ढंग से काम नहीं करते हैं. उदाहरण के लिए, क्वॉड वैक्सीन पार्टनरशिप अपने उद्देश्यों को उस ढंग से पूरा नहीं कर पाई है जैसा उसे करना चाहिए था. लेकिन इस पहल के तहत थाईलैंड और कंबोडिया तक वैक्सीन पहुंचाई गई है.
जब तक आसियान को एक सामरिक विकल्प चुनने के लिए मजबूर नहीं किया जाता है और उसे आपसी फायदे के लिए कामकाज से जुड़ा सहयोग पेश किया जाता है, तब तक उसके द्वारा तालमेल बनाने की संभावना ज्यादा है. ये शायद सबसे अच्छा समय है क्योंकि आसियान के अध्यक्ष के रूप में इंडोनेशिया आगे कदम बढ़ाने के बारे में तय कर चुका है.
भारत और आसियान पर हाल की एक किताब में कहा गया कि तीन ऐसी चीजें हैं जिन्होंने दोनों पक्षों में बंटवारा किया. ये हैं चीन, इंडो–पैसिफिक और भारत के द्वारा रीजनल कंप्रिहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप (RCEP) से अलग होना. फिलहाल RCEP से अलग होने को छोड़ दें, क्योंकि ये क्वॉड से जुड़ा मामला नहीं है, तो चीन और इंडो–पैसिफिक के मामले में भारत–आसियान की भागीदारी निश्चित रूप से परिपक्व दिख रही है और इसके नतीजतन शायद क्वॉड के साथ संबंधों पर भी असर है. भारत आसियान को ये नहीं कहता कि वो चीन की आलोचना करे. साथ ही नियम आधारित व्यवस्था और UNCLOS (यूनाइटेड नेशंस कन्वेंशन ऑन द लॉ ऑफ द सी यानी संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि) को लेकर भारत आसियान का समर्थन भी करता है. कोई भी आसियान देश भारत–चीन सीमा गतिरोध को लेकर चीन की आलोचना नहीं करता है. इसलिए, चीन की सीधा आलोचना से परहेज करके आसियान को जोड़ने का ये भारतीय तरीका क्वॉड को इसी तरह का दृष्टिकोण अपनाने और पूरी प्रक्रिया से फायदा उठाने में मदद करता है.
जहां तक इंडो–पैसिफिक की बात है तो आसियान को ये पता है कि चीन “इंडो–पैसिफिक” की जगह “एशिया पैसिफिक” शब्द को तरजीह देता है. लेकिन इसके बावजूद इंडोनेशिया के नेतृत्व में आसियान ने 2019 में आसियान आउटलुक ऑन दी इंडो–पैसिफिक (AOIP) को अपनाया था जो कि अब सभी के साथ उसके सहयोग का मंत्र बन गया है. भारत के अलावा क्वॉड के सभी सदस्य देशों और क्वॉड ने भी AOIP की शर्तों पर सहयोग को स्पष्ट रूप से कहा है जो कि आसियान को संतुष्ट करता है.
जहां तक इंडो-पैसिफिक की बात है तो आसियान को ये पता है कि चीन “इंडो-पैसिफिक” की जगह “एशिया पैसिफिक” शब्द को तरजीह देता है. लेकिन इसके बावजूद इंडोनेशिया के नेतृत्व में आसियान ने 2019 में आसियान आउटलुक ऑन दी इंडो-पैसिफिक (AOIP) को अपनाया था
इंडो–पैसिफिक की अधिक स्वीकार्यता के तहत इंडोनेशिया आसियान की अपनी अध्यक्षता के हिस्से के रूप में सितंबर 2023 में इंडो–पैसिफिक फोरम का आयोजन करेगा. आखिरी आसियान शिखर सम्मेलन के दौरान अध्यक्ष ने कहा, “हमने इसके सहमत सिद्धांतों के आधार पर ठोस परियोजनाओं और गतिविधियों के जरिए AOIP के अमल को मुख्यधारा में लाने के लिए प्रतिबद्धता जताई और आसियान–इंडो–पैसिफिक फोरम की बैठक आयोजित करने को लेकर उम्मीद जताते हैं. इसके तहत थिंक टैंक, कारोबार, एंटरप्रेन्योर, तकनीक और मिलती–जुलती चीजें शामिल होंगी. ये फोरम आसियान में इंडो–पैसिफिक की धारणा की सबसे व्यापक स्वीकार्यता है. आम तौर पर इंडोनेशिया के नेतृत्व में इसका उदय हो रहा है.”
क्वॉड–आसियान संबंध सामरिक नहीं बन सकता है. लेकिन तकनीक और कामकाज के मामले में सहयोग के लिए क्वॉड के प्रस्ताव को धीरे–धीरे आसियान के द्वारा अपनाया जा सकता है. इसकी शुरुआत आसियान के अलग–अलग देशों के साथ हो सकती है और फिर बाद में क्वॉड के प्रतिनिधियों के साथ आसियान इस तरह के सहयोग से जुड़ी कोशिशों के बारे में चर्चा कर सकता है. चूंकि क्वॉड अपने–आप में एक संस्थान नहीं है, इसलिए इस पर अमल आसियान के डायलॉग पार्टनर, जो कि क्वॉड ही है, जैसी बहुपक्षीयों टीमों के जरिए कराना सबसे अच्छा होगा. निकट भविष्य में इसको स्वीकार करने की संभावना है.
गुरजीत सिंह जर्मनी, इंडोनेशिया, इथियोपिया, आसियान और अफ्रीकन यूनियन में भारत के राजदूत रह चुके हैं.
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