Author : Mohua Mukherjee

Published on Nov 16, 2021 Updated 0 Hours ago

कार्बन उत्सर्जन कम करने के प्रयोगों के तौर पर भारत, दुनिया के लिए जलवायु परिवर्तन से निपटने की  व्यापक कोशिशों का नेतृत्व कर सकता है, जिसे पूरी विश्व का समर्थन हासिल हो.

नए भारत को आगे बढ़ाने वाला प्रस्ताव: भारत की ताक़तों का इस्तेमाल करना

ग्लासगो में जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए सदस्य देशों का सम्मेलन (COP26) भारत के लिए एक सुनहरा मौक़ा लेकर आया है. इस सम्मेलन में भारत अपनी साहसिक नई सोच दिखाने के साथ साथ जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में दुनिया की अगुवाई भी कर सकता है. भारत कार्बन उत्सर्जन कम करने के लिए एक दशक तक चलने वाला व्यापाक प्रयोग करने और इसके प्रभाव मापने का प्रस्ताव रख सकता है. इसके लिए वो दुनिया के सामने पर्याप्त अंतरराष्ट्रीय फंडिंग और तकनीकी सहयोग पाने की शर्त भी रख सकता है. ये ‘न्यू इंडिया को नई ऊंचाई देने वाला प्रस्ताव’ हो सकता है, जो जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए भारत सरकार द्वारा पेरिस समझौते के तहत राष्ट्रीय स्तर पर तय प्रतिबद्धताओं (NDCs) के तहत अपने ख़र्च पर चलाए जा रहे अभियानों के अलावा हो.

ये ‘न्यू इंडिया को नई ऊंचाई देने वाला प्रस्ताव’ हो सकता है, जो जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए भारत सरकार द्वारा पेरिस समझौते के तहत राष्ट्रीय स्तर पर तय प्रतिबद्धताओं (NDCs) के तहत अपने ख़र्च पर चलाए जा रहे अभियानों के अलावा हो.

कार्बन उत्सर्जन घटाने का ये प्रस्तावित प्रयोग, जो बाहरी फंडिंग पर आधारित हो, उसमें (i) मौजूदा क्लीन एनर्जी तकनीकों का ख़ास क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर में इस्तेमाल; (ii) ऐसी हरित तकनीकों के रिसर्च और विकास की साझेदारी जो अभी प्रायोगिक स्तर पर हैं; और, (iii) जानकारी साझा करने की वैश्विक सहयोग की पहल शामिल होगा. ये जानकारियां बड़े पैमाने पर ग्रीन तकनीक लागू करने की राह में आने वाली संस्थागत चुनौतियों और उनके निपटारे से जुड़ी होंगी. इस प्रयोग का तीसरा तत्व विकासशील देशों के लिए ख़ास तौर से उपयोगी होगा और उनके सीखने की समय सीमा को काफ़ी हद तक कम कर देगा.

भारत ही क्यों?

जलवायु परिवर्तन की चुनौती से निपटने के लिए भारत के पास कई मज़बूत दावे हैं. इनमें (i) भारत का विशाल आकार और जनसंख्या सबसे अहम है. अगर आबादी के एक बड़े हिस्से को स्वच्छ ऊर्जा अपनाने में मदद की जाती है, तो इससे उत्सर्जन में काफ़ी कमी दर्ज की जा सकती है. इसका असर पूरी दुनिया पर पड़ेगा; (ii) भारत में कम लागत में इनोवेशन की लंबी परंपरा रही है. भारत के पास बिना ताम-झाम के उत्पादन की भी ठोस व्यवस्था है. ये बातें भारत को एक रिसर्च ऐंड डेवेलपमेंट का ठोस भागीदार बनाती हैं; (iii) उत्सर्जन कम करने के प्रभाव का अध्ययन करने के लिए ज़रूरी आंकड़े जुटाने और उनके विश्लेषण के लिए भारत के पास प्रशिक्षित लोग हैं; (iv) भारत की आबादी के एक बड़े तबक़े ने आधुनिक, पैसे बचाने वाली तकनीक अपनाने की इच्छाशक्ति का प्रदर्शन किया है; और (v) ऊर्जा की खपत के दोनों मोर्चों पर भारत में बड़ी आबादी है; यानी भारत में ऐसे लोग भी हैं जिनकी प्रति व्यक्ति ऊर्जा की खपत का शायद पता भी न चले, जबकि ऊर्जा के संसाधनों तक उनकी पहुंच है. भारत में ऐसे भी लोग हैं, जिनकी ऊर्जा की वार्षिक खपत अमेरिका या कनाडा से भी ज़्यादा है और जो दुनिया को हरित ऊर्जा अपनाने में मददगार हो सकते हैं. आर्थिक विकास के पूर्वानुमान ये इशारा करते है कि ठंडा करने, इमारतों, परिवहन और खाना पकाने के लिए ऊर्जा ऐसी बड़ी मांग है जिसकी आपूर्ति अभी नहीं हो रही है और इस मांग को जीवाश्म ईंधन से पैदा हुई बिजली के बजाय स्वच्छ ईंधन से पूरा किया जा सकता है. इस मामले में भारत को सबसे आगे रहकर स्वच्छ ईंधन के ऐसे विकल्प तलाशने की ज़रूरत है, जो ग्राहकों को मंज़ूर हों.

आर्थिक विकास के पूर्वानुमान ये इशारा करते है कि ठंडा करने, इमारतों, परिवहन और खाना पकाने के लिए ऊर्जा ऐसी बड़ी मांग है जिसकी आपूर्ति अभी नहीं हो रही है और इस मांग को जीवाश्म ईंधन से पैदा हुई बिजली के बजाय स्वच्छ ईंधन से पूरा किया जा सकता है. इस मामले में भारत को सबसे आगे रहकर स्वच्छ ईंधन के ऐसे विकल्प तलाशने की ज़रूरत है, जो ग्राहकों को मंज़ूर हों.

नए भारत की छवि चमकाने वाला प्रस्ताव: एक पूर्वावलोकन

कार्बन उत्सर्जन कम करने के प्रयोग के तहत भारत, पूरी दुनिया के समर्थन से जलवायु परिवर्तन की चुनौती से निपटने के लिए तीन किस्तों वाले प्रयोग की अगुवाई का प्रस्ताव दे सकता है.

मौजूदा क्लीन एनर्जी तकनीकों का इस्तेमाल बढ़ाना: भारत अगले पांच साल में क्लीन एनर्जी इस्तेमाल करने वालों की तादाद कई गुना बढ़ा सकता है. ये काम अभी उपलब्ध और कारोबारी रूप से फ़ायदेमंद तकनीकों को अपना कर हो सकता है. इसके लिए, हरित ऊर्जा तकनीकों को बाज़ार के उत्पाद मानकर उन्हें इस्तेमाल करने वालों द्वारा ख़ुद ब ख़ुद अपनाए जाने के बजाय, सरकार बाज़ार की मौजूदा व्यवस्थाओं को परे हटाकर, सरकार ये तकनीक युद्ध स्तर पर ख़रीद सकती है. इस मक़सद को हासिल करने के लिए मौजूदा निर्माताओं और विक्रेताओं को हार्डवेयर की आपूर्ति के लिए भुगतान किया जाना चाहिए. लेकिन, ये भुगतान ग्राहक न करें.

नई विकसित हो रही तकनीकों का तेज़ विकास और परीक्षण: भारत के पास हुनरमंद कामकाजी लोगों की बड़ी संख्या मौजूद है. ये लोग ज़मीनी परीक्षण और आंकड़ों के संग्रह की रीढ़ बन सकते हैं. इसके अलावा इन कुशल कामगारों से सस्ती लागत और आसानी से बनाई जा सकने वाली ऐसी तकनीकों का उत्पादन बड़े पैमाने पर कराया जा सकता है, जो अभी कारोबारी स्तर पर उपलब्ध नहीं हैं (जैसे कि सीदे हवा कैप्चर करना, लंबी अवधि के लिए ऊर्जा का भंडारण, ग्रीन हाइड्रोजन का भारी उद्योग में इस्तेमाल, नई पीढ़ी के परमाणु रिएक्टर, कम कार्बन उत्सर्जन वाला जल, वायु और भारी वाहनों का परिवहन वग़ैरह).

अन्य विकासशील देशों में स्वच्छ ईंधन के टिकाऊ विकल्पों का इस्तेमाल बढ़ाने में मदद करना: भारत उन विकासशील देशों को सस्ते सॉफ्टवेयर डेवेलपर, ऊर्जा उपकरणों की दूर बैठकर निगरानी करने और क्लाउड पर आधारित डेटा स्टोरेज और डेटा एनालिसिस की क्षमता वाले हुनरमंद लोग उपलब्ध करा सकता है, जो COP26 के समर्थन से स्वच्छ ईंधन वाली तकनीकें अपनाने की पहल का हिस्सा बनना चाहते हैं. भारत दूरस्थ निगरानी, जानकारी के लेन-देन, किसी उपकरण की कुशलता का बेंचमार्क तय करने और तकनीकें लागू करने में आ रही मुश्किलें दूर करने (जैसे कि रिमोट मॉनिटरिंग, डेटा एनालिसिस और जानकारी जुटाने की अन्य तकनीक अपनाने में बिजली वितरण कंपनियों या DISCOMs की मदद करना. ये तकनीकें विकासशील देश हासिल तो करना चाहते हैं, मगर उन्हें उपलब्ध नहीं हैं) की अगुवाई कर सकता है. इसके अलावा, भारत में 600-700 प्रशासनिक ज़िले हैं. जो बिल्कुल ही अलग अलग भौगोलिक इलाक़ों में हैं. जहां आबादी का घनत्व, आमदनी और रोज़ी-रोज़गार के तरीक़े, तापमान और जलवायु बिल्कुल अलग अलग है. इनमें से बहुत से ज़िले ऐसे हैं, जो अन्य विकासशील देशों की क़ुदरती आब-ओ-हवा और आबादी के हालात से मेल खाते हैं. भारत इस प्रयोग में स्वैच्छिक रूप से शामिल होने वाले देशों को इन प्रयोगों का हिस्सा बनने का प्रस्ताव दे सकता है. आख़िर में तकनीकें अपनाने की चुनौतियां और इनके बेंचमार्क तय करने से जुड़ी जानकारियां नियमित रूप से साझा करने से सभी भागीदार देशों को जल्दी सीखने में मदद मिलेगी और वो विश्व स्तर पर स्वच्छ ईंधन को तेज़ी से अपना सकेंगे.

भारत COP26 में जो प्रस्ताव रखे, उनका व्यवहारिक, उपयोग लायक़ और बड़े पैमाने पर इस्तेमाल हो सके, ये ज़रूरी है, जिससे तय लक्ष्य हासिल किए जा सकें. इसलिए स्वच्छ ईंधन पर आधारित पहले चरण में इन सभी संभावनाओं का परीक्षण किया जाना चाहिए

स्वच्छ ईंधन से भी आगे

जलवायु परिवर्तन से निपटने की तकनीकें अपनाने के इस वैश्विक प्रयोग के ज़रिए विकसित और विकासशील देशों का अंतर पाटने के अहम सबक़ सीखे जा सकते हैं. इससे ठोस मुद्दों पर संवाद बढ़ाकर फ़ैसले लेने की प्रक्रिया को भी रफ़्तार दिया जा सकता है. भारत उन गिने चुने देशों में से एक है, जिनका आकार, विविधता और जटिलता ऐसी है, जो ऐसे प्रयोग करने के लिए बिल्कुल सही विकल्प उपलब्ध कराते हैं. निश्चित रूप से कार्बन उत्सर्जन कम करने के प्रयास केवल स्वच्छ ईंधन अपनाने तक सीमित नहीं होने चाहिए. स्वच्छ ईंधन अपनाने को इस प्रयोग का ‘पहला चरण’ ही माना जाना चाहिए. क्योंकि, भारत COP26 में जो प्रस्ताव रखे, उनका व्यवहारिक, उपयोग लायक़ और बड़े पैमाने पर इस्तेमाल हो सके, ये ज़रूरी है, जिससे तय लक्ष्य हासिल किए जा सकें. इसलिए स्वच्छ ईंधन पर आधारित पहले चरण में इन सभी संभावनाओं का परीक्षण किया जाना चाहिए, जिससे ये पता चल सके कि इस मॉडल में लंबे समय तक अंतरराष्ट्रीय फंडिंग हासिल कर पाने की क्षमता है या नहीं.

पहले चरण के आधार पर, भारत के ‘रफ़्तार बढ़ाने वाले प्रस्ताव’ को जलवायु में निवेश के अन्य ‘अहम और ग़ैर ऊर्जा क्षेत्रों पर भी लागू किया जा सकता है’. इनमें जैव विविधता के संरक्षण और मिट्टी पर आधारित कार्बन को अलग करने; एक ही फ़सल लगातार बोने से बचना और खेती व वन लगाने में ज़िम्मेदारी भरा तरीक़ा अपनाना; ज़मीन के बेहतर इस्तेमाल, जंगल लगाने और, ज़मीन का इस्तेमाल बदलने के लिए प्रोत्साहन देना (LULUCF); अगली पीढ़ी वाली खेती की सब्सिडी और इकोसिस्टम की सेवा करने के लिए भुगतान (जिसका प्रयोग अभी ब्रिटेन में चल रहा है); कोयले का खनन करने वाले समुदायों को न्यायोचित तरीक़े से दूसरे काम की तरफ़ ले जाना; और समुद्र व मछलियों का संरक्षण. इनमें से हर एक क़दम के लिए कई साल पहले से तैयारी करनी होगी, जिससे मौजूदा निहित स्वार्थों को समझकर उनसे निपटा जा सके. कारोबार के नए मॉडल और नए ठेके के समझौते लागू किए जा सकें, और नए कारोबारी समझौते लागू करने के लिए लोगों को कौशल विकास के नए प्रशिक्षण दिए जाएं. अगर अंतराराष्ट्रीय साझीदार भारत के इस प्रस्ताव को आर्थिक मदद दे देते हैं, तो इसमें जलवायु परिवर्तन से निपटने के कुछ ग़ैर-ऊर्जा क्षेत्र के उपायों को वैश्विक स्तर पर अपनाने की बुनियाद तैयार की जा सकती है. पहले चरण में केवल नए अनुभव और सबक़ सीखने का वादा किया जाए और मापे जा सकने वाले नतीजों पर ज़ोर न दिया जाए. इन्हें बाद के चरणों में लागू किया जा सकता है.

न्यू इंडिया एक्सेलेरेटर प्रस्ताव को लागू करना

  1. इच्छुक सरकारी बिजली वितरण कंपनियों के साथ सहयोग करके देश भर में 8 करोड़ ऐसे मौजूदा बिजली कनेक्शन की पहचान की जा सकती है जिनका सालाना औसत बिजली का ख़र्च 2019 में 2000 किलोवाट रहा हो. फिर इन सभी कनेक्शन वालों को अगले पांच साल में बिजली और परिवहन के लिए पूरी तरह स्वच्छ ईंधन उपयोग करने वाला बनाया जाए. इस पहल से कम से कम 40 करोड़ लोगों को पहली बार स्वच्छ ईंधन का उपयोगकर्ता बनाया जा सकता है, क्योंकि बिजली के हर कनेक्शन से आम तौर पर पांच (एक परिवार), या दस लोग (MSME) जुड़े होते हैं. अगर ये बिजली कनेक्शन किसी स्कूल, क्लिनिक या जल-शोधन केंद्र का हो, तो इसका उपयोग करने वालों की संख्या और भी अधिक हो सकती है.
  1. प्रयोग में ये भागीदारी स्वैच्छिक होगी और इसमें पहली बार सोलर पैनल, बैटरी, इलेक्ट्रिक गाड़ियां, इलेक्ट्रिक कुकर, कम बिजली खाने वाले उपकरणों और इंटरनेट ऑफ़ थिंग्स (IoT) के माध्यम से ये सेवा मांगने वालों को ही शामिल किया जाएगा. [1] इनमें से ज़्यादातर लोग, बिजली वितरण कंपनियों के ग्राहक हो सकते हैं, जिनका न्यूनतम बिजली कनेक्शन 4 किलोवाट का हो.
  1. स्वच्छ ईंधन वाले तकनीकी संसाधन जुटाने के बाद स्वच्छ ईंधन की सभी सेवाएं इस्तेमाल करनेवालों को अच्छे ऑपरेटर के ज़रिए ‘सेवा के तौर पर’ दी जाएंगी. इसलिए इन ख़ास ग्राहकों का स्वच्छ ईंधन के संसाधनों पर मालिकाना हक़ नहीं होगा, बल्कि उन्हें ये संसाधन सेवा के रूप में दिए जाएंगे. अगर ये लोग बिजली के इस्तेमाल में कमी दिखाते हैं, तो उन्हें बिल पर डिस्काउंट पाने का भी अधिकार होगा. ग्राहकों को स्वच्छ ईंधन के उपकरण ख़रीदने या लगाने का कोई पैसा नहीं देना होगा. ये ग्राहक सिर्फ़ बिजली कंपनियों को अपना हर महीने का बिल अदा करेंगे और उन्हें 2019 में उसी महीने के बिल की तुलना में कुछ डिस्काउंट (जैसे कि 25 प्रतिशत) दिया जा सकता है. इससे ग्राहकों को इस योजना से जुड़ने के लिए और भी प्रोत्साहन मिलेगा और वो 2030 तक अपनी बिजली के इस्तेमाल के आंकड़े इकट्ठे करने के लिए भी ख़ुशी ख़ुशी राज़ी हो जाएंगे. इसके बदले में पूरे प्रयोग की अवधि में उन्हें वित्तीय छूट मिलेगी.
  1. रिसर्च और विकास से जुड़े दूसरे चरण के लिए भारत को ऐसी साझेदारियों, कारोबारी संगठनों और घरेलू समुदायों की पहचान करनी होगी, जो अंतरराष्ट्रीय तजुर्बे की प्रयोगशाला बनने को राज़ी हों. इससे जुड़े आंकड़े जुटाने और विश्लेषण के केंद्र बनाने को तैयार हों या फिर जलवायु परिवर्तन रोकने के लिए अभी विकसित की जा रही तकनीकों के निर्माण के लिए उत्साहित हों.
  2. तीसरे चरण में इन तकनीकों को अपनाने, उन्हें बड़े पैमाने पर लागू करने और आंकड़े जुटाने में आने वाली मुश्किलों की पहचान जैसे संस्थागत मुद्दों पर ज़ोर दिया जाएगा. क्योंकि जलवायु परिवर्तन से जुड़े निवेश में ये समस्याएं आएंगी ही. आंकड़े जुटाने और विश्लेषण जैसी गतिविधियों के लिए विशेष थिंक टैंक और सॉफ्टवेयर कंसल्टिंग कंपनियों की ज़रूरत होगी, जिससे कि वो भारत के अलग अलग इलाक़ों में हरित तकनीक को अपनाने की कोशिशों का मूल्यांकन कर सकें. इसके लिए नई तकनीक की आपूर्ति करने वालों की पहचान बदलाव के आर्थिक दूतों के रूप में कर सकें और नई तकनीक के आपूर्तिकर्ताओं के साथ मिलकर कारोबार का नया मॉडल विकसित करने के साथ सीखने का ये तजुर्बा पूरी दुनिया के लिए होगा. इससे भारत के लिए भी ज्ञान हासिल करने के लिहाज़ से फ़ायदेमंद होगा, और इससे विकासशील देशों के समूह का भी भला होगा, और साथ साथ फंड देने वाले साझीदारों के लिए भी ये फ़ायदे का सौदा होगा. इससे हासिल हुए सबक़ कम और मध्यम आमदनी वाले देशों को जलवायु परिवर्तन से जुड़े क़दमों का अनुभव देंगे, जिससे वो कार्बन उत्सर्जन कम करने के प्रयासों की रेस में तेज़ गति से भाग ले सकेंगे

न्यू इंडिया एक्सेलेरेटर प्रपोज़ल के लिए बड़े पैमाने पर और दूरगामी अवधि के लिए अंतरराष्ट्रीय पूंजी निवेश के वादे की ज़रूरत होगी. इसके अलावा प्रयोग की सफलता के लिए विश्व स्तरीय पेशेवर सहयोग भी चाहिए होगा, जिसे भारत में स्थित प्रोजेक्ट इंप्लीमेंटेशन यूनिट’ लागू करेगी. टेबल 1 में इस प्रस्ताव को धीरे धीरे आगे बढ़ाने को संक्षेप में बताया गया है. इसे भारत द्वारा अभी की जा रही गतिविधियों से जोड़ा गया है. जैसा कि साफ़ है कि इस प्रस्ताव की सफलता इसी बात पर निर्भर होगी कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय इसके लिए एक दशक तक वित्तीय निवेश और सहयोग करने का वादा करे.

सारणी 1: न्यू इंडिया एक्सेलरेटर प्रस्ताव की चरणबद्ध प्रगति (2021–30)

  2021: बुनियादी केस जिसमें सिर्फ़ भारत सरकार निवेश करे 2030: केवल अंतरराष्ट्रीय फंडिंग वाला प्रस्ताव (मध्यमान केस) 2030: अंतरराष्ट्रीय साझीदारों द्वारा पूंजी निवेश, तकनीकी हस्तांतरण और क्षमता के विकास में सहयोग (बड़े पैमाने पर भागीदारी)
बिजली उपयोग के स्तर पर बिजली उत्पादन को बढ़ाना (लक्ष्य 450 गीगावाट) ग्रिड बढ़ाने वाली तकनीकों (GETs) से ट्रांमिशन की मौजूदा लाइनों का बेहतर इस्तेमाल करने के साथ साथ उनके विस्तार की योजना बनाना; पावर इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटोमेशन और ऊर्जा प्रबंधन के सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल बढ़ाना, जिससे बिजली वितरण कंपनियों को स्वच्छ ईंधन का अधिकतम इस्तेमाल करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके; नवीनीकरण योग्य ऊर्जा के ख़रीद की बाध्यता (RPOs) बढ़ाना. ग्रिड एनहैंसमेंट तकनीकों को प्रयोग में शामिल करना; लंबी अवधि के लिए ऊर्जा भंडारण की व्यवस्था (LDES); बिजली वितरण कंपनियों का पूरी तरह आधुनिकीककरण; इंटरनेट ऑफ़ थिंग्स (IoT) की मदद से 8 करोड़ घरों को पूरी तरह स्वच्छ ईंधन का इस्तेमाल करने को प्रोत्साहित करना; मांग पर सक्रिय प्रतिक्रिया की व्यवस्था करना
परिवहन FAME 2 के तहत 2 वाट और 3 वाट की इलेक्ट्रिक गाड़ियों को सब्सिडी देना; इलेक्ट्रिक बसों का इस्तेमाल दिखाना; इलेक्ट्रिक गाडियां चार्ज करने के नेटवर्क की स्थापना करना इलेक्ट्रिक गाड़ियों के बाज़ार का विस्तार, 8 करोड़ घरों को स्वच्छ ईंधन वाले परिवहन को अपनाने की दिशा में आगे बढ़ाना; इंटरनल कंबशन इंजन (पेट्रोल-डीज़ल से चलने वाली गाड़ियों को रिटायर करना. ईंधन के केंद्रों और गैस सिलेंडर के वितरण को 2 वाट और 3 वाट की बैटरी से बदलने की व्यवस्था करना; इलेक्ट्रिक गाड़ियां चार्ज करने का नेटवर्क स्थापित हो जाए; इलेक्ट्रिक गाड़ियां अपनाने की रफ़्तार अच्छी हो adoption rate of EVs.
खेती सोलर पंप को बढ़ावा देना और घरेलू व कृषि क्षेत्र के फीडर को अलग करना. सोलर पंप ख़रीदने की सब्सिडी पहुंचाने की व्यवस्था बेहतर बनाना; पानी और बिजली के संबंध की निगरानी करना; कृषि की गतिविधियों से बिजली बनाने के प्रयोग करना. घरेलू जेनरेटर और आवाजाही के लिए डीज़ल का इस्तेमाल बिल्कुल कम; ज़मीन के बेहतर इस्तेमाल, सिर्फ़ एक तरह की खेती से बचने (LULUCF) के लक्ष्य हासिल करने के लिए एग्रोफ़ॉरेस्ट्री, एग्रीवोल्टेइक तकनीक की जानकारी का इस्तेमाल और दूसरे चरण की तैयारी शुरू करना.
इमारतें हरित मानकों की परिभाषा तय करने का शुरुआती दौर; टिकाऊ हाउसिंग की वकालत करना और इसे लागू करने की ज़िम्मेदारी नगर निगम और स्थानीय निकायों (न कि केंद्र सरकार) को देना; अधिक संसाधनों वाले क्षेत्रों में स्थानीय स्तर पर भागीदारी को व्यापक बनाना.

सबके लिए मकान योजना में मौजूदा हरित मानकों को

बेहतर ढंग से लागू करना; इंडिया कूलिंग एक्शन प्लान में सुधार और उसे अच्छे से लागू करना; सरकारी इमारतों में नई तकनीक के इस्तेमाल से ऊर्जा की खपत कम करना.

सबके लिए मकान योजना में बड़े पैमाने पर टिकाऊ तकनीक का इस्तेमाल बढ़ाना: बिना मालिकाना हक़ वाली इमारतों में टिकाऊ ऊर्जा संसाधनों के इस्तेमाल का बिज़नेस मॉडल विकसित करना; सर्कुलर इकॉनमी में सभी साझीदारों की पूरी भादीदारी सुनिश्चित करना +कार्बन न्यूट्रल इमारतों को आम बनाना; ऊर्जा की ज़्यादा खपत करने वाली तकनीकों के लिए 60 साल का लॉक इन समय ख़त्म करना.
न्यायोचित बदलाव अभी शुरू नहीं किया गया है. सलाह-मशविरा शुरू करना: बेरोज़गार खनिकों के लिए टिकाऊ मकान की व्यवस्था करना; खनन से जुड़े समुदायों को स्वच्छ ईंधन उपलब्ध कराना. कोयले के खनिकों से सलाह लेकर योजना तैयार करना; ईंधन के केंद्रों को पूरी तरह हरित केंद्रों में बदल डालना; चुनी गई आबादी के लिए हरित इमारतों की व्यवस्था करना.

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[1] Demand response is a crucial pillar of energy-efficiency efforts and an important climate-action tool. In this case, IoT refers to a web-based communication link of the electricity supplier directly with individual household appliances. At times of peak demand, when the grid is congested and stressed, certain large appliances may be instructed in advance by their owners to reset themselves to consume less energy when instructions are received from the utility (e.g. raising the temperature on an air-conditioner, turning off a hot water heater, or pausing the load in a dishwasher/washing machine). At other times, the grid can benefit from increased demand, since electricity supply will be more than the demand at, for example, 2 a.m. Demand response through the IoT will ensure that large appliances are intentionally run at these off-peak hours, when electricity rates are lower.

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