Published on May 27, 2021 Updated 0 Hours ago

लाखों नौकरियों की संभावनाओं के अलावा प्लैटफॉर्म अर्थव्यवस्था ज़रूरी सेवा मुहैया कराने और सबके लिए रोज़गार सुनिश्चित करने में एक उपयोगी औज़ार साबित हो सकता है. 

भारत के श्रम बाज़ार को नुक़सान से बचाना: डिजिटल अर्थव्यवस्था में रोज़गार की संभावना को खोलना

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ये कहना अब पुरानी बात हो गई है कि इंटरनेट ने हमारे सामाजिक और आर्थिक परिदृश्य को बदल दिया है: सस्ते डाटा पैक, किफ़ायती स्मार्टफ़ोन और कंप्यूटर के साथ लोगों के संचार में आसानी की वजह से स्थानीय भाषा का इस्तेमाल करने वाले काफ़ी लोग ऑनलाइन हो गए हैं. इससे चौथी औद्योगिक क्रांति के हर जगह मौजूद होने का संकेत मिलता है जिसने हमारे जीने, चलने-फिरने और काम करने के तरीक़े को काफ़ी हद तक बदल दिया है. ये अभूतपूर्व उपलब्धि है और तकनीक मानवीय गतिविधि के हर पहलू में व्याप्त हो गई है जिनमें रोज़गार हासिल करना भी शामिल है. रोज़गार की बात करें तो डिजिटल प्लैटफॉर्म परंपरागत श्रम समझौते से दूर मांग आधारित काम के आवंटन की प्रणाली में बदलाव के मामले में सबसे आगे है. तकनीक ने श्रम बाज़ार में भी बड़ा बदलाव किया है. 

प्लैटफॉर्म अर्थव्यवस्था क्यों ज़रूरी है?

इसे देखते हुए सवाल खड़ा होता है कि डिजिटल प्लैटफॉर्म में भागीदारी कैसे अलग-अलग फ़ायदा पहुंचाती है, भारतीय शहरों में सेवा अर्थव्यवस्था में शामिल कामगारों के लिए ये बेहतरीन कैसे है. ये सबको मालूम है कि भारत के कामगारों में से 93 प्रतिशत अनौपचारिक सेक्टर में हैं जहां न तो रोज़गार की सुरक्षा है, न ही सामाजिक सुरक्षा है. इसलिए सुनिश्चित रोज़गार और आमदनी हासिल करने की योग्यता अपने-आप में एक बड़ा बदलाव है जिसकी पेशकश डिजिटल अर्थव्यवस्था के प्लैटफॉर्म ख़ास तौर पर कर रहे हैं. डिजिटल प्लैटफॉर्म के काम कई क्षेत्रों में फैले हुए हैं जैसे मोबिलिटी (आवागमन), डिलीवरी, लॉजिस्टिक, घर में सुधार और सौंदर्य सेवा. डिजिटल प्लैटफॉर्म के सेक्टर अलग-अलग शिक्षा के स्तर, हुनर, क्षेत्र और निर्भरता वाले कामगारों को आकर्षित करते हैं. 

ये प्लैटफॉर्म भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था क्रांति के केंद्र में हैं. मैकेंज़ी ग्लोबल इंस्टीट्यूट की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ वित्तीय सेवाओं, नौकरी और हुनर, कृषि, शिक्षा, लॉजिस्टिक और रिटेल के डिजिटाइज़ेशन का मूल्यांकन मौजूदा 170 अरब अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 2025 तक 500 अरब अमेरिकी डॉलर होने की उम्मीद है. ऐसा इसलिए संभव हो पाया क्योंकि डिजिटल प्लैटफॉर्म अक्षमता और कम उत्पादकता- दोनों को उस सिस्टम से दूर करते हैं जहां ये दोनों बहुत पाए जाते हैं. 

ये सबको मालूम है कि भारत के कामगारों में से 93 प्रतिशत अनौपचारिक सेक्टर में हैं जहां न तो रोज़गार की सुरक्षा है, न ही सामाजिक सुरक्षा है. 

ओला मोबिलिटी इंस्टीट्यूट (ओएमआई) की ताज़ा रिपोर्ट ‘प्लैटफॉर्म अर्थव्यवस्था में नौकरी का ताला खोलना: भारत में कोविड बाद की बहाली को प्रेरित करने वाली’ 12 भारतीय शहरों में काम-काज के अनुभव का अध्ययन करती है. इसमें मोबिलिटी अर्थव्यवस्था से जुड़े 5,000 लोगों की राय शामिल की गई है जिनमें से 66 प्रतिशत डिजिटल प्लैटफॉर्म से जुड़े हैं जबकि बाक़ी लोग डिजिटल प्लैटफॉर्म से बाहर के हैं. इस रिपोर्ट में भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था के कामगारों की महत्वाकांक्षा, बेचैनी और रवैये को समझने के लिए कई तरह के संकेतों की जांच-पड़ताल की गई और इसके आधार पर उन तरीक़ों के बारे में बताया गया जिसके ज़रिए तेज़ी से बढ़ता ये क्षेत्र बीसीजी-डेल फाउंडेशन की रिपोर्ट के अनुमानों के मुताबिक़ 9 करोड़ नौकरियां मुहैया कराने की अपनी संभावना को साकार कर सके. 

ओएमआई की रिपोर्ट से पता चलता है कि डिजिटल प्लैटफॉर्म से जुड़े कामगारों को अपने काम के घंटों के अनुपात में अलग-अलग तरह की आमदनी हासिल हुई जबकि डिजिटल प्लैटफॉर्म से बाहर के कामगारों की आमदनी ज़्यादा घंटे काम करने पर भी नहीं बढ़ी. डिजिटल प्लैटफॉर्म के मांग के मुताबिक़ मॉडल ने लचीले आमदनी की इजाज़त दी जिसका नतीजा 57 प्रतिशत कामगारों की रोज़ाना 1,000 रुपये तक आमदनी के रूप में सामने आया जबकि 43 प्रतिशत कामगारों ने 1,000 रुपये रोज़ाना से भी ज़्यादा की कमाई की. इसके उलट डिजिटल प्लैटफॉर्म से बाहर काम करने वाले किसी कामगार ने रोज़ 1,000 रुपये की कमाई नहीं की. घंटे के आधार पर डिजिटल प्लैटफॉर्म के कामगार दूसरे कामगारों के मुक़ाबले 25 प्रतिशत ज़्यादा कमाई करते हैं. ये नतीजे 2019 के आख़िरी महीनों के हैं और अब आर्थिक गतिविधियों के फिर से शुरू होने के बाद ये उम्मीद की जा सकती है कि डिजिटल प्लैटफॉर्म से जुड़े लोगों के लिए कमाई के आंकड़े उसी तरह के या उससे भी ज़्यादा होंगे. 

अर्थव्यवस्था का ढांचा बदलने की संभावना

डिजिटल प्लैटफॉर्म के कामगारों के बीच इसी तरह का सकारात्मक असर संपत्ति पर मालिकाना अधिकार पर ग़ौर करने पर भी मिला. वो भी तब जब ग़ैर-प्लैटफॉर्म कामगारों की तुलना में उनकी उम्र कम है. ये भारत में संपत्ति पर अधिकार रखने वाले वर्ग की बनावट को बदल रहा है. इसका नतीजा ऐसे लोगों के एक वर्ग के रूप में सामने आ रहा है जो संपत्ति से कमा रहा है और इस तरह ये लोग अल्पकालीन लीज़िंग की आर्थिक गतिशीलता में योगदान दे रहे हैं. इस तरह संपत्ति के उपयोग को बढ़ावा देकर डिजिटल प्लैटफॉर्म भारत की पूरी अर्थव्यवस्था का ढांचा बदलने की संभावना रखते हैं. 

समय की ज़रूरत है कि काम-काज के पालन की एक ऐसी प्रणाली को तैयार किया जाए जिसकी लागत कम हो, जो ज़रूरत पर आधारित हो और जो ज़्यादातर लोगों को शामिल करने का भरोसा दे.

डिजिटल प्लैटफॉर्म पर काम करने वाले कामगार गैर-डिजिटल प्लैटफॉर्म के कामगारों के मुक़ाबले ज़्यादा संख्या में निर्भर लोगों की मदद करते हैं. वास्तव में कमाई की ज़्यादा संभावना लोगों के लिए डिजिटल प्लैटफॉर्म का काम पकड़ने और अपने परिवार की मदद करने का बहुत बड़ा आकर्षण है. डिजिटल प्लैटफॉर्म के काम से कमाई इसके पीछे सबसे महत्वपूर्ण है. इस तरह आर्थिक असर होने के अलावा डिजिटल प्लैटफॉर्म के काम से ड्राइवर-पार्टनर की ज़रूरत और महत्वाकांक्षा को समर्थन देने का फ़ायदा भी है. डिजिटल प्लैटफॉर्म पर काम करने वाले लोग कम आमदनी वाले काम को छोड़कर और ज़्यादा पढ़ाई, आकर्षक करियर या दूसरे ज़रूरी देखभाल वाले काम कर सकते हैं. 

प्लैटफॉर्म अर्थव्यवस्था के कामगारों की चुनौतियों

ओला मोबिलिटी इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट से ये भी पता चलता है कि डिजिटल प्लैटफॉर्म अर्थव्यवस्था (और इसके बाहर) के कामगार जिन चुनौतियों का सामना करते हैं, उनको सामाजिक सुरक्षा हासिल करने के साथ काम-काज और आमदनी में लचीलेपन को सुनिश्चित करने के समग्र दृष्टिकोण से कम किया जा सकता है. समय की ज़रूरत है कि काम-काज के पालन की एक ऐसी प्रणाली को तैयार किया जाए जिसकी लागत कम हो, जो ज़रूरत पर आधारित हो और जो ज़्यादातर लोगों को शामिल करने का भरोसा दे. ये तभी हासिल हो सकता है जब कुछ ख़ास तरह की “फ़ायदे” वाली नौकरियों की पूरी तरह जांच-पड़ताल की जाए. इस दिशा में पहला क़दम सामाजिक सुरक्षा संहिता 2020 है लेकिन इसके अलावा भी बहुत काम करने की ज़रूरत है ताकि सुरक्षित गिग और प्लैटफॉर्म अर्थव्यवस्था की संभावना का पूरा फ़ायदा उठाया जा सके. 

कुल मिलाकर ओला मोबिलिटी इंस्टीट्यूट की ताज़ा रिपोर्ट डाटा पर आधारित एक दलील है जो बताती है कि कोविड के बाद के समय में रिकवरी के लिए प्लैटफॉर्म अर्थव्यवस्था क्यों ज़रूरी है. लाखों नौकरियों की संभावनाओं के अलावा प्लैटफॉर्म अर्थव्यवस्था ज़रूरी सेवा मुहैया कराने और सबके लिए रोज़गार सुनिश्चित करने में एक उपयोगी औज़ार साबित हो सकता है. 


*ये लेख ओला मोबिलिटी इंस्टीट्यूट की ताज़ा रिपोर्ट ‘प्लैटफॉर्म अर्थव्यवस्था में नौकरी का ताला खोलना: भारत में कोविड बाद की बहाली को प्रेरित करने वाले’ पर आधारित है. पूरी रिपोर्ट को आप यहां पढ़ सकते हैं. 

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