लोकतंत्र (Democracy) के लिए चुनाव (election) का वही स्थान है जो अर्थव्यवस्था के लिए वित्तीय बाज़ार का है. चुनाव, राजनीतिक शक्ति के प्रवाह को राजनीतिक दलों (political parties) के ज़रिए लोगों से सरकार तक ले जाने का माध्यम है, जो वित्तीय बाज़ारों में वित्तीय प्रबंधन कंपनियों की तरह काम करते हैं, जो बाज़ार की प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ाते हैं और स्थिरता सुनिश्चित करते हैं. भारत में चुनावों और राजनीतिक दलों को नियंत्रित करने के लिए एक सर्वव्यापी कानून की कमी है और इस विधायी अंतर को भरे जाने की ज़रूरत है.
भारत में राजनीतिक दलों के लिए रेग्युलेशन
चुनावों पर सामान्य कानून – जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 – को 1988 में “राजनीतिक दलों के पंजीकरण” में नया सेक्शन IVA को शामिल करने के लिए संशोधित किया गया था, जो भारत के चुनाव आयोग (ECI) के लिए भारतीय संविधान की धारा 324 के तहत अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण के सामान्य जनादेश का प्रयोग करने के लिए एक खाका तैयार करता है.
आश्चर्य की बात नहीं है कि देश में केवल सात मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय और 54 राज्य स्तर की पार्टियां हैं जबकि रजिस्टर्ड अनरिकॉग्नाइज्ड पॉलिटकल पार्टीज (आरयूपीपी) की संख्या 2,259 है. यह तब है जबकि ECI ने नियमों के पालन में गड़बड़ी की वज़ह से 537 अन्य पार्टियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की है.
नागरिकों का कोई भी समूह अपने मेमोरेंडम ऑफ एसोसिएशन जमा करके और संविधान के प्रति निष्ठा की शपथ लेकर ईसीआई में पंजीकृत होने के लिए आवेदन दाखिल कर सकता है. हालांकि, इसे पहचान देने की प्रक्रिया कठिन है, क्योंकि इसमें पिछले चुनाव में डाले गए कुल वोटों का न्यूनतम हिस्सा और एक मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय या राज्य पार्टी बनने के लिए जीती गई सीटों की संख्या सहित प्रदर्शन मानदंडों को पूरा करने की अनिवार्यता को देखा जाता है. आश्चर्य की बात नहीं है कि देश में केवल सात मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय और 54 राज्य स्तर की पार्टियां हैं जबकि रजिस्टर्ड अनरिकॉग्नाइज्ड पॉलिटकल पार्टीज (आरयूपीपी) की संख्या 2,259 है. यह तब है जबकि ECI ने नियमों के पालन में गड़बड़ी की वज़ह से 537 अन्य पार्टियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की है.
पार्टियों का रजिस्ट्रेशन इनकम टैक्स से प्राप्त दान को इस शर्त पर छूट देता है कि पार्टी पंजीकरण के पांच साल के भीतर चुनाव लड़ती है और वित्तीय वर्ष के अंत के छह महीने के भीतर एनुअल स्टेटमेंट ऑफ़ कॉन्ट्रिब्यूशन और ऑडिटेड एनुअल अकाउंट्स का विवरण प्रस्तुत करती है.
एक रेग्युलेटरी गैप (नियामक अंतर): नगरपालिका राजनीतिक दल
तीन दशक पहले 1992 में 74वें संविधान संशोधन के ज़रिए नगरपालिका सरकार का तीसरा स्तर बन गई लेकिन केवल नगरपालिका स्तर तक संचालित होने वाले राजनीतिक दलों के लिए अभी तक समानांतर मान्यता दिए जाने की व्यवस्था विकसित नहीं की गई है. भारत में बड़ी आबादी वाले 343 शहर हैं (2011); इनमें से 13 शहर 2 मिलियन से अधिक आबादी वाले हैं, 33 शहर 1 मिलियन से अधिक, 43 शहर आधे मिलियन से अधिक और 253 शहरों में 100,000 से अधिक आबादी है.
निजी, विशेष रूप से कॉर्पोरेट फंडिंग, चुनाव अभियानों के लिए कई आशंकाओं के साथ आती है, जो निजी और सार्वजनिक हितों के बीच साफ़तौर पर इस ख़तरे की ओर इशारा करते हैं, ख़ास तौर पर जब राजनीतिक दल सरकार बनाते हैं. सबसे सीधा विकल्प तो यह होगा कि सरकार चुनाव ख़र्च के लिए पहले से तय एक उचित राशि का भुगतान हर उम्मीदवार को करे.
भारत में 377 मिलियन की संयुक्त शहरी आबादी चीन को छोड़कर दुनिया के किसी भी देश के मुक़ाबले सबसे ज़्यादा है, जिसमें संयुक्त राज्य अमेरिका – तीसरा सबसे बड़ा देश है – इसके बावज़ूद अभी तक नगरपालिकाओं का प्रतिनिधित्व करने वाले राजनीतिक दलों के लिए कोई विशिष्ट (रेग्युलेशन) नियम नहीं बनाए गए हैं.
चुनावों की सार्वजनिक फंडिंग
अमेरिका के लगभग 14 राज्यों में जैसा चलन है उसके ठीक विपरीत भारत सरकार किसी राजनीतिक पार्टी या निर्दलीय उम्मीदवार के चुनाव अभियानों को सीधे तौर पर पैसे मुहैया नहीं कराती है. हालांकि, इससे राजनीतिक दलों को आयकर से छूट मिलती है, जिससे कि सियासी दलों को तैयार करने में प्राइवेट कॉर्पोरेट और व्यक्तिगत निवेश को प्रोत्साहित किया जा सके. जिस तरह की विविधता और जितनी संख्या में राजनीतिक पार्टियां देश में हैं वह इस बात को दर्शाती हैं कि इस दृष्टिकोण का फायदा हुआ है.
निजी, विशेष रूप से कॉर्पोरेट फंडिंग, चुनाव अभियानों के लिए कई आशंकाओं के साथ आती है, जो निजी और सार्वजनिक हितों के बीच साफ़तौर पर इस ख़तरे की ओर इशारा करते हैं, ख़ास तौर पर जब राजनीतिक दल सरकार बनाते हैं. सबसे सीधा विकल्प तो यह होगा कि सरकार चुनाव ख़र्च के लिए पहले से तय एक उचित राशि का भुगतान हर उम्मीदवार को करे. पब्लिक फंड पर मुफ्त़खोरी को हतोत्साहित करने के लिए, उम्मीदवारों को जनता से एक न्यूनतम स्तर तक ख़ुद से फंड पैदा करने की आवश्यकता हो सकती है जिससे कि जन समर्थन को प्रदर्शित किया जा सके और सरकारी फंडिंग से पहले, आमतौर पर, एक सीमा तक मैचिंग अमाउंट का उपयोग किया जा सकता है. भारत में सार्वजनिक बज़ट और वैकल्पिक निवेश प्राथमिकताओं को लेकर आर्थिक तंगी की समस्या बनी हुई है.
ईसीआई ने संसदीय सीटों को लेकर चुनाव ख़र्च की ऊपरी सीमा (जनवरी 2022) 9.5 मिलियन रुपये और राज्य विधानसभा सीटों के लिए 4 मिलियन रुपये निर्धारित की है. संसदीय सीटों को लेकर औसत मतदाता का आकार 1.7 मिलियन है, जो लक्षद्वीप में सिर्फ 55,000 मतदाताओं से लेकर दिल्ली में अधिकतम 2 मिलियन से ज़्यादा है.
साल 2019 में 542 लोकसभा सीट के लिए प्रति उम्मीदवार 9.5 मिलियन रुपये की चुनाव आयोग की ख़र्च सीमा के 50 प्रतिशत पर “ख़र्चों के समान बंटवारे के आधार” पर चुनाव पर 38.3 अरब रुपये ख़र्च हुए. यह 2020 में ईसीआई के 2.6 अरब रुपये के वार्षिक बज़ट का 14 गुना है.
संसदीय चुनाव में प्रत्येक उम्मीदवार को 4.8 मिलियन रुपए सौंपने से उम्मीदवारों की संख्या में काफी बढ़ोतरी हो सकती है, जिससे यह अनप्रोडक्टिव और पांच साल में फिर से सामने आने वाले कुटीर उद्योग में तब्दील हो जाता है. इस बात पर विचार करें कि एक औसत भारतीय प्रति वर्ष केवल 0.15 मिलियन रुपए या पांच वर्षों में इस राशि का छठा हिस्सा कमाता है और नौकरियां देश में कम हैं.
इलेक्टोरल बॉन्ड चुनावी वित्त में बड़े नकद भुगतान को समाप्त करेगा
2016-17 में ज़्यादा मूल्य के नोटों के “विमुद्रीकरण” के बाद, भ्रष्टाचार की गहरी व्यवस्था को टारगेट किया गया, जिसमें बेहिसाब नकदी द्वारा वित्तपोषित चुनाव भी शामिल थे, तत्कालीन वित्त मंत्री, स्वर्गीय अरुण जेटली ने वित्त वर्ष 2017-18 के लिए “चुनावी बॉन्ड” की एक योजना शुरू की थी. ये फिजिकल “प्रोमिशरी नोट्स” (वचन पत्र) हैं जो सिर्फ़ बैंकिंग लेनदेन (नकदी के ख़िलाफ़ नहीं) के ज़रिए ख़रीदे जा सकते हैं और जो किसी भी पंजीकृत राजनीतिक दल को दान करने का इरादा रखते हैं, जिसे पिछले चुनाव में कम से कम 1 प्रतिशत वोट मिले थे. स्टेट बैंक ऑफ इंडिया – एक सार्वजनिक स्वामित्व वाला वाणिज्यिक बैंक, जिसकी शाखाओं का सबसे बड़ा नेटवर्क है, एकमात्र नामित वेंडर है. बॉन्ड 15 दिनों के लिए वैध रहते हैं जिसके भीतर उन्हें चुने गए राजनीतिक दल के बैंक खाते के माध्यम से भुनाया जा सकता है. परचेज-डोनर (क्रेता-दाता) को ख़रीदे गए बॉन्ड पर टैक्स क्रेडिट दिया जाता है, जैसा कि चैरिटी में दान देने पर होता है.
इसका मक़सद नकद भुगतान के विकल्प के साथ चुनाव के लिए धन दान देने वाले की पहचान को बगैर ज़ाहिर किये हुए बड़े डोनरों को सुविधा प्रदान करना था. वित्त मंत्री ने जो सोचा था वही हुआ. एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की रिपोर्ट (जुलाई 2022) के अनुसार डोनर्स ने पहचान छुपाए जाने का स्वागत किया और जैसा कि अपेक्षित था, सत्तारूढ़ दल – भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को सबसे अधिक फायदा हुआ, उसे 2.1 बिलियन रुपये या 2017-18 में ख़रीदे गए बॉन्ड का 95 प्रतिशत प्राप्त हुआ. 2018-19 में यह राशि बढ़कर 14.5 बिलियन रुपए हो गया और 2019-20 में 25.6 बिलियन रुपए हो गया.
पहचान छुपाकर बॉन्ड द्वारा दी जाने वाली मदद मुख्य रूप से नागरिकों के ख़िलाफ़ है. एसबीआई एक सरकारी स्वामित्व वाला बैंक है, जिसे सरकार द्वारा बॉन्ड ख़रीद और राजनीतिक दलों द्वारा नकदीकरण के संबंध में अनौपचारिक रूप से डेटा साझा करने के लिए राजी किया जा सकता है
यह तथ्य कि भाजपा को सबसे ज़्यादा लाभ हुआ, यह इस व्यवस्था के सार्वजनिक उद्देश्य को कम नहीं करता है, जो कि चुनावी वित्त में बेहिसाब नकदी के इस्तेमाल को ख़त्म करने से जुड़ा था. सत्तारूढ़ पार्टी में केंद्रित कॉर्पोरेट दान संभावित रूप से अनुचित रेग्युलेटरी दबदबे (विनियामक कब्ज़े) का अलार्म बेल बजाते हैं लेकिन नकद में फंड मुहैया कराने से बैंक के धन का इस्तेमाल करने की बदली हुई परिपाटी स्वागत योग्य कही जा सकती है.
बहुत निजी नहीं
पहचान छुपाकर बॉन्ड द्वारा दी जाने वाली मदद मुख्य रूप से नागरिकों के ख़िलाफ़ है. एसबीआई एक सरकारी स्वामित्व वाला बैंक है, जिसे सरकार द्वारा बॉन्ड ख़रीद और राजनीतिक दलों द्वारा नकदीकरण के संबंध में अनौपचारिक रूप से डेटा साझा करने के लिए राजी किया जा सकता है – हालांकि जो डेटा एसबीआई के पास है उसे बैंक ने एडीआर के साथ साझा करने से इंकार कर दिया. ऐसे में सूचना की पहुंच में इस विषमता को सूचना की गोपनीयता को बेहतर ढंग से सुरक्षित करके ठीक किया जाना चाहिए.
पहचान छुपाकर बॉन्ड द्वारा दी जाने वाली मदद मुख्य रूप से नागरिकों के ख़िलाफ़ है. एसबीआई एक सरकारी स्वामित्व वाला बैंक है, जिसे सरकार द्वारा बॉन्ड ख़रीद और राजनीतिक दलों द्वारा नकदीकरण के संबंध में अनौपचारिक रूप से डेटा साझा करने के लिए राजी किया जा सकता है
सभी बैंकों को इन बॉन्डों की वेंडिंग का व्यापक आधार अनौपचारिक रूप से विशेषाधिकार प्राप्त जानकारी को जुटाने में दिक्कत पैदा कर सकता है. ऐसे में बॉन्डों को डिजीटल किया जाना चाहिए और एन्क्रिप्शन के माध्यम से हस्तांतरण की गोपनीयता को सुनिश्चित किया जाना चाहिए. चूंकि भुगतान बैंकिंग चैनलों के माध्यम से होता है इसलिए इसकी अधिकृत जानकारी के लिए डोनर और प्राप्तकर्ता का ऑडिट ट्रेल मौज़ूद रहता है. ईसीआई को डी-पर्सनलाइज्ड जानकारी एकत्र करने और प्रकाशित करने के लिए अधिकृत करके पहचान छुपाए रखने को सुनिश्चित करते हुए पारदर्शिता बढ़ानी चाहिए. व्यक्तिगत डेटा तक सुरक्षा और आपराधिक जांच एजेंसियों की पहुंच ईसीआई के एक विशिष्ट आदेश के माध्यम से होनी चाहिए, जो इस तरह के विशेषाधिकार प्राप्त एक्सेस की अनुमति दे सकता है.
राजनीतिक दलों की निगरानी को मज़बूत करना
रजिस्टर्ड गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों (आरयूपीपी) में ख़राब इंट्रा-पार्टी गर्वनेंस देखा जाता है. अधिकांश पार्टियां पांच साल के भीतर चुनाव लड़ने और उसके बाद सक्रिय रहने के अपने वादे को भूल जाती है. 2019 में केवल 623 पार्टियों ने चुनाव लड़ा जबकि 2,056 आरयूपीपी अपने एनुअल ऑडिटेड अकाउंट्स को दाख़िल करने में विफल रहे. ईसीआई डेटा के अनुसार, 199 आरयूपीपी ने 2018-19 में आयकर छूट में 4.5 बिलियन रुपए का दावा किया. 2019-20 में 6.1 बिलियन रुपए पर छूट का दावा करते हुए इसमें बढ़ कर 219 आरयूपीपी हो गए. इनमें से 66 आरयूपीपी ने अपनी वार्षिक योगदान रिपोर्ट जमा किए बिना आयकर छूट का दावा किया.
रेग्यूलेटरी अनुपालन को मानने के लिए आयकर लाभ
राजनीतिक दलों के लिए रेग्यूलेटरी अरेंजमेंट्स को मज़बूत करने और गुमनाम भौतिक दान की सीमा को मौज़ूदा 20,000 रु. (250 डॉलर) से घटाकर 2,000 रु. करने की ज़रूरत है. इसके साथ ही आयकर छूट का लाभ पंजीकृत पार्टियों द्वारा नियमों के अनुपालन के पांच साल के रिकॉर्ड को सामने लाने के बाद ही उपलब्ध कराया जाना चाहिए. इतना ही नहीं, अनुपालन के उल्लंघन पर भारी जुर्माना लगाया जाना चाहिए, जिसमें चूक करने वाली संस्थाओं की आयकर-मुक्त स्थिति को निलंबित करना भी शामिल हो.
आंतरिक पार्टी लोकतंत्र लागू करें
आंतरिक पार्टी लोकतंत्र और बेहतर गर्वनेंस सुनिश्चित करने के लिए मिनिमम मेट्रिक्स को स्पेसिफाय किया जाना चाहिए, जिसमें अनिवार्य रूप से आवधिक (पिरयॉडिक) चुनाव शामिल हों और पार्टी के पदों पर बैठे पार्टी सदस्यों को सरकार में कार्यकारी पदों के लिए अयोग्य बनाना भी शामिल हो. सत्ताधारी पार्टी और सरकार के भीतर कार्यों को पूरी तरह अलग करने के लिए यह ज़रूरी है.
राजनीतिक दलों को रेग्यूलेट करने के लिए ईसीआई को सशक्त बनाना
राजनीतिक दलों के नियामक के रूप में चुनाव आयोग – एक संवैधानिक इकाई – को अनिवार्य करने के लिए जनप्रतिनिधि अधिनियम 1952 में संशोधन किया जाना चाहिए. इसके साथ ही सरकार से इतर ब्रॉडबैंड, चुनाव आयोग में नियुक्तियों और पर्यवेक्षण के लिए संस्थागत व्यवस्था भी बनाया जाना चाहिए. एक ख़ास मक़सद के ज़रिए सामूहिक पर्यवेक्षण, संसद की एक सर्वदलीय समिति इसे लेकर स्वागत योग्य इनोवेशन होगा.
भारत के विकास के चरण में सार्वजनिक धन से चुनावों की फंडिंग एक ऐसी विलासिता है जिसको वहन नहीं किया जा सकता है. फिर भी मौज़ूदा प्राइवेट फाइनेंसिंग की व्यवस्था और पार्टियों की आंतरिक कामकाज को टार्गेटेड रेग्यूलेशन के ज़रिए बेहतर बनाया जा सकता है साथ ही राजनीतिक दलों को दिए गए राजकोषीय विशेषाधिकारों के दुरुपयोग को टारगेटेड रेग्यूलेटरी ट्वीकस द्वारा कम किया जा सकता है लेकिन असल सवाल यह है कि क्या राजनीतिक दलों को नियंत्रित करने की राजनीतिक इच्छाशक्ति देश में मौज़ूद है?
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