Published on Jan 22, 2021 Updated 0 Hours ago

भारत में धुआं रहित तंबाकू उत्पादों पर नियंत्रण से संबंधित नीतियां कोविड-19 महामारी के दौरान सही मायने में प्रमुखता से सामने आई हैं. 

भारत में कोविड-19 महामारी के दौरान धुंआ रहित तंबाकू (ST) पर नीतिगत प्रतिक्रिया

भारत, दुनिया में तंबाकू के सबसे बड़े उपभोक्ताओं में से एक है जिनमें तंबाकू के विभिन्न प्रकार यानी धुएं वाले उत्पाद (smoked) और धुआं रहित उत्पाद (smokeless) दोनों शामिल हैं. राष्ट्रीय स्तर पर सर्वे से जुड़ी संस्था, ग्लोबल एडल्ट टोबैको सर्वे, जीएटीएस (Global Adult Tobacco Surveys-GATS) द्वारा साल 2009-10 और 2016-17 के बीच किए गए दो दौर के सर्वे के परिणामों से पता चला है कि धुआं रहित तंबाकू (एसटी) उत्पाद देश में तंबाकू की खपत का मुख्य रूप हैं. धुआं रहित तंबाकू का मतलब है तंबाकू के वह प्रकार जो उपयोग के समय जलाए नहीं जाते हैं. भारत में इस श्रेणी में लोकप्रिय उत्पादों में खैनी, गुटखा, ज़र्दा, तंबाकू के साथ सुपारी, तंबाकू टूथ पाउडर, तंबाकू टूथपेस्ट आदि शामिल हैं. ऐसा अनुमान है कि धुआं रहित तंबाकू के उपयोग के परिणामस्वरूप 2010 में भारत में 350,000 से अधिक मौतें हुईं और इनमें से लगभग 60 फ़ीसदी मौतें महिलाओं की थीं. धूम्रपान के विपरीत, जिसे आमतौर पर एक निषिद्ध या ग़लत आदत (taboo) के रूप में भी देखा जाता है, धुआं रहित तंबाकू (एसटी) का उपयोग सामाजिक रूप से अधिक स्वीकार्य है, विशेष रूप से महिलाओं के लिए.

ऐसा अनुमान है कि धुआं रहित तंबाकू के उपयोग के परिणामस्वरूप 2010 में भारत में 350,000 से अधिक मौतें हुईं और इनमें से लगभग 60 फ़ीसदी मौतें महिलाओं की थीं. 

धुआं रहित तंबाकू से जुड़े कई उपयोग इस तरह के हैं जो किसी क्षेत्र की संस्कृति और परंपरा के भीतर रचे बसे हैं, और एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचते हैं. नई दिल्ली में कुछ झुग्गी बस्तियों में, छह साल से भी कम उम्र के बच्चों को धुएं रहित तंबाकू के उत्पादों का नियमित इस्तेमाल करते हुए पाया गया है. हालांकि दुनिया भर के 100 से अधिक देशों में वयस्कों के बीच इस तरह के उत्पादों का उपयोग देखा गया है, लेकिन एक हालिया अध्ययन में लगाए गए अनुमान के मुताबिक दक्षिण और दक्षिण पूर्व में धुएं रहित तंबाकू से होने वाली 85 प्रतिशत से अधिक बीमारियां यानी मुंह का कैंसर और हृदय रोग, इसी कारण से होती हैं. अकेले भारत में एसटी से होने वाली गंभीर और जानलेवा बीमारियों का बोझ, वैश्विक स्तर पर इन बीमारियों के बोझ का 70 प्रतिशत हिस्सा.

कोविड-19 महामारी के दौरान धुंआ रहित तंबाकू के उपयोग की प्रासंगिकता

परंपरागत रूप से देखें तो, दुनिया भर में तंबाकू के हानिकारक प्रभावों पर अनुसंधान और नियंत्रण संबंधी प्रयास मुख्य़ रूप से सिगरेट यानी धूम्रपान पर केंद्रित हैं. यह वर्तमान समय में कोविड-19 की महामारी के दौरान काफ़ी हद तक सच भी साबित हुआ है, क्योंकि अध्ययनों से प्राप्त सबूतों से यह पता चलता है कि धूम्रपान, कोविड-19 के चलते अस्पताल में भर्ती होने और उस से होने वाली मौत के लिए अपने आप में एक जोख़िम हो सकता है. इसके विपरीत, धुआं रहित तंबाकू के उपयोग और कोरोनावायरस संक्रमण के बीच संबंध पर शायद ही कोई शोध किया गया है. हालांकि, अप्रत्यक्ष साक्ष्य के रूप में एसटी का उपयोग करने वालों के मुंह में पाए जाने वाले कुछ बदलाव (जैसे एंजियोटेंसिन में बदलने वाले एंज़ाइम और फ्यूरिन की मौजूदगी, आदि) और उनकी प्रतिरक्षा क्षमता यानी इम्यून रेस्पांस मकेनिज़्म में बदलाव यह दिखाता है कि धुआं रहित तंबाकू के उपयोगकर्ताओं में भी सार्स कोविड-2 (SARS-CoV-2) से संक्रमित होने और अपने ज़रिए दूसरों को संक्रमित करने का जोख़िम बढ़ जाता है.

इसके अलावा, एसटी उत्पादों में उपयोगकर्ताओं के बीच उन्हें बांटने और साझा करने की प्रवृत्ति अधिक रहती है, जिसमें पैकेटों का आदान-प्रदान, बार-बार हाथ से संपर्क करना, हाथ से मसल कर सेवन करना और लगातार थूकना शामिल है. ये सभी तौर तरीके कोरोनावायरस के संक्रमण को और अधिक फैलाने का काम करते हैं, और इस से वायरस के सामुदायिक रूप से फैलने का ख़तरा बढ़ जाता है. भारतीय संदर्भों में देखें तो यह स्थितियां, कोविड-19 के व्यापक सामुदायिक प्रसार के लिए विशेष रूप से प्रासंगिक और महत्वपूर्ण हैं. भारत में घनी आबादी और जनसंख्या के घनत्व को देखते हुए, बड़ी संख्या में धुआं रहित तंबाकू के रिटेल आउटलेट्स के आसपास भारी भीड़ देखी जाती है. इस के अलावा खुले व सार्वजनिक स्थानों पर व्यापक रूप से थूकना भी एक समस्या है.

भारत में नीतिगत प्रतिक्रिया

इन जोखिमों को स्वीकार करते हुए, भारत में कोविड-19 के प्रसार को कम करने के लिए, मार्च 2020 के बाद से धुआं रहित तंबाकू वाले उत्पादों पर नियंत्रण से संबंधित कई नीतिगत प्रतिक्रियाएं सामने रखी गई हैं. इन की शुरुआत कुछ राज्यों और ज़िलों में एसटी उत्पादों के क्षेत्रीय स्तर पर निर्माण और उनकी बिक्री पर रोक लगाने के साथ हुई. अप्रैल 2020 में, इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (Indian Council of Medical Research-ICMR) ने एक देशव्यापी अपील जारी की, जिसमें आम जनता को धुएं रहित तंबाकू वाले उत्पादों का सेवन करने और सार्वजनिक स्थानों पर थूकने से परहेज़ करने के लिए कहा गया. उसी महीने, भारत सरकार ने कोविड-19 के प्रबंधन के लिए एक राष्ट्रीय निर्देश भी जारी किया, जिसमें सार्वजनिक रूप से थूकने को दंडनीय अपराध के रूप में निर्दिष्ट किया गया, यानी एक ऐसी गतिविधि जिस के लिए जुर्माना वसूला जा सकता है. चूंकि धुआं रहित तंबाकू वाले उत्पादों में आमतौर पर थूक पैदा होता है, इसलिए इस प्रावधान को सीधे, इन उत्पादों पर ही लागू किया गया है. इस के अलावा, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को महामारी रोग अधिनियम (Epidemic Disease Act) 1897 और आपदा प्रबंधन अधिनियम (Disaster Management Act) 2005 के तहत और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) 1860 के विभिन्न प्रावधानों के तहत धुआं रहित तंबाकू वाले उत्पादों का उपयोग करने और सार्वजनिक स्थानों पर थूकने पर प्रतिबंध लगाने के लिए अतिरिक्त अधिकार दिए गए.

भारत में घनी आबादी और जनसंख्या के घनत्व को देखते हुए, बड़ी संख्या में धुआं रहित तंबाकू के रिटेल आउटलेट्स के आसपास भारी भीड़ देखी जाती है. इस के अलावा खुले व सार्वजनिक स्थानों पर व्यापक रूप से थूकना भी एक समस्या है.  

इस पृष्ठभूमि में, मई 2020 में यह बात सामने आई कि 28 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों ने एसटी उत्पादों से संबंधित विभिन्न प्रतिबंधों को लागू किया था, विशेष रूप से कोविड-19 के प्रसार को नियंत्रित करने की दृष्टि से. हालांकि, महामारी के ख़िलाफ़ राज्य स्तर पर इन अलग अलग नीतियों पर नज़र रखने की कार्रवाई आज तक पूरी नहीं हो पाई है. इस लेख को लिखने के पीछे की एक वजह यही है. हमें लगा कि यह उपयोगी होगा क्योंकि यह राज्य स्तर पर अपनाई जा रही नीतियों और उन के बीच किसी भी बदलाव के बारे में अधिक स्पष्टता प्रदान करेगा.

अलग-अलग राज्यों के बीच नीतिगत अंतर

साल 2012 की शुरूआत में, भारत के सभी राज्यों ने खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (Food Safety and Standards Authority of India-FSSAI) द्वारा जारी अधिनियम के तहत धुआं रहित तंबाकू वाले एक उत्पाद- गुटखा के निर्माण, बिक्री और वितरण पर प्रतिबंध लगाया था. इस अधिनियम के अनुसार, गुटखा को एक खाद्य उत्पाद के रूप में परिभाषित किया गया था, और इसलिए इसमें किसी भी प्रकार का तंबाकू नहीं होना चाहिए था. कुछ राज्यों में, यह प्रतिबंध तंबाकू युक्त अन्य उत्पादों पर भी लागू किया गया. ऐसे में महामारी के मद्देनज़र, इन मौजूदा उपायों में सख़्त कार्यान्वयन के प्रावधान ढूंढे गए हैं. उदाहरण के लिए, महाराष्ट्र सरकार ने राज्य पुलिस को गुटखा और सुगंधित तंबाकू की बिक्री और ख़रीद के ख़िलाफ़, गैर-ज़मानती अपराध दर्ज करने की अनुमति दी है, जिसे आईपीसी और इस लेख के पिछले भाग में उल्लिखित अन्य अधिनियमों के प्रावधानों के तहत संभव बनाया गया है. उत्तर प्रदेश में, इस प्रतिबंध को बिना तंबाकू वाले पान मसाला पर भी लागू किया गया था लेकिन इस प्रतिबंध को मई 2020 में हटा लिया गया. जबकि केंद्र सरकार ने पूरे देश में लागू राष्ट्रीय बंद के दूसरे चरण के दौरान सार्वजनिक स्थानों पर सभी धुआं रहित तंबाकू वाले उत्पादों की बिक्री पर राष्ट्रव्यापी प्रतिबंध जारी किया था, राज्यों ने तीसरे चरण के दौरान मिली छूट के बाद इन प्रतिबंधों को हटाने और इन उत्पादों को फिर से इस्तेमाल किए जाने का रास्ता खोल दिया. राजस्थान में, इस बदलाव के लिए जो तर्क दिया गया वह यह था कि निषेध से तंबाकू के लिए काला बाज़ार तैयार हो रहा था और ग़रीबों की आजीविका प्रभावित हो रही थी.

भारत सरकार ने कोविड-19 के प्रबंधन के लिए एक राष्ट्रीय निर्देश भी जारी किया, जिसमें सार्वजनिक रूप से थूकने को दंडनीय अपराध के रूप में निर्दिष्ट किया गया, यानी एक ऐसी गतिविधि जिस के लिए जुर्माना वसूला जा सकता है.

सार्वजनिक जगहों पर धूम्रपान पर रोक लगाने के विपरीत, भारत में बिना धुएं वाले तंबाकू के सार्वजनिक उपयोग पर प्रतिबंध नहीं था. हालांकि, कुछ राज्य इस मामले में अपवाद थे जैसे, महाराष्ट्र 2014 में सार्वजनिक स्थानों में एसटी के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने वाला भारत का पहला राज्य बन गया; यूपी जैसे कुछ राज्यों में, प्रतिबंध कुछ सार्वजनिक स्थानों जैसे सरकारी कार्यालयों आदि के लिए था. हालांकि, महामारी से निपटने के लिए, अप्रैल 2020 के बाद सभी राज्यों में धुआं रहित तंबाकू वाले उत्पादों के सार्वजनिक उपयोग पर समान रूप से प्रतिबंध लगा. जिन राज्यों में इस संबंध में नीतियां मौजूद हैं, वहां महामारी से संबंधित उपायों ने प्रतिबंध के दायरे को और अधिक बढ़ा दिया है, यानी सार्वजनिक स्थानों पर अधिक कारगर प्रावधानों के साथ और कठोर कार्यान्वयन की अनुमति दी गई है. जबकि सार्वजनिक रूप से थूकने (तंबाकू के सेवन के बाद) के ख़िलाफ़ कई राज्यों में कोविड काल से पहले भी स्थानीय रूप से नीतियां थीं, जैंसे बिहार नगरपालिका अधिनियम 2007, तमिलनाडु धूम्रपान और पान थूकने पर प्रतिबंध 2000, बॉम्बे पुलिस अधिनियम 1951, अप्रैल 2020 में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा जारी की गई निर्देशिका के बाद सभी राज्यों में समान रूप से इन्हें लागू किया गया है.

इस परिदृश्य में नीतियों की पड़ताल

भारत में धुआं रहित तंबाकू उत्पादों पर नियंत्रण से संबंधित नीतियां कोविड-19 महामारी के दौरान सही मायने में प्रमुखता से सामने आई हैं. जिस पैमाने पर भारत में इन उत्पादों की खपत है, इन के उपयोग से वायरस के संक्रमण का जोखिम और बढ़ जाता है. भारत पहले से ही डब्ल्यूएचओ फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन टोबैको कंट्रोल यानी एफसीटीसी (WHO Framework Convention on Tobacco Control) का एक हस्ताक्षरकर्ता है, जो धुआं रहित तंबाकू सहित सभी तंबाकू उत्पादों की आपूर्ति और मांग को विनियमित करने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय संधि है, हालांकि कई केंद्रीय नीतियों और क़ानूनों (जैसे, उत्पाद के पैकेजिंग पर चित्रों सहित स्वास्थ्य चेतावनी और विज्ञापन संबंधी प्रतिबंध) धुआं रहित तंबाकू उत्पादों के मामले में अक्सर दरकिनार कर दिए जाते हैं. जबकि देश में एफसीटीसी से संबंधित प्रयास जारी हैं, कोविड-19 की महामारी के दौरान धुआं रहित तंबाकू उत्पादों पर नियंत्रण संबंधी नीतियों के केंद्र में, मौजूदा उत्पादों पर प्रतिबंध (जैसे, गुटखा प्रतिबंध) को और अधिक मज़बूती से लादू करना और उनके सार्वजनिक इस्तेमाल व थूकने पर प्रतिबंधित लगाना रहा है, जो अभी तक एफसीटीसी की नीतियों से बाहर रहा है. ये नीतिगत उपाय देश भर में महामारी के दौरान अधिक समान रूप से लागू किए गए हैं, और इनके तहत राज्यों को प्रभावी रूप से धुआं रहित तंबाकू उत्पादों पर नियंत्रण करने के लिए अतिरिक्त अधिकार भी दिए गए हैं. हालांकि, थोड़े समय के भीतर ही नीतियों में संशोधन (जैसे, सार्वजनिक स्थानों पर एसटी की बिक्री पर प्रतिबंध) से भ्रम की स्थिति भी पैदा हो सकती है, और पिछले अनुभवों को देखते हुए, इन नई और संशोधित नीतियों के कार्यान्वयन और अनुपालन में मुश्किलें आने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं.

जबकि केंद्र सरकार ने पूरे देश में लागू राष्ट्रीय बंद के दूसरे चरण के दौरान सार्वजनिक स्थानों पर सभी धुआं रहित तंबाकू वाले उत्पादों की बिक्री पर राष्ट्रव्यापी प्रतिबंध जारी किया था, राज्यों ने तीसरे चरण के दौरान मिली छूट के बाद इन प्रतिबंधों को हटाने और इन उत्पादों को फिर से इस्तेमाल किए जाने का रास्ता खोल दिया. 

आगे का रास्ता

इन नीतिगत हस्तक्षेपों की प्रभावशीलता को बेहतर ढंग से समझने के लिए, आने वाले महीनों में उनका मूल्यांकन किया जाना चाहिए. यह हो सकता है कि महामारी ने धुआं रहित तंबाकू के उपयोग और सार्वजनिक स्थानों पर थूकने के प्रति लोगों के दृष्टिकोण को बदल दिया हो, और इन पहलुओं की अधिक समझ इन पर नियंत्रण संबंधी नीतियों का भविष्य और आगे की दिशा तय करने में उपयोगी हो. यह भी हो सकता है कि आम लोग अब एसटी पर नियंत्रण संबंधी उपायों और सरकारी नीतियों के प्रति सकारात्मक हों, और यह भारत में इस तरह के नियंत्रण को लागू करने के लिए सही समय साबित हो, ताकि एफसीटीसी और ग़ैर-एफसीटीसी दोनों तरह के नीतिगत उपायों को लागू करने पर ध्यान केंद्रित किया जा सके, ताकि तंबाकू से संबंधित दूसरे उत्पादों की तरह, धुआं रहित तंबाकू उत्पादों पर भी नियंत्रण पाया जा सके.

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