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Powering the futureवेंचर कैपिटलिस्ट, भारत के आख़िरी छोर के लोगों के लिए अधिक कुशल, और लचीली बिजली ग्रिड बनाने में अधिक सक्रियता से योगदान दे सकेंगे.
2030 तक जलवायु संबंधी भारत के महत्वाकांक्षी वादों और 2070 तक नेट ज़ीरो कार्बन उत्सर्जन के लक्ष्य प्राप्त करने के लिए तेज़ी से कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने की ज़रूरत है. कम कार्बन उत्सर्जन वाले भविष्य की ओर बढ़ने के लिए तमाम भागीदारों द्वारा साझा प्रयास करने की ज़रूरत होगी. इनमें कॉर्पोरेट , उद्योग, नीति निर्माता और स्टार्ट अप शामिल हैं. जीवाश्म ईंधन और मूल्य संवर्धन श्रृंखला में हाइड्रोकार्बन से धीरे धीरे मुक्त होने में हर एक भागीदार अपनी ओर से अनूठा योगदान देगा. अहम बात ये है कि जलवायु एक बहुआयामी क्षेत्र है, जो समाज और आर्थिक बेहतरी के हर पहलू पर असर डालता है. इसमें ऊर्जा का उपयोग, आवाजाही और तत्वों के आविष्कार से लेकर खाद्य सुरक्षा, कचरे का निपटारा और जल संरक्षण तक सब कुछ शामिल है.
थिया में हमारे निवेश की ज़िम्मेदारी, जलवायु परिवर्तन से निपटने के ऐसे समाधान तलाशने के लिए पूंजी जुटाने की है, जो वैज्ञानिक आविष्कार का इस्तेमाल करते हुए, बड़े और कम संसाधनों वाले बाज़ार में बड़े स्तर पर इस्तेमाल होने लायक़ तकनीकें विकसित कर रहे हैं. इनमें सर्कुलर इकॉनमी, कार्बन क्रेडिट और अल्टरनेटिव मटेरियल जैसे व्यापक क्षेत्र भी शामिल हैं. मिसाल के तौर पर, हमारी पोर्टफोलियो कंपनी वराह छोटी जोत वाले किसानों को उन्नत रिमोट सेंसिंग विश्लेषण और मिट्टी की कार्बन मॉडलिंग जैसे प्रकृति पर आधारित समाधानों के ज़रिए कार्बन क्रेडिट हासिल करने में मदद करती है. एक और पोर्टफोलियो कंपनी कैनवलूप, खेती में पैदा होने वाले कचरे जैसे कि जूट, अनानास और केले के कचरों को कपड़ा बनाने वाले धागों में तब्दील करती है ताकि उन्हें दुनिया के कपड़ा निर्माताओं को बेचा जा सके. इसी तरह, मेटास्टेबल मैटेरियल्स केमिकल से मुक्त बैटरी की रिसाइकिलिंग की प्रक्रिया को अपनाती है, जिसमें कार्बोथर्मल रिडक्शन की पेटेंटेड तकनीक का इस्तेमाल होता है, ताकि इलेक्ट्रिक गाड़ियों की इस्तेमाल शुदा बैटरियों से दुर्लभ खनिज तत्व निकाले जा सकें. आल्टएम बायो, कृषि क्षेत्र के कचरे से लिंगोसेल्यूलोज़ को निकालती है, जिसे FMCG, ब्यूटी और कॉस्मेटिक उद्योग में ग्रीन केमिस्ट्री फॉर्मूले के इस्तेमाल वाली चीज़ों में प्रयुक्त किया जा सके.
अहम बात ये है कि जलवायु एक बहुआयामी क्षेत्र है, जो समाज और आर्थिक बेहतरी के हर पहलू पर असर डालता है. इसमें ऊर्जा का उपयोग, आवाजाही और तत्वों के आविष्कार से लेकर खाद्य सुरक्षा, कचरे का निपटारा और जल संरक्षण तक सब कुछ शामिल है.
हालांकि, इस लेख में हम जलवायु तकनीक के मुख्य सेक्टर पर रोशनी डाल रहे हैं, जहां पर Theia की असरदार मौजूदगी है यानी इलेक्ट्रिक ग्रिड- औऱ हम इस क्षेत्र के विकास के साथ साथ इसे रिन्यूएबल और इलेक्ट्रिक गाड़ियों के नेटवर्क से जोड़ने, और उन्नत तकनीक से बिजली के मौजूदा मूलभूत ढांचे का निर्माण करने के लिए निजी पूंजी की ज़रूरत को रेखांकित कर रहे हैं, ताकि ये नेट ज़ीरो का लक्ष्य हासिल करने में प्रभावी तरीक़े से योगदान दे सके.
भारत दुनिया में ऊर्जा का तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता है, और पिछले दो दशकों के दौरान भारत की बिजली की खपत दो गुना बढ़ गई है. फिर भी, भारत में प्रति व्यक्ति बिजली का इस्तेमाल दुनिया के औसत के आधे से भी कम है. इससे पता चलता है कि देश में बिजली की एक छुपी हुई मांग है, जो अंतिम छोर पर खड़े ग्राहक तक बिजली की ख़राब आपूर्ति, और ख़ास तौर से दूर दराज के इलाक़ों में रहने वालों तक अक्सर बाधित होने वाली बिजली सप्लाई में छुपी है. भारत में बिजली कंपनियों की तरफ़ से 417 गीगावाट (GW) के ऊर्जा संसाधन स्थापित किए गए हैं. लेकिन इसमें से केवल 39 प्रतिशत संसाधनों का ही पूरा इस्तेमाल हो पता है. इसके कई कारण हैं. जैसे कि बिजली सप्लाई करने के संसाधनों की ख़राब क्वालिटी (जैसे बिजली के ट्रांसफ़ॉर्मर) और बिजली वितरण कंपनियों (discoms) और ख़ास तौर से सरकारी वितरण कंपनियों को होने वाला घाटा. अपर्याप्त बुनियादी ढांचे और संपत्ति के कम इस्तेमाल की वजह से ये दिक़्क़तें और बढ़ जाती हैं, जिससे ऊर्जा के क्षेत्र में कमियां पैदा होती हैं और आख़िरी छोर के ग्राहक तक बिजली पहुंचाने की लागत बढ़ जाती है.
आगे हमने कुछ ऐसे क्षेत्रों का संक्षेप में ज़िक्र किया है, जहां हम एक वेंचर कैपिटल (VC) कंपनी के तौर पर पूंजी निवेश के अवसर देखते हैं, ताकि इलेक्ट्रिक ग्रिड से कार्बन उत्सर्जन को कम किया जा सके.
बिजली की मांग में बढ़ोत्तरी और इसका वितरण करने वाली संपत्तियों के विस्तार की वजह से मौजूदा बिजली ग्रिड अपनी अधिकतम क्षमता की सीमा तक पहुंच गई हैं. आगे चलकर, भारत को एक नई तरह की ग्रिड के भरोसे रहना होगा, जो बिजली की बढ़ती ज़रूरतों और इससे जुड़ी जटिलताओं का कुशलता से प्रबंधन कर सके. स्मार्ट ग्रिड एक ऐसा व्यापक समाधान है, जो सूचना प्रौद्योगिकी के कई संसाधनों का इस्तेमाल करता है, जिससे मौजूदा बिजली ग्रिड और नई ग्रिड लाइनों को बिजली की बर्बादी और ऊर्जा निर्माण की लागत कम करने में मदद मिलती है. स्मार्ट ग्रिड की मदद से उच्च स्तर की नवीनीकरण योग्य ऊर्जा को बिजली की ग्रिड से जोड़ने में भी मदद मिलती है. अगर सौर ऊर्जा के फोटो वोल्टेइक (PV) सिस्टम और औद्योगिक क्षेत्र के बिजली ग्राहकों को स्मार्ट ग्रिड कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी के ज़रिए आपस में जोड़ दिया जाए, और ख़राब मौसम की वजह से सौर ऊर्जा का उत्पादन ठप हो जाए, तो स्मार्ट ग्रिड अपने आप ही ऊर्जा के पारंपरिक साधनों से बिजली आपूर्ति करने लगेगी. यही नहीं, स्मार्ट ग्रिड से बिजली वितरण कंपनियों को इस बात की सटीक और सही समय पर जानकारी और निगरानी मिल जाती है कि ऊर्जा के रिन्यूएबल स्रोत किस तरह से काम कर रहे हैं.
भारत में बिजली कंपनियों की तरफ़ से 417 गीगावाट (GW) के ऊर्जा संसाधन स्थापित किए गए हैं. लेकिन इसमें से केवल 39 प्रतिशत संसाधनों का ही पूरा इस्तेमाल हो पता है.
हमारी पोर्टफोलियो कंपनी प्रोबस स्मार्ट थिंग्स इस क्षेत्र में काम करती है, जो इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) के साथ साथ स्मार्ट मीटर डिज़ाइन के ज़रिए बिजली निर्माण करने वाली कंपनियों को उपकेंद्रों का विश्लेषण रेडियो फ्रीक्वेंसी मेश टेक्नोलॉजी के ज़रिए उपलब्ध कराती है. सरकार प्रायोजित कई कार्यक्रम, जैसे कि स्मार्ट ग्रिड फोरम, इंडिया स्मार्ट ग्रिड टास्क फोर्स और नेशनल स्मार्ट ग्रिड मिशन भी भारत को केंद्रीकृत के बजाय एक विकेंद्रीकृत बिजली निर्माण की दिशा में आगे बढ़ने में मदद कर रहे हैं
उम्मीद की जा रही है इस दशक के अंत तक भारत 350 गीगावाट (GW) बिजली नवीनीकरण योग्य स्रोतों से बनाने लगेगा. जो 2010 से 2020 के बीच बिजली निर्माण क्षमता में हुई बढ़ोत्तरी से 400 प्रतिशत अधिक है. इसे देखते हुए स्वच्छ ईंधन के भंडारण की व्यवस्थाओं को भी बेहतर बनाने की ज़रूरत है, ताकि ग्रिड को स्थिर बनाए रखा जा सके.
फ्रीक्वेंसी और वोल्टेज की मदद के ज़रिए भविष्य के बैटरी ऊर्जा भंडार की व्यवस्थाएं चौबीसों घंटे ग्रिड को बिजली आपूर्ति करने में मदद कर सकेंगे, जिससे डीज़ल जनरेटर्स का इस्तेमाल करने की ज़रूरत ख़त्म हो जाएगी. इस तरह के विकल्प पीक मांग के दौरान लोडशेडिंग , पावर बैकअप , फ्रीक्वेंसी और वोल्टेज के नियमन और बिजली को दोबारा ग्रिड को बेचने के रास्ते खोलते हैं. इसके साथ साथ, ग्रिड को स्थिर बनाए रखने के लिए ऊर्जा के भंडारण की इन व्यवस्थाओं को सोलर पैनल और इलेक्ट्रिक गाड़ियों (EV) से जोड़ा जा सकता है, जिससे वो टाइम ऑफ डे (ToD) यानी दिन के समय के हिसाब से बिजली की मांग और आपूर्ति के बीच संतुलन बिठा सकें. उल्लेखनीय है कि भारत के ऊर्जा मंत्रालय ने 2024 से बिजली की दरें टाइम ऑफ डे (Time of Day) के हिसाब से तय करने की अधिसूचना जारी कर दी है.
बाज़ार के आकार की बात करें, तो 2030 तक भारत में बैटरी भंडारण की मांग 601 गीगावाट/घंटे (GWh) पहुंचने की संभावना है, और इसकी सामूहिक विकास दर साल (CAGR) 44.5 प्रतिशत सालान रहने का अनुमान है, जो 2022 की तुलना में 2030 तक 162 GWh पहुंच जाएगी. इस बाज़ार (64 प्रतिशत) में सबसे अधिक योगदान इलेक्ट्रिक गाड़ियों (EV)का रहने का अनुमान लगाया गया है. इसके लिए हमारे पोर्टफोलियो में Edgegrid और शेरू ऐसी दो कंपनियां हैं, जो इस क्षेत्र में काफ़ी संभावनाएं दिखाती हैं. ये दोनों कंपनियां ऊर्जा के वितरित संसाधनों (DER)के लिए तकनीकों और क्लाउड ऊर्जा भंडारण का निर्माण कर रही हैं, जो बिजली मांग और आपूर्ति में अचानक आए किसी भी बदलाव से निपटने के लिए, पूरी बिजली व्यवस्था के प्रबंधन में अधिक लचीले और बेहतर नियंत्रण के साथ ग्रिड को फ़ौरन प्रतिक्रिया दे पाने में मदद करेंगी.
वर्चुअल पावर प्लांट असल में क्लाउड पर आधारित बिजलीघर होते हैं, जो जनरेटरों , बिजली के लोड और भंडारण की इकाइयों को एक दूसरे से जोड़कर एक ही इकाई में तब्दील कर देते हैं. सूचना और संचार तकनीकों और IoT का लाभ उठाते हुए वर्चुअल पावर प्लांट, बिजली के अधिकतम निर्माण को सुनिश्चित करते हैं और नवीनीकरण योग्य स्रोतों से बनी बिजली को ग्रिड से जोड़ते हैं. इनसे ग्रिड की विश्वसनीयता बढ़ती है और बिजली कटौती और ब्लैक आउट, फ्रीक्वेंसी और वोल्टेज के असंतुलन और नेटवर्क की स्थिरता जैसी समस्याओं से निपटने में भी सहायता मिलती है. भारत में वर्चुअल पावर प्लांट बिजली की बदलती ज़रूरतों को, ख़ास तौर से छत पर लगाए जा रहे सौर ऊर्जा के पैनलों की मदद से प्रभावी ढंग से पूरा कर सकते हैं. कंपनियां इनका इस्तेमाल करके बिजली के उत्पादन और खपत की तादाद का अधिकतम प्रबंधन कर सकती हैं. भारत में अभी भी ग्रामीण इलाक़ों का अनुपात अधिक है और ऐसे में वर्चुअल पावर प्लांट का इस्तेमाल करते हुए अधिक से अधिक नवीनीकरण योग्य स्रोतों वाली बिजली उपलब्ध कराकर, इन इलाक़ों में अप्रत्यक्ष रूप से बिजली मुहैया कराने में योगदान दे सकते हैं.
फ्रीक्वेंसी और वोल्टेज की मदद के ज़रिए भविष्य के बैटरी ऊर्जा भंडार की व्यवस्थाएं चौबीसों घंटे ग्रिड को बिजली आपूर्ति करने में मदद कर सकेंगे, जिससे डीज़ल जनरेटर्स का इस्तेमाल करने की ज़रूरत ख़त्म हो जाएगी.
हालांकि, भारत में वर्चुअल बिजलीघरों की तरक़्क़ी, रिहाइशी, कारोबारी और औद्योगिक ठिकानों में ऊर्जा के वितरित संसाधनों (DER) को ग्राहकों द्वारा अपनाने और ग्राहकों द्वारा ऊर्जा के इस्तेमाल के लेन-देन के लिए थोक तैयार बाज़ार की उपलब्धता पर निर्भर करेगा.
यही नहीं, भारत में बिजली वितरण कंपनियों (discoms) को DER को जोड़ने वाले सॉफ्टवेयर प्लेटफॉर्म के साथ साझीदारी की इच्छा दिखानी होगी, जिससे साबित होगा कि सैकड़ों कारोबारी-औद्योगिक ग्राहकों के मीटर के पीछे की भंडारण व्यवस्था (जिसमें सोलर, इलेक्ट्रिक गाड़ियों के चार्जर और बैटरियां शामिल हैं) से बिजली वितरण अधिक भरोसेमंद और बेहतर प्रदर्शन वाली व्यवस्था में तब्दील हो सकेगा. मिसाल के तौर पर शेरू ने भारत के पहले व्हीकल टू ग्रिड स्टेशन को लॉन्च करने के लिए BSES राजधानी के साथ हाथ मिलाया है. इस पहल के ज़रिए शेरू अपनी बैटरी बदलने के दुतरफ़ा केंद्रों को बैटरी बदलने के लिए इस्तेमाल करने की जगह के रूप में उपलब्ध कराएगा और साथ ही साथ, बैटरी बदलने के इन केंद्रों को विकेंद्रित ऊर्जा संसाधन की तरह इस्तेमाल करके BRPL को पीक डिमांड के दौरान बिजली की आपूर्ति बनाए रखने में मदद भी करेगा.
स्मार्ट ग्रिड, बैटरी ऊर्जा भंडारण के विकल्पों और वर्चुअल पावर प्लांट को को बड़े स्तर पर अपनाने में भारत के बिजली के बुनियादी ढांचे में क्रांतिकारी बदलाव लाने की काफ़ी संभावना है. बिजली क्षेत्र में बाहरी पूंजी की उपलब्धता को प्रोत्साहित करने के लिए, इंडिया एनर्जी एक्सचेंज़ द्वारा निजीकरण और लाइसेंस मुक्त करने के कई क़दमों- जैसे कि रियल टाइम एनर्जी मार्केट और ग्रीन टर्म एहेड मार्केट (GTAM) के गठन और रिन्यूएबल एनर्जी सर्टिफिकेट्स (RECs) के लेन-देन को बढ़ावा देने- ने आख़िरी छोर के ग्राहक के लिए स्वच्छ ईंधन तक पहुंच और कुशल बिजली वितरण का रास्ता खोल दिया है. 2022 में भारत सरकार ने ग्रीन एनर्जी ओपेन एक्सेस रूल्स को भी अधिसूचित कर दिया था. इससे ओपेन एक्सेस के लेन-देन की सीमा 1 मेगावाट (MW) से घटकर 100 किलोवाट (kW) हो गई थी, जिससे छोटे ग्राहकों के लिए बिजली ख़रीदना और उसका लेन-देन करना आसान हो गया, और अब ये काम केवल बिजली ख़रीद फ़रोख़्त के बड़े समझौतों तक सीमित नहीं रहा.
2070 तक नेट ज़ीरो का लक्ष्य हासिल करने का भारत की महत्वाकांक्षी योजना और नवीनीकरण स्रोतों से पैदा होने वाली बिजली पर बढ़ते ज़ोर के कारण, आज वेंचर कैपिटल के लिए इलेक्ट्रिसिटी ग्रिड के मूलभूत ढांचे के क्षेत्र में निवेश का आदर्श समय है.
हमारी नज़र में इस क्षेत्र में वेंचर कैपिटल (VC) की गतिविधियां सीमित रही हैं. इसकी प्रमुख वजह यही रही है कि VC इस सेक्टर को बहुत ज़्यादा नियम क़ायदों वाली मानते हैं. इसके अलावा वो ये सोचते हैं कि कंपनियों के लिए इसकी बिक्री की समय सीमा बहुत लंबी होने के साथ साथ इसमें बहुत गहराई वाली तकनीक लगती है, जिसे बड़े स्तर पर लागू करने के लिए विकसित करने में काफ़ी समय लग जाता है. ऐतिहासिक रूप से केवल मूलभूत ढांचे वाले बड़े फंडों ने ही इलेक्ट्रिक ग्रिड के सेक्टर में सक्रियता से निवेश किया है. इसके बावजूद, तकनीकी आविष्कार, ख़ास तौर से डिजिटल डिकार्बनाइज़ेशन की परिकल्पना से जुड़े सॉफ्टवेयर और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), मशीन लर्निंग (ML) और एनर्जी ब्लॉकचेन में प्रगति को अगर स्टार्ट-अप के स्तर पर इकट्ठा किया जा सके (और इस परिकल्पना पर केंद्रित अमेरिका स्थित जलवायु तकनीक के फंडों के नक़्श-ए-क़दम पर चलते हुए) तो इस क्षेत्र में वेंचर कैपिटलिस्ट्स को मुख्यधारा में शामिल होने के लिए प्रेरित किया जा सकेगा. इसके अलावा, बैंकों, दानदाताओं (जोखिम मुक्त), औद्योगिक कंपनियों, यूनिवर्सिटी की रिसर्च एवं विकास की प्रयोगशालाओं और सरकार जैसे पूंजी देने वालों के बीच सहयोग भी ज़रूरी है, ताकि उत्पाद के शुरुआती जोखिमों का ख़र्च उठाया जा सके. इस मामले में सोलर और इलेक्ट्रिक गाड़ियों के सेक्टर में कामयाब पहलों से मिले सबक़ भी काफ़ी काम आ सकते हैं.
2070 तक नेट ज़ीरो का लक्ष्य हासिल करने का भारत की महत्वाकांक्षी योजना और नवीनीकरण स्रोतों से पैदा होने वाली बिजली पर बढ़ते ज़ोर के कारण, आज वेंचर कैपिटल के लिए इलेक्ट्रिसिटी ग्रिड के मूलभूत ढांचे के क्षेत्र में निवेश का आदर्श समय है. VCs को चाहिए कि वो इस क्षेत्र की परिवर्तनकारी संभावनाओं को समझें और शुरुआती दौर की कंपनियों की मदद करने में सक्रियता वाला नज़रिया दिखाते हुए पहले सहायता देने वालों की कतार में खड़े हों. इससे इस क्षेत्र में निजी निवेश को बढ़ावा मिलेगा. ऐसा करके वेंचर कैपिटलिस्ट, भारत के आख़िरी छोर के लोगों के लिए अधिक कुशल, तकनीक से लैस कम कार्बन वाली और लचीली बिजली ग्रिड बनाने में अधिक सक्रियता से योगदान दे सकेंगे.
Theia Ventures भारत स्थित एक जलवायु तकनीक और सर्कुलर इकॉनमी वाले शुरुआती दौर का फंड है, जो अधिक प्रभाव डालने में सक्षम, IP की अगुवाई वाली तकनीकी कंपनियों में निवेश कर रहा है, जो कार्बन उत्सर्जन कम करने के क्षेत्र में काम कर रही हैं.
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