Author : Anchal Vohra

Published on Mar 22, 2021 Updated 0 Hours ago

राजतंत्र को इस बात का डर सताने लगा है कि कहीं मुस्लिम ब्रदरहुड की स्थानीय शाखा उनके ही देश में सिर ना उठाने लगे और उनके शासन को चुनौती देने लगे.

क़तर का गतिरोध ख़त्म, लेकिन कुछ मुद्दों का समाधान बाक़ी

तीन साल पहले सउदी अरब, युनाइटेड अरब एमिरात, बहरीन और मिस्र ने जो पर्यटन और कारोबारी पाबंदियां क़तर पर बहाल की थी उसे पिछले सप्ताह गल्फ कोऑपरेशन काउंसिल (जीसीसी) की बैठक में ख़त्म कर दिया गया. कुवैत की लगातार की गई कूटनीति, अमेरिका में सत्ता से बाहर जाते हुए प्रशासन की क़तर और ईरान के बीच बढ़ती नज़दीकियों को ख़त्म करने की इच्छा के साथ सउदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान की नेतृत्व देने की कोशिशों ने इस गतिरोध को ख़त्म करने में अहम भूमिका निभाई. लेकिन इस गतिरोध को कैसे ख़त्म किया गया इसे लेकर नेताओं ने ज़बरदस्त चुप्पी साध ली और इस बात का ख़ुलासा नहीं हो सका कि यह समझौता कैसे मुमकिन किया जा सका है.

निश्चित तौर पर पर्यटन और कारोबारी संबंध के फिर से शुरू होने पर क़तर के ऊपर से वित्तीय दबाव कम होगा, हालांकि- अपने नैचुरल गैस के अकूत भंडार की बदौलत क़तर काफी बढ़-चढ़ कर अगले विश्व कप फुटबॉल मैच के आयोजन में जुटा हुआ है. हालांकि, इससे अमेरिका में ईरान विरोधी समर्थकों को भारी खुशी होगी कि क़तर को अपने एयरस्पेस के इस्तेमाल करने की इजाज़त देने वाले ईरान की आय में भारी कमी होगी.

हालांकि, इस समझौते को लेकर कई विशेषज्ञ आशंका जताते हैं कि इसे इन देशों के बीच प्राथमिक समझौते के तौर पर देखा जाना चाहिए न कि इन देशों के बीच कटुता के अंतिम समाधान के तौर पर. क्योंकि यूएई ने आख़िरकार बहुत ही स्पष्ट कहा है कि उसने अभी भी पूरी तरह कूटनीतिक रिश्ते बहाल नहीं किये हैं.

इस समझौते को लेकर कई विशेषज्ञ आशंका जताते हैं कि इसे इन देशों के बीच प्राथमिक समझौते के तौर पर देखा जाना चाहिए न कि इन देशों के बीच कटुता के अंतिम समाधान के तौर पर. 

जुलाई 2017 में इन चारों देशों ने ईरान के बेहद क़रीब जाने के लिए क़तर को सबक सिखाने का फैसला किया था जिसके तहत राजनीतिक तौर पर इस्लामी ताक़त मुस्लिम ब्रदरहुड को समर्थन देना और अरबी और अंग्रेजी भाषा में ब्रॉडकास्टर अल-जज़ीरा को अरब स्प्रिंग को बढ़ावा देना शामिल था. इन लोगों ने मांग की कि दोहा इस्लामी ताक़तों को वित्तीय मदद देना बंद करे, ईरान के साथ अपने संबंधों को ख़त्म करे और अल जज़ीरा न्यूज़ नेटवर्क को बंद करने के साथ तुर्की के सैन्य बेस पर भी पाबंदी लगाए.

इस्लामी ग्रुप का राजनीतिक संयोजन

हालांकि, राजतंत्र को इस बात का डर सताने लगा कि कहीं मुस्लिम ब्रदरहुड की स्थानीय शाखा उनके ही देश में सिर ना उठाने लगे और उनके शासन को चुनौती देने लगे. इन लोगों ने देखा था कि कैसे राजनीतिक तौर पर इस्लामी ग्रुप ने खुद को बेहतर तरीके से संयोजित किया, मिस्र में विरोध प्रदर्शन को पूरी तरह हाइजैक कर लिया और तानाशाह होस्नी मुबारक़ को सत्ता से बेदख़ल कर अपने उम्मीदवार मोहम्मद मोरसी को सत्ता पर बैठाया. वो चाहते तो यही थे कि राजनीतिक तौर पर इस्लामी समूह किसी तानाशाह को सत्ता से बेदख़ल नहीं करे और उनके ही पसंद का शख़्स सत्ता पर बैठे. यही वज़ह थी कि यूएई और सउदी अरब ने जनरल अब्देल फ़तह अल सिसी के सैन्य विरोध का समर्थन किया और उन्हें काहिरा की सत्ता पर बिठाया. इसके बाद इन देशों ने मुस्लिम ब्रदरहुड के विस्तार को हर मुमकिन कोशिश के ज़रिये रोकने का प्रयास तेज़ कर दिया और क़तर से इस संगठन को किसी भी तरह का समर्थन न देने को कहा गया.

हालांकि, दोहा और तुर्की के संबंध एक बड़ी समस्या के तौर पर सामने आए क्योंकि तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैय्यप एर्दोगेन मुस्लिम ब्रदरहुड के कट्टर समर्थक थे. शेख़ तामीम अल थानी के एर्दोगेन के साथ सैद्धांतिक रिश्ते यूएई के लिए चिंता का  विषय था, क्योंकि सीरिया और लीबिया के जंग के मैदान में यूएई तुर्की समर्थित इस्लामी समूह का सामना कर रहा था.

जबकि सऊदी अरब के लिए सबसे बड़ी चिंता का विषय ईरान था. सऊदी साम्राज्य को ये चिंता सताए जा रही थी कि ईरान का क्षेत्रीय विस्तार और उसकी परमाणु हथियार बनाने की उत्सुकता की वज़ह से कहीं शक्ति संतुलन बिगड़ ना जाए. और अब तक जो शक्ति संतुलन सुन्नी समर्थित – इस्लाम के दो पवित्र मस्जिदों का रक्षक – सऊदी अरब की तरफ झुका हुआ था वह कहीं पूरी तरह बिगड़ ना जाए.

ट्रंप प्रशासन में बतौर मध्य एशिया सलाहकार उनके दामाद जेरेड कुशनर ने ट्रंप के अमेरिकी चुनाव हारने से पहले ये अथक कोशिश की थी कि रियाद और दोहा अपने गतिरोधों को ख़त्म कर एक साथ आ जाएं. 

ट्रंप प्रशासन में बतौर मध्य एशिया सलाहकार उनके दामाद जेरेड कुशनर ने ट्रंप के अमेरिकी चुनाव हारने से पहले ये अथक कोशिश की थी कि रियाद और दोहा अपने गतिरोधों को ख़त्म कर एक साथ आ जाएं. इसके पीछे मक़सद ये था कि ईरान को उसकी स्थितियों पर छोड़ दिया जाए ताकि 20 जनवरी से पहले जो बाइडेन के सत्ता संभालने के बाद अमेरिका ईरान न्यूक्लियर डील की प्रक्रिया की शुरुआत फिर से हो सके.

लेकिन सार्वजनिक रूप से क़तर ने कोई भी मांग को स्वीकार नहीं किया था. लेकिन कुछ विशेषज्ञ जो दोहा के प्रति सहानुभूति रखते थे उनका मानना था कि ईरान से क़तर अपनी दूरियां बढ़ाने लगा था. इतना ही नहीं इन विशेषज्ञों ने इस अवधारणा को भी आगे बढ़ाना शुरू कर दिया कि अमेरिका, ईरान के साथ क़तर के संबंधों का इस्तेमाल एक मध्यस्थ के तौर पर करना चाहता है, जिससे अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडेन अगर कभी न्यूक्लियर डील को लेकर फिर से बातचीत करना चाहें तो यह दरवाज़ा उनके सामने खुला रह सके. हालांकि, यह बेहद दूर की कौड़ी प्रतीत होती है ख़ासकर तब जबकि ओमान और कुवैत ने पारंपरिक तौर पर इस इलाक़े में मध्यस्थ की भूमिका अदा करने की कोशिश की थी.

ऐसे में पाबंदियों के ख़त्म करने को लेकर क़तर के लिए यह एक खुशख़बरी है लेकिन ईरान के लिए यह समस्या बढ़ाने वाली ख़बर हो सकती है क्योंकि उसे यह डर सताने लगेगा कि ईरान एक बेहतर सहयोगी को खो सकता है. हालांकि, शेख़ अल थानी ने कई बार इस बात पर ज़ोर दिया है कि ईरान के साथ उनके संबंध कभी बदलने वाले नहीं हैं. और ना ही ऐसे कोई संकेत हैं कि अल जज़ीरा चैनल बंद होने वाला है, हालांकि कई सउदी समर्थित विश्लेषक पिछले कई दिनों से अब इस नेटवर्क पर नज़र आने लगे हैं.

इस पूरे प्रकरण में विवाद की सबसे बड़ी वज़ह कतर के मुस्लिम ब्रदरहुड के साथ संबंध को लेकर है जो इस चौकड़ी को लगातार मुश्किलों में फंसा रहा है, खासकर यूएई को. 

लेकिन इस पूरे प्रकरण में विवाद की सबसे बड़ी वज़ह कतर के मुस्लिम ब्रदरहुड के साथ संबंध को लेकर है जो इस चौकड़ी को लगातार मुश्किलों में फंसा रहा है, खासकर यूएई को. लीबिया में इस्लामी विद्रोहियों को दोहा ने सक्रिय समर्थन देना बंद कर दिया है, लेकिन इस बात के शायद ही कोई पुख़्ता संकेत हैं कि भविष्य में दोहा ऐसे संगठनों के साथ स्थायी तौर पर अपने रिश्ते ख़त्म कर लेगा और अपने सबसे करीबी दोस्त तुर्की के साथ संबंधों को पूरी तरह ख़त्म कर देगा. साल 2014 में इसी वज़ह से इन चारों देशों ने क़तर के साथ अपने संबंधों को विराम दिया था. अब एक बार फिर दोहा के लिए इस चौकड़ी में जगह बनाने का अवसर आया है, लेकिन समस्या यही है कि यह गर्मजोशी ज़्यादा दिनों तक टिकने वाली नहीं है.

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