भारत में शहरी निकायों की आमदनी का एक बड़ा ज़रिया हैं, संपत्ति कर. लेकिन, इस साल के पहले पांच महीनों में प्रॉपर्टी टैक्स की बेहद मामूली वसूली ने शहरों के प्रबंधकों को मुश्किल में डाल दिया है. कोविड-19 की महामारी के दौरान शहरों को अभूतपूर्व स्तर पर स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध करानी पड़ी थीं. इससे शहरी निकायों पर भारी आर्थिक बोझ भी पड़ा. और इसी कारण से संपत्ति कर की वसूली को तेज़ करने की ज़रूरत महसूस की जा रही है. नगर निगमों की आमदनी के तमाम स्रोतों में से प्रॉपर्टी टैक्स, सबसे बड़ा ज़रिया है. वित्तीय वर्ष 2017-18 के दौरान भारत के स्थानीय निकायों की 60 प्रतिशत आमदनी इसी टैक्स से हुई थी.
भारत की कुल GDP में संपत्ति कर का हिस्सा 0.15 फ़ीसद है. ये OECD के सदस्य देशों के संपत्ति कर से अनुमानित राजस्व यानी GDP के लगभग एक प्रतिशत से काफ़ी कम है, जो अचल संपत्तियों से वसूला जाता है. अब जबकि, ये वित्तीय वर्ष लगभग आधा बीत चुका है, तो शहरी निकायों के अपने कुल संपत्ति कर की वसूली बचे हुए महीनों में कर पाना नामुमकिन सा लग रहा है. इस समय तो देश के तमाम शहर, टैक्स वसूली की ख़राब स्थिति से जूझ रहे हैं. ऐसे में कोविड-19 की महामारी के बढ़ते जाने के कारण, टैक्स वसूली में सुधार की उम्मीदें भी ख़त्म सी हो गई हैं. 14 सितंबर 2020 को बैंगलोर के नगर निगम ने घोषणा की थी कि उसने 1916 करोड़ रुपए संपत्ति कर के तौर पर वसूले हैं. जबकि, वर्ष 2019 में बैंगलोर नगर निगम ने दो हज़ार करोड़ रुपए से अधिक प्रॉपर्टी टैक्स वसूल किया था.
अहमदाबाद नगर निगम के साथ भी यही देखने को मिला है. अहमदाबाद नगर निगम ने अगस्त 2019 में जहां 602 करोड़ रुपए का प्रॉपर्टी टैक्स वसूल किया था. वहीं, अप्रैस से 28 अगस्त 2020 के बीच अहमदाबाद निगम ने केवल 505 करोड़ रुपए संपत्ति कर वसूली की. और ऐसा तब हुआ, जब अहमदाबाद नगर निगम ने पहले टैक्स जमा करने वालों को टैक्स में दस परसेंट की छूट देने की योजना 31 अगस्त तक बढ़ा दी थी. वहीं, मुंबई नगर निगम तो, इस वित्तीय वर्ष में कोई संपत्ति कर वसूल ही नहीं कर पाया है. क्योंकि अभी तक मुंबई नगर निगम ये फ़ैसला नहीं कर पाया है कि 500 वर्ग फुट तक की संपत्तियों को प्रॉपर्टी टैक्स से छूट देनी है या नहीं. मुंबई नगर निगम की कुल आमदनी में संपत्ति कर का हिस्सा लगभग 24 प्रतिशत है. ऐसे में नगर निगम, अगर पांच सौ वर्ग फुट तक की संपत्तियों को संपत्ति कर से छूट देता है, तो उसे लगभग 300 करोड़ रुपए का झटका लगेगा. ये फ़ैसला अभी भी अधर में लटका है. नतीजा ये कि मुंबई में इस वित्तीय वर्ष में संपत्ति कर वसूला ही नहीं जा सका है.
शहरी निकायों की आमदनी बढ़ाने के लिए ये उपाय किए जाने ज़रूरी हैं. लेकिन, हमें संपत्ति कर की मूल प्रकृति को समझना होगा. तभी हम ये अंदाज़ा लगा सकेंगे कि आख़िर क्यों लोग संपत्ति कर जमा नहीं करते या इसकी वसूली बेहद कम होती है.
हालात की गंभीरता को देखते हुए आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय (MOHUA) ने अगस्त 2020 में राज्य सरकारों की एक बैठक बुलाने का प्रस्ताव रखा था. इस बैठक में शहरी निकायों में सुधारों और उनके लिए वित्त की नई व्यवस्था पर पर चर्चा की जानी थी. 15वें वित्त आयोग की सिफ़ारिशों का हवाला देते हुए, आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय द्वारा बुलाई गई इस मीटिंग में प्रॉपर्टी टैक्स बढ़ाने, उनके बारे में सूचना इकट्ठा करने, बार बार संपत्तियों की टैक्स देनदारी का मूल्यांकन करने, रियायतों और छूट में कटौती करने, बिलिंग की प्रक्रिया को सुगम बनाने, भुगतान की व्यवस्था को सरल बनाने और संपत्ति कर वसूली को सख़्त बनाने के प्रस्तावों पर चर्चा की गई.
हालांकि, शहरी निकायों की आमदनी बढ़ाने के लिए ये उपाय किए जाने ज़रूरी हैं. लेकिन, हमें संपत्ति कर की मूल प्रकृति को समझना होगा. तभी हम ये अंदाज़ा लगा सकेंगे कि आख़िर क्यों लोग संपत्ति कर जमा नहीं करते या इसकी वसूली बेहद कम होती है. प्रॉपर्टी टैक्स, किसी भी संपत्ति से होने वाली संभावित आमदनी के आधार पर लगाया जाता है. इसका आधार किसी भी संपत्ति से वर्तमान में हो रही आमदनी को नहीं बनाया जाता. संपत्ति कर के निर्धारण के लिए तमाम शहरी निकाय अलग अलग फ़ॉर्मूला अपनाते हैं. चूंकि, प्रॉपर्टी टैक्स को साल में एक या दो बार भुगतान किया जाता है, तो इसकी मात्रा भी अधिक हो जाती है. ऐसे में अगर किसी ने अपने मकान या इमारत को किराए पर नहीं दे रखा है, तो उसके ऊपर ये टैक्स बोझ ही बन जाता है.
खामी है. ज़मीन और संपत्ति के रिकॉर्ड विवादित हैं. लोग अवैध निर्माण कर लेते हैं. बाज़ार असंगठित है. भारत का संविधान, सरकारी संपत्तियों को प्रॉपर्टी टैक्स अदा करने से छूट देता है. इसके अलावा अलग अलग शहरों में इमारतों, मकानों और अन्य अचल संपत्तियों पर टैक्स लगाने और उसके मालिकाना हक़ को लेकर अलग अलग नियम हैं.
वहीं, संपत्ति कर की वसूली में कमी की समस्या की बड़ी वजह ये है कि शहरी निकायों के प्रशासन में खामी है. ज़मीन और संपत्ति के रिकॉर्ड विवादित हैं. लोग अवैध निर्माण कर लेते हैं. बाज़ार असंगठित है. भारत का संविधान, सरकारी संपत्तियों को प्रॉपर्टी टैक्स अदा करने से छूट देता है. इसके अलावा अलग अलग शहरों में इमारतों, मकानों और अन्य अचल संपत्तियों पर टैक्स लगाने और उसके मालिकाना हक़ को लेकर अलग अलग नियम हैं. केवल बैंगलोर नगर निगम ही इकलौता शहरी निकाय है, जो केंद्र सरकार की इमारतों से वास्तविक संपत्ति कर का 25 फ़ीसद प्रॉपर्टी टैक्स के तौर पर वसूलता है.
अगर हम शहरी निकायों की संपत्ति कर व्यवस्था को दुरुस्त करने को लेकर वाक़ई गंभीर हैं. तो इसके लिए हमें बहुआयामी रणनीति पर काम करना होगा. पहली बात तो इसकी रूप-रेखा ही तय करने की है. इसकी शुरुआत टैक्स की रजिस्ट्री में दर्ज संपत्तियों की नए सिरे से पड़ताल और शिनाख़्त करने की होगी. फिर इन संपत्तियों को अलग अलग दर्जे में बांटा जाना चाहिए. सरकारी इमारतों को टैक्स से छूट नहीं दी जानी चाहिए. हां, अगर केंद्र और राज्यों की सरकारें इस नुक़सान के एवज़ में शहरी निकायों को मदद देते हैं, तो बात अलग हो सकती है. प्रॉपर्टी टैक्स के दायरे में आने वाली संपत्तियों की संख्य़ा तभी बढ़ाई जा सकती है जब इमारतों के मालिकाना हक़ और उन्हें किराए पर चढ़ाने और अवैध निर्माण को संस्थागत तरीक़े से निर्धारित किया जाए. इस काम के लिए आधुनिक तकनीक जैसे कि आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस और ब्लॉकचेन का इस्तेमाल हो सकता है.
संपत्ति कर का दूसरा पहलू होगा इसका मूल्यांकन और निर्धारण. संपत्तियों का मूल्यांकन और नए सिरे से टैक्स निर्धारण सबसे चुनौती भरा क़दम है. पंद्रहवें वित्त आयोग ने सुझाव दिया था कि पूरे देश में यूनिट एरिया वैल्यू (UAV) या पूंजी के मूल्य से संपत्ति कर निर्धारण को मानक के तौर पर इस्तेमाल किया जाना चाहिए. बैंगलोर और मुंबई के नगर निगम पहले ही इसी तरीक़े को लागू कर चुके हैं. इसी तरह से, संपत्तियों का नियमित रूप से मूल्यांकन करना भी आवश्यक है. क्योंकि इसके ज़रिए ही संपत्तियों के बढ़ते दामों और स्व-मूल्यांकन की व्यवस्था बनाई जा सकती है. इस क़दम से संपत्ति कर निर्धारण और वसूली में आने वाली प्रशासनिक लागत भी कम की जा सकेगी.
संपत्ति कर की वसूली का सीधा असर किसी भी शहर के निगम के काम-काज के तौर पर ज़ाहिर होता है. बहुत से राज्य, जहां संपत्ति कर की वसूली ठीक से नहीं होती, वहां देखा गया है कि नगर निगम के प्रशासनों के पास न तो पर्याप्त पैसा होता है और न ही प्रशिक्षित पेशेवर लोग, जो संपत्ति का उचित मूल्यांकन कर सकें. जिसके बाद उन संपत्तियों से वाजिब टैक्स वसूली की जा सके. विवाद होने पर अपील को चुनौती दे सकें. और सिस्टम को बेहतर बना सकें. अगर हम प्रॉपर्टी टैक्स वसूली को बेहतर बनाना चाहते हैं, तो अलग अलग डेटाबेस में मौजूद आंकड़ों को इकट्ठा करना होगा. GIS आधारित ट्रैकिंग सिस्टम स्थापित करना होगा, जो संपत्ति कर की वसूली और इसमें आने वाली ख़ामियों पर नज़र रख सके.
संपत्ति कर की वसूली का सीधा असर किसी भी शहर के निगम के काम-काज के तौर पर ज़ाहिर होता है. बहुत से राज्य, जहां संपत्ति कर की वसूली ठीक से नहीं होती, वहां देखा गया है कि नगर निगम के प्रशासनों के पास न तो पर्याप्त पैसा होता है और न ही प्रशिक्षित पेशेवर लोग, जो संपत्ति का उचित मूल्यांकन कर सकें.
सुधारों को लागू करने के लिए ज़रूरत इस बात की है कि सभी राज्यों की सरकारों को मिलकर प्रस्तावित प्रॉपर्टी टैक्स बोर्ड की स्थापना के कार्य को युद्ध स्तर पर अंजाम दें. इसके अलावा, टैक्स अदा करने वालों और वसूली करने वालों को उनकी लापरवाही के लिए दंडित करने की मज़बूत व्यवस्था का भी निर्माण करना होगा. प्रस्तावित प्रॉपर्टी टैक्स बोर्ड की परिकल्पना को 13वें वित्त आयोग की रिपोर्ट के दौर से ही आगे बढ़ाया जा रहा है. इसका एक हल्का स्वरूप हमें तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र में देखने को मिलता है. संपत्ति कर परिषद एक सलाहकारी संस्था होगी. जो संपत्ति कर निर्धारण के सिस्टम की समीक्षा करेगी. मूल्यांकन की प्रक्रिया का विश्लेषण करेगी. और इसके अलावा ये बोर्ड ये सुनिश्चित करेगा की नगर निगमों का संपत्ति कर वसूलने का सिस्टम तकनीकी रूप से बिल्कुल नया हो और बहुआयामी व्यवस्था वाला हो.
इन सभी सुधारों के बावजूद, यहां ये बात भी ध्यान देने लायक़ है कि संपत्ति कर की वसूली ही एकमात्र ध्येय नहीं हो सकता. और केवल संपत्ति कर की वसूली करके नगर निगमों की ज़रूरत भर का फंड नहीं जुटाया जा सकता. तमाम शहरी निकायों की संपत्ति कर से आमदनी कई बरस से स्थिर है. ऐसे में सरकारों को शहरी निकायों की मदद करनी होगी. क्योंकि नगर निगम राज्यों और केंद्र से मिलने वाली मदद पर बहुत अधिक निर्भर हैं. उन्हें काम करने की स्वतंत्रता प्राप्त हो, इसके लिए केंद्र और राज्यों की सरकारों को उन्हें मदद देते रहना होगा. चुंगी, विज्ञापन से मिलने वाला टैक्स और लोकल बॉडी टैक्स, जो स्थानीय निकायों को पूंजी प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. लेकिन, ये सभी टैक्स GST में समाहित कर लिए जाने से स्थानीय निकायों के ख़ज़ाने और भी ख़ाली रह गए हैं. हालांकि सरकार संपत्ति कर व्यवस्था में सुधार पर ज़ोर दे रही है. इसके साथ साथ ज़मीन के विकास और विकास कार्यों से पड़ने वाले प्रभाव पर टैक्स लगाने जैसे विकल्पों पर भी गौर किया जा सकता है.
शहरों के लिए ज़रूरी है कि वो वित्तीय स्तर पर स्वतंत्र हों. ऐसे में संपत्ति कर में सुधार ही उनकी आर्थिक स्वायत्तता की दिशा में पहला क़दम साबित हो सकता है.
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