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भारत की सुरक्षा तैयारियों में तेज़ी से बदलाव हो रहे हैं. 29 अगस्त को परमाणु ऊर्जा से चलने वाली बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बी (एसएसबीएन) आईएनएस अरिघात को भारतीय नौसेना में शामिल किया गया. इसने भी भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा तैयारियों को और मज़बूत किया. सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि INS अरिघात भारत की दूसरी एसएसबीएन है. भारत की पहली बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बी आईएनएस अरिहंत 2018 से ही काम कर रही है. इसने भारत की नाभिकीय त्रिमूर्ति क्षमता को बढ़ाया है. अब भारत के पास ज़मीन, हवा और समुद्र तीनों जगह से परमाणु हमला करने की रणनीतिक क्षमता है. आईएनएस अरिघात को नौसेना में शामिल किए जाने से समुद्र में संभावित दुश्मनों के ख़िलाफ भारत लगातर विकसित हो रही प्रतिरोधक क्षमताओं में और बढ़ोत्तरी होगी. हिंद महासागर क्षेत्र में सुरक्षा के समीकरणों में जिस तरह तेज़ी से बदलाव आ रहे हैं, जिस तरह चीन यहां लगातार अपनी स्थिति मज़बूत कर रहा है, उसे देखते हुए भारत ने अपने राष्ट्रीय हितों को सुरक्षित करने के लिए निवारक क्षमताओं को प्राथमिकता देने का फैसला किया.
भारत की सुरक्षा तैयारियों में तेज़ी से बदलाव हो रहे हैं. 29 अगस्त को परमाणु ऊर्जा से चलने वाली बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बी (एसएसबीएन) आईएनएस अरिघात को भारतीय नौसेना में शामिल किया गया.
रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर भारत की प्रतीक है INS अरिघात
भारत लगातार इस बात की कोशिश कर रहा है कि वो उन्नत सैन्य प्रौद्योगिकियों के डिज़ाइन और निर्माण का काम अपने यहां करे और आईएनएस अरिघात इस क्षेत्र में भारत की कामयाबी का प्रतीक है. इस परमाणु पनडुब्बी को भारतीय नौसेना में शामिल करने के दौरान रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भारत के एक ऐसे देश के तौर पर उभरने की महत्वाकांक्षा पर ज़ोर दिया, जो आर्थिक और सैन्य क्षमताओं के मामले में आत्मनिर्भर भी हो और आत्मविश्वास से भरा भी हो. राजनाथ सिंह ने कहा कि भारत जैसे-जैसे आर्थिक और सैन्य रूप से आगे बढ़ रहा है, उसी हिसाब से रक्षा उत्पादन के मामले में भी आत्मनिर्भरता हासिल करना महत्वपूर्ण है.
नौसेना में INS अरिघात की कमीशनिंग एक ऐसे समय में हुई है जब वैश्विक भू-राजनीति उथल-पुथल की स्थिति में है. यूरोप और पश्चिम एशिया में चल रहे युद्ध और संघर्ष की वज़ह से महत्वपूर्ण रक्षा उपकरणों की सप्लाई करने वाले देशों आपूर्ति क्षमता काफ़ी हद तक प्रभावित हुई है. इससे उन देशों के सामने ख़तरा पैदा हो गया है, जो अपनी सुरक्षा जरूरतों के लिए पारंपरिक रक्षा उपकरण आपूर्तिकर्ताओं पर निर्भर रहते हैं. एक ध्यान देने योग्य बात ये भी है कि भारत की बढ़ती आर्थिक क्षमताओं के बीच इसकी भूमि और समुद्री परिधि में जटिलताएं भी उभर रही हैं. ऐसे में ये महत्वपूर्ण है कि अपने मूल हितों को सुरक्षित करने के लिए भारत को बाहरी देशों पर निर्भरता में विविधता लाते हुए, स्वदेशी प्रणालियों के निर्माण पर अपना ध्यान केंद्रित करना चाहिए.
आईएनएस अरिहंत की तुलना अरिघात में ज़्यादा स्वदेशी प्रणालिया शामिल हैं, और ये सब भारतीय नौसेना, रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) और उद्योग के बीच उल्लेखनीय तालमेल की वजह से संभव हुआ है.
आईएनएस अरिघात को विशाखापत्तनम के शिपबिल्डिंग सेंटर (एसबीसी)में बनाया गया.इस पनडुब्बी के हंप में चार लॉन्च ट्यूब हैं, जो 3500 किलोमीटर तक की दूरी के साथ चार के-4 पनडुब्बी लॉन्च बैलिस्टिक मिसाइलों (एसएलबीएम) को ले जाने की क्षमता रखते हैं. INS अरिघात बारह K-15 एसएलबीएम को ले जा सकती है, जिनकी मारक क्षमता 750 किलोमीटर है. ये परमाणु पनडुब्बी अपनी पूर्ववर्ती आईएनएस अरिहंत से उन्नत है. हालांकि दोनों पनडुब्बियां 83 मेगावाट के प्रेशराइज़्ड लाइट वाटर रिएक्टर से संचालित हैं. दोनों में हथियार भी एक जैसे हैं. आईएनएस अरिहंत की तुलना अरिघात में ज़्यादा स्वदेशी प्रणालिया शामिल हैं, और ये सब भारतीय नौसेना, रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) और उद्योग के बीच उल्लेखनीय तालमेल की वजह से संभव हुआ है. नौसेना में इसका शामिल होना भारत की बढ़ती स्वदेशी क्षमताओं के लिहाज़ से भारत की रक्षा परिसंपत्तियों में एक महत्वपूर्ण योगदान है. भविष्य में दो और बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बियों के नौसेना में शामिल होने की उम्मीद है. इससे भारत की परमाणु प्रतिरोधक क्षमताओं को और बढ़ावा मिलने की संभावना है. इनके नौसेना में शामिल होने से SSBN की कुल संख्या चार हो जाएगी. फिलहाल INS अरिदमन का परीक्षण चल रहा है. इसके अगले साल की शुरूआत में नौसेना में कमीशन होने की उम्मीद है.
भारत को अपनी परमाणु प्रतिरोध क्षमता बढ़ाने की ज़रूरत क्यों है?
चूंकि भारत ने परमाणु हथियारों का 'पहले इस्तेमाल ना करने' की नीति अपना रखी है. इसे देखते हुए भारत की परमाणु क्षमताओं की एक प्रमुख विशेषता और ज़रूरत परमाणु प्रतिरोध को बढ़ावा देना है. हिंद महासागर क्षेत्र का भू-राजनीतिक माहौल तेज़ी से बदल रहा है. ऐसे में अपने समुद्री हितों की स्थायी सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए प्रतिरोध को काफ़ी महत्वपूर्ण माना जा रहा है. समुद्री सुरक्षा के लिहाज़ से देखें तो हिंद महासागर में चीन की बढ़ती नौसैनिक गतिविधियां भारत की रक्षा रणनीति के लिए चिंता पैदा करने वाली हैं. चीन ने हिंद महासागर के तटीय देशों में अपने राजनीतिक प्रभाव का विस्तार करके इस क्षेत्र में अपनी उपस्थिति बढ़ाने की कोशिश की है. इस वज़ह से हिंद महासागर क्षेत्र में चीन की मौजूदगी बढ़ती जा रही है. भारत के लिए एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम है, क्योंकि हिंद महासागर क्षेत्र में चीन अपना राजनीतिक प्रभाव बढ़ाने के अलावा यहां अपनी सैन्य उपस्थिति बढ़ाने की कोशिश भी कर रहा है. इतना ही नहीं हिंद महासागर में पाकिस्तानी नौसेना की मौजूदगी भी भारत के लिए बड़ी चिंता की बात बनी हुई है. इन सब संदर्भों में देखें तो हिंद महासागर क्षेत्र भारत के समुद्री हितों और संप्रभुता के लिए उथल-पुथल होने का ज़ोखिम है. भारत के खिलाफ़ एक साथ कई मोर्चों से पैदा हो सकता है. ऐसे में एक और बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बी के संचालित होने से चीन और पाकिस्तान की तरफ से किसी प्रतिकूल कदमों को रोकने के भारत की कोशिशों को मज़बूती मिली है.
भारत की प्रतिरोधक क्षमताओं के विस्तार पर गहरी नज़र डालने की ज़रूरत है. चूंकि परमाणु क्षमता का लगातार प्रसार हो रहा है, इसलिए इसे रोकने की नीति प्रतिरोध क्षमता बढ़ाने की धारणा पर टिकी हुई है. अगर कोई देश अपनी परमाणु क्षमताओं का महज प्रदर्शन ही करता है, तब भी ये संभावित दुश्मनों की तरफ से पैदा होने वाले ख़तरों को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. इस हिसाब से देखा जाए तो भारतीय नौसेना में एक और एसएसबीएन के शामिल होने से चीन को भारत के ख़िलाफ कोई गलत कदम उठाने से पहले कई बार सोचना होगा. चीन ऐसा कोई कदम नहीं उठाएगा, जो भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा हितों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं. हालांकि चीन से बराबरी करने के लिए भारत को अपनी क्षमताओं में अभी और बढ़ोत्तरी करने की ज़रूरत है. चीन के पास वर्तमान में छह जिन-क्लास सबमरीन-लॉन्च्ड बैलिस्टिक परमाणु पनडुब्बियां (एसएसबीएन) हैं, जिनमें 10, 000 किलोमीटर तक मार करने में सक्षम मिसाइलें हैं.
चीन के ख़तरे से निपटने में कैसे मिलेगी मदद?
कुल मिलाकर देखा जाए तो आईएनएस अरिघात की कमीशनिंग भारत के उभरते सुरक्षा दृष्टिकोण में प्रतिरोध की अहमियत को दिखाता है. चीन से संभावित ख़तरों के बीच भारत का सुरक्षा वातावरण ज़रूरत के हिसाब से बदल रहा है. अब तक भारत की अधिकांश रक्षा सोच लंबे समय से सुरक्षा की क्षेत्रीय समझ पर हावी रही है. भारत का ज़्यादा ज़ोर अपनी ज़मीनी सीमाओं को सुरक्षित बनाने पर रहा था, लेकिन अब चीन जिस तरह हिंद महासागर क्षेत्र में अपनी मौजूदगी बढ़ा रहा है, उसके बाद ये समुद्री क्षेत्र चीन के साथ प्रतिस्पर्धा का एक महत्वपूर्ण केंद्र बनकर उभरा है.
भारत का ज़्यादा ज़ोर अपनी ज़मीनी सीमाओं को सुरक्षित बनाने पर रहा था, लेकिन अब चीन जिस तरह हिंद महासागर क्षेत्र में अपनी मौजूदगी बढ़ा रहा है, उसके बाद ये समुद्री क्षेत्र चीन के साथ प्रतिस्पर्धा का एक महत्वपूर्ण केंद्र बनकर उभरा है.
हिंद महासागर में चीन की बढ़ती नौसैनिक मौजूदगी बीजिंग की तरफ से उत्पन्न ख़तरे की अवधारणा को बढ़ाते हैं. अब ज़मीन के साथ-साथ समुद्र में भी बहु-मोर्चे पर संघर्ष की आशंका बढ़ गई है. इन परिस्थितियों में प्रतिरोधक क्षमताओं को बढ़ाना ज़रूरी हो जाता है. INS अरिघात के शुरू होने और टॉरपीडो, जहाज-रोधी और ज़मीन पर हमला करने वाली मिसाइलों से लैस ऐसी और भी सामरिक संपत्तियों को विकसित करने की योजनाएं बन रही हैं. भारत के सुरक्षा दृष्टिकोण के लिहाज से देखें तो इस तरह की सोच में एक महत्वपूर्ण निरंतरता बनी हुई है, जो देश के लिए बहुत आवश्यक है. महत्वपूर्ण बात ये है कि परमाणु प्रतिरोध को बढ़ाना एक उभरती हुई प्रक्रिया है. रणनीतिक ख़तरों का मुकाबला करने के लिए परमाणु प्रतिरोधक क्षमता के साथ अन्य क्षमताओं को भी विकसित किए जाने की ज़रूरत है. हिंद महासागर में चीन और पाकिस्तान की बढ़ती नौसैनिक उपस्थिति को देखते हुए INS अरिघात को भारतीय नौसेना में शामिल करना एक महत्वपूर्ण फैसला है. अभी ऐसी दो और पनडुब्बियों तैयार हो रही हैं. इसे देखते हुए कहा जा सकता है कि भारत की परमाणु प्रतिरोध क्षमता की तैयारियां बिल्कुल सही रास्ते पर हैं.
सायंतन हलदर ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटजिक स्टडीज़ प्रोग्राम में रिसर्च असिस्टेंट हैं.
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