Author : Kabir Taneja

Published on Oct 14, 2022 Updated 0 Hours ago

यह देखा जाना अभी बाकी है कि क्या बड़े पैमाने पर विरोध और प्रदर्शन ईरान के राजनीतिक और वैचारिक क्षेत्र में कोई वास्तविक पुनर्रचना ला पाएगी.

‘ईरान में विरोध और राजनीति’

पिछले महीने ईरानी अधिकारियों की हिरासत में 22 वर्षीय महसा अमिनी की मौत  के बाद देश भर में व्यापक विरोध प्रदर्शन हुए  जिसका नेतृत्व महिलाओं ने किया. अति-रूढ़िवादी सरकार के अधिकार को चुनौती देने के लिए और विशेष रूप से इसकी नैतिक पुलिस जैसी संस्थाओं को चुनौती दी गई जो 1979 की ईरानी क्रांति के बाद से  रूढ़िवादी इस्लामी राज्य के थोपे गए कानून को लोगों को मानने के लिए मज़बूर  करती है.
राज्य के सख़्त नियंत्रण के बावज़ूद, ईरान में निश्चित रूप से विरोध प्रदर्शन नया नहीं है. तेहरान ने हाल के दिनों में 2009 में विरोध प्रदर्शन देखा, जिसे कई लोगों ने धोखाधड़ी वाले चुनाव के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कहा. 2017 में आर्थिक तनाव के ख़िलाफ़ और 2019 में ईंधन की क़ीमतों में बढ़ोतरी के ख़िलाफ़ ईरान में विरोध प्रदर्शन हुए. हालांकि यह तर्क दिया जा सकता है कि पहले की घटनाओं में से किसी भी एक घटना को लेकर सोशल मीडिया पर ना तो दिलचस्पी दिखी और न ही समर्थन जैसा कि आज महिलाओं के नेतृत्व में हो रहे हिज़ाब के ख़िलाफ़ प्रदर्शन को लेकर दिख रहा है.

राज्य के सख़्त नियंत्रण के बावज़ूद, ईरान में निश्चित रूप से विरोध प्रदर्शन नया नहीं है. तेहरान ने हाल के दिनों में 2009 में विरोध प्रदर्शन देखा, जिसे कई लोगों ने धोखाधड़ी वाले चुनाव के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कहा.

हालांकि, ये विरोध ईरान से जो हासिल करना चाहते हैं, वह पूरी तरह से एक अलग खेल है. लोकप्रिय समर्थन और मदद के बावज़ूद राजनीतिक परिवर्तन, राज्य संरचना के वैचारिक पुनर्गठन के साथ अंज़ाम देना बेहद कठिन है. हालांकि, पश्चिम एशियाई सन्दर्भ से अरब स्प्रिंग के पूरे क्षेत्र में फैलने के एक दशक बाद भी शायद यह एक प्रमुख उदाहरण बना हुआ है. जब मिस्र में तहरीर स्क्वायर से लेकर खाड़ी क्षेत्र में विरोध प्रदर्शनों तक, जो बदल गया वह यक़ीनन इस क्षेत्र के राजतंत्रों द्वारा भविष्य के जोख़िम को कम करने के लिए एक सबक था जबकि विरोध प्रदर्शनों के बाद भी राजनीतिक संरचनाएं ख़ुद बची रह गईं. मिस्र में, होस्नी मुबारक़ के लगभग 30 साल लंबे शासन को हटाने के कारण चुनाव हुए, जिसने मुस्लिम ब्रदरहुड के एक उम्मीदवार को सत्ता में ला दिया, जो क्षेत्रीय शक्तियों और संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए समान रूप से समस्या पैदा कर रहा था. ब्रदरहुड सरकार को 2013 में एक तख्तापलट के माध्यम से उखाड़ फेंका गया, जिसके बाद मिस्र के सेना प्रमुख अब्देल फत्ताह अल-सीसी को सत्ता में लाया गया था.

इस तरह के विरोध के लिए दूसरी चुनौती यह है कि भू-राजनीति, सामान्य रूप से वास्तविक दुनिया के फायदों के बदले में नैतिकता, सिद्धान्त और विचारों के साथ समझौता करने को तत्पर रहती है. बहुत सारी वैश्विक क्षमता और विशेष रूप से पश्चिमी देशों का भविष्य आज रूस-यूक्रेन युद्ध और यूरोपीय सीमाओं की सुरक्षा से जुड़ा हुआ है.

अरब स्प्रिंग का इतिहास

हालांकि, ईरान के साथ पश्चिमी देशों के संबंधों के तनाव पुराने हैं और यहां होने वाले विरोध प्रदर्शन अपने तौर पर स्वतंत्र होने के बावज़ूद, ईरान सरकार का दावा है कि यह अमेरिका और इज़राइल हैं जो इन विद्रोहों को उकसाने का काम करते हैं और इसका लक्ष्य ईरानी हितों के ख़िलाफ़ लोगों को भड़काना है. ईरान सरकार की यह व्याख्या अतीत में भी ऐसी उथल-पुथल को लेकर दी गई प्रतिक्रिया के अनुरूप है. ठीक उसी तरह जैसे अरब स्प्रिंग के दौरान, जब तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा ने ट्विटर जैसी यूएस-आधारित सोशल मीडिया कंपनियों को अपनी सेवाओं को ऑनलाइन रखने और किसी भी नियोजित रखरखाव को स्थगित करने के लिए कहा था. इस बार भी अमेरिका ने यह कोशिश की है कि प्रदर्शनकारियों तक इंटरनेट सेवा की पहुंच बाधित नहीं हो और इस दिशा में स्टारलिंक जैसी तकनीकों के ज़रिए प्रदर्शनकारियों को सूचना और इंटरनेट सेवा मुहैया की जा रही है.

ईरान के साथ पश्चिमी देशों के संबंधों के तनाव पुराने हैं और यहां होने वाले विरोध प्रदर्शन अपने तौर पर स्वतंत्र होने के बावज़ूद, ईरान सरकार का दावा है कि यह अमेरिका और इज़राइल हैं जो इन विद्रोहों को उकसाने का काम करते हैं और इसका लक्ष्य ईरानी हितों के ख़िलाफ़ लोगों को भड़काना है.

आज ईरान में किसी भी सामाजिक विरोध के लिए चुनौती अरब स्प्रिंग के दौरान सामने आने वाली चुनौती जैसी ही है. 2021 में ईरान के राष्ट्रपति के रूप में इब्राहिम रायसी की ताजपोशी ने ईरानी राजनीति के रूढ़िवादी वर्ग को सत्ता में वापस लाया, पूर्व राष्ट्रपति हसन रूहानी, जिन्हें ‘उदारवादी’ और ‘सुधारवादी’ के रूप में जाना जाता है,उन्होंने अपना अधिकांश कार्यकाल ईरान के संबंधों को सामान्य करने की कोशिश में बिताया. अमेरिका और पी5 + 1 समूह देशों के साथ परमाणु समझौते (जिसे जेसीपीओए के रूप में भी जाना जाता है) को लेकर बातचीत की, जिसपर रूढ़िवादी ताक़तों के विरोध के बावज़ूद 2015 में हस्ताक्षर किया गया. हालांकि यह एक ऐतिहासिक पल होता अगर 2018 में डोनाल्ड ट्रम्प की अध्यक्षता  में अमेरिका एकतरफा इस समझौते से नहीं हटा होता. लेकिन यह अब भविष्य के किसी भी अमेरिका-ईरान तालमेल के लिए एक बड़ा झटका है और एक सीमा तक, ईरानी मॉडरेट इकोसिस्टम की नाकामी भी जिसने विरोध प्रदर्शन के दौरान अपनी मौज़ूदगी को मज़बूती से जता दिया था. जेसीपीओए की विफलता को रूढ़िवादियों द्वारा एक और उदाहरण के रूप में देखा गया जहां अमेरिका ने साबित किया कि उस पर भरोसा नहीं किया जा सकता है और उसके साथ किसी तरह का समझौता करना व्यर्थ था, भले ही इस समझौते पर बातचीत अभी भी जारी है जिसकी सफलता बेहद संदिग्ध है.

इस दौरान अयातुल्ला खामेनेई के नेतृत्व में प्रमुख खलिफाई प्रतिष्ठान ने ख़ुद को और राज्य को पश्चिमी प्रतिबंधों से बचाने के लिए मज़बूत किया है  और इसमें रूस और चीन के साथ घनिष्ठ संबंध शामिल हैं, ऐसे दो देश जो बिना किसी शर्तों के आर्थिक सहायता और राजनीतिक साझेदारी की पेशकश करते हैं, ख़ासकर तब जबकि विश्व तेजी से वाशिंगटन डीसी और बीजिंग के बीच शक्ति प्रदर्शन के नए युग की ओर बढ़ रहा है. वर्तमान विरोध इन भू-राजनीतिक वास्तविकताओं के तहत हो रहे हैं और इन्हें लेकर सरकार कोई सुधार करने की स्थिति में नहीं है क्योंकि ऐसी घटनाओं को विदेशी हस्तक्षेप द्वारा उकसाए जाने और देश के अस्तित्व के ख़तरे के तौर पर देखा जाता है. इसके अलावा, अगर विरोध बड़े पैमाने पर एक शहर या सामाजिक स्तर पर हो रहा है और बड़े पैमाने पर लोग इससे नहीं जुड़ते हैं तो पहले की तरह, सरकार इन पर शिकंजा कस सकती है. हालांकि घरेलू भ्रष्टाचार और आर्थिक कुप्रबंधन ने भी जनता के असंतोष को भड़काने में अपनी भूमिका निभाई है. 2021 में मैरीलैंड विश्वविद्यालय और ईरान पर ध्यान केंद्रित करने वाली कनाडा स्थित एक शोध फर्म ईरानपोल द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, 63 प्रतिशत ईरानियों (1,000 के एक नमूने के आकार में से) ने आर्थिक संकट के लिए अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंधों से अधिक भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन को दोषी ठहराया था.

वर्तमान विरोध इन भू-राजनीतिक वास्तविकताओं के तहत हो रहे हैं और इन्हें लेकर सरकार कोई सुधार करने की स्थिति में नहीं है क्योंकि ऐसी घटनाओं को विदेशी हस्तक्षेप द्वारा उकसाए जाने और देश के अस्तित्व के ख़तरे के तौर पर देखा जाता है.

अयातुल्ला खामेनेई का उत्तराधिकारी

वर्तमान विरोधों ने वास्तव में, ईरान के भीतर और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बहुत अधिक समर्थन हासिल किया है. ईरान के अंदर स्कूलों और विश्वविद्यालयों दोनों में इसे लेकर विरोध जारी है. शायद यही कारण है कि अयातुल्ला खामेनेई ने पुलिस और सुरक्षा एजेंसियों की प्रशंसा करने के बावज़ूद, अभी तक एक व्यापक कठोर राष्ट्रव्यापी कार्रवाई की शुरुआत नहीं की है. ईरान की 80 मिलियन आबादी का साठ प्रतिशत 30 वर्ष से कम आयु का है. यदि युवा महिलाओं का एक बड़ा वर्ग अपने अधिकारों, विशेषाधिकारों और देश के साथ जुड़ी आकांक्षाओं में ख़ुद को नहीं शामिल पाता है, तो यहां ईरान के सत्ताधारी नेतृत्व के लिए जोख़िम है. सऊदी अरब, जो शायद अभी भी अपने अति-रूढ़िवादी व्यवस्था के लिए लोकप्रिय है, ने ज़रूर इसे महसूस किया और तेल के पैसे, और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के लिए ख़ुद के नैतिक पुलिस प्रतिष्ठान, जिसे मुटावा के रूप में जाना जाता है, को एक अधिक “उदारवादी” राजनीति को दिखाने के लिए रियाद से अलग एक अधिक स्थिर आर्थिक भविष्य की ओर आगे बढ़ाया है. इन विरोधों के बाद  तेहरान भी अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की नज़र में रियाद से इस अनुभव की नकल करने का जोख़िम उठा रहा है.

इन विरोधों से ईरानी राजनीति पर किस तरह का वास्तविक असर होगा देखा जाना अभी बाक़ी है. ईरान में राजनीतिक तौर पर किसी भी संभावित बदलाव को देखने का मतलब यह होगा कि भविष्य में 83 वर्षीय अयातुल्ला खामेनेई का उत्तराधिकारी कौन होता है, और क्या सत्ता के इस विशेष हस्तांतरण से देश में कोई मौलिक राजनीतिक और वैचारिक पुनर्रचना होगी या यह हमेशा की तरह ऐसा ही बना रहेगा.

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