टास्क फोर्स 3: LiFE, लचीलापन और समाज कल्याण के मूल्य
सार
टिकाऊ एवं जलवायु के लिहाज़ से संवेदनशील या पर्यावरण के अनुकूल उत्पादों और सेवाओं को ख़रीदने में अब बड़ी संख्या में उपभोक्ताओं की दिलचस्पी बढ़ती जा रही है. हालांकि, देखा जाए तो इस प्रकार के उत्पादों और सेवाओं की आपूर्ति बहुत सीमित है. इसके साथ ही पर्यावरण अनुकूल उत्पादों के प्रति जागरूकता एवं उपभोक्ताओं की टिकाऊ विकल्प चुनने की अभिलाषा के बावज़ूद टिकाऊ उत्पादों की ख़रीदारी बेहद सीमित है. ज़ाहिर है कि टिकाऊ उत्पादों की खपत में इस ‘इंटेंट-एक्शन गैप’ यानी लोगों की इच्छा और उसे पूरा करने के लिए उनके द्वारा की गई कार्रवाई के बीच के अंतर को समाप्त करने की ज़रूरत है. ज़ाहिर है कि टिकाऊ जीवनशैली के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए इस मुद्दे को संबोधित किया जाना बेहद ज़रूरी है. भारत की G20 अध्यक्षता के दौरान इसके बारे में ख़ास तौर पर मिशन लाइफस्टाइल फॉर एनवॉयरमेंट यानी मिशन LiFE के माध्यम से इसके बारे में गंभीरता से सोचा गया है.
इस पॉलिसी ब्रीफ़ में सिफ़ारिश की गई है कि G20 देश इच्छा और कार्रवाई के बीच की इस खाई को पाटने के लिए टिकाऊ खपत प्रथाओं को प्रोत्साहित करने, उपभोग के तौर-तरीक़ों में परिवर्तन लाने और खपत एवं उत्पादन व्यवहार में सुधार करने के लिए मिलजुल कर कार्य करें. इसके लिए वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं में निम्नलिखित पॉलिसी इनोवेशन्स यानी नई-नई नीतियों को अमल में लाने का सुझाव दिया गया है:
- लेबल्स और क्लेम्स (labels and claims) की विश्वसनीयता को सशक्त करने के लिए पता लगाने योग्य मानदंडों को विकसित करना.
- व्यक्तिगत और संस्थागत उपभोक्ताओं को ध्यान में रखने के लिए खपत-आधारित कार्बन उत्सर्जन एकाउंटिंग यानी कितनी ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जित होती है, इसे मापने और इस पर नज़र रखने के तरीक़ों के एक फ्रेमवर्क की ज़रूरत पर बल देना.
- वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं को सभी इच्छुक हितधारकों के लिए समावेशी और व्यावहारिक बनाना.
- ग्रीनवॉशिंग यानी कि पर्यावरण के नज़रिए से कोई उत्पाद कितना प्रभावी है, इसके बारे में भ्रामक जानकारी देने की गतिविधियों से निपटने के लिए क़ानूनी कार्रवाइयों का सहयोग करना और उन्हें समर्थ बनाना.
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चुनौतियां
उपभोक्ता जिन उत्पादों को ख़रीदते हैं, उनके सामाजिक, पर्यावरणीय और जलवायु से जुड़े फुटप्रिंट्स यानी प्रभावों को लेकर तेज़ी के साथ जागरूक हो रहे हैं. इतना ही नहीं सतत उत्पादों को ख़रीदने के इच्छुक उपभोक्ताओं की संख्या भले ही कम है, लेकिन यह तादाद लगातार बढ़ रही है. हालांकि, इसमें कोई संदेह नहीं है कि सरकारों, उद्योगों और उपभोक्ताओं को इस प्रकार के टिकाऊ उपभोग को प्रोत्साहित करने के लिए कुछ चुनौतियों का मुक़ाबला करना होगा (चित्र 1 देखें).
चित्र 1: टिकाऊ खपत के दौरान प्रमुख हितधारकों के समक्ष आने वाली चुनौतियां
स्रोत: लेखकों का अपना
उपभोक्ताओं की संलग्नता
9 देशों में उपभोक्ताओं के अनुभव और उनकी सोच का विश्लेषण करने वाली एक रिपोर्ट [A] के मुताबिक़ जिन उपभोक्ताओं ने अपनी प्रतिक्रिया दी है, उनमें से 84 प्रतिशत (14,000 से अधिक वयस्क उपभोक्ता) ने उत्पाद या ब्रांड चुनते समय उनके टिकाऊ होने यानी पर्यावरण के अनुकूल होने को एक अहम मानदंड माना है. [1] इस रिपोर्ट में आगे बताया गया है कि मिलेनिअल्स (66 प्रतिशत उत्तर देने वालों) और भारत (78 प्रतिशत) एवं चीन (70 प्रतिशत) समेत तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में लोग पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव को कम करने में मदद करने के लिए वस्तुओं की ख़रीद करने के अपने व्यवहार और नज़रिए में परिवर्तन करने के इच्छुक हैं. इसी प्रकार के दूसरे अध्ययनों में भी उपभोक्ता व्यवहार को लेकर इसी तरह के नतीज़े सामने आए हैं. [2] , [3]
उपभोक्ताओं की टिकाऊ उत्पादों को लेकर पसंद में बढ़ोतरी के बावज़ूद, सतत उत्पादों का मार्केट सीमित बना हुआ है. [4] स्थिरता के मुद्दों के बारे में उपभोक्ताओं की जागरूकता और टिकाऊ उत्पादों को ख़रीदने की उनकी मंशा ने टिकाऊ ख़रीदारी पर कोई विशेष प्रभाव नहीं डाला है, जिसकी वजह से सस्टेनेबल उपभोग में इच्छा और कार्रवाई का बड़ा अंतर आ गया है.
टिकाऊ उत्पादों के बारे जानकारी का इस्तेमाल करके उपभोक्ता संलग्नता पर व्यवसायों के वर्तमान अनुभवों का विश्लेषण, उपभोक्ता जुड़ाव में सुधार के लिए तीन प्रमुख सबकों के बारे में बताता है: [5]
- जीवन शैली के नज़रिए को लागू करने से व्यवसायों को प्रोडक्ट लाइफ साइकिल के सभी चरणों में अपने उत्पादों के सतत प्रदर्शन की पूरी जानकारी पेश करने में सहायता मिली है.
- उपभोक्ताओं के साथ अपने पारस्परिक संवाद को बेहतर बनाने के लिए हॉटस्पॉट एनालिसिस यानी उच्च मूल्य वाले अहम स्थानीय समूहों की पहचान के विश्लेषण का इस्तेमाल किए जाने की संभावना है. इसमें उन विशेष तौर-तरीक़ों पर प्रकाश डाला गया है, जिनमें व्यवसायों ने स्थिरता के समक्ष आने वाली चुनौतियों का समाधान किया है.
- उत्पाद स्थिरता के दावों पर निर्भरता व्यवसायों को अपने ब्रांड को स्थापित करने और मार्केटिंग से जुड़ी रणनीतियों के बनाने में मदद करती है.
सस्टेनेबिलिटी लेबल्स और ग्रीनवाशिंग की विश्वसनीयता
हाल के वर्षों में सस्टेनेबिलिटी लेबल्स ने लोकप्रियता हासिल की है और व्यवसायों द्वारा उपभोक्ताओं को उनके टिकाऊ प्रदर्शन के बारे में भरोसा दिलाने के लिए इसका तेज़ी से उपयोग किया जा रहा है. हालांकि, कुछ बाज़ारों में सतत लेबल का प्रचार-प्रसार उपभोक्ताओं को न केवल भ्रमित करने वाला है, बल्कि व्यवसायों द्वारा झूठे और मनगढ़ंत दावों की संभावना को भी बढ़ाता है. वर्तमान में ‘ग्रीनवॉशिंग’ (पर्यावरण या टिकाऊ प्रथाओं के बारे में झूठे और बढ़ा-चढ़ा कर किए गए दावे) के कई मामले सामने आ रहे हैं. [6] , [7] , [8], [9]
देखा जाए तो व्यवसायों द्वारा ग्राहकों को अपने उत्पादों के टिकाऊ प्रदर्शन के बारे में जानकारी उपलब्ध कराने हेतु इसके लिए ज़रूरी विभन्न प्रमाणपत्रों, लेबलों, साथ ही इस हेतु किए जाने वाले आवश्यक निवेशों पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है. ज़ाहिर है कि इसकी वजह से टिकाऊ उत्पादों की मांग कम होती है. इतना ही नहीं उभरते बाज़ारों में टिकाऊ और पर्यावरण-अनुकूल उत्पादों की सीमित आपूर्ति के अलावा, मार्केट में ऐसे उत्पादों का दिखाई नहीं देना या अनउपलब्धता और कंपनियों द्वारा अपने उत्पादों के टिकाऊ प्रदर्शन के बारे में सीमित एवं भ्रामक जानकारी मुहैया कराना भी ऐसे उत्पादों की मांग बढ़ाने में रुकावट पैदा करने का काम करती है.
एक और बात है कि प्रमाणित टिकाऊ उत्पाद अक्सर कई वजहों से महंगे होते हैं. जैसे कि इनकी उत्पादन प्रक्रिया की लागत (उदाहरण के लिए, ऑर्गेनिक प्रोडक्ट्स के मामले में);[10] इसकी पूरी प्रक्रियाओं, प्रणालियों एवं मानव संसाधनों में निवेश (स्वैच्छिक मानक प्रणालियों के लिए विशेष रूप से, जिसमें थर्ड पार्टी सर्टिफिकेशन प्रमाणीकरण शामिल होता है); और इन उत्पादों को बनाने की प्रक्रिया में उपयोग किए जाने वाले किसी विषाक्त पदार्थ या कच्चे माल को गैर-विषाक्त या कम ज़हरीले पदार्थ से बदलने की उच्च लागत भी अन्य बातों में शामिल है. [11] ग्रीनवॉशिंग के तमाम उदाहरण उपभोक्ताओं के बीच प्रमाणित टिकाऊ उत्पादों की स्थिरता के प्रदर्शन को लेकर संदेह पैदा कर सकते हैं, ज़ाहिर है कि इन टिकाऊ उत्पादों को काफ़ी रकम ख़र्च कर के ख़रीदा जाता है. इस सबका सतत ख़रीद और सतत खपत में उपभोक्ता के विश्वास एवं व्यवहार पर काफ़ी असर पड़ता है.
वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं को टिकाऊ बनाने में स्थानीय किरदारों की सीमित भूमिका
विकसित देशों (आयात करने वाले) के रेगुलेटर्स का लक्ष्य नियामक उपायों के ज़रिए टिकाऊ वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं को प्रोत्साहन देना है. ये नियम-क़ानून मूल्य श्रृंखलाओं में पारदर्शिता, सत्यापन और प्रमाणन की मांग को बढ़ाने का काम करते हैं. उदाहरण के तौर पर यूरोपियन यूनियन में ग्रीन डील के अंतर्गत नए क़ानून बनाए जा रहे हैं. [B] इसी प्रकार से ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और अमेरिका समेत कई दूसरे देश भी इसी दिशा में आगे बढ़ रहे हैं.
उल्लेखनीय है कि इन नियम-क़ानूनों को यह सुनिश्चित करने के लिए बनाया गया है कि जो भी उत्पाद हैं, वे ठोस टिकाऊ मानदंडों को पूरा करें. हालांकि, कई विकासशील देशों और उभरती अर्थव्यवस्थाओं को भय है कि इन सख़्त क़ानूनों की वजह से भविष्य में उनकी कंपनियों, छोटे और मध्यम उद्यमों एवं छोटे किसानों को अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों से बाहर कर दिया जाएगा. ऐसे क़ानूनों के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए उत्पादक देशों का सहयोग करना और उनके साथ साझेदारी करना बेहद अहम है. इसमें आपूर्ति श्रृंखला के उत्पादक सिरे पर मौज़ूद छोटे हितधारकों और समुदायों जैसे लोकल किरदारों का सक्रिय रूप से समावेशन शामिल है. यह हाल के कई शीर्षस्थ लोगों द्वारा दिए गए बयानों के अनुरूप है, जिनमें बेहतर विकास और नीति को प्रभावी बनाने के लिए स्थानीय लोगों की अगुवाई वाले विकास को बढ़ावा देने के लिए क़दम उठाने का आह्वान किया गया है. [12], [13] , [14]
खपत-आधारित कार्बन उत्सर्जन एकाउंटिंग के लिए एक फ्रेमवर्क की कमी
कंजंप्शन-बेस्ड एमिशन्स यानी खपत-आधारित उत्सर्जन (CBEs) का मतलब होता है किसी क्षेत्र या आबादी द्वारा उपभोग की जाने वाली वस्तुओं और सेवाओं के आधार पर ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का लेखाजोखा. CBEs स्रोत पर उत्सर्जन को सीमित करने के उपायों के साथ-साथ, उपभोक्ताओं के निर्णय लेने में टिकाऊपन को प्रमुख पैरामीटर बनाकर डिमांड-पक्ष प्रबंधन की मंज़ूरी देता है, इतना ही नहीं CBEs टिकाऊ जीवन शैली का एक आवश्यक संचालक है. CBEs कार्बन लीकेज और ज़िम्मेदारियों के असमान बंटवारे को भी कम कर सकते हैं, क्योंकि वे आर्थिक और भौगोलिक स्तरों पर कार्बन फुटप्रिंट में असमानताओं की बेहतर रूपरेखा उपलब्ध कराते हैं.
हाल-फिलहाल में किए गए कई अध्ययन अपस्ट्रीम उत्सर्जन के मांग-पक्ष प्रबंधन को समान रूप से संचालित करने के तंत्र के रूप में CBEs और व्यक्तिगत कार्बन एकाउंटिंग/अलाउएंसेज की ज़रूरत की ओर इशारा करते हैं. [15], [16], [17],[18]
तकनीक़ी और राजनीतिक अवरोधों की वजह से नीति निर्माण में CBEs को अपनाना फिलहाल अभी शुरुआती चरण में है:
- वस्तुओं और सेवाओं के सटीक और व्यापक कार्बन फ़ुटप्रिंट सभी भौगोलिक क्षेत्रों के लिए उपलब्ध नहीं हैं.
- प्रतिक्रिया को रोकने के लिए पब्लिक राइट्स को बनाए रखते हुए व्यवहार को नियंत्रित करने के लिए CBE-आधारित नीतियां निष्पक्ष और प्रभावी होनी चाहिए.
- उत्पादों के निर्माण के दौरान अगर किसी विशेष भौगोलिक परिस्थितियों की वजह से निर्धारित सीमा से अधिक कार्बन उत्सर्जन होता है तो उनके निर्यात में अतिरिक्त लागत आती है, ज़ाहिर है कि इससे व्यापार में दिक़्क़तें बढ़ सकती हैं.
- व्यक्तिगत व्यवहार को प्रभावित करने वाली सरकारी कोशिशों के प्रति संवेदनशीलता की वजह से राजनीतिक चुनौतियां पैदा हो सकती हैं.
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G20 की भूमिका
G20 ने वैश्विक संरचना या योजना को आकार देने और उसे सशक्त करने में सक्रिय भूमिका निभाई है. इसके साथ ही G20 ने वैश्विक व्यापार एवं वाणिज्य से जुड़े समसामयिक ख़तरों और चुनौतियों का समाधान करने की अपनी योग्यता और सामर्थ्य को भी प्रदर्शित किया है.
इस प्रकार से G20 टिकाऊ खपत को प्रोत्साहित करने के लिए कुछ नीतिगत विकल्पों पर विचार कर सकता है. इन विकल्पों को निम्न तीन प्रमुख लक्ष्यों को पूरा करने के लिए बनाया जाना चाहिए: [19]
- खपत में बढ़ोतरी करना: उपभोक्ता जब उत्पाद के सतत मानदंड़ों और व्यवसायों द्वारा प्रचारित किए जाने वाले भरोसेमंद स्थिरता के दावों एवं पहलों के बारे में जागरूक हो जाते हैं.
- उपभोग में परिवर्तन करना: जब व्यवसायों को सर्कुलर एवं समावेशी बिजनेस मॉडल के ज़रिए उपभोक्ताओं को शामिल करने के लिए प्रेरित किया जाता है, तो व्यवसाय न केवल पता लगाने की योग्यता हासिल करने के लिए मूल्य श्रृंखलाओं के साथ-साथ विभिन्न किरदारों के साथ सक्रिय रूप से जुड़ते हैं, बल्कि उपभोक्ताओं को भी टिकाऊ जीवन शैली के साथ जोड़ने का काम करते हैं.
- उपभोग में सुधार करना: जब सरकारी नीति संसाधन-कुशल उत्पादन की सुविधा प्रदान करके और सभी सेक्टरों में सर्कुरल इकोनॉमी के सिद्धांतों को अपनाकर टिकाऊ खपत की ओर बदलाव का समर्थन करती है.
इन लक्ष्यों को निम्नलिखित चार नीतिगत इनोवेशन रणनीतियों के माध्यम से हासिल किया जा सकता है. इसके अलावा अन्य रणनीतियां, जैसे कि कार्बन उत्सर्जन-आधारित मूल्य निर्धारण या करों का निर्धारण, आपूर्ति या उत्पादन पक्ष की तरफ से इन उपायों की सहायता कर सकती हैं. जीवन शैली से संबंधित टिकाऊ फैसले लेने के लिए इन रणनीतियों के एकीकरण की ज़रूरत पड़ सकती है. [C]
टिकाऊ खपत के लिए लेबल्स की विश्वसनीयता का समर्थन करने हेतु सहभागी और पता लगाने के योग्य मापदंड
टिकाऊ मापदंडों पर बिजनेस लीडर्स का जो अनुभव और समझ है, उसकी समीक्षा से पता चलता है कि अपस्ट्रीम और डाउनस्ट्रीम यानी कि बाज़ार से जुड़े दीर्घकालिक लक्ष्यों और कम अवधि के लक्ष्यों, दोनों में हितधारकों को शामिल करने को लेकर उनकी प्रभावशीलता कुछ हद तक सीमित रही है. [20]
स्थिरता के मानदंडों में पता लगाने योग्य प्रणालियां (Traceability Systems) अंतर्निहित होती हैं, जो हितधारकों को व्यवसायों के टिकाऊ प्रदर्शन (और संबंधित स्थिरता दावों) से संबंधित ज़रूरी आंकड़े या जानकारी उपलब्ध कराती हैं. व्यापक तौर पर इसे माना गया है कि एक प्रभावी पता लगाने योग्य प्रणाली उत्पाद स्थिरता दावों की विश्वसनीयता का निर्धारण करने में मददगार साबित हो सकती है. [21]
इस प्रकार से एक ठोस ट्रैसेबिलिटी सिस्टम आपूर्ति श्रृंखलाओं में पारदर्शिता को मज़बूती प्रदान करने में सहायता कर सकता है, जो कि टिकाऊ वस्तुओं के उपभोग से जुड़े फैसले लेने में मददगार साबित हो सकता है. छोटे और मध्यम आकार के उत्पादकों को शामिल करने के संदर्भ में अपस्ट्रीम मार्केट पर यानी लंबी अवधि के बाज़ार लक्ष्यों पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए (आपूर्ति श्रृंखलाओं को समावेशी बनाने का सेक्शन देखें). ज़ाहिर है कि यह अंतर्राष्ट्रीय टिकाऊ मानदंड़ों के विशेषज्ञों और यूनाइटेड नेशन्स फोरम ऑन सस्टेनेबिलिटी स्टैंडर्ड्स जैसे संगठनों के लिए भविष्य के कार्यों पर विचार करने का एक क्षेत्र है. G20 समूह भागीदारी नज़रिए को अपनाकर और आने वाले घटनाक्रमों का समर्थन करके अपस्ट्रीम में ट्रेसबिलिटी सिस्टम यानी पता लगाने योग्य प्रणाली के अंतर्गत छोटे और मध्यम आकार के उत्पादकों के सक्रिय समावेश को बढ़ा सकता है. [D] , [22] , [23]
विश्वसनीयता की मज़बूती के लिए डिजिटल प्रोडक्ट पासपोर्ट एवं खपत-आधारित उत्सर्जन एकाउंटिंग
डिजिटल प्रोडक्ट पासपोर्ट (DPP) आपूर्ति श्रृंखला के प्रत्येक चरण में कंपनियों को उस उत्पाद के सतत मानकों को अच्छी तरह से समझने में मदद करेगा. [24] सभी प्रमुख वस्तुओं के लिए DPP की शुरुआत करके उपभोग किए गए अंतिम प्रोडक्ट के लिए उत्पाद से जुड़ी जानकारियों (जैसे स्रोत, प्रक्रियाएं और आपूर्ति श्रृंखलाएं) के बारे में पता लगाया जा सकता है. डिजिटल प्रोडक्ट पासपोर्ट हर चरण में किसी दिए गए उत्पाद की स्थिरता के प्रदर्शन के लिए पहुंच की एक सिंगल विंडो प्रदान करके एनवॉयरमेंटल प्रोडक्ट डिक्लेरेशन यानी पर्यावरणीय उत्पाद घोषणाओं (EPDs) और सस्टेनेबल प्रोडक्ट स्टैंडर्ड्स के साथ मिलकर काम कर सकते हैं.
डिजिटल प्रोडक्ट पासपोर्ट्स जहां उपभोक्ताओं को बेहतर विकल्पों की तलाश में सहायता कर सकते हैं, वहीं व्यवसायों को डी-कार्बोनाइजेशन के लिए विज्ञान-आधारित लक्ष्यों के साथ अपने स्रोतों एवं उत्पादन की प्रक्रियाओं को एकीकृत करने में मदद कर सकते हैं. महत्त्वपूर्ण इनपुट के लिए डिजिटल प्रोडक्ट पासपोर्ट व्यवसायों और कंपनियों को उनकी टिकाऊ साख में सुधार के लिए ज़्यादा विस्तृत योजनाएं बनाने में प्रमुख रूप से सहायता करेगा, क्योंकि इसमें बेहतर विकल्प बनाने के लिए अधिक जानकारी आसानी से उपलब्ध है. [25] यूरोपियन यूनियन (EU) ने पहले से ही बैटरियों के लिए एक DPP पायलट प्रोग्राम शुरू किया है, ऐसे में सवाल है कि क्या इलेक्ट्रॉनिक्स, टैक्सटाइल्स और फर्नीचर जैसे उत्पादों के लिए भी ऐसी योजनाएं संभव होंगी. [26]
राजनीतिक बहस को कार्य कुशलता से सामर्थ्य तक व्यापक बनाने के लिए व्यक्तिगत, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय खपत-आधारित उत्सर्जन फुटप्रिंट्स के मूल्यांकन के लिए एक बड़ा फ्रेमवर्क तैयार करने को लेकर डिजिटल प्रोडक्ट पासपोर्ट एक महत्त्वपूर्ण पहला क़दम हो सकता है. खपत आधारित कार्बन उत्सर्जन एकाउंटिंग का उपयोग करके, उत्पादों के एम्बेडेड उत्सर्जन यानी कच्चे माल के निष्कर्षण से लेकर विनिर्माण प्रक्रिया और उपभोक्ता को अंतिम डिलीवरी तक, माल के उत्पादन एवं परिवहन के दौरान उत्पन्न ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन के माध्यम से खपत के कार्बन फुटप्रिंट को व्यक्तिगत स्तर पर पहचाना जा सकता है. विक्रेताओं और वित्तीय संस्थानों द्वारा प्रतिनिधि डेटा या विशेष आंकड़ों के संग्रह के साथ-साथ उपभोग किए गए प्रमुख उत्पादों के DPPs और EPDs की निगरानी करके इसे संभव बनाया जा सकता है.
उपभोक्ता पक्ष पर इतने छोटे स्तर पर उत्सर्जन एकाउंटिंग विभिन्न आर्थिक और भौगोलिक स्तरों पर खपत के तौर-तरीक़ों एवं व्यवहार में ज़रूरी अंतरों को सामने लाएगी. दीर्घकालिक अवधि में ऐसे व्यक्तिगत आंकड़ों का इस्तेमाल अत्यधिक खपत को हतोत्साहित करके खपत को सीमित करने के लिए उत्सर्जन कोटा निर्धारित करने हेतु किया जा सकता है. खपत के आंकड़ों के आधार पर उत्पाद आपूर्ति श्रृंखलाओं और DPP आवश्यकताओं पर नियम-क़ानूनों को भी सख़्त किया जा सकता है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उत्पाद अधिक टिकाऊ और लंबे समय तक चलने वाले हों. ऐसी कार्रवाइयां वर्तमान में राजनीतिक रूप से संभव नहीं हो सकती हैं; हालांकि, CBE एकाउंटिंग संभवतः न्यायसंगत [E] जलवायु कार्रवाई के लिए आवश्यक हो सकती है. [27] , [28]
सभी के लिए आपूर्ति श्रृंखलाओं को समावेशी और व्यावहारिक बनाना
अंतर्राष्ट्रीय चर्चा-परिचर्चाओं एवं जांचे-परखे क़ानूनों में कॉर्पोरेट और वित्तीय किरदारों को प्रोत्साहित करने एवं उन्हें लक्षित करने के लिए अनिवार्य आपूर्ति श्रृंखला रिपोर्टिंग को शामिल किए जाने की ज़रूरत है. ऐसा करना इसलिए भी ज़रूरी है ताकि ये किरदार अपने निवेश को स्थिरता-संचालित मूल्य निर्माण में तब्दील कर सकें. कहने का तात्पर्य यह है कि इस प्रकार के मूल्य निर्माण में परिवर्तित कर सकें, जहां आपूर्ति श्रृंखला के साथ उत्पादों पर नज़र रखी जाती है, साथ ही पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभावों पर भी ध्यान दिया जाता है.
उल्लेखनीय है कि स्थिरता मानकों को विकसित करने एवं कार्यान्वित करने के लिए पूरी मूल्य श्रृंखला में किरदारों के बीच एक संतुलित बातचीत और सहभागिता अनिवार्य है. इसमें वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं के प्रोड्यूसर एंड यानी उत्पादक छोर पर छोटे हितधारकों और समुदायों जैसे लोकल किरदारों के लिए औपचारिक और वित्तीय रूप से लाभकारी भूमिकाएं शामिल हैं. मूल्य श्रृंखलाओं में इनकी यह भूमिकाएं प्राथमिक उत्पादकों या कामगारों से आगे बढ़नी चाहिए. स्थानीय स्तर पर सतत विकास को आगे बढ़ाने के लिए स्थानीय किरदारों को वित्तीय रूप से लाभकारी व्यावसायिक अवसरों की ज़रूरत है. उदाहरण के तौर पर वे टिकाऊ वस्तुओं एवं सेवाओं को प्रमाणित करने, कंपनियों को जांची-परखी प्रक्रिया और स्थिरता रिपोर्टिंग/प्रकटीकरण नियमों के अंतर्गत आवश्यक आंकड़े एकत्र करने या सुनिश्चित करने में सहायता करने में ज़्यादा सक्रिय भूमिका निभा सकते हैं. ज़ाहिर है कि इस प्रकार से वे ग्रीनवॉशिंग को रोकने में मददगार सिद्ध हो सकते हैं.
दरअसल, छोटे हितधारकों, पारंपरिक एवं स्थानीय समुदायों के प्रतिनिधि संगठन, या नगर पालिकाओं के (अक्सर दूरदराज के) क्षेत्रों में जहां आर्थिक गतिविधियों का असर पड़ता है, ऑडिटिंग प्रक्रिया में सहयोग कर सकते हैं. ऐसा करके वे यह सुनिश्चित करने में अपनी प्रभावी भूमिका निभा सकते हैं कि कंपनियों द्वारा जो जानकारी दी जा रही है, वो सही है. इतना ही नहीं वे इस सर्विस के ज़रिए अपने लिए इनकम के अवसर भी सृजित कर सकते हैं. यदि G20 समूह अपने सदस्य देशों के भीतर विकसित नए टिकाऊ वित्त और आपूर्ति श्रृंखला नियमों के केंद्र में ऐसी औपचारिक भूमिकाओं के निर्माण को लेकर सहयोग, बढ़ोतरी और समन्वय करता है, तो स्थानीय किरदार संरचनात्मक रूप से न केवल स्वयं को सशक्त बना सकते हैं, बल्कि पता लगाने योग्य एवं पारदर्शी आपूर्ति श्रृंखलाओं से आर्थिक तौर पर लाभान्वित भी हो सकते हैं.
ग्रीनवॉशिंग के ख़िलाफ़ क़ानूनी कार्रवाई का समर्थन करना और समर्थ बनाना
ग्रीनवॉशिंग गतिविधियों को अनुचित और भ्रामक बिजनेस प्रैक्टिस के रूप में वर्गीकृत किया गया है. दुनिया भर में कई मार्केट रेगुलेटर्स ने (जैसे कि नीदरलैंड, यूके, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और सिंगापुर में) रिपोर्ट किए गए मामलों के विरुद्ध कार्रवाई शुरू की है. [29], [30] , [31] , [32]
टिकाऊ लेबल्स के बढ़ते प्रचार-प्रसार के मद्देनज़र ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, नीदरलैंड और फ्रांस में मार्केट रेगुलेटर्स ग्रीनवॉशिंग गतिविधियों से निपटने के लिए नियम-क़ानून विकसित करने में जुटे हुए हैं, साथ ही व्यवसायों को ऐसी अनुचित गतिविधियों से दूर रहने की भी सलाह दी गई है. [33], [34] , [35] इसके अतिरिक्त, मार्च 2023 में, यूरोपियन कमीशन ने यूरोपीय संघ के उपभोक्ताओं को व्यवसायों द्वारा ग्रीनवॉशिंग और भ्रामिक दावों से बचाने के लिए पूरी नियमावली प्रस्तावित की है. [36] यह नियमावली उपभोक्ताओं के लिए उत्पाद के टिकाऊ होने संबंधी जानकारी को लेकर उपलब्ध दिशानिर्देशों के अतिरिक्त है, [F] जो कि उपभोक्ताओं को संलग्न करने के लिए विश्वसनीय दावे विकसित करने में सहायक हो सकती है. [37]
आम तौर पर देख जाए, तो सतत खपत और सतत व्यापार एजेंडे पर ग्रीनवॉशिंग के व्यापक असर को देखते हुए इस बात की तत्काल आवश्यकता है कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ग्रीनवॉशिंग या उत्पादों के पर्यावरण अनुकूल होने के झूठे दावों के ख़िलाफ़ क़ानूनी कार्रवाई के लिए दिशानिर्देश बनाए. G20 अंतर्राष्ट्रीय संगठनों एवं विशेषज्ञों के साथ काम करके ऐसे दिशानिर्देशों को बनाने में अपना योगदान दे सकता है.
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G20 के लिए सिफ़ारिशें
G20 द्वारा निम्न बातों पर विचार किया जा सकता है:
- टिकाऊ खपत को लेकर व्यवसायों द्वारा अच्छी गतिविधियों या प्रथाओं की एक ओपन-सोर्स अंतर्राष्ट्रीय रिपोजीटरी यानी भंडार बनाना. (इसे SDG लक्ष्य 12.6.2 के तहत एक ‘नए’ सूचक के रूप में जोड़ा जा सकता है, जो कंपनियों, विशेष रूप से बड़ी और अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों को सतत प्रथाओं को अपनाने और उनके रिपोर्टिंग साइकिल में टिकाऊपन से जुड़ी जानकारी को एकीकृत करने के लिए प्रोत्साहित करता है)
- लोकल कार्बन उत्सर्जन सूचियों के आधार पर उत्पादों के लिए सामान्य टिकाऊ इंडेक्स विकसित करके प्रमुख उपभोक्ता वस्तुओं के लिए डिजिटल प्रोडक्ट पासपोर्ट्स शुरू करने के लिए एक समान पॉलिसी को अपनाना. भविष्य में सेवाओं (Services) को शामिल करने के लिए इस पॉलिसी का विस्तार किया जा सकता है.
- यह सुनिश्चित करते हुए कि गोपनीयता और पसंद की आज़ादी का सम्मान किया जाए और सुरक्षा की जाए, व्यक्तिगत स्तर पर CBE एकाउंटिंग के लिए एक व्यापक डेटा संग्रह, प्रसंस्करण और रिपोर्टिंग फ्रेमवर्क के निर्माण का समर्थन करना.
- अत्यधिक (सामान और ऊर्जा) मात्रा में खपत को रोकने एवं हतोत्साहित करने के लिए CBE फ्रेमवर्क का इस्तेमाल करके उपभोग की विभिन्न प्रथाओं हेतु मांग-पक्ष के प्रबंधन को लेकर न्यायोचित कार्रवाई के लिए एक दीर्घकालिक नीति बनाना.
- टिकाऊ वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं को लेकर अंतर्राष्ट्रीय नियम-क़ानूनों को बनाने के दौरान, कार्यान्वयन के समय और उनकी समीक्षा की प्रक्रिया में स्थानीय किरदारों को शामिल करना. उदाहरण के तौर पर स्थिरता संबंधी (ESG) रिपोर्टिंग के लिए इसके उपयोग के निर्देशों के भीतर जानकारी के मामले में स्थानीय सत्यापन को एकीकृत करना.
- ‘ग्रीनवॉशिंग’ की समस्या का समाधान करने के लिए विभिन्न प्रकार की अंतर्राष्ट्रीय ‘गाइडलाइन्स’ के साथ नेशनल मार्केट रेगुलेटर्स (प्रतिस्पर्धा एवं उपभोक्ता संरक्षण एजेंसियों) का समर्थन करना.
इसके अलावा, G20 वर्किंग ग्रुप्स एवं सहभागिता समूह निम्न बातों पर भी विचार कर सकते हैं:
- प्रभावी वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला क़ानूनों के लिए स्थानीय किरदारों की भूमिका और लाभों को बढ़ाना. (ट्रेड एंड इंडस्ट्री वर्किंग ग्रुप, शेरपा ट्रैक)
- विशेष सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) की निगरानी करने में मदद के लिए भागीदारी और पता लगाने योग्य मानदंड़ों का सृजन करना. (डेवलपमेंट वर्किंग ग्रुप, शेरपा ट्रैक)
- उत्सर्जन एकाउंटिंग का इस्तेमाल करके व्यक्तिगत ज़िम्मेदारी और जवाबदेही को प्रोत्साहित करना. (G20 का मिशन LIFE एजेंडा)
- ग्रीनवॉशिंग के ख़िलाफ़ दावों और कार्रवाई की विश्वसनीयता को बढ़ाना. (G20 का मिशन LIFE एजेंडा)
यह पूरा जो मामला है, उसके स्वरूप और प्रकृति को देखते हुए, इस पॉलिसी ब्रीफ़ में ऊपर जो कुछ सिफ़ारिशें की गई हैं, वे एक लिहाज़ से दीर्घकालिक रणनीतियां हैं. ज़ाहिर है कि इन सिफ़ारिशों और रणनीतियों को अमली जामा पहनाने के लिए आम सहमति बनानी होगी, साथ ही इनके लिए विभिन्न संसाधनों को जुटाना होगा और संस्थाओं को पर्याप्त अधिकार देने की भी ज़रूरत होगी. ऐसे में भारत को अपनी G20 अध्यक्षता में एक नए वर्किंग ग्रुप या मौज़ूदा G20 कार्य समूहों में से किसी के भी माध्यम से टिकाऊ खपत पर एक संवाद की शुरुआत करनी चाहिए, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि आने वाले वर्षों में ब्राज़ील और दक्षिण अफ्रीका की G20 अध्यक्षता के दौरान भी ये चर्चाएं चलती रहें, साथ ही उनकी व्यवहार्यता का आकलन किया जा सके और उनके कार्यान्वयन की दिशा में आगे बढ़ा जा सके.
एट्रीब्यूशन: एलिज़ाबेथ होच, “मूल्य श्रृंखलाओं में नीतिगत इनोवेशन्स के माध्यम से टिकाऊ खपत को बढ़ावा” T20 पॉलिसी ब्रीफ़, मई 2023.
Endnotes
[A] ब्राज़ील, कनाडा, चीन, जर्मनी, इंडिया, मेक्सिको, स्पेन, यूके और अमेरिका.
[B] उदाहरण के लिए, डी-फॉरेस्टेशन-फ्री प्रोडक्ट रेगुलेशन्स, पूरी जांच-परख के पश्चात कॉरपोरेट सस्टेनेबिलिटी निर्देश, अपने रिपोर्टिंग मानदंडों (ESRS) के साथ कॉरपोरेट सस्टेनेबिलिटी रिपोर्टिंग डायरेक्टिव (CSRD), यूरोपियन यूनियन पर्यावरण टैक्सोनॉमी, सस्टेनेबल फाइनेंस डिस्क्लोजर रेगुलेशन.
[C] उदाहरण के लिए, कार्बन उत्सर्जन की तीव्रता के आधार पर डिफरेंशियल टैक्सों को लागू करने से टिकाऊ उत्पाद जो अभी महंगे, वो सस्ते हो जाएंगे, लेकिन इससे कम टिकाऊ उत्पाद, जो कि अभी किफ़ायती हैं वो अधिक महंगे हो जाएंगे. हालांकि, देखा जाए तो यह क़ीमतों में एकरूपता लाने के लिए फायदेमंद है, लेकिन ज़रूरी उत्पादों की क़ीमत पहुंच से बाहर हो जाने से यह आर्थिक रूप से कमज़ोर लोगों की आजीविका पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है. इसके अलावा, विकासशील देश के उद्यमों (जिनकी ऊर्जा और सामग्री के उपयोग करने की क्षमता विभिन्न बाहरी कारणों से अधिक हो सकती है) की वास्तविकताओं के मद्देनज़र डिफरेंशियल टैक्सों को लागू करना राजनीतिक रूप से बहुत मुश्किल है.
[D] जैसे कि ब्राज़ील का पार्टिसिपेटरी गारंटी सिस्टम, इंडियन सेफ हार्वेस्ट प्राइवेट लिमिटेड या भारत में चाय के लिए Trustea स्टैंडर्ड.
[E] एक ऐसे व्यक्ति के कुल कार्बन उत्सर्जन की तुलना करके, जो बड़ी मात्रा में टिकाऊ उत्पादों की खपत करता है बनाम उस व्यक्ति के जो कम टिकाऊ उत्पादों का उपभोग करता है, लेकिन कम मात्रा में करता है.
[F] वर्ष 2017 में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम ने ‘प्रोडक्ट सस्टेनेबिलिटी इन्फॉर्मेशन फॉर कंज्यूमर्स’ को लेकर गाइलाइन्स प्रकाशित की थी, जिनका उपयोग बड़ी संख्या में व्यवसायों द्वारा किया जा रहा है.
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[2] Deloitte, “Shifting Sands: How Consumer Behaviour Is Embracing Sustainability,” 2023.
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